हमारा देश का नाम ना भारत था, ना हिन्दुस्तान था, ना इंडिया; ये भूखंड सदियों छोटे बड़े राज्यों का मिश्रित समूह रहा, ये भूखंड समय के साथ राजाओं के राज से जाना जाता था. ये भूखंड अनेक भाषीय सभ्यता का भूखंड है. आज भी यहाँ १२२ प्रमुख भाषा और १५९९ अन्य भाषाएं देखने मिलते हैं. पुराने युग में कोई वर्ण व्यवस्था नहीं थी. संस्कृत बोलनेवाले या इस भाषा को अपना पहचान मानने वाले धूर्त्तों ने वर्ण व्यवस्था पैदा किया जो की रिग वेद परुष सूक्त १०.९० में लिखित है. संस्कृत भाषा इस भूखंड का कभी भी लोकप्रिय भाषा नहीं रहा. संस्कृत सब भाषा की जननी है ये बात धूर्त्तो ने फैलाई और मूर्खोंने आपने अज्ञानता के वजह से इसका ऊपर अंधविश्वास किया. अगर ये इतनी पुरानी और लोकप्रिय होता इसका आज के बोलने वाले कभी १५ हजार से भी कम नहीं होते. इन धूर्त्तों ने गैर संस्कृत बोलनेवाले सभ्यता को अगड़ी और पिछड़ी में बांटा और ऐसे साजिश की पिछड़ा कभी अगड़ी ना बन पाए. इसलिये ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की पहचान बनाई जो की समाज की प्रमुख profession थी इस प्रमुख वृत्तियां को उनलोगोंने आपने और अपना पीढ़ियों के लिए reserve कर दिया और उसकेलिये सरनेम का इस्तेमाल किया; इसलिये पुजारी वर्ग ज्ञान को रिज़र्व कर दिया ताकि उनके ज्ञान से दूसरे चलें; जब की क्षत्रीय को क्षेत्र; यानी पीढ़ीगत राज और प्रसिद्धि के साथ साथ यश का रिजर्वेशन मिला. जो ब्योपारी वैदिक बनिया का पहचान अपनाया वह खुद को वैश्य कहने लगे, और इस वृत्ति को अपने पीढ़ियों के लिए रिज़र्व कर दिया यानी सब अच्छी profession को वह खुद और उनके बच्चों के लिए reserve कर दिया और ये तीन प्रमुख बृत्तियों को अपनानेवाले गोष्ठी फ्रीडम ऑफ़ प्रोफेशन को बंद कर दिया; इन तीन प्रमुख बृत्तियों को छोड़ के जितने भी बृत्तियाँ थे उनको शूद्र यानी उनके गुलाम बताया गया. ये गोष्ठियां कोई एक मूल से नहीं हैं क्यों के स्थानीय भूखंड के बदलते ही इनके सरनेम और उनकी मातृभाषा अलग अलग हैं जिसका मतलब ये है की ये कोई एक मूल स्रोत से पैदा श्रेणी नहीं है, अगर होते उनके सरनेम और उनकी मातृभाषा एक होता अनेक नहीं; बल्कि ये एक सोच की श्रेणी है जो की प्रोफेशन से बंटी हुई हैं जैसे आज देश तरह तरह की पोलिटिकल पार्टियों के सोच से बंटी हुई है. सदियों इस भूखंड का नाम उनके राजाओं के राज से पहचाना जाता था. इस भूखंड का सबसे बड़ा राज्य मौर्य साम्राज्य बना जो की एक बौद्ध सम्राज्य था. यानी हमारे ज्यादातर पूर्वज बौद्ध धर्मी थे. बौद्ध धर्म तार्किक धर्म था जो की ईस्वर, मूर्ति पूजन, बहु देवबाद, अंधविश्वास, असामंज्यता, ऊंच नीच, छोटे बड़े, छुआ छूत, वर्ण व्यवस्था, हिंसा इत्यादि असामाजिक चीजों का घोर विरोध करता था. बौद्ध धर्म मानव समाज को एक ही परिवार मानता था. जबकि वैदिक धर्म अपने अनुगामियों को ही जात पात, बड़ा वर्ण छोटा वर्ण से अलग करते हैं, जिनसे एक परिवार का सोच भी मूर्खता होगी; ये वैदिक धर्म के प्रचारक और प्रसारक कभी मानब समाज को एक परिवार स्वीकार नहीं करते हैं अगर करते कोई अपने भाई को छुआ छूत थोड़ी ना करता? लेकिन उनके भांड प्रचारक “वसुधैव कुटुम्बकम” का फेकू नारा देते हैं जब की असलियत कुछ और है. 263BC से 185BC तक ये भूखंड बौद्ध साम्राज्य के नाम से जाना जाता था. बौद्ध धर्म से पहले इस भूखंड का कोई प्रमुख धर्म नहीं था. 