हिन्दू सोच और वेदों में कामुक आकर्षण (seduction), कौटुम्बिक व्यभिचार या परिवारिक यौन-क्रिया (incest), गर्भपात, वैवाहिक बेवफाई(conjugal infidelity), धोखाधड़ी(deception), और डकैती (robbery) से संबंधित मामलों से भरे पड़े हुए है। वेश्यावृत्ति आम थी और वेश्याओं को वारंगना कहा जाता था । वेदों में कुछ बहुत ही अश्लील बिषय हैं । उदाहरण के लिए ऋग्वेद में पुषाण और सूर्य (ऋग्वेद 10.85.37) के बिच बातें और फिर यजूर वेद के अश्वमेध खंड में एक समान अश्लील बातचीत की गई । हम कभी नहीं मंडल 10 का संदर्भ लें सकते क्यों की यह बहुत ही अश्लील है । पुराण खुली यौन विकृतियों को दर्शाते हुए कहानियों से भरे हुए हैं जिन्हें हम यहां रिकॉर्ड नहीं कर सकते हैं और अनैतिकता के बदबू से बचने चाहिए । हम ऐसे वार्तालापों के विवरण में जाएं जो आक्रामक हो सकते हैं लेकिन हम उनमें से कुछ को संक्षेप में देखेंगे । ब्रह्मा को हिंदू ट्रिनिटी यानि त्रिमूर्ति का सबसे बड़ा आध्यात्मिक भगवान माना जाता है, और फिर भी यदि हम शिव पुराण (रूद्र संहिता 2 सती खंड 2 अध्याय 19) पढ़ते हैं, तो हम उन्हें धोकेबाज और सेक्स/यौन पागल के रूप में वर्णित पाते हैं । यहां तक कि शिव और पार्वती ब्रह्मा के विवाह के समय भी उनके यौन भ्रम को खुले तौर पर प्रदर्शित किया गया था । उसी ग्रंथ में शिव और पार्वती के बारे में एक और अश्लील कहानी दर्ज की गई है । यहाँ पर ये बताना जरुरी है की आपको शिव जी की पिता का नाम कहीं नहीं मिलेगा; हो सकता है शिव एक प्रतिश्ठित व्यक्ति का नाम हो जिसको काल्पनिक चरित्र में पेश किया गया । हिंदू शास्त्रों और पुराणों को पढ़ते हुए हम पाते हैं कि वैदिक आर्यों और देवताओं के बीच लिंग का संबंध आदर्श नहीं था । स्पष्ट रूप से इन मानकों को बाद में हिंदू धर्म के अनुयायियों ने पालन किया । एक से अधिक पुरुषों ने एक महिला को साझा किया और उनमें से कोई भी पत्नी पर कोई विशेष अधिकार नहीं था । देवों ने ऋषियों की पत्नियों से छेड़छाड़(molestation) की या यौन सहयोगी के साथ मिलकर ऋषियों की पत्नियों पर बलत्कार किया । इंद्र द्वारा ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या के बलात्कार को अच्छी तरह से जाना जाता है और इंद्र ऋग्वेद के प्रमुख देवता है । महाभारत के वन पर्व के अध्याया 100 में हमने पढ़ा कि ऋषि विभाखंड ने मादा हिरण के साथ सहवास किया और इस संभोग के परिणामस्वरूप ऋषि श्रंगा का जन्म हुआ । महाभारत ऋषि व्यास के आदि पर्व के अध्याया 118 में हमें एक समानता मिलती है ।
लोकप्रिय धारणा यह है कि भगवान ब्रह्मा जिस ने वेदों का रचना किया । कहा जाता है कि उन्होंने अपनी बेटी सरस्वती के साथ यौन संबंध स्थापित किया था ।
यह कहानी महाभारत में भी पाई जाती है । यह सोच ग्रीस के शास्त्रों में भी मिलता है जहां देवी मेडुसा को इसी तरह भगवान पोसीडोन द्वारा बर्बाद किया गया था।
