सुखद भविष्य की तैयारी

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क्या आपने भी सुखद भविष्य की तैयारी की हैं

जैसे आज की प्रथा हैं कि प्रेसिडेंट कुछ वर्षाे के लिए होते है। फिर नया चुनाव होता है । उसी तरह किसी एक देश में यह प्रथा थी कि हर साल में शासक बदले जाते थे।

राजा बदल दिये जाते थे। जब राजा बदले जाते, तब पुराने राजा के सभी कपडे उतरावा लिये जाते थे और एक लंगोटी पहना दी जाती थी और बदन पर एक चादर डाल दिया जाता था। और उसे नौका में बेैठाकर उस पार जंगल में छोड दिया जाता था।

यहां इस जंगल कोइ बस्ती नहीं रहती थी। यह प्रथा चली आ रही थी। उस पार छोडे गये जो इस प्रकार के मनुष्य रहते थे, वे बेचारे दुख पा-पा कर के मर जाते। वे कष्ट उठाते थे न तो वहां कोई सामान रहता, न कोई खाने की चीज रहती, घोर जंगल था। यह बात सभी जानते थे साल भर के बाद यहां से चले जाना है। लेकिन कुछ करते कराते नही थे।

एक बार किसी को वह स्थान मिला। वह कुछ समझदार था। समझदार वह जो अपना अगला काम बना ले , जो भविष्य को देखे वह समझदार। उसने अधिकार मिलते ही मंत्रीयों और अन्य लोगों से पूछा कि हमारा कितने दिन का अधिकार है ? उसे बताया गया कि एक वर्ष का। उसने फिर पूछा कि सालभर में अधिकार की कोई सीमा है ? कोई सीमा नहीं है- यह उत्तर मिला। आप जो चाहें सो कर सकते हैं।

एक साल तक आपकी सारी बात पूरी की पूरी ज्यो कि त्यों मान ली जायेगी। आप कुछ भी दे लें, कुछ भी करें, किसी को बसाये, किसी को उजाडे अपका पूरा अधिकार है। तब उसने अपने मन में निश्चय किया कि जब सालभर के बाद यहां से जाना ही हैं और वही जाना हैं तो जहां जाना हैं, उस स्थान का पता लगायें और पहले वहां की व्यवस्था करें।

यहां सालभर जो रहना हैं उसमें जो जिम्मेदारी के कार्य मिले हैं उनको निभाएंगे ईमानदारी के साथ। जितनी उपर की चीजे – नाच, मुजरा, तमाशा, अभिनन्दन, बंदगी, पार्टी, दावत, इन सब कामों में समय खोना ऐष आराम मे समय खोना, इंद्रियों के भोगों मे समय खोना तो मूर्खता है।

क्योंकि एक साल के बाद तो यह सारे समाप्त हो जायेंगे। उसने सभी फालतू कार्यों को जिनकी जरूरत जीवन में नही हैं, केवल आडंबर कौतुहल और भोग और लिप्सा को लेकर किये जाते हैं, उन सब कार्यों को बन्द करवा दिया।

लोग तो सोचते हैं नये राजा है, उनसे कुछ लेना हैं, काम कराना हैं अपना स्वार्थ सिद्ध करना हैं – यह सोचकर आते ही हैं। उसके पास भी आये और बोले – हमने अमुख जगह बडा इंतजाम किया है, बडा सुंदर नाच होगा। सभी महाराजा वहां पधारते रहे हैं आपको भी पधारना चाहिए। उस राजा ने कहा- हमें अवकाश नही है। कुछ दिनों तक तो लोग आये, फिर सोचने लगे कि यह तो मनहूस आदमी है, यह कहीं आयेगा जायेगा नहीं इसे छोडो।

स्ंसार का यही स्वरूप् है। हम दूसरों का नाम झुठे लेते हैं, हम अपने से ही फंसते चले जाते है। आप अगर अलग हो जाये और संसार वाले को दिख जाये कि इनसे अपना स्वार्थ नही सिद्ध होगा तो अपने आप सब छोड देंगे और सम्बन्ध रखेंगे तो भी उपर -उपर से । सभ्यता के नाते।

मां -बाप बुढे हो गये और लडके बडे शीलवान हैं फिर भी उनके पास समय नही हैं की उनके पास बैठे। वे निकम्मे नही हैं कामकाजी है। पिताजी माताजी के लिए नौकर रख देंगे । डाॅक्टर से कहलवा देंगे कि आकर देख जाया करो। दवा की व्यवस्था कर देंगे, लेकिन उनके पास बैठकर दिनभर उनकी बात सुने और वे बिच में दखल अंदाजी करें, हस्तक्षेप करें ऐसा नही होता वे पिताजी को समझा देंगे कि देखिए –

अब आप बुढे हो गये आप भगवान् का नाम लो आप पडे रहो, आपके पास आदमी हैं सेवा में कोई कमी नही है। हम लोग कामकाजी आदमी हैं हमारे पास कहां फूर्सत हैं कि आपके पास बैठें। आपकी दुनिया दूसरी हैं और आज की दूसरी है। आप बीच में बोल देते हैं और हमारा काम बिगड जाता है। आप चुपचाप रहा करें मतलब यह कि- उनसे कोई काम अपना नही है। निकम्मे आदमी से कोई काम नही। संसार में जब तक स्वार्थ हैं तब तक प्रेम है | याद रखना इस बात को |