185BC में वैदिक ब्राह्मण सेनापति पुष्यामित्र शुंग ने राष्ट्रद्रोह करके धोखे से last Mauryan Empire की राजा बृहद्रथ का हत्या की और मौर्य साम्राज्य को हतिया लिया. ये सेनापति कोई युद्ध करके नहीं बल्कि अपने मालिक को धोखा देकर बेईमानी से हतिया लिया था. समय के साथ वैदिक प्रचारकों ने बौद्ध धर्म और इस भूखंड में जितने भी तार्किक धर्म थे उनको न केवल प्रदूषित किया उनको नष्ट भी किया और कुछ को अपने धर्म की छत्रछाया में ले आए. बौद्ध धर्म को समूल खत्म करने की कोशिश हुई. पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध सन्याशियोंका सामूहिक नर संहार किया. आतंक, दहशत, छल और बल, साम, दाम, दंड, भेद से मनुस्मृति को लागू करके वैदिक वर्ण व्यवस्था को जबरन हर गैर संस्कृत भाषी सभ्यता के ऊपर लागू किया गया. हर भाषीय सभ्यता के धूर्त, दबंग और बईमानों को अगड़ी यानी सबर्ण बनाया गया और पिछड़ों को उनके गुलाम यानी शूद्र. इस तरह अशोका की बुद्धिस्ट किंगडम अगड़ी और पिछड़ी दो समुदाय में बंट गया और समय के साथ ऐसे ही वैदिक धर्म फैलता चलागया. संगठित पुजारीवाद जो अपने आप को ब्राह्मणवाद का पहचान दी असलियत में हर भाषीय सभ्यता की शातिर और चालाक मूल निवासी थे जिन्होंने ब्राह्मणवाद को भक्तिवाद से जोड़ा और भगवान की नाम पे एक पोलिटिकल मूवमैंट चलाई जिससे हर गैरवैदिक धर्म यहाँ विलुप्त हो गया. इनलोगोंने झूठ, अंधबिस्वाश, अज्ञानता, मूर्त्तिवाद, छुआ छूत, ऊंच नीच इत्यादि सामाजिक बुराईयां धर्म के नाम पे फैलाई और यहाँ की हर पीढी उनके फैलाई हुई झूठ को ही अपना पहचान की उत्पत्ति मान ली. इनलोगोंने अपनी मन गढन कहानियों को इतिहास बताया और हर पीढ़ी को भ्रम में डाला. इसीलिए ब्रम्हा, विष्णु, महेश जिनका कोई जैविक उत्पत्ति नहीं फिर भी इंसान की जैसे दीखते हैं और ये हर स्क्रिप्चर में स्पष्ट से लिखा है की वह सब मन से पैदा हुए हैं यानी काल्पनिक है फिर भी इनलोगोंने उनके अनुगामियों को ये अहसास दिलादिया के वह सब सत्य है. इस भूखंड का ज्यादातर मूल निवासी उनके झांसा में आ गये और वैदिक धर्म 185BC के वाद इस भूखंड का सबसे बड़ा धर्म बन गया. वर्ण व्यवस्था के वजह से इस भूखंड का सबसे बड़ा श्रेणी गुलाम यानी शूद्र बन गया. क्यों के ज्यादातर अनुगामी बुद्धिस्ट थे उनको जान सुनकर उत्पीड़ित किया गया और सदियों हर चीजों से बंचित किया गया. जब 700AD के बाद बाद मुसलमान आक्रमणकारियों इस भूखंड में आये तो सिंध भाषीय सभ्यता के नाम से उनके राज के नाम रखे जैसे अल-हिन्द, इंदोस्तान, हिन्दुस्तान इत्यादि. मुसलमान आक्रमण कारियोंने यहाँ की कुछ मूल निवासियों को अपनी धर्म को जबरन इम्प्लीमेंट किया; लेकिन ज्यादातर शूद्र और अतिशूद्र यानी Out Caste यानी वर्ण व्यवस्था से बाहर, जो की सदियों उत्पीड़ित रहे वह इस्लाम धर्म क़बूल ली. क्यों के इस्लाम की राज में मुसलमानों को गैर मुसलमानों से अलग करना था तो इस्लाम शासकों ने गैर मुसलामानोंको हिन्दू पहचान दे दी; जो की तब का बुद्धिजीम से कनवर्टेड वैदिक अनुगामियों का पहचान बन गया. असलियत में देखो तो हिन्दू का मतलब इस्लाम राजाओं का गुलाम ही होगा. RSS और BJP के कुछ मुर्ख विद्वान और उनके मुर्ख विद्वान पॉलिटिशियन ये कहते हैं की हिन्दू लाखों करोड़ों साल की धर्म है जैसे करड़ों साल पहले की लाइव डौक्यूमैंटरी उनके पास है. हिन्दू पहचान जो की शिन्दु नदी और शिंद प्रोविंस यानी शिन्दु सिविलाइज़ेशन से आया है तब था की नहीं कौन जानता है? शिन्दु भाषीय सभ्यता से गैर सिंद्धु सभ्यता जैसे पंजाबी, पाली/ओड़िआ, खरीबोलि/नगरी/नागरी/हिंदी, तेलुगु, तामील इत्यादि इत्यादि भाषीय सभ्यता से क्या सम्बद्ध? अब partition के बाद सिंध भूखंड शिंद प्रोविंस के नाम से पाकिस्तान का हिस्सा है और शिन्दु नदी भी पाकिस्तान में बहता है. शिंद प्रोविंस का ज्यादातर मुलनिवाशी अब मुसलमान हैं जब की उनके नाम से एक बड़ा वर्ग जबरन हिन्दू के नाम से जाना जाता है जो की मुर्खोंकी फैलाई गयी पहचान है. इस भूखंड का सबसे बड़ा अखंड राज्य मौर्य साम्राज्य था. इस्लाम आया तो उनके राज में इस भूखंड का पॉपुलर पहचान हिन्दुस्तान बना. अंग्रेज 1600AD के बाद आये और इसका सेक्युलर पहचान इंडिया रख दिया. 1947 के वाद कांग्रेस सत्ता संभाली और कांग्रेस के अंदर RSS और हिन्दू महासभा की एजेण्टोने सावरकर की ओरगार्नाईजेशन “अभिनव भारत” के नाम से प्रेरित “भारत” रख दिया जब की भारत पहचान एक काल्पनिक ब्राह्मणवादी पहचान है.
