सुधारवाद और मार्क्‍सवाद – लेनिन

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हम सुधारवादी नहीं हैं – सेण्ट पीटर्सबर्ग के विसर्जनवादियों ने लिखा – क्योंकि हमने यह नहीं कहा कि सुधार ही सब कुछ हैं, अन्तिम लक्ष्य कुछ नहीं; हमने अन्तिम लक्ष्य की ओर बढ़ने की बात कही थी; हमने तो सुधारों के लिए संघर्ष के जरिये निधर्रित लक्ष्यों की पूर्ति की ओर बढ़ने की बात कही थी।

देखें कि यह बचाव तथ्यों से कैसे मेल खाता है।

पहला तथ्य। विसर्जनवादी सेदोव ने तमाम विसर्जनवादियों के बयानों का सार देते हुए लिखा था कि मार्क्‍सवादियों के ”तीन स्तम्भों”2 में से दो हमारे आन्दोलन के लिए उपयुक्त नहीं रह गये हैं। सेदोव ने आठ घण्टे का कार्य-दिवस रहने दिया, जिसे सिध्दान्तत: सुधार के रूप में हासिल किया जा सकता है। उन्होंने ठीक उन चीजों को, जो सुधारों के दायरे से बाहर जाती हैं, हटा दिया या पृष्ठभूमि में पहुँचा दिया। फलस्वरूप, सेदोव ठीक उस नीति का, जो इस फार्मूला में अभिव्यक्त है कि अन्तिम लक्ष्य कुछ नहीं, अनुसरण करते हुए सीधे-सीधे अवसरवाद में जा धाँसे। यह है सुधारवाद, जब ”अन्तिम लक्ष्य” (जनवाद के सम्बन्ध तक में) को आन्दोलन से दूर धकेल दिया जाता है।

दूसरा तथ्य। विसर्जनवादियों के कुख्यात अगस्त (गत वर्ष के) सम्मेलन3 ने भी असुधारवादी माँगों को नजदीक लाने, हमारे आन्दोलन की स्वयं हृदय-स्थली तक लाने के बजाय उन्हें – किसी खास मौवेफ़ तक – दूर धकेल दिया।

तीसरा तथ्य। ”पुराने”4 को ठुकराकर तथा उसका तिरस्कार कर, उससे अपने को अलग कर विसर्जनवादी अपने को इस तरह सुधारवाद तक सीमित करते हैं। वर्तमान स्थिति में सुधारवाद तथा ”पुराने” के परित्याग के बीच सम्बन्ध सुस्पष्ट है।

चौथा तथ्य। मजदूरों का आर्थिक आन्दोलन ज्योंही सुधारवाद के बाहर जानेवाले नारों के साथ नाता जोड़ता है, वह विसर्जनवादियों के रोष तथा प्रहारों (”उत्तेजना,” ”हवा में तलवार घुमाने,” आदि, आदि) को जन्म देता है।

परिणाम क्या निकलता है? शब्दों में तो विसर्जनवादी सिध्दान्त के रूप में सुधारवाद को ठुकरा देते हैं, परन्तु व्यवहार में वे आद्यन्त उसका अनुसरण करते हैं। एक ओर वे हमें यकीन दिलाते हैं कि उनके लिए सुधार कतई सब कुछ नहीं है, परन्तु दूसरी ओर ज्योंही मार्क्‍सवादी व्यवहार में सुधारवाद के दायरे के बाहर बढ़ते हैं,विसर्जनवादी उन पर प्रहार करते हैं अथवा अपनी घृणा प्रकट करते हैं।

यह सब होते हुए भी मजदूर आन्दोलन के तमाम क्षेत्रों में घटनाएँ हमें बताती हैं कि मार्क्‍सवादी सुधारों का व्यावहारिक उपयोग करने, उनके लिए संघर्ष करने में पीछे रहना तो दूर, बल्कि निश्चित रूप से आगे रहते हैं। मजदूर श्रेणी5 के स्तर पर दूमा के चुनावों को ले लें – दूमा के अन्दर तथा बाहर सदस्यों के भाषण, मजदूर पत्र-पत्रिकाओं का संगठन, बीमा सुधार का उपयोग, सबसे बड़ी ट्रेड-यूनियन के रूप में धातुकर्मी यूनियन, आदि – आप सर्वत्र मार्क्‍सवादी मजदूरों को आन्दोलन, संगठन के प्रत्यक्ष, फौरी, ”नित्यप्रति” कार्यों के क्षेत्र में, सुधारों के लिए संघर्ष तथा उनके उपयोग के क्षेत्र में विसर्जनवादियों से आगे देखते हैं।

