कुशल-ककड़ी -जातक कथा

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एक विद्वान् परिवार में सात भाई और एक बहन थी। परिवार का सबसे बड़ा भाई बहुत ही शीलवान् और गुणी था। उसने अपने काल की अनेक विद्याओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था।

जब उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई तो उसने संयास वरण करने का निश्चय किया। भाई के आदर्शों पर चलने वाले उसके छोटे बहन-भाई भी उसका अनुकरण करना चाहते थे । उनके साथ ही उनकी सेवा-टहल के लिए उनका एक नौकर और एक नौकरानी भी हो ली। उन लोगों ने वन में एक जलाशय के किनारे अपनी अलग-अलग कुटिया बनाई । फिर उन्होंने यह व्रत लिया कि दिन भर में वे केवल एक बार ही भोजन करेंगे और प्रत्येक पाँचवें दिन बड़े भाई के उपदेश सुनने के लिए इकट्ठा होंगे।

नौकरानी उनके लिए प्रतिदिन कमल की ककड़ी जलाशय से निकाल आठ बराबर भागों में बाँट, दो लकड़ियों को बजा उन सभी को यह सूचना दिया करती थी कि उनका भोजन तैयार है। वे भाई-बहन उम्र के क्रम से आते और अपना हिस्सा उठा पुन: अपनी कुटिया में लौट जाते। हाँ, प्रत्येक पाँचवें दिन वे सभी बड़े भाई का उपदेश को सुनने अवश्य इकट्ठे होते थे।

उनकी कठिन साधना को देख, परीक्षण हेतु एक शातिर शरारती प्रतिष्ठित धूर्त एक दिन वहाँ पहुँचा। उस दिन नौकरानी ने जब लकड़ियाँ बजा कर कुटिया-वासियों को यह संदेश दिया कि “उनका भोजन तैयार है”, तो प्रतिष्ठित धूर्त ने अदृश्य रुप से बड़े भाई के हिस्से की कमल-ककड़ी चुरा ली। बड़े भाई ने, जो सबसे पहले वहाँ पहुँचता था, जब अपने हिस्से की ककड़ी गायब देखी तो वह चुपचाप ही अपनी कुटिया को लौट गया। फिर शेष भाई-बहन आते गये और अपने हिस्से का भोजन लेकर अपनी-अपनी कुटिया को लौट गये। इस प्रकार पाँच दिनों तक प्रतिष्ठित धूर्त ने वैसा ही किया जिससे बड़ा भाई बिना भोजन किये ही साधना करता रहा और उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया।

पाँचवे दिन जब सारे भाई-बहन, नौकर-नौकरानी  बड़े भाई के उपदेश सुनने इकट्ठे हुए तो वह बिल्कुल रुग्ण दीखा। उसके मुख से भी आवाज़ ठीक से नहीं निकल रही थी। कारण जानने के बाद सभी बड़े खिन्न हुए। फिर भी उन्होंने चोर की भत्र्सना नहीं की बल्कि उसकी मंगलकामना की। इसे सुनकर प्रतिष्ठित धूर्त लज्जित हुआ और उनसे क्षमा मांगी और बड़े भाई के शील-व्रत की विशेष प्रशंसा की।

कृपया ध्यान दें:

हो सकता है आप को इस कहानी का अलग वर्जन मिले जिसमें ब्राह्मणीकरण के वजह से आप को एक भिन्न तरह की कहानी मिले लेकिन उस कहानी की सुधार यहाँ प्रस्तावित करने की कोशिश की गयी है । बुद्ध के आठ महान मार्ग में कहीं भी झूठ, भ्रम और छल की स्थान नहीं । अगर उनके मूल शिक्षाओं में ही अंधविश्वास को रोका गया है तो वैदिक भगवान सक्र जिसको इंद्र भी कहा जाता है उनकी कहानी में क्या काम? वेद के अनुसार इंद्र वैदिक भगवान है ।  रिग वेद के अनुसार इंद्र को सांड़ और बछड़े के मांस खाना पसंद है जबकि बुद्धिस्ट ज्ञानसम्पदा में जिव हत्या का कोई स्थान नहीं । बौद्धिक ज्ञान सम्पदा में इंद्र और वैदिक भगवान का मिलना ये अपभ्रंस नहीं तो क्या है? यहाँ पर इंद्र (सक्र) को प्रतिष्ठित धूर्त के रूप में बताया गया है; क्यों की इंद्र भी ब्राह्मणों के बनाया एक काल्पनिक चरित्र ही है । आप को पता होना चाहिए वैदिक भगवान इंद्र सराब पीना (सोम रस सेवन), एकाधिक नारी के साथ सहवास, छल और बलात्कार के भी अपराधी है; ये में नहीं वैदिक स्क्रिप्चर और पुराण कहते हैं । आप गंदगी को जितना कुरेदोगे उतना ज्यादा गंद उसमें निकलेंगे क्यों के ये लोगों के आस्था के विषय है में ज्यादा डिटेल में नहीं जाना चाहता लेकिन अगर आप खुद खोज करें आपको उन लोगों की हर गंदगी पता चल जाएगा इसलिए सत्य का खोज करते रहो; आप अगर इसका खोज करें तो आप इन सब की सत्यता मिलजाएगी । अगर आप को ऐसे कोई कहानी मिले तो साफ़ साफ़ समझ लेना वह फेब्रिकेशन और बौद्ध धर्म को नीचा दिखाने के लिए साजिश वाला कहानी है। ये जरूरी नहीं की हर कहानी बुद्ध ने कही हो । बुद्ध के नाम पे अनेक नैतिक कहानी बने और उनको बुद्ध के नाम पे नैतिक ज्ञान के तौर फैलाया गया । अगर कोई कहानी बुद्ध की सोच विरोधी है तो ये साफ़ साफ़ उनको नीचा दिखाने की साजिश है और उनके विरोधी दुश्मनों का भ्रमित कहानी है । बुद्ध कभी भगवान, पुनर्जन्म और अवतार में विश्वास नहीं किया । बुद्ध की निर्वाण के वाद ही संगठित पुजारीवाद ने बौद्ध धर्म को अपभ्रंश और ध्वंस करने की शुरुआत कर दी थी । समय के साथ बौद्ध धर्म हीनजन(नीच लोग) और महाजन(महान लोग) में विभाजित कर दिया गया । उसके वाद ये विभाजित सेक्ट और भी टुकड़े होते चले गए । हीनयान को निम्न वर्ग(गरीबी) और महायान को उच्च वर्ग (अमीरी) भी कहा जाता है; हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था जिसका अर्थ कुछ जानकार “निम्न मार्ग” भी कहते हैं । हीनयान संप्रदाय के लोग बुद्ध की प्रमुख ज्ञानसम्पदा की परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे । यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों का ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे । हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं । हीनयान बुद्ध जी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्ध जी को केवल बुद्धिजीवी, महापुरुष यानी इंसान ही मानते थे । हीनयान ही सिद्धार्था गौतम जी की असली शिक्षा थी । वैदिक वाले उनको विष्णु का अवतार बना के अपने मुर्तिबाद के छतरी के नीचे लाया और उनको भगवान बना के उनकी ब्योपारीकरण भी कर दिया । बुद्धिजीम असलियत में संगठित पुजारीवाद यानी ब्राह्मणवाद के शिकार होकर अपभ्रंश होता चला गया । हीनयान वाले मुर्तिको “बुद्धि” यानी “तर्क संगत सत्य ज्ञान” की प्रेरणा मानते हुए, यानी मूर्ति को केवल व्यक्तित्व की संज्ञान पैदा करने के लिए इस्तेमाल करते थे; इसीलिए