पांडव के पिता पांडु ऋषि कदम से अभिशाप प्राप्त किया था । कहानी के अनुसार ऋषि कदम जब एक हिरण के साथ यौन संभोग में व्यस्त था तब पांडु ने उससे परेशान किया था, इससे गुस्से में आकर ऋषि कदम ने अभिशाप दिया जिसके वजह से वह नपुंसक हो गये । कहानी जो भी हो ये सच है की पांडु नपुंसक थे और पांडव उनके बच्चे नहीं थे । वह रामायण हो या महाभारत दो भी उत्तर इंडिया से संबधित है; अयोध्या और कुरूक्षेत्र समग्र इंडिया नहीं था न राम और पांडव को इस भूखंड में बोले जाने वाले १२२ प्रमुख भाषा या १६०० अन्य भाषा बोलना आता होगा, जो उनकी मातृभाषा हुई होगी वह वही भाषा के लोग रहे होंगे; जिससे ये बात साफ़ है उनकी गैर भाषी सभ्यताओं के साथ उनकी जीवनी से कोई सम्बद्ध नहीं था । इसका मतलब जिस खंडित भूखंड का वह हिस्सा है वह वहां का मुलनिवाशी हुए होंगे और उनकी कृत्य उनकी गैर भाषीय सभ्यता से कोई सम्बद्ध नहीं हुए होंगे । लेकिन हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने ये दो लोकप्रिय कहानियों को दूसरे भाषाओं में अनुबाद करके उनको उनकी सोच के साथ जोड़ते हैं और उनकी गंदगी की हिस्सा बताते हैं जो की अंध भक्तों को जानना जरूरी है । इसका मतलब ये है अगर ये दो सोच उत्तर इंडिया के है तो जो पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भाषीय सभ्यता से आते हैं उनके साथ कोई रिश्ता नहीं सीबाये एक सहमति के । एक सहमति कभी भी एक स्रोत नहीं हो सकते और उनकी दुष्कर्म और गन्दी सोच की भागिदार नहीं बन सकते । इसीलिए जो लोग ये सब बातों को हिन्दू के नाम पे थोपना चाहते हैं सब षड़यंत्रकारी है और इस भूखंड का असली गंदगी हैं । महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 63 में ऋषि पराशार ने सत्यवती के साथ यौन संभोग किया, जिसे मत्स्य गंधी – मछुआरे की लड़की भी कहा जाता है । आदि पर्व के अध्याय 104 में ऋषि दिर्ग ने भी इसी एक समान हरकत किया था ।
१. कौटुम्बिक व्यभिचार या परिवारिक यौन-क्रिया (incest):
ब्रह्म पुराण के अनुसार सृजन की प्रक्रिया को जारी रखने के लिए, ब्रह्मा ने अपने शरीर से एक आदमी और एक महिला को जन्म दिया। उस आदमी को स्वभूंबु मनु नाम दिया गया और महिला को शतरूप नाम दिया गया । उनके विचार धारा के अनुसार मनु से मनुष्य बने हैं । यही कारण है कि उन्हें मानव कहा जाता है। जब ब्रह्मा ने शतरूप बनाया, तो उसे के रूपसे मोहित होकर वह जहां जहां गईं उसका पीछा किया । शतरुपा ब्रम्हा के नजर से बचने के लिए विभिन्न दिशाओं भागी लेकिन जहां भी वह गईं, ब्रह्मा ने एक एक सिर विकसित किया और इस हिसाब से ब्रम्हा के चार सर पैदा हो गये । निराश होकर, शतरूप ने एक पल के लिए भी उनकी नजर से बाहर रहने के लिए ऊपर के दिशा को भागी । हालांकि, ब्रम्हा ने अपना पांचवां सिर ऊपर दिशा में पैदा कर दिया । इस प्रकार, ब्रह्मा ने पांच सिर विकसित किए । इस समय शिव प्रकट हुए, शीर्ष सिर काट दिया और यह निर्धारित किया कि चूंकि शतरूप ब्रह्मा की बेटी थीं (उनके द्वारा बनाई गई थी), उसके साथ प्रणय गलत था और ब्रह्मा जैसे ब्यक्तिव के लिए अपमान योग्य था इस लिए वह उनकी