मार्क्‍सवादी अथक रूप से कार्य कर रहे हैं, सुधार हासिल करने, उनका उपयोग करने का एक भी ”मौका” हाथ से नहीं जाने देते, प्रचार में, आन्दोलन में, व्यापक आर्थिक कार्रवाइयों, आदि में सुधारवाद के दायरे के बाहर जाने के प्रत्येक पग की निन्दा नहीं, उसका समर्थन तथा उसे अध्‍यवसायपूर्वक विकसित करते हैं। परन्तु मार्क्‍सवाद को तिलांजलि दे बैठे विसर्जनवादी मार्क्‍सवादी समष्टि के ठीक अस्तित्व पर प्रहार कर, मार्क्‍सवादी अनुशासन को नष्ट कर, सुधारवाद और उदारतावादी मजदूर नीति का प्रचार कर मजदूर आन्दोलन को केवल विसंगठित कर रहे हैं।

इसके अलावा यह तथ्य भी नजर से ओझल नहीं किया जाना चाहिए कि रूस में सुधारवाद एक खास रूप में, यानी वर्तमान रूस तथा वर्तमान यूरोप की राजनीतिक परिस्थिति की बुनियादी अवस्थाओं की सादृश्यता के रूप में व्यक्त होता है। उदारतावादी के दृष्टिकोण से यह सादृश्यता न्यायोचित है, इसलिए कि उदारतावादी यह विश्वास करता है और मानता है कि ”खुदा का शुक्र है, हमारे पास संविधान है”। उदारतावादी जब इस विचार की पैरवी करता है कि 17 अक्टूबर के बाद सुधारवाद के दायरे के बाहर जनवाद का प्रत्येक पग पागलपन, जुर्म, पाप, आदि है, तो वह बुर्जुआ वर्ग के हित व्यक्त करता है।

परन्तु ये ही बुर्जुआ विचार हमारे विसर्जनवादियों द्वारा अमल में लाये जा रहे हैं, जो ”खुली पार्टी” तथा ”कानूनी पार्टी के लिए संघर्ष,” आदि को रूस में निरन्तर और क्रमबध्द ढंग से (कागज पर) ”रोप रहे हैं”। दूसरे शब्दों में, उदारतावादियों की भाँति वे उस विशेष पथ के बिना, जिसके फलस्वरूप यूरोप में संविधानों का निर्माण तथा पीढ़ियों के दौरान, कभी-कभी शताब्दियों के दौरान तक उनका सुदृढ़ीकरण हुआ, रूस में यूरोपीय संविधान रोपने की वकालत करते हैं। विसर्जनवादी तथा उदारतावादी, जैसा कि कहा जाता है, खाल को पानी में डाले बिना धोना चाहते हैं।

यूरोप में सुधारवाद का वास्तविक अर्थ है मार्क्‍सवाद को तिलांजलि देना तथा उसके स्थान पर बुर्जुआ ”सामाजिक नीति” रखना। रूस में विसर्जनवादियों के सुधारवाद का अर्थ मात्र यही नहीं है, अपितु मार्क्‍सवादी संगठन को नष्ट करना, मजदूर वर्ग के जनवादी कार्यभारों का परित्याग करना, उनके स्थान पर उदारतावादी मजदूर नीति रखना भी है।

(12 सितम्बर, 1913 को प्रकाशित, सम्पूर्ण रचनाएँ, खण्ड 24)

टिप्पणियाँ

1 ‘सेवेरनाया प्राद्वा’ (‘उत्तरी सत्य’) – 1 (14) अगस्त से 7 (20) सितम्बर, 1913 तक बोल्शेविक समाचारपत्र ‘प्राद्वा’ के कई नामों में से एक।

