कबीर के दोहे – लोभ/Greed

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कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहि
तीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि।

कबीर के अनुसार लोगों की उल्टी खोपड़ी धन से कभी संतुष्ट नहीं होती तथा
हमेशा सोचती है कि तीनों लोकों की संमति कब उनके घर आ जायेगी।

Kabir aundhi khopari,kabahu dhapai nahi
Teen lok ki sampda ,ka aabai ghar mahi.

When the mind is perverse,it never satisfies with wealth
The wealth of all the three worlds,when will it come to my house.

जब मन लागा लोभ से, गया विषय मे भोय
कहै कबीर विचारि के, केहि प्रकार धन होय।

जब लोगों का मन लोभी हो जाता है तो उसका मन बिषय भोग में रत हो जाता है और वह सब भूल जाता है
और इसी चिंता में लगा रहता है कि किस प्रकार धन प्राप्त हो।

Jab man laga lobh se,gaya vishay me bhoye,
Kahai Kabir vichari ke, kehi prakar dhan hoye.

When the mind becomes lustful,one is lost in senses
Kabir says with consideration,how would the wealth come.

बहुत जतन करि कीजिये, सब फल जाय नशाय
कबीर संचय सूम धन, अंत चोर ले जाय।

अनेक प्रयत्न से लोग धन जमा करते है पर वह सब अंत में नाश हो जाता है।
कबीर का मत है कि कंजूस व्यक्ति धन बहुत जमा करता है पर अंततः सभी चोर ले जाता है।

Bahut jatan kari kijiye,sab fal jaye nashay
Kabir sanchay soom dhan,ant chor le jaye.

Even after great efforts, all the fruits are waisted
The miser saves the big wealth, the thieves take away in the end.

जोगी जंगम सेबड़ा, सन्यासी दरबेश
लोभ करै पावे नहि, दुर्लभ हरि का देश।

योगी, साधु,संन्यासी या भिक्षुक जो भी लोभ करेगा उसे परमात्मा का
दुर्लभ देश या स्थान नहीं प्राप्त हो सकता है।

Jogi jangam sebara,sanyasi darbesh
Lobh kare pawe nahi, durlav Hari ka desh.

Ascetic,living, mendicants,hermit or beggar
One who is greedy will not get the rare God’s country.

जोगी जंगम सेबड़ा ज्ञानी गुणी अपार
शत दर्शन से क्या बने ऐक लोभ की लार।

योगी, जंगम, ज्ञानी ,विद्वान अत्यंत गुणवान भी यदि आदतन लोभी हो तो परमात्मा
का दर्शन प्राप्त नहीं हो सकता है।

Jogi,jangam,sebara gyani guni apar
Shat darshan se kya bane,ek lov ki lar.

Ascetic, living or moving,mendicant scholar or of great merit
If he is a habitual greedy,he can never see the God.

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