उधारी के पैसे

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एक दिन किसी गरीब ने रात में सपना देखा कि उसे अपने मित्र से 100 रुपये उधार मिले है। सवेरे जब नींद खुली तो उसका अच्छा या बूरा फल जानने की इच्छा हुई, उसने अपने मित्रों में बैठकर इस बात की चर्चा की । धीरे-धीरे यह खबर बिजली की तरह फेल गयी यहां तक कि उस मित्र ने भी इस बात को सुना जिससे कि गरीब ने सपने में 100 रुपये लिये थे।

उसे लालच आ गया, उसने सोचा कि किसी तरह गरीब से रुपये लेना चाहिए और उसके पास रुपये लेने पहूंचा और कहने लगा कि जो 100 रुपये उधार लिया था वह मुझे दें दो, मुझे जरूरत हैं इसलिए आज तुम मुझे रुपये दे दो।

गरीब दोस्त ने पहले तो सोचा कि मित्र हंसी मजाक कर रहा है लेकिन जब वह हाथापाई करने को तैयार हुआ और बहुत भय आदि दिखाया तो गरीब दोस्त के भी प्राण सुखने लगे। बेचारा दिनभर मेहनत करता तब उसे खाने को मिलता था, घर में फुटी कोढी भी न थी 100 रुपये कहां से देता ? “

विवश होकर हिम्मत बांध वो भी मित्र का सामना करने को खडा हो गया तब तो मित्र के कांन खडे हो गये, उसे आशा थी कि डरकर दोस्त रुपये दे देगा लेकिन जब उसको इस आशा पर पानी फिरता दिखाई दिया तो उसने दोस्त को धमकी दे अपने घर का रास्ता लिया जाते-जाते कह गया कि मैं तुझसे रुपये जरूर वसुल कर लूंगा और गवाही में सब मित्रों और पडोसीयों की उपस्थिति करूंगा जिनके सामने तुमने रुपये पाना स्वीकार किया है। दूसरे दिन मित्र महाशय ने गरीब पर उधार रुपये लेने का अभियोग लगाकर दावा कर दिया। न्यायधीशों ने दोनों तरफ की बात ध्यान लगाकर सूनी लेकिन कोई फेसला न कर सकें क्योंकि गवाहों ने सपने में रुपये लेना गरीब के द्वारा स्वीकार बतलाया।

सोच विचार कर न्यायधीश ने यह मामला बादशाह के पास भेज दिया। बादशाह ने मामले पर अच्छी तरह गौर किया यह जानते हुए कि मित्र सरासर दगाबाजी कर रहा है बादशाह को निपटाने की कोई तरकीब न सूझी लाचार हो बादशाह ने बीरबल को बुलाया। सब मामला समझा दिया कि बेचारे गरीब को दगाबाज मित्र ठगना चाहता है।

इसका ऐसे तरीके से न्याय होना चाहिए कि दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो जाये । बीरबल ने आज्ञा मानकर एक बडा सा दर्पण मंगवाया उसके बाद 100 रुपये उन्होंने ऐसी होशियारी से रख दिये कि दर्पण में रुपयों की छांया दिखाई दे।

जब रुपये दर्पण में दिखने लगेे तब बीरबल ने दगाबाज मित्र से कहा कि जिस रुपये की छांया दिखती हैं उसे तुम ले लो. उस मित्र ने अचंभा जाहिर करते हुए कहा कि मैं यह कैंसे ले सकता हूं यह तो सिर्फ रुपये की परछाई है। मौंका पाकर बीरबल बोल कि गरीब ने भी तो तुमसे सपने में रुपये पाए थे वह भी तो परछाई थी, फिर तुम असली रुपये क्यो चाहते हो ?

मित्र की गरदन झुक गयी कोई जवाब न बना लाचार होकर खाली हाथ चलने को तैयार हुआ तो बीरबल बोले – तुमने गरीब को आज परेशां किया उसके कामों में रूकावट डाली इसलिए बिना सजा पाये यहां से न जा सकोगे। बीरबल ने समझाकर उस दगाबाज को उस जुर्माने की सजा दी और जो रकम हर्जाने की मिली वह उन्होंने उस गरीब गरीब को हर्जाने में दे दी।

इस तरह गरीब हंसी-ख़ुशी घर वापस चला गया । जिस किसी ने भी इस न्याय की खबर सुनी उसने बीरबल की प्रशंसा कि और बादशाह तो बीरबल के इस न्याय से एकदम दंग रह गये ।

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क्रमरहित सूची

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