अपने कभी वर्ण व्यवस्था जो की रिग वेद में पुरुष शुक्त १०.९० में वर्णित हुआ है कभी पढ़ा है? अगर आप सही माने में इंसान होंगे तो आपको हिन्दू होने में गर्व नहीं शर्म महसूस होगी क्योंकि पुरुष सूक्त ज्ञान की नहीं मूर्खता और अज्ञानता की परिभाषा है. इस वर्ण व्यवस्था को धर्म और ज्ञान के नाम से फैलाने वाले हर व्यक्ति असामाजिक और अपराधी है. पुरुष शुक्त ना केवल अंधविश्वास है बल्कि हर मानवीय अधिकार की उल्लंघन भी करता है.
जातिवाद यानी वर्ण व्यवस्था संस्कृत भाषी रचनाओं में मिलता है इसका मतलब ये हुआ जो गैर संस्कृत बोली वाले है उनके ऊपर ये सोच यानी वर्ण व्यवस्था थोपी गयी है । रिग वेद की पुरुष सुक्त १०.९० जो वर्ण व्यवस्था का डेफिनेशन है उसको कैसे आज की नस्ल विश्वास करते हैं ये तर्क से बहार हैं? सायद आज की पीढ़ी भी मॉडर्न अंध विश्वासी हैं । पुरुष सूक्त बोलता है: एक प्राचीन विशाल व्यक्ति था जो पुरुष ही था ना की नारी और जिसका एक हजार सिर और एक हजार पैर था, जिसे देवताओं (पुरूषमेध यानी पुरुष की बलि) के द्वारा बलिदान किया गया और वली के बाद उसकी बॉडी पार्ट्स से ही विश्व और वर्ण (जाति) का निर्माण हुआ है और जिससे दुनिया बन गई । पुरूष के वली से, वैदिक मंत्र निकले । घोड़ों और गायों का जन्म हुआ, ब्राह्मण पुरूष के मुंह से पैदा हुए, क्षत्रियों उसकी बाहों से, वैश्य उसकी जांघों से, और शूद्र उसकी पैरों से पैदा हुए । चंद्रमा उसकी आत्मा से पैदा हुआ था, उसकी आँखों से सूर्य, उसकी खोपड़ी से आकाश । इंद्र और अग्नि उसके मुंह से उभरे ।
ये उपद्रवी वैदिक प्रचारकों को क्या इतना साधारण ज्ञान नहीं है की कोई भी मनुष्य श्रेणी पुरुष की मुख, भुजाओं, जांघ और पैर से उत्पन्न नहीं हो सकती? क्या कोई कभी बिना जैविक पद्धति से पैदा हुआ है? मुख से क्या इंसान पैदा हो सकते है? ये कैसा मूर्खता है और इस मूर्खता को ज्ञान की चोला क्यों सदियों धर्म के नाम पर पहनाया गया और फैलाया गया? ये क्या मूर्ख सोच का गुंडा गर्दी नहीं है?
क्यों के चार वर्ण में और मनुस्मृति में ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा इम्पोर्टेंस दिया गया है इसलिये ये इस बात का सूचक है की ब्राह्मणवादी धुरर्तोंसे ही ये सोच पैदा हुआ है. क्या ब्राम्हणो की बच्चे नहीं होते? अगर बच्चे होते उनके बच्चों का टट्टी क्या ५ साल तक मेहतर साफ़ करता है? अगर हर ब्राह्मण की पत्नी ५ साल तक अपने ही बच्चे का मल मूत्र साफ़ करती है उसकी कपडे साफ़ करती है और बड़े होने पर उनके स्कूल की बूट भी पलिश करती है तो क्या वह मेहतर, धोबिन और चमार नहीं बनती? इस काम को ब्राह्मण छोटे और अछूत क्यों नहीं कहते? हर ब्राह्मण क्या अपनी मल दूसरों से धुलवाता है? वह भी तो खुद की “मलद्वार” का मेहतर है? अपने हात जो मल साफ़ करता है उसको अछूत और अलग क्यों नहीं रखता? ये इस बात का सूचक है ब्राह्मणवाद किस तरह का बीमारी और मानसिक विकृति है. आप ये बताओ पंजाब का ब्राह्मण से आंध्र का ब्राह्मण से क्या रिश्ता? क्या वह एक दुशरेको अपने भाषीय कम्यूनिकेशन से एक दूसरे को समझ भी सकते हैं? तो इन को कौन सा सोच ओर्गानाइज करता है? बस पुरुष सूक्त का समाज में श्रेष्ठ होने का सोच और वैदिक पुजारी होने का सोच जो की उन्हीं लोगों से फैलाई हुई सोच है उन सबको ओर्गानाइज करता है. ये जो कहते हैं इनके पूर्वज आर्य रेस से आते हैं वह क्या सच है? आर्यन रेस आये कहाँ से? सदियों इस भूखंड को पडोसी भूखंड के लोग आते रहें हैं और यहाँ बसते रहे हैं, इसलिए ये विशाल भूखंड अनेक भाषीय सभ्यताओंका भूखंड है. अगर संस्कृत बोलनेवाले सभ्यता खुद को आर्यन कहते हैं उनका सभ्यता पहले कहाँ था? कुछ मुर्ख विद्वान कहते हैं की वह ईरान से आये थे तो ईरान से आर्यन है. तो ईरानवाले क्या संस्कृत मैं बात करते हैं? संस्कृत के साथ पर्शियन लैंग्वेज का कितना मेल है और क्या कनेक्शन है? इनके प्रचारक और प्रसारक मन में जो भी आता है कुछ भी बिना आधार पे बोल देते हैं. कभी कभी लगता है शायद ये सब नशे में सोचे गए होंगे या सोचने वाला और फैलाने वाले मानसिक विकृत ही होंगे. अब का करीब ६ करोड़ ब्रह्मणों का मातृभाषा जैसे ही इंडियन डेमोग्राफी चेंज होती है तरह तरह की हो जाती है? कोई गुजराती है तो कोई पंजाबी, कोई बंगाली है तो कोई मलियाली, कोई तेलुगु है तो कोई ओड़िआ? इत्यादि इत्यादि… इन के सरनेम ५०० से भी ज्यादा हैं तो ये कौनसा एक आर्यन रेस से हैं? अगर आर्यन बाहरी मुल्क से आये हैं तो इस भूखंड में आकर उनके मातृभाषा अनेक कैसे हो गये? क्यों