रहीम जी के प्रसिद्द दोहे – भक्ति

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जे गरीब सों हित करै धनि रहीम वे लोग
कहा सुदामा बापुरो कृश्राा मिताई जोग ।

रहीम कहते हैं कि जो लोग निर्धन और असहाय की सहायता करते हैं वे धन्य हैं । निर्धन सुदामा से मित्रता कर कृश्ण ने उसकी निर्धनता दूर की । इसी से वे दीनबंधु कहलाये ।

गहि सरनागत राम की भवसागर की नाव
रहिमन जगत ईधार कर और न कछु उपाव।

इस संसार सागर की नाव राम की शरराा में है। वही हमें माया के जाल से मुक्ति दिला सकता है। अन्य कोई उपाय रहीम नही देखते ।

कहा करौ बैकुंठ लै कल्प बृक्ष की छाॅह
रहिमन ढाक सुहावनो जो गल पीतम बाॅह ।

रहीम को स्वर्ग का सुख और कल्पबृक्ष की छाया से कुछ भी मतलब नही है । वे इनकी कामना नहीं करते।उन्हें ढाक का बृक्ष सुहाना लगता है जहाॅ वे अपने प्रिय इश्वर के गले में बाॅह डालकर बैठ सकते है ।

अंजन दियो तो किरकिरी सुरमा दियो न जाय
जिन आखिन सों हरि लख्यो रहिमन बलि बलि जाय ।

अंजन और सुरमा से आॅख का भला नहीं होगा । इन आॅखों से प्रभु का दर्शन करो । रहीम कहते हैं कि तुम्हारा जीबन धन्य हो जायेगा।

दीन सबन को लखत है दीनहि लखै न कोय
जो रहीम दीनहि लखत दीनबन्धु सम होय ।

गरीब दुखियारी लोग सबकी अेार आशा से देखते रहते हैं किंतु उनकी ओर कोई नहीं देखता । लेकिन जो ब्यक्ति दुखियों की ओर देखता है वह दीनबंधु भगवान की तरह पूज्य होता है ।

रहिमन गली है साॅकरी दूजो ना ठहराहिं
आपु अहै तो हरि नहीं हरि तो आपुन नाहिं ।

हृदय की गली अत्यंत संकीर्ण है । उसमें दो आदमी नहीं ठहर सकते हैं । उसमें यदि हमारा अहंकार रहेगा तो प्रभु नहीं रहेंगें और प्रभु के रहने पर अहंकार नहीं रहेगा। अतःप्रभु को अपने ह्रदय में रखने के लिये अपने अहंकार का नाश करो।

रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे राम
पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम ।

यदि कभी धेाखा से भी भाव पूर्वक मुॅह से राम का नाम लिया जाये तो उसे कल्याणमय परम गति प्राप्त होता है भले हीं वह काम क्रोध लोभ मोह पाप से कयों न ग्रस्त हो।

मानुस तन अति दुर्लभ सहजहिं पाय
हरि भजि कर सत संगति कह्यौ जताय ।

मनुश्य का शरीर प्राप्त करना दुर्लभ है परन्तु प्रभु के भजन सुमिरन और संत की संगति के द्वारा इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

रे मन भज निसवासर श्री बलबीर
जे विन जॅाचत टारत जन की पीर ।

हे मनुश्य तुम दिन रात मन से भगवान को भजो। वे विना कोई तुम्हारी परीक्षा लिये सभी लोगों का दुख दूर कर देते हैं। वे परम शक्तिमान हैं।

भज नरहरि नारायराा तजि वकबाद
प्रगटि खंभ ते राख्यो जिन प्रहलाद ।

सारे तर्क वितर्क बकबास को छोड़कर नारायण प्रभु को भजो।स्मरण करो जो खंभा फोड़ कर नरसिंह रूप में प्रगट हो कर प्रहलाद की रक्षा की थी। इश्वर सर्वत्र विद्यमान रहकर सबका रक्षक है।

हरी हरी करूराा करी सुनी जो सब ना टेर
जग डग भरी उतावरी हरी करी की बेर ।

भगवान विश्नु हाथी की करूण पुकार सुनकर द्रवित होकर दौड़ पड़े और उसे मगरकी पकड़ से बचा लिये।अतः दया के सागर प्रभु को भजने से मुक्ति मिलती है।

सरबर के खग एक से बाढत प्रीत न धीम
पै मराल को मानसर एकै ठौर रहीम ।

साधारण चिड़ियाॅ एक तालाब पर नहीे टिकते हैं।अपने भोजन की खोज में वे हमेशा एक तालाब से दूसरे तालाब पर आते जाते रहते हैं।लेकिन हंस केवल मानसरोवर पर बसते हैं । भक्त बारबार अपना मन नहीे बदलते।वे भक्ति में हमेशा लीन रहते हैं।