मुर्ति के सामने मेडिटेसन यानी चित्त को स्थिर करने का योग अभ्यास करते थे; जब की ज्यादातर महायान वाले उनकी मूर्ति को भगवान मान के वैदिकों के जैसा पूजा करते हैं । महायान की ज्यादातर स्क्रिप्ट संस्कृत में लिखागया है यानी ये इस बात का सबूत है बुद्धिजीम की वैदिक करण की कोशिश की गयी । उसमे पुनः जन्म, अवतार, भगवान, देव, देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर, स्वर्ग, नर्क, जैसे कांसेप्ट मिलाये गए और असली बुद्धिजीम को अपभ्रंस किया गया । जो भगवान को ही नहीं मानता वह अवतार को क्यों मानेगा? अगर अवतार में विश्वास नहीं तो वह क्यों पुनर्जन्म में विश्वास करेगा? महायान सिद्धार्था गौतम जी की यानी बुद्ध की विचार विरोधी आस्था है जिसको ब्राह्मणीकरण किया गया; बाद में ये दो हीनयान और महायान सखाओंसे अनेक बुद्धिजीम की साखायें बन गए और अब तरह तरह की बुद्धिजीम देखने को मिलते हैं जिसमें तंत्रयान एक है । तंत्रयान बाद में वज्रयान और सहजयान में विभाजित हुआ । जहां जहां बुद्धिजीम फैला था समय के साथ तरह तरह की सेक्ट बने जैसे तिबततियन बुद्धिजीम, जेन बुद्धिजीम इत्यादि इत्यादि । हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है । अनुगामियों का मानना है इन देशों में फैली हीनयान अपभ्रंस नहीं है जो की गलत है । बाद में यह संप्रदाय दो भागों मे विभाजित हो गया- वैभाष्क एवं सौत्रान्तिक । बुद्ध ने अपने ज्ञान दिया था ना कि उनकी ज्ञान की बाजार । अगर आपको उनकी दर्शन अच्छे लगें आप उनकी सिद्धान्तों का अनुगामी बने ना की उनके नाम पे बना संगठित पहचान और उनके उपासना पद्धत्तियोंकी । आपका ये जानना जरूरी है, असली बुद्धिस्ट ज्ञान सम्पदा अपभ्रशं होकर उसमें तरह तरह की वैदिक सोच जैसे अवतार, पुनर्जन्म, भगवान, देव/ देवताओं, वैदिक भगवान जैसे इंद्र, ब्रम्हा, विष्णु, महेश्वर/रूद्र, स्वर्ग, नर्क, इत्यादि सोच घोलागया है और उस को सदियों अपभ्रशं करके असली बुद्ध शिक्षाओं को भ्रमित किया जारहा है, और बुद्धिजीम को वैदिक छतरी के नीचे लाने की कोशिश हमेशा हो रही है । अगर आपको कोई भी बुद्धिस्ट स्क्रिप्चर में भगवान, मूर्त्तिवाद, अवतार, पुनर्जन्म, स्वर्ग, नर्क, चमत्कार, आलोकिक, भूत प्रेत, शैतान, जादू या काला जादू, हवन, वली, भोग/प्रसाद, व्रत, गंगा स्नान, छुआ छूत, अंधविश्वास, कुतर्क, हिंसा, अपराध, आस्था से जुड़ी सामाजिक बुराईयां इत्यादि इत्यादि जैसे वैदिक आस्था देखने को मिले आपको समझलेना होगा ये अपभ्रंस है । अगर ये सब आस्था बुद्ध को पसंद होता वह वैदिक दर्शन से अलग नहीं होते । बुद्ध के निर्वाण के वाद उनकी कही गयी सिक्ष्याओं को उनके अनुयायिओं के द्वारा संगृहीत कियागया था उन्हों ने कभी अपने हाथों में लिखित पाण्डुलिपि लिखकर नहीं गये थे जो उनकी लेख और शिक्षा का अपभ्रंस न हो पाये । महाजन सेक्ट बुद्ध की असली शिक्षा से अलग है और ये ज्यादातर ब्राह्मणी करण है जिसके ज्यादातर स्क्रिप्चर संस्कृत में ही मिलेंगे; जिसको वैदिकवादी छद्म बुद्धिस्ट सन्यासिओं ने हमेशा अपभ्रंस और नष्ट करते आ रहे हैं । मेत्रेयः भावी बुद्ध एक काल्पनिक चरित्र है जिसकी बुद्ध की सिक्ष्याओं से कोई सम्बद्ध नहीं बल्कि बुद्ध के नाम पे धूर्त्तों के द्वारा फैलाई गई अफवाएं है, जैसे वैदिक वाले विष्णु की कल्कि अवतार के वारे अफवाएं फैलाई हुई है । बुद्ध के सिखाये गए अष्टांग मार्ग से कोई भी बुद्ध बन सकता है ।

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