के हर भाषीय सभ्यता में ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र देखने को मिलते हैं! अगर ब्राह्मण ही आर्यन थे तो यहाँ के क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र क्या उसी आर्यन रेस से थे? जिनका मातृभाषा भी ब्राहम्हणों की मातृभाषा से मेल खाता है? अगर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र संस्कृत सिख कर जबरदस्त संस्कृत बोल दें तो क्या वह आर्यन हो जायेंगे? इस भूखंड में आप को ऐसे भी लोग मिल जायेंगे वह जबरदस्त अंग्रेजी बोलते हैं तो वह सब क्या इंग्लिश नेटिव हो गये? ये आर्यन थिओरी सफ़ेद झूठ है और वर्ण व्यवस्था हमारे भूखंड का धूर्त्तों का सोच है. संस्कृत भी इन धूर्त्तों का बनाया हुआ भाषा है ताकि आम आदमी इनके मुर्ख रचनाओं को जैसे समझ नहीं सके उसका एक षडयंत्र है. कितने अनुगामी हैं जब ब्राह्मण पूजा के समय मंत्र बोलता है उसका अर्थ समझते हैं? जिसदिन अनुगामी इनके अर्थ समझने लगेगा वह खुद ही धर्म छोड़ देगा. और हर भगवान संस्कृत मंत्र ही क्यों समझता है, ये कभी उनके अनुगामी अपने आपसे आज तक नहीं पूछा. हर पुजारी ब्राह्मण नहीं होता लेकिन जो पुजारी संस्कृत भाषा में निर्जीव मूर्तियों को सम्बाद करे और आपने आप को वैदिक पुरुष सूक्त का वर्ण व्यवस्था के अनुसार खुद को ब्राह्मण की पहचान दे बस वह पुजारी और उनके बंसज ही ब्राह्मण है. कोई भी वर्ण के लोग दूसरे भाषीय वर्ण के लोगों से बिना कॉमन लैंग्वेज जैसे हिंदी (नागरी) या इंग्लिश या एक दूसरे की लैंग्वेज को जानते होंगे तो ही सोच का सम्बाद कर सकते हैं; बरना एक दूसरे से सम्बाद भी मुश्किल है; तो ये सामाजिक श्रेणियां कैसे बन गए? बस एक धूर्त्त सोच ही उनको क्लास्सिफ़ाये करता है जो की झूठ और भांड की सोच पर आधारित है जिस केलिए इस भूखंड की लोग सदियों प्रताड़ित हैं. इस सोच को नहीं मिटाने का मतलब यही है की इस सोच को बढ़ावा देनेवाले वही धूर्त्त सोच के लोग ही है जो नहीं चाहते ये सोच मिटें और लोग प्रताड़ित हो और उनको सदियों शोषण किया जाये. क्या ऐसे सोच के व्यक्तियों को आप सामाजिक लोग कहेंगे या असामाजिक और अपराधी? ये लोग ना केवल क्रिमिनल्स हैं बल्कि इस सोच को आज की जेनेरशन तक लानेवाला उनके हर पूर्वज भी अपराधी हैं जो अब इस दुनियां में नहीं है.
पुष्यमित्र शुंग के वाद अनेक राजायें जो वैदिक पहचान अपनाया और खुद को क्षत्रिय का पहचान दिया वैदिक चार वर्ण फैलाने में मदद की और संगठित पुजारीवाद को बढ़ावा दिया जो की वैदिक धर्म अपना के खुद को ब्राह्मण की पहचान देकर जातिवाद को अच्छीतरह से फैलाई. सातवां शताब्दी में बाँग्ला भाषीय सभ्यता का एक पुजारी का वंशज जिसका नाम शशांक था जो की खुद को ब्राह्मण का पहचान दिए थे जब राज किया वैदिक वर्ण व्यवस्था को वह भी पुष्यामित्र शुंग का जैसा फैलाई और बुद्धिजीम को उनकी भाषीय सभ्यता से सम्पूर्ण विलुप्त कर दिया. बचीकुची तार्किक दर्शनों को शंकरचार्य, रामानुज और माधवाचार्य जैसे शैवजिम और वैश्नबजिम यानी वेदांत की प्रचारक और प्रसारक के साथ साथ इस्लाम प्रचारकों ने ध्वस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और फिर बचीकुची तार्किक दर्शनों को 1500AD – 1700AD का भक्ति मूवमैंट सम्पूर्ण रूप से ख़तम कर दिया. जब यहाँ अंग्रेज 1600AD में आये इस्लामों की ९०० साल की उपस्थिति से यहाँ की मूलनिवासियां दो प्रमुख धर्म से बंट चूके थे जो की वैदिक यानी हिन्दू धर्म जो की वैदिक धर्म का पर्सियन/आरबीक/आफ़ग़ान ओरिजिन का नाम था और खुद मुसलमानों से लाया गया इस्लाम धर्म. वैदिक धर्म का पोलिटिकल मूवमेंट ब्राम्हणोने 1903AD से शुरु कर दिया था.
अभिनव भारत सोसाइटी: 1903AD में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा स्थापित किया गया था । दोनों ही मराठी चितपावन ब्राह्मण थे ।
अखिल भारतीय हिंदू महासाभा: 1915 में स्थापित हुआ था और संस्थापक मदन मोहन मालवीय थे । उनका ओरिजिनल सरनेम चतुर्वेद था जो की अल्ल्हवाद की ब्राह्मण थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: नागपुर में 27 सितंबर 1925 में स्थापित हुआ था, और संस्थापक के.बी. हेडगेवार जो की मराठी देशस्थ ब्राह्मण थे।
भारतीय जनसंघ: 21 अक्टूबर 1951 में स्थापित हुआ और संस्थापक स्यामा प्रसाद मुखर्जी थे जो की एक वेस्टबेंगल ब्राह्मण थे । भारतीय जनसंघ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस) की राजनीतिक भुजा थी जो 1980AD से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नाम से जाना जाता है.