पांचवा सर को अपने त्रिशूल से काट डाला जो अब ब्रम्ह कपाल के नाम से जाना जाता है और अब बद्रीनाथ में हिंदू अनुयायियों को मूर्ख बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है । ब्रह्मा ने अपनी बेटी देवी सरस्वती से विवाह किया ! ब्राह्मणों के अनुसार ब्रह्मा ब्रह्मांड का निर्माता है। सरस्वती, जो अपने पिता की पत्नी बन गईं, वास्तव में भगवान ब्रह्मा की बेटी थीं। हिंदू पौराणिक कथाओं में उनकी उत्पत्ति के बारे में दो कहानियां हैं। सरस्वती पुराण के अनुसार, ब्रह्मा ने अपनी सुंदर बेटी सरस्वती को अपनी वीर्य(sperm) से सीधे बनाया । कुछ ग्रंथ यह भी लिखा है कि ब्रह्मा अपने वीर्य को एक बर्तन में इकट्ठा किया था जब उन्होंने दिव्य सौंदर्य उर्वसी को देख कर हस्तमैथुन किया था । बर्तन में ब्रह्मा के वीर्य से सरस्वती को उत्पति हुई । इस प्रकार, सरस्वती की कोई मां नहीं थी । ब्रह्मा की यह बेटी हिंदू मान्यता के अनुसार विद्या के देवी है। जब ब्रह्मा ने सरस्वती की सुंदरता देखी तो वह अपना होश खो बैठे । अपने पिता के गन्दी नजर से बचने के लिए सरस्वती चारों दिशाओं में भागी, लेकिन वह अपने पिता से नहीं बच सकी । आखिरकार वह ब्रह्मा की इच्छा के आगे हार गई । ब्रह्मा और उनकी बेटी सरस्वती पति और पत्नी के रूप में 100 साल तक परिवारिक यौन-क्रिया में लिप्त रहे । उनका एक पुत्र स्वयंभूमारू था । स्वयंभूमारु ने अपनी बहन सतर्पा से प्यार किया । ब्रह्मा के बेटे और बेटी की संभोग के माध्यम से दो पोते और दो भव्य बेटियां मिलीं । हालांकि, मत्स्य पुराण के अनुसार, भगवान ब्रह्मा जब अकेले थे और ब्रह्मांड मौजूद नहीं था, वह एक साथी के लिए उत्सुक थे । तदनुसार उन्होंने खुद को दो भागों में विभाजित करने का फैसला किया, एक स्त्री समकक्ष बना दिया । जैसा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा के मुंह से संध्या उभरा, जिसको ब्रह्मी या सरस्वती के नाम पर उल्लेख किया गया । ब्रह्मा सरस्वती से आकर्षित हो गए और उनके प्यार में गिर गए । सरस्वती के लिए उनकी लालसा बढ़ गई और उसने उसे लगातार देखना शुरू कर दिया । अपनी नजर से बचने के लिए, सरस्वती एक तरफ से दूसरी तरफ भागी, यहां तक कि ऊपर की और भाग गई लेकिन ब्रह्मा ने अपना सिर को बिना मोड़े उसकी ओर देखना शुरू कर दिया और एक एक सर पैदा की, चारों ओर सिर बनाकर चार सिर बनाये । ब्रह्मा ने अंततः उन्हें ब्रह्मांड बनाने में मदद करने के लिए अनुरोध किया । सरस्वती ने पत्नी के रूप में ब्रह्मा को तदनुसार अपने आप को सौंप दिया और अंततः देवताओं को बनाया, जिन्होंने आखिरकार दुनिया का निर्माण किया । सरस्वती हिन्दू धर्म में भाषा, संस्कृत के साथ-साथ वेदों की मां, हिंदू धर्म के ग्रंथों की भी मां हैं । बाकी आप अनुमान लगा सकते हैं कि ब्राह्मणों के द्वारा हिन्दुइजम की शिक्षा क्या है । निर्माता खुद एक अपराधी परिवारिक यौन-क्रिया करने वाला व्यभिचारी है जिसका अपनी इच्छाओं और वासना पर कोई नियंत्रण नहीं है लेकिन भगवान है!
