सुधारवाद और मार्क्‍सवाद – लेनिन

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अराजकतावादियों के विपरीत मार्क्‍सवादी सुधारों के लिए संघर्ष को, यानी मेहनतकशों की दशा में ऐसे सुधारों के लिए संघर्ष को स्वीकार करते हैं, जो सत्तारूढ़ वर्ग की सत्ता को नष्ट न करते हों। परन्तु इसके साथ ही मार्क्‍सवादी उन सुधारवादियों के विरुध्द सर्वाधिक संकल्पपूर्वक संघर्ष करते हैं, जो प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में मजदूर वर्ग के प्रयासों तथा गतिविधियों को सुधारों तक सीमित करते हैं। सुधारवाद मजदूरों के साथ बुर्जुआ धोखाधड़ी है, जो पृथक-पृथक सुधारों के बावजूद तब तक सदैव उजरती दास बने रहेंगे, जब तक पूँजी का प्रभुत्व विद्यमान है।

उदारतावादी बुर्जुआ एक हाथ से सुधार देते हैं और दूसरे हाथ से सदैव उन्हें छीन लेते हैं, उन्हें समेटकर शून्य बना डालते हैं, मजदूरों को दास बनाने के लिए, उन्हें पृथक-पृथक ग्रुपों में विभक्त करने के लिए, मेहनतकशों की उजरती दासता बनाये रखने के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। इस कारण सुधारवाद, उस समय भी, जब वह पूर्णत: निष्कपट होता है, व्यवहार में मजदूरों को भ्रष्ट और कमजोर बनाने का बुर्जुआ हथियार बन जाता है। समस्त देशों का अनुभव बताता है कि सुधारवादियों पर विश्वास करने वाले मजदूर सदैव बेवकूफ बन जाते हैं।

इसके विपरीत, यदि मजदूर मार्क्‍स के सिध्दान्त को आत्मसात कर लेते हैं, यानी वे पूँजी के प्रभुत्व के बने रहते उजरती दासता की अपरिहार्यता को अनुभव कर लेते हैं, तो वे किसी भी बुर्जुआ सुधारों से अपने को बेवकूफ नहीं बनने देंगे। यह समझकर कि पूँजीवाद के बने रहते सुधार न तो स्थायी और न महत्वपूर्ण हो सकते हैं,मजदूर बेहतर परिस्थितियों के लिए लड़ते हैं तथा उजरती दासता के विरुध्द और डटकर संघर्ष जारी रखने के लिए बेहतर परिस्थितियों का उपयोग करते हैं। सुधारवादी छोटी-मोटी रियायतों से मजदूरों में फूट डालने, उनकी ऑंखों में धूल झोंकने, वर्ग संघर्ष की ओर से उनका ध्‍यान हटाने का प्रयत्न करते हैं। परन्तु मजदूर सुधारवाद की मिथ्यावादिता को अनुभव कर चुकने के कारण अपने वर्ग संघर्ष का विकास तथा विस्तार करने के लिए सुधारों का उपयोग करते हैं।

सुधारवादियों का मजदूरों पर प्रभाव जितना अधिक सशक्त होता है, मजदूर उतने ही निर्बल होते हैं, बुर्जुआ वर्ग पर उनकी निर्भरता उतनी ही ज्यादा होती है, तरह-तरह के दाँव-पेंचों से इन सुधारों को शून्य में परिणत कर देना बुर्जुआ वर्ग के लिए उतना आसान होता है। मजदूर आन्दोलन जितना अधिक स्वावलम्बी तथा गहन होता है,उसके ध्‍येय जितने अधिक विस्तृत होते हैं, सुधारवादी संकीर्णता से वह जितना अधिक मुक्त होता है, मजदूरों के लिए अलग-अलग सुधारों को सुदृढ़ बनाना तथा उनका उपयोग करना उतना ही आसान होता है।

सुधारवादी समस्त देशों में हैं, इसलिए बुर्जुआ वर्ग सर्वत्र मजदूरों को इस या उस तरह भ्रष्ट करने, उन्हें ऐसे सन्तुष्ट दास बनाने का प्रयास करते हैं, जो दासता को मिटाने का विचार त्याग देते हैं। रूस में सुधारवादी विसर्जनवादी हैं, जो हमारे अतीत को ठुकराते हैं, ताकि मजदूरों को नयी, खुली, कानूनी पार्टी के बारे में मीठी-मीठी लोरियाँ सुनाकर सुलाया जाये। हाल में ‘सेवेरनाया प्रावदा’1 ने सेण्ट पीटर्सबर्ग के विसर्जनवादियों को सुधारवाद के आरोप से अपना बचाव करने के लिए विवश किया था। उनकी दलीलों का ध्‍यानपूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए, ताकि एक अतीव महत्वपूर्ण प्रश्न का स्पष्टीकरण किया जा सके।

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