विश्व हिंदू परिषद: 1964 में स्थापित हुआ और संस्थापक एम.एस गोलवलकर (मूल उपनाम पाधई था । पाधियां महाराष्ट्र के कोकण में गोलवाली नामक एक जगह से संबंधित हैं और ये ब्राह्मण हैं), केशवराम काशीराम शास्त्री (ब्राह्मण), एस.एस आप्टे (महाराष्ट्र के ब्राह्मण) थे।
आप खुद ही सोचिये सब हिन्दू संगठन ज्यादातर वैदिक वर्ण व्यवस्था को ही क्यों प्राथमिकता देते हैं जो की बेवकूफ जाति आधारित सामाजिक शासन प्रणाली यानी वर्ण व्यवस्था जो की एक अंध विश्वास है, (पुरुष शुक्त 10.90) उस को बढ़ावा देते हैं और हमेशा ब्राह्मणों के द्वारा ही बनायेगये हैं और जिसकी अगुवाई भी ब्राह्मण ही करते हैं ।
अंग्रेज World War II के बाद इंडिया को वेसेही छोड़कर जाने वाले थे इसलिये सिविल सर्विस ऑफिसर अल्लन ऑक्टेवियन ह्यूम १८८३ में पोलिटिकल मूवमेंट पैदा की और कांग्रेस पार्टी बनाया । ब्रिटश वाले उनके ज्यादातर भूतपूर्व ब्रिटिश एम्पायर टेर्रीटोरीज़ों को ऑटोनोमी देकर उनको पोलिटिकल डोर से चलाने की दौर सुरु कर दिया था, और 1950AD तक इंडिया Commonwealth realms का हिस्सा रहा । जानुअरी 26, 1950AD में इंडिया को Republics in the Commonwealth of Nations में एक रिपब्लिकन फॉर्म ऑफ़ गवर्नमेंट के तौर शामिल करदियागया; जिसका हेड ऑफ़ कमनवेल्थ अब तक क्वीन Elizabeth II ही हैं । अंग्रेज कभी चाहते नहीं हुए होगें की देश की टुकड़ा हो क्यों के वह हर हाल में कॉमनवेल्थ का हिस्सा होना ही था वह एक हो या दो । देश का बंटवारा अपने ही लोगो ने अपने पोलटिकल स्वार्थ केलिए किया जिसका अंग्रेजों को कोई फर्क नहीं पड़ता था । १८८५ उमेश चंद्र बोनर्जी कांग्रेस के पहले सभाध्यक्ष थे; पहले सत्र में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, इंडिया के प्रत्येक प्रांत का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिनिधियों में 54 हिन्दू और दो मुस्लिम शामिल थे; बाकी पारसी और जैन पृष्ठभूमि की थी; जबकि १७५७ की बैटल ऑफ़ प्लासी के साथ ही फ्रीडम मूवमेंट सुरु हो गया था । १९१५ में गांधीजी ने फ्रीडम मूवमेंट के १५८ साल वाद और कांग्रेस बनने की ३२ साल वाद गोखले के मदद से दक्षिण अफ्रीका से लौटे और कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए । १९२४ में वह पार्टी प्रेजिडेंट बनगए । सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के साथ १९२० में जुड़े और गांधीजी की कांग्रेस में प्रभुत्व और धूर्त्त कब्जेवाजी से असंतुष्ट सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस पार्टी से २९ अप्रैल में निष्कासित होना पड़ा; उसके वाद १९३९ जून २२ को वह अपना फॉरवर्ड ब्लॉक बनायी और आजाद हिन्द की स्थापना की; जबकि कांग्रेस पार्टी उसके बाद उनकी साथ क्या किया खुद इन्वेस्टीगेट करना बेहतर होगा । १९१९ में, नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए जब की मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस का साथ १९०६ से लेकर १९२० तक रहे । गाँधी और नेहरू जोड़ी ऐसे बनि आज तक नेहरू फॅमिली गाँधी का नाम लेके अपनी पोलिटिकल दुकान चला रहा है जब की और भी कितने कांग्रेस लीडर थे उनके नाम इनके जुबान पर कभी नहीं आया । मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मणवादी यानी हिंदुत्व की पकड़ से नाखुश होकर मुसलमानों की अलग देश के वारे में अगवाई की । जब की पाकिस्तान की सोच मुहम्मद इक़बाल ने की थी इसलिए मुहम्मद इक़बाल को पाकिस्तान का स्पिरिचुअल फादर कहा जाता है; मुहम्मद इक़बाल इंडियन नेशनल कांग्रेस की एक बड़ा क्रिटिक थे और हमेशा कांग्रेस को मनुबादी यानी हिन्दूवादी पोलिटिकल पार्टी मानते थे । वही मुहम्मद इक़बाल जिसने “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा” गाना लिखाथा । मुहम्मद इक़बाल के पूर्वज कश्मीर पंडित थे जिन्होंने इस्लाम क़बूली थी । वह ज्यादातर उनके लेख में अपना पूर्वज कश्मीर पंडित थे उसका जिक्र भी किया । जिन्ना के पूर्वज यानी दादाजी गुजराती बनिया थे । उनके दादा प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर थे, वे गुजराती में काठियावाड़ के गोंडल राज्य के पोनली गांव से लोहाना थे । उन्होंने मछली व्यवसाय में अपना भाग्य बना लिया था, लेकिन लोहाना जाती का मजबूत धार्मिक शाकाहारी विश्वास के कारण उन्हें अपने शाकाहारी लोहना जाति से बहिष्कृत कर दिया गया था । जब उन्होंने अपने मछली