शूद्रों को पंच

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बहुत समय पहले बीरबल ने बादशाह प्रार्थना करके यह वचन ले लिया था कि जब कभी मुझसे कोई अपराध हो जाये तो उसका न्याय वही पंच करे जिनको मैं खुद चुनूं. बादशाह ने बीरबल की यह प्रार्थना स्वीकार करते हुए उन्हें इसका वचन दे दिया था. बादशाह अपने वायदे के पक्के थे इसलिए बीरबल को प्रार्थना की स्वीकृति के बारे में सुनकर बहुत ख़ुशी हुई.

अचानक एक दिन बीरबल से एक अपराध हो गया बादशाह ने दंड देने के लिए बीरबल को बुलाया और कहा-तुमने जो कसूर किया हैं उसकी सजा तुम्हें जरूर मिलेगी तब बीरबल ने इस अवसर का लाभ उठाने के लिए बादशाह को उनके दिये गये वचन का स्मरण करवाया, बादशाह की अनुमति लेकर पांच शूद्रों को पंच चुना बादशाह को आश्चर्य हुआ यह शूद्र क्या न्याय करेंगे ?

खैर उन पांचों शूद्रों को बीरबल के अपराध के संबध में सारी बातें समझा दी गई और न्याय करने का आदेश दिया गया. ऐसा सम्मान पाकर शूद्रों को बहुत ख़ुशी हुई साथ ही उनमें प्रतिहिंसा की भावना भी जागृत हुई, पंचों ने यह सोचा कि बीरबल ने कई बार उनकों अनेक कष्टों में डाल दिया था उसका बदला लेने का यह सुनहरा अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहिए.

ऐसी दंड व्यवस्था की जानी चाहिए कि बीरबल को अच्छा सबक मिले ताकि भविष्य में वह किसी के साथ बूरा व्यवहार करने का साहस न करे. उन पांचों में से पहला बोला – भाईयों बीरबल का अपराध तो बहुत बडा हें इसलिए 105 रूपया जुर्माना करना चाहिए.

इतनी बडी रकम की जुर्माने की कल्पना कर के दूसरा पंच सिहर उठा उसने सोचा बीरबल के बाल-बच्चों पर इसका बूरा असर पडेगा उसका घर बार चौपट हो जायेगा यह सोचकर जुर्माना घटाकर सिर्फ 100 रुपये करने का प्रस्ताव किया.

तीसरे पंच को इतना जुर्माना भी ज्यादा लगा उसने आश्चर्य प्रकट करते हुए जुर्माना घटाकर 60 रुपये ही करने का प्रस्ताव किया साथ ही उसने यह भी कहा कि इतना जुर्माना काफी हैं फिर भी अगर पंच लोग चाहें तो 10 रुपये और बढा सकते हैं.

अब चौथे पंच की बारी आई, उसने अब तक के सभी प्रस्तावों का विरोध किया और कहा इतना जुर्माना तो बहुत ज्यादा हैं और इसमें ज्यादा से ज्यादा कमी होना चाहिए. चौथे पंच के प्रस्ताव का पांचवे ने समर्थन किया और सर्वसम्मति से थोडी देर की बहस के बाद बीरबल पर 50 रुपये जुर्माना करना चाहिए क्योंकि यह जुर्माना बहुत ज्यादा नहीं है और बादशाह से यह प्रार्थना की गई कि इसकी वसूली में सख्ती न बरती जाये. इसके बाद पांचों शूद्र पंच बादशाह से विदा लेकर चले गये.

बादशाह समझ गये कि बहुत सोच-समझ कर बडी होशियारी से बीरबल ने शूद्रों को अपना पंच चुना था, बादशाह की नजरों में 50 रुपये का जुर्माना कुछ नहीं था लेकिन शूद्रों की गरीबी और परिस्थिति का खयाल करके कि साल भर तक जीजान से परिश्रम करने के बाद भी वे 20-25 रुपये नहीं बचा पाते इसलिए उनकी नजर में 50 रुपये बहुत ही बडा जुर्माना हैं.

बादशाह दया की भावना से भर उठे साथ ही बीरबल की चतुराई की मन ही मन तारिफ करने लगे. बादशाह बीरबल को फैसला सुनाने ही जा रहे थे लेकिन ऐसा सोचते-सोचते उन्होंने बीरबल को दंडमुक्त कर दिया.

बीरबल को पहले ही मालूम था कि यह गरीब जातियां इतना ज्यादा रूपया नहीं बचा पाती जो ज्यादा जुर्माना निर्धारित कर सके और हुआ भी यही.

– इसी कारण बीरबल ने अपने न्याय के लिए शूद्रों को ही पंच बनाया था. इसमें उनका उद्देश्य भी था की इस तरीके से बादशाह को निम्न जातियो की गरीबी का भी अहसास हो जायें.

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