सौदा करो सो करि चलो रहिमन याही बाट
फिर सौदा पैहों नहीं दूरि जान है बाट ।

अभी हम सभी बाजार में हैं-सो खरीद लें।बाजार से चले जाने पर खरीदने का अवसर नही मिलेगा।लाखों योनियों में भटकने के बाद मनुश्य शरीर प्राप्त हुआ है। इसलिये प्रभु भक्ति और परोपकार के द्वारा जन्म मृत्यु से मोक्ष प्राप्त कर लें ।

राम नाम जान्यो नहीं जान्यो सदा उपाधि
कहि रहीम तिहि आपनो जनम गॅबायो बादि ।

जो हृदय से राम नाम का सुमिरण किये बिना केवल झूठी भक्त की पदवी धारण कर लिया हो-उसका जीवन ब्यर्थ चला  गया । उसने स्वयं अपने जीवन को बर्बाद कर लिया है।

पात पात को सींचिवो बरी बड़ी को लौन
रहिमन ऐसी बुद्धि को कहा बैरगो कौन ।

बृक्ष के सभी पत्तों को अलग अलग नही सींचा जाता है।प्रत्येक बरी में अलग अलग नमक नही मिलाया जाता है।अलग अलग सोचने-करने बाले की निंदा की जाती है।बृक्ष के जड़ को सींचने से हीं फल मिलता है।मूल इश्वर को सींचो ।

अमर बेलि विनु मूल की प्रतिपालत है ताहि
रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि खेाजत फिरिए काहि ।

बिना जड़मूल के अमरलता को भी जो पालन करता है-एैसे प्रभु को छोड़ करतुम किसे कयों खोजते फिर रहे हो।वह प्रभु परम कृपालु सर्वशक्तिमान तुम्हारे हृदय में विद्यमान है।

रहिमन को कोउ का करै ज्वारी चोर लवार
जो पत राखनहार है माखन चाखन हार ।

जिस माखन खाने वाले कृश्न ने जुआरी चोर और लफंगे से द्रौपदी की रक्षा की थी- वही सबों की लाज बचाता है।रहीम का अब कोई कुछ नही विगाड़ सकता है कयोंकि उसने उसी परमात्मा की शरण ले रखी है।

रहिमन करि सम बल नहीं मानत प्रभु की धाक
दाॅत दिखावत दीन ह्वै चलत घिसावत नाक ।

हाथी के समान कोई बलबान नही होता लेकिन वह भी प्रभु का धाक मानता है।वह गरीब की तरह अपना दाॅत दिखाता हुआ और सूॅड को जमीन पर रगड़ते हुये चलता है । बस्तुतः वह कण कण में इश्वर का नमन करता चलता है।

रहिमन बहु भेसज करत ब्याधि न छाॅरत साथ,
खग मृग बसत अरोग बन हरि अनाथ के नाथ ।

इतनी दवा औसधि करने के बाद भी रोग साथ नही छोड़ते।कोई न केई रोग हमेशा लगा रहता है।लेकिन पक्षी एवं हरिण बन मंे बिना किसी रोग ब्याधि के रहते हैं कारण जिसका कोई रक्षक नही होता-प्रभु उसके रक्षक होते हैं।

प्रीतम छवि नैनन बसि पर छवि कहाॅ समाय
भरी सराय रहीम लखि आपु पथिक फिर जाय ।

यदि आँखों में प्रेमी की छवि वसी हो तो किसी अन्य की छवि के लिये जगह नही रहती है।यदि सराय धर्मशाला पहले से लोगों से भरी हो तो नये पथिक यात्री को अपने आप लौट जाना पड़ता हैं ।

रन बन ब्याधि विपत्ति में रहिमन मरै न कोय
जो रक्षक जननी जठर सो हरि गए कि सोय ।

युद्ध में शत्र्रु से;जंगल में जंगली जीवों से;बीमारी और कश्अ में मरने से कभी न डरो। जिस प्रभु ने माॅ के गर्भ में तुम्हारी रक्षा की है-वह कभी नही सोता है और हमेशा जाग कर हमारी रक्षा करता हैं।

समय परे रहीम कहि माॅगि जात तजि लाज
ज्यों लछमन माॅगन गये पारासर के नाज ।

बुरे समय में किसी से मांगने के लिये समस्त लज्जा त्याग कर जाना चाहिये।इसमें किसी प्रकार की बुराई नही है।बनबास के समय लक्ष्मण पारासर मुनि से भोजन हेतु अन्न माॅगने गये तो वे भिखारी नही बन गये।