कारोबार को बंद कर दिया और अपनी जाति में वापस आने की कोशिश की, तो उन्हें हिंदू धर्म के स्वयंभू संरक्षकों के विशाल अहं के कारण ऐसा करने की अनुमति नहीं थी । परिणामस्वरूप, उनके पुत्र, पुंजालाल ठक्कर/जिन्नाभाई पुंजा (जिन्ना के पिता), इस अपमान से इतना गुस्सा थे कि उन्होंने अपने और उनके चार बेटों के धर्म को बदल दिया और इस्लाम में परिवर्तित हो गए । वैसे देखाजाये तो पाकिस्तान बनने के पीछे कांग्रेस और उसके अंदर बैठे हिन्दूमहासभा की एजेंट्स ही जिम्मेदार थे । तो अब आपको पता चलगया होगा गांधीजीके हत्या में कौन शामिल हो सकता है? क्योंकि हिंदूवादी अगर पाकिस्तान नहीं चाहते थे तो जिन्ना को मार सकते थे गाँधी को मारने के पीछे जो तर्क वह देते हैं वह दरअसल भ्रम हैं । अगर गांधीजी को मार सकते थे तो जो पाकिस्तान के वारे में जो सोचा उसको क्यों नहीं मारा? इसका मतलब हिंदूवादी संगठन और कांग्रेस चाहता था की पाकिस्तान बने; तो ये ड्रामा क्यों किया? ये ड्रामा बस सो कॉल्ड सेकुलर वर्णवादी हिन्दू राष्ट्र बनाना था जो नेहरूने सोचा ताकि हिन्दू और मुसलमानोंकी वोट बटोर सके; ये इसीलिए किया नेहरू विरोधी मुसलमानोंको रवाना की जाये और जो उनके साथ हैं उनके साथ राज किया जाये क्योंकि उनके पास गांधी जैसे कुटिल राजनीतिज्ञ थे । गांधी जी के कुटिल दिमाग के कारण नेहरू देश का प्रधान मंत्री बन गए । देश स्वाधीन १९४७ अगस्त १५ क़ो हुआ और नेहरु देश की कमान सँभालने का वाद ३० जानुअरी १९४८ क़ो गांधी जी की हत्या हो गयी । कांग्रेस में हिंदूवादी एजेंटोने जब देखा सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र बनाना मुश्किल है तो अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की प्रेजिडेंट श्यामा प्रसाद मुख़र्जी नेहरू के साथ सम्बन्ध बिगड़े और असंतुस्ट होने के बाद, मुखर्जी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस छोड़ दी और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की जो की अबकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्ववर्ती पोलिटिकल पार्टी है । जिसका एजेंडा वर्ण वादी हिन्दू राष्ट्र बनाना है । इसका मतलब ब्राह्मणवादी देश और न्याय व्यवस्था को चलाएंगे, क्षत्रियवादी देश की आर्मी यानी सुरक्षा को संभालेंगे, देश की इकोनॉमी को वैश्यवादी चलायेंगे और जितने अन्य यानी वैदकी प्रमाण पत्र के हिसाब से शूद्र और अतिशूद्र यानी आउट कास्ट हैं उनके लिए काम करेंगे । भारत शब्द ही उनकी पूर्व प्रेजिडेंट सावरकर की संगठन की साथ सम्बंधित थी । आर.एस.एस और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ही भारत से जुडी श्लोगान इस्तेमाल करते हैं । उनकी पॉलिटकल पार्टी का नाम भी भारतीय जनता पार्टी है; जब की इस भूखंड में इस पहचान का कोई विस्तार रिस्ता नहीं है । इस भूखंड का नाम कभी भारत नहीं था । भारत नाम देश स्वाधीन होने का वाद ही दियागया है । ना भारत कोई राजा था ना उसकी कभी इतना बड़ा भूखंड का राज । बस कुछ मन गढन कहानी भारत नाम की प्रचार और प्रसार करते हैं । अगर हम ये मान ले भारत एक पुरुष है तो भारत को माता क्यों कहते है? भारत एक पुरुष की नाम है ना की स्त्री विशेष की । अगर भारत को हम एक राजा मान लें तो उनकी राज कितने तक फैला था उसकी वारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । क्यों की उसकी कुछ मजबूत सबूत ही नहीं है । अगर मान लिया जाये भारत “महाभारत” से लिया गया है तो महाभारत का मतलब क्या है? “महा” मतलब बड़ा या महान और “भारत” मतलब एक व्यक्ति विशेष का नाम । इसका मतलब क्या हुआ? जैसे किसीका नाम अगर “पपु” है “महापपु” का मतलब क्या होसकता है? अगर मान लिया जाये “महाभारत” का मतलब “महा युद्ध” है तो “भारत” का मतलब युद्ध है । अगर भारत का मतलब युद्ध है तो इसको एक राष्ट्र का नाम के रुपसे इस्तेमाल करना कितना तार्किक है? अगर मानलिया जाये “भारत” पाण्डु और कौरव के पूर्वज थे जैसे हिन्दू ग्रंथों में लिखा गया है; महाभारत ही संदेह की घेरे मैं है जैसे महाभारत में लिखा गया है? क्या गांधारी के पेटमें जो बच्चा था उस को मारने का बाद उसकी टुकड़े १०१ मिटटी के घड़ा में रख कर बच्चे पैदा की जा सकती है? क्योंकि महाभारत की अनुसार गांधारी की बच्चे उनकी पेट से नहीं मिट्टी की घड़ों से पैदा हुए है जो १०० लड़के थे और एक लड़की जो बायोलॉजिकल असंभव है । अगर मान भी लिया जाये एक औरत नौ महीना