विनीलक -जातक कथा

loading...

एक बार एक स्वर्णिम राज-हंस मिथिला में रुका, जहाँ उसने एक कौवी के साथ सहवास किया जिससे काले मेघ के समान एक कौवा पैदा हुआ जिसका नाम उसके वर्ण और छवि के अनुकूल विनीलक रखा गया। कुछ ही दिनों में हंस और कौवी अलग-अलग हो गये और हंस फिर से हिमालय के निकटवर्ती एक सरोवर में वास करने लगा। वहाँ उसने एक सुंदर हंसी के साथ विवाह कर एक नया घर-संसार बसाया। हंसी ने दो सुन्दर सफेद हंसों को जन्म दिया।

हंस-पुत्र जब बड़े हो गये और उन्हें विनीलक के अस्तित्व का ज्ञान हुआ तो पिता की आज्ञा ले, वे विनीलक से मिलने मिथिला जा पहुँचे। गंदे कूड़े के ढेर पर रहते विनीलक को उन्होंने अपने साथ पिता के पास हिमालय चलने का निमंत्रण दिया। विनीलक ने उनका निमंत्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया। तब दोनों ही हंसों ने एक लकड़ी के दोनों छोरों से पकड़ विनीलक को उस पर सवार होने का आग्रह किया। जब विनीलक ने वैसा किया तो उन्होंने हिमालय की तरफ उड़ना आरम्भ कर दिया। मार्ग में उन्हें मिथिला के राजा विदेह की सवारी दिखाई पड़ी जिसे चार सफेद घोड़े खींच रहे थे। राजा की सवारी देख विनीलक चिल्ला उठा “देख! राजा की सवारी उसके सफेद घोड़े ज़मीन पर खींच रहे हैं किन्तु मेरी सवारी तो सफेद अनुचर आसमान पर! दोनों हंसों को कौवे की अपमान-जनक वाणी से क्रोध तो बहुत आया मगर पिता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उसे नीचे नहीं गिराया और हिमालय में लाकर पिता के सामने रख दिया। फिर उन्होंने विनीलक के अपशब्दों से भी पिता को अवगत कराया। विनीलक के गुणों को सुन पिता ने अपने दोनों पुत्रों को फिर से विलीलक को मिथिला छोड़ आने को कहा क्योंकि वह हिमालय पर रहने योग्य नहीं था। तब हंसों ने उसे उठाकर फिर मिथिला पहुँचा आये जहाँ वह मलों के ढेर में अपना वास बना काँव-काँव करता हुआ रहने लगा।

अच्छी तरह से ध्यान दें: अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के  उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनाता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंधविश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उसको मानसिक विकृति कहते हैं । हमेशा कहानी का तार्किक नैतिकता को ही ज्ञान के रूप में स्वीकार करे अन्यथा केवल एक मनोरंजन ।

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
loading...

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।

loading...

क्रमरहित सूची

Recent Posts

ज्ञान, आजाद है; और किसी को भी बिना किसी प्रतिबंध के ज्ञान का आनंद लेने का अधिकार है. इस में प्रकाशित कोई भी कहानी या लेख को आप बिना प्रतिबन्ध के उपयोग कर सकते हो. आप अपने ब्लॉग में यहाँ से कॉपी करके पेस्ट कर सकते हो लेकिन कोई भी फेब्रिकेशन या फाल्सीफिकेशन की जिम्मेदारी आप की होगी. वेबसाइट का सिद्धांत नैतिक ज्ञान फैलाना है, ना कि ज्ञान पर हक़ जताना. ज्ञान की स्वतंत्रता वेबसाइट का आदर्श है; आप जितना चाहते हैं उतना उसकी प्रतिलिपि(Copy) बनाकर बिना प्रतिबन्ध के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैला सकते हो.