मार -जातक कथा

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बौद्ध-परम्परा में मार मृत्यु, कुकृत बल और प्रलोभक के रुप में जाना जाता है जिसे आधुनिक भाषा में शैतान का रुप समझा जा सकता हैं।

जब यह कहा जाता है कि ‘मार’ तो वह क्लेश अथवा मृत्यु का द्योतक है। मार को नमुचि का नाम दिया गया है क्योंकि कोई भी उससे नहीं बच सकता। उसे वसवत्ती भी कहा जाता हैं क्योंकि वह हर कोई को अपने वश में करता हैं। जब भी वह किसी को शील के मार्ग पर अग्रसर देखता है तो उसे पथ-भ्रष्ट करने के लिए अनेकों अवरोध उत्पन्न करता हैं। मार की कहानियों का प्रथम परिचय पधान-सुत्त में होता है जहाँ मार बुद्ध को संबोधि-प्राप्त करने से रोकने का यत्न करता है।

मार की दस सेनाएँ होती हैं, यथा राग (क्रोध), असंतोष या घृणा, भूख, प्यास, तृष्णा, आलस्य, भय, शंका, दम्भ तथा घमण्ड।

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