बिल्ली का न्याय

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एक वन में एक पेड की खोव में एक चकोर रहता था. उसी पेड के आसपास कईं पेड और थे जिन पर फल व बीज उगते थे. उन फलों व बीजों से पेट भरकर चकोर मस्त पडा रहता. इसी प्रकार कईं वर्ष बीत गये. एक दिन उडते-उडते एक ओर चकोर सांस लेने लेने के लिए उस पेड की टहनी पर बैठा. दोनो में बातें हई. दूसरे चकोर को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वह केवल पेडों के फल व बीज चुग-कर जीवन गुजार रहा था, दूसरे चकोर ने उसे बताया भाई दुनिया में खाने के लिए केवल फल और बीज ही नहीं होते और भी कईं स्वादिष्ट चीजें है उन्हें भी खाना चाहिए.

खेतों मैं उगने वाले अनाज तो बेजोड होते हैं, कभी अपने खाने का स्वाद बदल कर देखो. दूसरे चकोर के उडने के बाद वह चकोर सोच में पड गया. उसने फैंसला किया कि वह दूर नजर आने वाले खेतों की ओर जायेगा. और उस अनाज नाम की चीज का स्वाद चखकर देखेगा. दूसरे दिन चकोर उडकर एक खेत के पास उतरा.  खेत में धान की फसल उगी थी चकोर ने कोंपले खायी , उसे वह बहुत स्वादिष्ट लगी उस दिन के भोजन में उसे इतना आनन्द आया कि खाकर तृप्त होकर वहीं आंखे मुंदकर सो गया. इसके बाद भी वह वहीं पडा रहा.

रोज खाता पीता और सो जाता. 6-7 दिन बाद उसे सुध आई की घर लौटना चाहिए. इस बीच एक खरगोष घर की तलाश में घुम रहा था, उस इलाके में जमीन के नीचे पानी भरने के कारण उसका बिल नष्ट हो गया था. वह उसी चकोर वाले पेड के पास आया और उसे खाली पाकर उसने उस पर अधिकार जमा लिया और वहां रहने लग गया. जब चकोर वापस लौटा तो उसने पाया कि उसके घर पर किसी ओैर का कब्जा हो गया है.

चकोर क्रोधित होकर बोला – ऐं भाई तू कौन है? और मेरे घर में क्या कर रहा है ? खरगोश ने दांत दिखाकर कहा – मैं इस घर का मालिक हूं, मैं सात दिन से यहां रह रहा हूं, यह घर मेरा है. चकोर गुस्से से फट पडा सात दिन भाई मैं इस खोह में कईं सालों से रह रहा हूं. किसी भी आसपास के पंछी या चोपाई से पुछ ले.

खरगोश चकोर की बात काटता हुआ बोला – सीधी सी बात है मैं यहां आया यह खोह खाली पडी थी और मैं यहां बस गया. मैं क्यों पडोसीयों से पुछता फिरू ? चकोर गुस्से में बोला वाह! कोई घर खाली मिले तो क्या, इसका यह मतलब हुआ कि उसमें कोई नहीं रहता.

मैं आखिरी बार कह रहा हूं कि शराफत से कह रहा हूं कि मेरा घर खाली कर दे. खरगोश ने भी उसे ललकारा वरना तू क्या कर लेगा ? यह घर मेरा हैं तुझे जो करना हैं कर ले. चकोर सहम गया. वह मदद और न्याय की फरियाद लेकर पडोसी जानवरों के पास गया. सबने दिखावा किया परन्तु ठोस रूप से कोई सहायता करने सामने नहीं आया.

एक बुढे पडोसी ने कहा- ज्यादा झगडा बढाना ठिक नहीं होगा. तुम दोनो आपस में कोई समझौता कर लो. पर समझौते की कोई सुरत नजर नहीं आ रही थी. अन्त मे जनेउ धारी लोमडी ने उन्हें सलाह दी तुम किसी ज्ञानी-ध्यानी को पंच बनाकर अपने झगडे का फैसला उससे करवाओ. दोनो को यह सुझाव पसन्द आया. अब दोनो पंच की तलाश में इधर-उधर घुमने लगे. इसी प्रकार घुमते-घुमते वे दोनो गंगा किनारे आ निकले, वहां उन्हें जप-तप में मगन लोमडी का दोस्त बिल्ली नजर आई. बिल्ली के माथे पर तिलक था, गले में जनेउ, और हाथ मे माला लिये मृगछाला पर बैठी वह पूरी तपस्वीनी लग रही थी.

उसे देखकर चकोर व खरगोष ख़ुशी से उछल पडे. उन्हें भला इससे अच्छा ज्ञानी-ध्यानी और कहां मिलेगा ? खरगोश ने कहा- चकोर जी क्यों न हम इससे अपने झगडे का फैसला करवाये. चकोर पर बिल्ली का अच्छा प्रभाव पडा था. पर वह जरा घबडाया हुआ था. चकोर बोला- मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं, पर हमें जरा सावधान रहना चाहिए. खरगोष पर तो बिल्ली का जादू चल गया था उसने कहा – अरे नहीं यह बिल्ली सांसारिक मोहमाया त्याग कर तपस्वीनी बन गई है.

सच्चाई तो यह थी कि बिल्ली उन जैसे मूर्ख जीवों को फांसने के लिए भक्ति का नाटक कर रही थी. फिर चकोर और खरगोष पर और प्रभाव डालने के लिए वह जोर-जोर से मंत्र पढने लगी और लोमड़ी ये सब झाड़ी के पीछे देख रहा था. खरगोष और चकोर ने उसके निकट आकर और हाथ जयकारा लगाया – जय मातादी. माता को प्रणाम! बिल्ली ने मुस्कुराते हुए धीरे से अपनी आंखें खोली और आशीर्वाद दिया-आयुष्मान भवः। तुम दोनो के चेहरों पर चिंता की लकीरें है. क्या कष्ट हैं तुम्हें बच्चों ? चकोर ने विनती की माता हम दोनों के बीच एक झगडा है. हम चाहते हैं कि आप उसका फैसला करें. बिल्ली ने पलकें झपकाई हरे राम , हरे राम तुम्हें झगडना नहीं चाहिए. प्रेम और शान्ति से रहो. उसे उपदेश दिया और बोली – खैर बताओं तुम्हारा झगडा क्या है? चकोर ने मामला बताया, खरगोष ने अपनी बात कहने के लिए मूंह खोला ही था कि बिल्ली ने पंजा उठाकर उसे रोका और बोली- बच्चों मैं काफी बुढी हूं। ठीक से सुनाई नहीं देता, आंखे भी कमजोर है, इसलिए तुम दोनो मेरे निकट आकर मेरे कान में जोर से अपनी अपनी बात कहो ताकि मैं झगडे का कारण जान सकूं. और तुम दोनो को न्याय दे सकूं. जय सियाराम. वे दोनो भक्तिन बिल्ली के बिलकुल निकट आ गये ताकि उसके कानों में अपनी-अपनी बात कह सकें. बिल्ली को इसी अवसर की तलाश थी. उसने म्याउं की आवाज लगाई और एक ही झपट्टे में खरगोश और चकोर का काम तमाम कर दिया. फिर वह और लोमड़ी आराम से उन्हें खाने लगी.

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