में एक बच्चा पैदा करे या जुड़वां तो ज्यादा से ज्यादा उसकी मेंस्ट्रुएशन साइकिल में ज्यादा से ज्यादा ४० से ५० बच्चा पैदा कर सकता है उससे ज्यादा नहीं क्योंकि ज्यादातर लडकियोंकी मेंस्ट्रुएशन साइकिल १० या १२ की उम्र से शुरु हो जाती हैं और ज्यादा से ज्यादा मेनोपोज़ यानी ५२-५४ तक बच्चे पैदा करने की क्षमता होती है । फिर ऊपर से गांधारी की आंख में पट्टियां और उनकी पति अंधा; आप खुद आगे सोच सकते हो; यानी कौरव बायोलॉजिकली इम्पोसिबल हैं । अब आते हैं पांडव के वारे में; पांडव नाम उनकी पिता पांडु से है जो की खुद एक नपुंसक थे यानी उनकी बच्चे पैदा करने की योग्यता ही नहीं थी तो कुंती और मद्री ने कैसे बच्चे पैदा की होगी आप खुद समझ लो । कोई सूर्य पुत्र था तो कोई धर्म, वायु और इंद्र की तो कोई अश्विनी की; इसका मतलब दो रानी आपने पति से नहीं अवैध सम्पर्क से ही बच्चे पैदा किया; वायु यानी हवा और सूरज के साथ कैसे सेक्स हो सकता है वह तर्क से बहार है । अच्छा चलो मानलेते हैं किसी और से “नियोग” प्रक्रिया से ये बच्चे पैदा हुए थे, जब की कौरव का पैदा होना बिलकुल असंभव है तो इसलिये ये एक मन गढन कहानी है ना की सत्य । आगर मान भी लिया जाये ये सब सच था तो यह लोग कौन सी भाषा की इस्तेमाल करते थे? अगर कुरूक्षेत्र नर्थ इंडिया का एक छोटा सा हिस्सा है तो हम ये कैसे मान लें ये अब की पूरी इंडियन भूखंड थी । अगर उनकी माँ बोली अलग था तो जो इनकी माँ बोली से अलग हैं और इस कहानी की अनुगामी हैं उनकी कहानी से क्या रिसता? इस कहानी को क्यों जबरदस्ती उन पे थोपा जाता है? जब भारत पहचान ही संदेह के घेरे में है तो ये देश का पहचान कैसे बन गया? जब की सत्य ये है; भारत शब्द का उपयोग सावरकर ने अपनी हिंदूवादी संगठन “अभिनव भारत” के लिए 1903 में किया था । जो की हिंदूमहासभा का प्रेसिडेंट था; जो आर.एस.एस से जुड़ा था । जिसके कहनेपर नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या की । और जो कांग्रेस पार्टी ज्यादातर हिंदूवादी यानी वर्णवादी इस हिन्दू महासभा से सम्पर्कित नेताओंसे भरीपड़ी थी जिसके कारण जिन्न्हा ने कांग्रेस छोड़ी और पाकिस्तान के वारे में सोचा । सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़ी और फॉरवर्ड ब्लॉक् बनाई और आज़ाद हिन्द की कल्पना की । 1947 में देश की आज़ादी के बाद इस कांग्रेस वाले हिन्दूत्त्व नेताओंने देश का नाम “भारत” रखा । देश का नाम हिन्दू महासभा ओरिजिन से “भारत” रखना इस बात का सबूत है की कांग्रेस बस छद्म सेकुलर है । जबकि खुद नेहरू या गांधीजी या तब का समय की कोईभी नेता देश के लिए “भारत” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया । प्रमाण के तौर YouTube में आप उन लोगोंकी ओरिजिनल भाषण देख लीजिये । ज्यादातर वह देश का नाम हिन्दुस्तान या इंडिया का इस्तेमाल किया ना की भारत । ये इस बात का सूचक है भारत शब्द इनके बाद ही इस्तेमाल में आया । अगर आया तो इसके पीछे की नीयत क्या है? देश एक, नाम तीन क्यों? अगर किसी का नाम “अमर” है तो कोई भी भाषा में उससे लिखे वह “अमर” ही रहेगा; लेकिन हमारा देश का नाम अंग्रेजी में इंडिया है लेकिन जब हिंदी में लिखते हैं वह “भारत” बन जाता है जब की भारत एक अलग नाम है । एक अलग नाम के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है आप ढूंढ़ने की कोशिश करो । मेरे हिसाब से इसके पीछे एक ही मक़सद है देश को हिन्दू राष्ट्र यानी वर्ण व्यवस्था वाली देश बनाना जब की खुद वर्ण व्यवस्था एक अंधविश्वास है । अगर मानलिया जाये भारत पहचान रामायण की चरित्र राम की छोटे भाई भारत से ली गयी है तो ये कितना तार्किक है? अगर राम अयोध्या की राजा थे तो दूसारे राजाओंके सभ्यता से क्या संबध हैं? अयोध्या तो अब की इंडिया नहीं था? अयोध्या एक छोटा सा राज्य था जो की उनके अनुगामी के हिसाब से अब उत्तर प्रदेश में है । वह सारि उत्तर प्रदेश भी नहीं था । अगर राम इस भूखंड में पैदा हुए तो उनकी माँ बोली इस भूखंड में जो बोली बोला जाता है वही होंगी; तो दूसरी भाषी लोगोंके साथ इनका कनेक्सन क्या है? क्या बन्दर सेना उनकी भाषा में बात करना जानते थे? क्या राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान इत्यादि श्रीलंकान भाषा जानते थे? भारत अगर राम जी की भाई भरत के नामसे आया है तो पूरी अयोध्या तो आज की इंडिया नहीं थी तो राम राज्य बनाने का नारा कितना सही