2 ”तीन स्तम्भ” – मजदूर वर्ग की तीन मुख्य क्रान्तिकारी माँगों का सांकेतिक नाम : जनवादी जनतन्त्र, जमींदारी भूस्वामित्व का उन्मूलन व भूमि का किसानों को हस्तान्तरण; आठ घण्टे का कार्य-दिवस जारी करना।

3  1912 का अगस्त सम्मेलन – त्रॉत्सकीवादियों, विसर्जनवादियों और अन्य अवसरवादियों का यह सम्मेलन अगस्त, 1912 में वियेना में हुआ था और इसके लिए विसर्जनवादियों के पीटर्सबर्ग तथा मास्को ”पहल ग्रुपों,” बुन्द तथा ट्रांसकाकेशियाई मेंशेविकों ने भी अपने डेलीगेट भेजे थे। सम्मेलन में भाग लेनेवाले अधिकांश लोग मजदूर आन्दोलन से कटे हुए प्रवासी ग्रुपों के प्रतिनिधि थे। सम्मेलन के संगठनकत्तर्ओं का लक्ष्य इन सभी तरह-तरह के तत्तवों को एकजुट करके एक अवसरवादी पार्टी बनाना था, किन्तु ‘व्पेर्योद’ ग्रुप, लातवियाई सामाजिक-जनवादियों, आदि के सम्मेलन से वाक-आउट कर जाने के कारण यह लक्ष्य पूरा न हो सका। सम्मेलन में त्रॉत्सकी की पहल पर एक पार्टी विरोधी गुट बनाया गया, जिसे अगस्त गुट कहा जाता था।

सम्मेलन ने सामाजिक-जनवादी कार्यनीति के सभी प्रश्नों पर पार्टी विरोधी और विसर्जनवादी प्रस्ताव पास किये और पार्टी द्वारा गुप्त रूप से अपनी कार्रवाइयाँ जारी रखे जाने का विरोध किया। जातियों के आत्मनिर्णय के अधिकार की माँग के स्थान पर उसने सांस्कृतिक-राष्ट्रीय स्वायत्तता की माँग पर जोर दिया, यद्यपि विभिन्न पार्टी कांग्रेसों के निर्णयों में उसे राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति मानकर निन्दनीय ठहराया जा चुका था।

4 जारशाही काल में वैध पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखे गये लेखों में लेनिन को प्राय: ”ईसपी भाषा,” यानी सांकेतिक, लाक्षणिक शब्द और मुहावरे इस्तेमाल करने पड़ते थे। उदाहरणार्थ, ”रूसी सामाजिक-जनवादी मजदूर पार्टी” के नाम के बदले वह ”पुराना” शब्द प्रयोग करते थे और ‘प्राद्वा’ के पाठक समझ जाते थे कि आशय मजदूर वर्ग की अरसे से अस्तित्वमान क्रान्तिकारी पार्टी से है, जिसे भंग करके उसके स्थान पर मेंशेविक-विसर्जनवादी ”नयी”, वैध, क्रान्तिकारी कार्यकलाप से कोई सम्बन्ध न रखनेवाली ”व्यापक मजदूर पार्टी” बनाना चाहते थे। आगे चलकर पाठक देखेंगे कि लेनिन ने रूसी सामाजिक-जनवादी मजदूर पार्टी के लिए ”मार्क्‍सवादी समष्टि” नाम भी इस्तेमाल किया है।

5   राज्य दूमा के सदस्यों का निर्वाचन तथाकथित श्रेणी (क्यूरिया) प्रतिनिधित्व के सिध्दान्त के आधार पर होता था और श्रेणियों का निधर्रण सामाजिक संस्तर या सम्पत्ति के अनुसार किया जाता था। इस प्रकार मजदूर मजदूर श्रेणी के प्रतिनिधित्व की मात्रा के अनुसार चुनते थे, भूस्वामी (जमींदार) भूस्वामी श्रेणी के प्रतिनिधित्व की मात्रा के अनुसार, इत्यादि।

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