माॅगे मुकरि न को गयो केहि न त्यागियो साथ
माॅगत आगे सुख लह्यो ते रहीम रघुनाथ ।

कुछ मांगने पर सभी मुकर जाते हैं और सब साथ छोड़ देते है। केवल इश्वर हीं माॅगने बालों से प्रसन्न होते हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। लोगो के बजाय इश्वर से मांगो-वह खुशी खुशी देगा।

जो रहीम करिबो हुतो ब्रज को यही हबाल
तो काहे कर पर धरयो गोबर्धन गोपाल ।

यदि ब्रज को इसी तरह बेहाल-बेसहारा छोड़ना था तो उॅगली पर गोबर्धन पर्वत को कयों उठाये।यहाॅ रहीम ने गोपियों का विरह ब्यथा का वर्णन किया है।

तन रहीम है करम बस मन राखैा वहि ओर
जल में उलटी नाव ज्यों खैंचत गुन के जोर ।

यह शरीर कर्मों के अधीन है लेकिन मन को मुक्त करके उसे प्रभु की तरफ लगाओ।पानी में नाव के उलटने पर रस्सी की मदद से जोर लगाकर उसे खींच कर किनारे किया जाता है। मन को भी इसी तरह खींचकर इश्वर भक्ति में लगाओ।

दुुख नर सुनि हाॅसी करै धरत रहीम न धीर
कही सुनै सुनि सुनि करै ऐसे वे रघुबीर।

लोग तुम्हारा दुख सुनकर हॅसी करेंगें।लोग तुम्हें धीरज नही बॅधायेंगें। केवल भगवान राम हीं तुम्हारा दुख सुनेंगें।एकमात्र राम हीं तुम्हारा दुख दूर करेंगें।

अच्युत चरन तरंगिनी शिव सिर मालति माल
हरि न बनायेा सुरसरी कीजो इंदव भाल ।

गंगा माता विश्नु के चरण धोती है एवं शिव के माथे को शोभायमान करती है।प्रभु मोक्ष के समय रहीम को विश्नु मत बनाना बरन शिव बनाना ताकि गंगा माॅ को मै अपने सिर पर रख सकूॅ ।

चरन छुए मस्तक छुए तेहु नहिं छाॅड़ति पानि
हियो धुबत प्रभु छोड दै कहु रहीम का जानि ।

प्रभु का चरण छुआ;सिर छुआ;अनेक प्रकार से पूजा पाठ किया-पर मोह माया ने साथ नही छोड़ा।लेकिन प्रभु को हृदय में रखते हीं मेरे सारे दुर्गुण दूर हो गये और मन निर्मल हो गया ।

भजौं तो काको मैं भजौं तजौं तो काको आन
भजन तजन से बिलग हैं तेहि रहीम जू जान ।

मैं किसका भजन करूॅ और किसको छोड़ूं-मेरा तो कोई पराया नही है। प्रभु तो इस संसार के कण कण में बसा है-फिर भजने और छोड़ने का भला कया अर्थ है।

मुनि नारी पासान ही कपि पसु गुह मातंग
तीनों तारे रामजू तीनों मेरे अंग ।

गौतम मुनि की पथ्थर रूपी पत्नी अहिल्या;पशुवत बंदर सेना एवं चांडाल निशादराज जो निम्न जाति के थे-उन तीनो का प्रभु राम ने उद्धार कल्याण किया था।मुझमें तो ये तीनों दुर्गुण हैं। अब केवल राम हीं मेरा उद्धार करेंगें।

राम नाम जान्यो नहीं भइ पूजा में हानि
कहि रहीम कयों मानिहै जन के किंकर कानि ।

मोह माया के संसार में पूजा के ब्यर्थ आडंबर में जीवन ब्यतीत करने से कया लाभ? हृदय से राम नाम का स्मरण करें अन्यथा मृत्यु तुम्हें नरक में यातना देने पहुॅच जायेंगें।

बिधना यह जिय जानिकै सेसहि दिए न कान
धरा मेरू सब डोलिहैं तानसेन के तान ।

संगीत सम्राट तानसेन का संगीत सुनकर सभी झूमने लगते थे । प्रभु जानते थे कि शेशनाग यदि झूमने लगेंगें तो पृथ्वी एवं पर्वत सब डोलने लगेंगें।इसी कारण उन्होंने शेशनाग को कान नही दिया था।ईश्वर बहुत दूरदर्शी हैं ।