है? इससे पता चल गया होगा राम की नाम पे राजनिति और आस्था की दुकान चलाने वाले ना केवल अंधविश्वासी, मुर्ख, बिकृत दिमाग की है बल्कि असामाजिक भी है क्यों की राम की नाम पे ये दंगा किये और इंसानों की हत्या की और सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुक्सान भी किया । जब भारत शब्द की खोज चली कुछ धूर्त्त ज्ञानी भारत शब्द को सही साबित करने के लिए अपनी हिसाब से भारत का मतलब भी निकाल लिए. कुछ बोलते हैं भारत शब्द एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ “भा” का मतलब है प्रकाश और ज्ञान, “रत” का अर्थ है “समर्पित”। भारत का मतलब है “अंधेरे के खिलाफ प्रकाश के लिए समर्पित”। “अंधेरे के खिलाफ प्रकाश के लिए समर्पित” तो बुद्ध के लिए सही बैठ ता है क्यों के उनको लाइट ऑफ़ एशिया भी कहा जाता है उनके नाम पे देश का नाम बुद्ध ही रख देते जो की ज्ञान और समर्पण का नाम है? अगर भारत एक संस्कृत शब्द है तो जो गैरसंस्कृत बोलनेवाले लोग हैं इस शब्द से क्या सबंध है? संस्कृत भाषा बोलनेवाले तो इस भूखंड का सत्यानाश किया है? ये नई अर्थ कितना भरोसा की योग्य है कौन जानता है और देश में १५ हजार से भी कम लोग जिसको अपनी मातृभाषा मानते हो इसको इतना प्राधान्य देने का उद्देश्य क्या है? कुछ का मानना है यह वैदिक देवता अग्नि के नामों में से एक है, और कुछ का मानना है की यह एक पौराणिक राजा है जो की, दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र था। और कुछ लोगों का मानना है देश का नाम इसलिए भारत नामित किया गया है क्योंकि जैन धर्म का पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सबसे बड़े पुत्र भारत चक्रवर्ती ने लंबे समय तक इस भूखंड पर शासन किया था; लेकिन ये कितना सही ही कहना मुश्किल है, कब और भूखंड का कितना हिस्सा उनोहोने राज किया था वहाँ पर बस मन गढ़न बातें और खामोशी ही है. कुछ जैन अनुगामियों के अनुसार, जैन धर्म एक प्राचीन धर्म है और यहां तक कि वैदिक/हिंदू धर्म से भी बड़ा है । अगर सूरज एक्जिस्ट करता है इसको चाहे लोग हजार नाम से जाने लेकिन एंटिटी नहीं बदलता. लेकिन भारत शब्द के केस में सब कुछ बदलता रहता है इसलिये इस पहचान को देश का पहचान बनाना कुछ ही लोगों की दिल्लगी है यानी उनको ये नाम पसंद है और उनकी मेजोरिटी गणतंत्र की पोलटिकल मूवमैंट में ज्यादा होनेका कारण बेमतलब और असंबधित नाम भी देश का नाम रख सकते हैं. क्यों की वैदिक प्रचारकों और उनके प्रसारकों ने ये नाम कोएन किया था ज्यादातर ये पहचान वर्णवादी और ब्राह्मणवादी ही है जिसको धर्म निरपेक्ष माना नहीं जा सकता. अब आप जान लिए होंगे हिंदूवादी संगठन और उनके पोलिटिकल पार्टी क्यों “भारत माता की जय” बोलते हैं? यह भारत माता की नहीं वर्णवाद और मनुवादी की जय है जो की एन्टीसेकुलर ही है. इसीलिए हमारा देश का नाम ऑफिसियली ना हिन्दुस्तान सही है ना भारत सही है लेकिन इउरोपियन ओरिजिन से इंडिया ही सेक्युलर है और यही एक ऑफिसियल नाम ही हमारे देश का नाम रखना सही है. हमारा देश का नाम इंडिया रहना इसलिए सही है क्यों की ये कोई एक धर्म विशेष या कोई एक भाषीय सभ्यता या जाती या दौड़ (Race) या एक तरह की रूढ़िवादी विचारधारा या सोच को रिप्रेजेंट नहीं करता. इंडिया पहचान पूरी तरह से निरपेक्ष है और ये पहचान कंट्रोवर्सी से बहार है. ये अंग्रेजों का दियागया नाम नहीं है बल्कि अंग्रेजोंने इस नाम को इस भूखंड की पहचान के लिए अपनाया था. 5th सेंचुरी BC से भी पहले इयुरोपियन्स हमारे भूखंड को इंडोस(indos), इंडस(Indus), इंडीज(indies) इत्यादि के नामसे जाना करते थे. जो की आज की पाकिस्तान में बहते हुए नदी यानी सिंधु नदी से प्रेरित है. इंडिया का नाम पुरानी अंग्रेजी भाषा में जाना जाता था और इसका इस्तेमाल पॉल अल्फ्रेड के पॉलस ओरोसियस में भी इस्तेमाल किया गया था. मध्य अंग्रेजी में, फ्रांसीसी नाम प्रभाव के तहत, येंडे या इंडे द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिसने प्रारंभिक आधुनिक अंग्रेजी में इंडी के रूप में प्रवेश किया था. सायद लैटिन, या स्पेनिश या पुर्तगाली के प्रभाव के कारण 17 वीं शताब्दी के बाद से इंडिया अंग्रेजी उपयोग में आया. अंग्रेज उनके दिये गए इस भूखंड पहचान की नाम इस्तेमाल किया और हमारा देश का नाम इंडिया हो गया. ऑफिशियली देश का नाम केवल इंडिया ही होना चाहिए अनऑफिसियली आप जितने भी नाम रखो वह आप की पसंद है.