जब तक स्वार्थ हैं तब तक तो प्रीति हैं, प्रेम हैं और जहां देखा कि इससे स्वार्थ नही सधता, तब उपेक्षा हैं जहां स्वार्थ में किसी तरह की अडचन आने लगे तो द्वेष हैं। जब लोगों ने देखा कि राजा साहब तो कुछ काम करते कराते नहीं हैं तो क्यों व्यर्थ में आयें खुशामद करे।

इसलिए लोगो ने आना छोड दिया। उन्होंने सोचा बड़ा अच्छा हुआ, पिंड छूटा लोग ज्यादा सताते अब अपने आप सब काम निपट गया। अब वह अपना राजकाज देखने लगे और यह आदेश दे दिया कि नदी के उस पार का सारा जंगल आबाद करवाया जाये। नगर के नगर वहां बसे। और यहां का सामान वहां भेजा जाये। ग्यारह माह पूरे होने तक वहां सारी व्यवस्था हो जाये और वहां का सारा कार्य पूर्ण हो जाये।

यह राजाज्ञा थी, सामान की कमी थी नहीं और इसी बात पर शासन का पूरा जोर था। नदी के उस पार का पूरा जंगल आबाद हो गया, यहां से अच्छी-अच्छी चीजे वहां गयी। अब सालभर पूरा होते ही इनके कपडे उतरवाये गये और चादर दे दिया गया। कहा गया कि नावं में बैठो तो,  वे नांव में बैठ गये।

नांव चली तो यह राजा हंसते हुए चले । उनसे पूछा गया कि तुमसे पहले के राजा तो सब रोते हुए गये थे, आप हंसते हुए क्यो जा रहे हैं ? उसने कहा- सभी यहां हंस रहे थे इसलिए रोते हुए गये, मैंने यहां हसंना छोड दिया इसलिए हंसते हुए जा रहे है। यहां राग करते, ममता करते, हंसते तो हम भी खाली हाथ रोते हुए जाते।

लेकिन हमने अपना आगे का सारा काम कर लिया। जहां जाना है वहां हमारे लिए यहा से अधिक सुख मौंजुद है। यह दृष्ठान्त दिया चरणदासजी ने अपने ग्रन्थ में; कहने का मतलब यह हैं कि हमारी जो उम्र हैं, यह बिलकुल नपी तुली है। प्रत्येक श्वास का हिसाब है। कि इतने श्वास आएंगे। और जहां श्वास पूरे हुए फिर उसके बाद जाना ही है।

डाॅक्टर की कैपेसिटी नही कि एक हस्ताक्षर तक करने योग्य बना दे। इसलिए जो कुछ भी करना हैं उसे अभी कर लें और जो करने के लिए ही यह मानव जीवन मिला हैं उसे सबसे पहले करना है। यहां के लिए तैयार रहें, तैयार रहने का अर्थ यही हैं कि मन कही अटके भटके नही और आगे के लिए तैयार रहे।

आगे के लिए तैयारी यही करनी हैं कि भगवान में हमारा मन लगा रहे। भगवान हमें ले जाने के लिए प्रस्तुत रहे। यह तो आगे की तैयारी है। इसके लिए करना हैं कि यहां कोई ममता आसक्ती न रह जायें। जो कुछ भी यहां का बंधन हैं वह ममता और आसक्ति का बंध न है। यह मेरा हैं – यह ममता है। ममता ही बांधती हैं |

इसलिए जगत के प्राणी, पदार्थों और परिस्थिति मे न रहे सब छुटेगा। यह निश्चित बात है। और ऐसा छुटेगा कि हम उससे सबंध नही रख सकेंगे । फिर चाहे आप भुत प्रेत होकर भटके रोयें चिल्लाएं | मैंने प्रेत आत्माओं से बात-चित की हैं, उनसे मैंने ज्ञात की हैं यह सारी स्थितियां |

प्रेत लोक मेें यहां की वासनाओं को लेकर यहां की ममतओं को लेकर यहां की आसक्ति को लेकर, यहां के वैर विरोध केा लेकर बडा कष्ट होता है। इसलिए यंहां का खाता चुकता करके जाना चाहिए। यहां का खाता अर्थात राग-द्वेष, ममता का खाता यहां चुकता हो जाये तब तो बडी आसानी से आगे शक्ति मिलती है।

नही तो महाराज इतना भयानक कष्ट मिलता हैं कि असहाय होता है। और वहां जीव निरूपाय होता है। कुछ कर पाता नही है। और उसका मन रातदिन जलता रहता है। प्रेत योनी जो निम्न कोटी के प्रेत होते हैं उनको नरक यात्रा तो भोगनी ही पडती हैं उसके अतिरिक्त उनका मानस क्लेष इतना भयानक होता हैं कि जिसे वे किसी प्रकार से मिटा नही सकते। यहां मिटा सकते है। मनुष्य कर्म स्वतंत्र हैं लेकिन प्रेत नही। वहां तो ऐसी बुरी दशा होती हैं कि जिसका कोई ठिकाना नही।

इसलिए ठीक ऐसी राजा की तरह आप भी अपने जीवन काल को बिना व्यर्थ गवाये आगे के जीवन के लिए लगाए, ध्यान करें, साधन करें, तपस्या करें | सांसारिक मोह माया में न फंसे नहीं तो ठीक और राजाओ की तरह आप भी जीवन के अंत में रोते हुए विदा होंगे | फैसला आपके ही हाथ में हैं |

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
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