दो मछलियों और एक मेंढक की कथा ~ पंचतंत्र

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एक तालाब में दो मछ़लियाँ रहती थीं । एक थी शतबुद्धि (सौ बुद्धियों वाली), दूसरी थी सहस्त्रबुद्धि (हजार बुद्धियों वाली) । उसी तालाब में एक मेंढक भी रहता था । उसका नाम था एकबुद्धि । उसके पास एक ही बुद्धि थी । इसलिये उसे बुद्धि पर अभिमान नहीं था । शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि को अपनी चतुराई पर बड़ा अभिमान था।

एक दिन सन्ध्या समय तीनों तालाब के किनारे बात-चीत कर रहे थे। उसी समय उन्होंने देखा कि कुछ़ मछि़यारे हाथों में जाल लेकर वहाँ आये । उनके जाल में बहुत सी मछ़लियाँ फँस कर तड़प रही थीं । तालाब के किनारे आकर मछि़यारे आपस में बात करने लगे । एक ने कहा – “इस तालाब में खूब मछ़लियाँ हैं, पानी भी कम है। कल हम यहाँ आकर मछ़लियां पकड़ेंगे ।”

सबने उसकी बात का समर्थन किया। कल सुबह वहाँ आने का निश्चय करके मछि़यारे चले गये। उनके जाने के बाद सब मछ़लियों ने सभा की। सभी चिन्तित थे कि क्या किया जाय। सब की चिन्ता का उपहास करते हुये सहस्त्रबुद्धि ने कहा-“डरो मत, दुनियां में सभी दुर्जनों के मन की बात पूरी होने लगे तो संसार में किसी का रहना कठिन हो जाय । सांपों और दुष्टों के अभिप्राय कभी पूरे नहीं होते; इसीलिये संसार बना हुआ है । किसी के कथनमात्र से डरना कापुरुषों का काम है । प्रथम तो वह यहाँ आयेंगे ही नहीं, यदि आ भी गये तो मैं अपनी बुद्धि के प्रभाव से सब की रक्षा करलूँगी ।”

शतबुद्धि ने भी उसका समर्थन करते हुए कहा – “बुद्धिमान के लिए संसार में सब कुछ़ संभव है। जहां वायु और प्रकाश की भी गति नहीं होती, वहां बुद्धिमानों की बुद्धि पहुँच जाती है। किसी के कथनमात्र से हम अपने पूर्वजों की भूमि को नहीं छो़ड़ सकते। अपनी जन्मभूमि में जो सुख होता है वह स्वर्ग में भी नहीं होता । भगवान ने हमें बुद्धि दी है, भय से भागने के लिए नहीं, बल्कि भय का युक्तिपूर्वक सामना करने के लिए ।”

तालाब की मछ़लियों को तो शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि के आश्‍वासन पर भरोसा हो गया, लेकिन एकबुद्धि मेंढक ने कहा-“मित्रो ! मेरे पास तो एक ही बुद्धि है; वह मुझे यहां से भाग जाने की सलाह देती है । इसलिए मैं तो सुबह होने से पहले ही इस जलाशय को छो़ड़कर अपनी पत्‍नी के साथ दूसरे जलाशय में चला जाऊँगा ।” यह कहकर वह मेंढक मेंढकी को लेकर तालाब से चला गया ।

दूसरे दिन अपने वचनानुसार वही मछि़यारे वहाँ आये । उन्होंने तालाब में जाल बिछा़ दिया । तालाब की सभी मछ़लियां जाल में फँस गईं । शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि ने बचाव के लिए बहुत से पैंतरे बदले, किन्तु मछि़यारे भी अनाड़ी न थे । उन्होंने चुन-चुन कर सब मछ़लियों को जाल में बांध लिया । सबने तड़प-तड़प कर प्राण दिये ।

सन्ध्या समय मछि़यारों ने मछ़लियों से भरे जाल को कन्धे पर उठा लिया । शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि बहुत भारी मछ़लियां थीं, इसीलिए इन दोनों को उन्होंने कन्धे पर और हाथों पर लटका लिया था । उनकी दुरवस्था देखकर मेंढक ने मेंढकी से कहा-

“देख प्रिये ! मैं कितना दूरदर्शी हूं । जिस समय शतबुद्धि कन्धों पर और सहस्त्रबुद्धि हाथों में लटकी जा रही है, उस समय मैं एकबुद्धि इस छो़टे से जलाशय के निर्मल जल में सानन्द विहार कर रहा हूँ । इसलिए मैं कहता हूँ कि विद्या से बुद्धि का स्थान ऊँचा है, और बुद्धि में भी सहस्त्रबुद्धि की अपेक्षा एकबुद्धि होना अधिक व्यावहारिक है ।”

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