पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ

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नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान माना जाता है। एक राज्य का राजा के तीन पुत्र मुर्ख और अहंकारी थे । राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की, परन्तु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी । हारकर एक दिन राजा ने अपने मंत्रियो से मंत्रणा की । राजा के मंत्रिमंडल में कई कुशल, दूरदर्शी और योग्य मंत्री थे, उन्हीं में से एक मंत्री  ने राजा को परामर्श दिया की उनके जानकार में एक बुद्धिजीवी हैं जो उन्हें ज्ञान देसकते हैं और अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की समर्थ रखते हैं ।

राजा बुद्धिजीवी से अनुरोध किया और पारितोषिक के रूप में उन्हें सौ गाँव देने का वचन दिया । बुद्धिजीवी ने पारितोषिक को तो अस्वीकार कर दिया, परन्तु राजकुमारों को शिक्षित करने के कार्य को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया । इस स्वीकृति के साथ ही उन्होंने घोषणा की, की में यह असंभव कार्य मात्र छ:महीनो में पूर्ण करूँगा, यदि में ऐसा न कर सका तो महाराज मुझे मृत्युदंड दे सकते हैं । बुद्धिजीवी की यह प्रतिज्ञा सुनकर महाराज निश्चिन्त होकर अपने शासन-कार्य में व्यस्त हो गए और बुद्धिजीवी तीनो राजकुमारों को अपने आश्रम में ले आए ।

बुद्धिजीवी ने राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से सम्बंधित कथाए सुनाई । उन्होंने इन कथाओं में पात्रों के रूप में पशु-पक्षिओ का वर्णन किया और अपने विचारों को उनके मुख से व्यक्त किया । पशु-पक्षिओ को ही आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित-अनुचित आदि का ज्ञान दिया और इसके साथ ही राजकुमारों को व्यवहारिक रूप से प्रशिक्षित करना आरंभ किया । राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के पश्चात बुद्धिजीवी ने इन कहानियों पंचतंत्र कहानी संग्रह के रूप में संकलित किया ।

पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है :-

१.मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
२.मित्रलाभ (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
३.संधि-विग्रह (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
४.लब्ध प्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
५.अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें)

मनोविज्ञान, व्यवहारिकता तथा राजकाज के सिद्धांतों से परिचित कराती ये कहानियाँ सभी विषयों को बड़े ही रोचक तरीके से सामने रखती है तथा साथ ही साथ एक सीख देने की कोशिश करती है।

आप को बहुत सारे स्रोत मिलजाएँगे जहाँ पर ये  लिखा होगा पचतंत्र का रचयिता विष्णु शर्मा हैं जो की एक ब्राह्मण हैं । आप अगर कहानियोंको ठीकसे पढ़ेंगे आप को यह एहसास हो जायेगा की ये कहानियाँ किसी धर्म को प्रमोट करने केलिए रचना की नहीं गयी है । ज्यादातर कहानियों में आपको ये अहसास जरूर होगा ये किसी वैदिक धर्म से संबंधित नहीं है जिस में धर्म की पहचान मिलाया गया है; ब्राह्मण पहचान वेद से निकला है और ये ज्ञान सम्पदा में वैदिक ब्राह्मण पहचान को प्रमोट करने की कोसिस की गयी है; यही गलत नियत इस बात का सूचक है की पंचतंत्र की ज्ञानसम्पदा से छेड़ छाड़ की गयी है । हो सकता है पचतंत्र बौद्धिक ज्ञान सम्पदा हो या चार्वाक/लोकायत या  वैशेषिक जैसे तर्कवादी विचारधाराओं के रचना हो जिसको 185BC के बाद ब्राह्मणीकरण की गयी हो ब्राह्मणीकरण का सबसे वीक पॉइंट है की वह सब में ब्राह्मण की चरित्र और वैदिक भगवान ( इन्द्र, ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र इत्यादि ) को घुसाके अपनी धर्म की प्रमोशन करते हैं और वही नियत उनकी शातिरपन को दर्शाता है । हमारे विशाल भूखंड में पैदा अनेक बौद्धिक सम्पदा का ब्राह्मणीकरण करके उनकी कचड़ा की गयी जिसको अभी सही करना जरूरी है ।  हमारे लोगोंके तर्क अंधापन को दूर करना वेबसाइट की उद्देश्य है । जो बदनीयत वाले पूर्वज थे उनके बदनियत को एक्सपोज़ करें और अपना सही और असली ज्ञानसम्पदा की खोज करने में हेल्प करें । ज़्यदातर कहानियों में ही इसके अपभ्रंश की क्लू छुपे हुए हैं जिसको आप खुद ही पढ़कर समझ सकते हो ।

 

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