आदि रूप की परम दुति घट घट़ रही समाई
लघु मति ते मो मन रसन अस्तुति कही न जाई ।

परमेश्वर का रूप परम दिव्य है और यह संसार के कण कण में समाया हुआ है । मनुश्य का मन मश्तिश्क बहुत छोटा है और इसे वह नही समझता है।प्रभु के महिमा का गुणगान करना सरल नही है।

नैन तृप्ति कछु होत है निरखि जगत की भॅाति
जाहि ताहि में पाइयत आदि रूप की कांति ।

परमेश्वर के विराट स्वरूप को इस सम्पूर्ण संसार में देखकर अपने आॅखों को तृप्त करो।संसार की प्रत्येक वस्तु में आप उस परमात्मा के प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं।

उत्तम जाति ब्राम्हनी देखत चित्त लुभाय
परम पाप पल में हरत परसत वाके पाय ।

ब्राम्हराी का अर्थ ब्रम्हा की शक्ति यानि सरस्वती जिन्हें देखने से चित्त में आनन्द होता है और उसके सारे पाप क्षराा में दूर हो जाते हैं।यदि उसके चरणों में शीश झुकाया जाये तो ज्ञान और पुण्य की प्राप्ति होती हैं।

हरि रहीम ऐसी करी ज्यों कमान सर पूर
खैचि आपनी ओर को डारि दियो पुनि दूर ।

जिस प्रकार कोई बाराा चढाने के लिये धनुश को अपनी ओर खीचता है।उसी तरह कृश्ण ने ब्रज बासियों का हृदय अपनी ओर आकर्शित कर और बाद में दूर फेंक कर चले गये। कृश्ण को गोपियाॅ निर्मोही मानती है।

खैचि चढनि ढीली ढरनि कहहु कौन यह प्रीति
आज काल मोहन गही बसंदिया की रीति ।

खींचने से दीपक उपर चला जाता है और ढीला करने पर नीचे चला आता है। इन दिनों मोहन कृश्न भी इसी तरह हो गये हैं।बुलाने पर दूर चले जाते हैं और बुलाना छोड़ देने पर आ जाते हैं।कृश्न का सब भाव अनुपम है।

जो रहीम जग मारियो नैन बान की चोट
भगत भगत कोउ बचि गए चरन कमल की ओट ।

सुन्दरी निश्ठुरता से नयनों के वाण की चोट द्वारा संसार को मर्माहत कर देती है। अनेकों को अपना प्राण न्यौछावर करना पड़ा।भागते भागते हीं शायद कोई इससे बच पाया।जिन्हें प्रभु के चरणों में शरण मिली केवल वे हीं बच पाये।

तै रहीम मन आपनो कीन्हो चारू चकोर
निसि वासर लाग्यौ रहै कृस्न चंद्र की ओर ।

अब रहीम के मन के समस्त भ्रम विकार दूर हो गये हैं और उसने चकोर पक्षी की भाॅति मन को भगवान श्री कृश्न चन्द्र में नित्य प्रति सर्वदा के लिये एकाग्र कर लिया है।

बिन्दु भी सिन्धु समान को अचरज कासों कहैं
हेरनहार हिरान रहिमन अपुने आप तें ।

बूंद सागर में समा गया।यह आश्चर्य की बात किससे कही जाय।जो खोजने चला था- वही खो गया अैार जिन्हें खोजा जा रहा था-वह तो स्वयं वहाॅ उपस्थित था । प्रत्येक बूंद में सागर समाया है । प्रभु प्रत्येक ब्यक्ति के हृदय में बसते हैं । उन्हें खोजने बाला स्वयं भ्रमित हैं।

चूल्हा दीन्हों बार नात रह्यो सो जरि गयो
रहिमन उतरे पार भार झोंकि सब भार में ।

रहीम ने संसार के ब्यवहार से तंग आकर अपने समस्त संबंधों को जलाकर राख कर दिया । अपने सभी बोझ को जला देने के बाद उसका बोझ हल्का हो गया और अब संसार सागर के पार जाना उसके लिये सुगम हो गया ।अब उसका मन इश्वर में रम गया है।

घूर धरत नित सीस पर कहु रहीम केहि काज
जेहि रज मुनि पतनी तरी सो ढूढत गजराज ।

हाथी हमेशा अपने माथे पर धूल रखता चलता है-पता नही किस कारण से वह ऐसा करता है । प्रभु राम के चरणों में लगे धूल से गौतम मुनि की पत्नी अहल्या का उद्धार हुआ था-शायद हाथी भी अपने मोक्ष हेतु उसी धूल को खोजता हैं।

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क्रमरहित सूची

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