[ऋग्वेद III .31.1-2]। हिरण्यकशपू ने अपनी बेटी रोहिणी से विवाह किया था । वसिष्ठा ने सतरूपा से विवाह किया था, जनु ने जनवी से विवाह किया था, और सूर्य ने उषा से विवाह किया था ।
२. बलात्कार
वैदिक बनाम हिन्दू धर्म में बलात्कार आम था । मनु-इला के कुछ उदाहरण हैं, सूर्य ने कुंती से बलात्कार किया । विष्णु ने जलंधर की पत्नी (वृंदा) से बलात्कार किया जिन्होंने बाद में आत्महत्या की । प्यार से पीड़ित विष्णु ने उसे मृत्यु के बाद भी जाने नहीं दिया । उसने वृंदा की राख में नहाया, कुछ दिनों के लिए उसकी मौत को दुख मनाई और जोर से भी रोया । इंद्र द्वारा ऋषि गौतम की पत्नी अहल्या के बलात्कार को अच्छी तरह से जाना जाता है और इंद्र ऋग्वेद के प्रमुख देवता है, यानि देवताओं की महाराज है ।
देवदासीके वारे में तो आपको पता ही होगा; ये ‘देवदासी’ एक हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथा है । इंडिया के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला गया । सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हुर्इं । देवदासी प्रथा के अंतर्गत कोई भी महिला मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं । देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं । इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है । धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी मिल गई । उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया ।
३. बेटों ने अपनी मां से विवाह किया:
वैदिक यानि वर्णवाद बनाम हिन्दू धर्म में ऐसे मामले हैं जहां पिता और पुत्र ने एक ही महिला से शादी की; ब्रह्मा मनु के पिता हैं । मनु ने अपनी मां श्रद्धा से विवाह किया । पुसान/पुसाण ने भी अपनी मां से शादी कीया था ।
४. बहनों के साथ विवाह:
एक भाई और बहन के बीच खुले लिंग की चर्चा (ऋग्वेद मंडल १० में यम और यामी) यम और यमी (भाई और बहन) के बीच यौन संबंधों का वर्णन अश्लील, कामुक और गंदा है । यह कार्निलिटी(carnality) के लिए एक प्रेरणा है । उन्होंने शादी नहीं की लेकिन खुले यौन संबंधों पर चर्चा की । उनकी चर्चा से यह स्पष्ट है कि उन दिनों में बहनें अपने भाइयों के साथ यौन मामलों पर चर्चा कर सकती थीं और यहां तक कि उनसे शादी भी कर सकती थीं । ऐसे भी मान्यता है ब्रह्मा के तीन बेटे मरिची, दक्ष और धर्म और एक बेटी थीं । कहा जाता है कि दक्ष ने ब्रह्मा की बेटी से विवाह किया था, जो उनकी बहन थी (महाभारत के आदि पर्व देखें)। अन्य उदाहरण पुरुुकुत्स और नर्मदा की है, विप्रचिति और सिंहिका, नहुसा और विराज, शुक्र और उसानास, अमावसु और गो, अंसुमत और यासोदा, सूक और पिवारी का भी उल्लेख हैं।
पुसाण अपनी बहन अचोदा का प्रेमी थे । [ऋग्वेद X.3.3]
अग्नि अपनी बहन का प्रेमी है । पुसाण, जो बकरियों को घोड़ों के लिए खदेड़ते है, जो मजबूत और ताकतवर है, जिसे उसकी बहन के प्रेमी कहा जाता है, हम प्रशंसा करेंगे।
[ऋग्वेद VI.55.4] अश्विन्स सावितार और उषा के पुत्र थे जो भाई और बहन थे । कृष्ण का विवाह उनके चाचा की सत्राजित की बेटी के साथ हुआ था और कृष्ण के बेटे प्रद्युम्न का विवाह उनके मामा की बेटी रुक्माया से हुआ था।
५. महिलाओं की बिक्री और भाड़े में देना:
इस बात का सबूत है कि प्राचीन आर्यों ने भी अपनी महिलाएं (पत्नियां और बेटियां) बेचीं । जब एक बेटी को बेचा जाता था तो उसकी शादी को अर्श विवाह के रूप में जाना जाता था । यह गो-मिथुन के माध्यम से किया जाता था (एक गाय और एक बैल को लड़कियों के पिता को कीमत के रूप में देना) – जब (पिता) अपनी बेटी को नियम के अनुसार छोड़ देता है, और पवित्र कानून के हिसाब से, एक गाय और एक बैल या दो जोड़े, दुल्हन प्राप्त करने के बाद दूल्हा लड़की के पिता को दे देता है उससे अर्श संस्कार या अर्श रीती कहा जाता है ।
(मनु स्मृति 3.2 9)
“कुछ लोग गाय और बैल को अर्श विवाह के उपहार के रूप में दिया जाता है ‘लेकिन यह गलत है। शुल्क की स्वीकृति ज्यादा हो या छोटी, ये बेटी की बिक्री है। “
सहवास के लिए महिलाओं को भी किराए पर दिया जाता था । महाभारत में हमने पढ़ा कि “माधवी” राजा ययाती की बेटी थीं । ययाती ने माधवी को गलवा ऋषि को उपहार के तौर दिया । गलवा ने उसे एक दूसरे के बाद तीन राजाओं को किराए पर दिया । तीसरे के बाद, माधवी गलवा लौट आए । वह अब गलवा द्वारा अपने गुरु विश्वमित्र को दी गई थीं । विश्वामित्र ने उन्हें तब तक रखा जब तक कि वह एक बेटा नहीं पैदा किया । इसके बाद वह उसे अपने पिता के पास लौटा दिया।
६. नियोग – महिलाओं का दुर्व्यवहार
नियोग एक प्रणाली है जिसके तहत एक विवाहित महिला को कानूनी रूप से किसी अन्य व्यक्ति से बेटा बनने की इजाजत दी गई थी, न कि उसके पति । एक महिला नियोग के लिए कितने भी पुरुषों की संख्या तक जा सकती थी जिसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं थी । मधुति और अंबिका में एक एक नियोग किया था । सरदण्डयानी ने तीन किये थे । वायुसिस्टस्व को 7 की इजाजत थी और वाली ने उनके एक पत्नि को 17 नियोग तक अनुमति देने के लिए जाना जाता था । पति की सहमति से एक नियोग एक रात से बारह साल या उससे अधिक तक चला सकता था । जटिल-गौतमी के 7 पति थे । महाभारत में द्रौपदी के पांच पति थे और पांडु ने अपनी पत्नी कुंती को चार नियोगों की अनुमति दी थी । कर्ण नियोग के माध्यम से पांडव के पहले जन्मजात भाई थे ।
जनता में महिलाओं का अपहरण और विघटन महाभारत में स्पष्ट है । अपने निकटतम रिश्तेदारों के सामने द्रौपदी का चीर हरण किया गया था । कृष्ण ने रुक्मणि को अपहरण करके शादी की थी । और एक बात जो की एक छिपा हुआ बात के रूप मैं है और बताया नहीं जाता; चीर हरण की असली मतलब बलात्कार है क्यों के चीर का मतलब स्त्री जनांग है यानि स्त्री के अंग में फटन जो की योनि ही है उसकी हरण का अर्थ रेप यानि बलत्कार ही है । कृष्ण ने अपनी मामी यानि आंटी राधा के साथ प्रेम सम्बद्ध बनाया और कई गोपियों के साथ रासलीला भी की । आपने कभी उनकी प्रमुख पत्नी रुक्मणि के साथ मूर्त्ति देखि है? या ब्राह्मणो को रुक्मणीके साथ कृष्ण को पूजते देखा है? दरसल हिन्दू एक गन्दी व्यभिचारी सम्बद्ध को पूजा करते आ रहे है जिसका उनको एहसास नहीं है ।
शिव पुराण रुद्र संहिता (4.12) में हमने पढ़ा कि शिव पूरी तरह से नग्न ऋषियों की पत्नियों के सामने भाग गए थे । इस अत्याचार के कारण उन्हें अपना पुरुष अंग खोना पड़ा । उड़ीसा के जगन्नाथ, कोणार्क और भुनेश्वर के मंदिरों में नग्न महिलाओं की मूर्तियां बहुत आपत्तिजनक पोज में हैं। जो की एक समय में बौद्ध धर्म के मंदिर थे; जब 700AD के वाद ब्राह्मण राजा शशांक ने कलिंग को आक्रमण किया और उसने पहले बौद्ध धर्म की मंदिरों को हिन्दू धर्म में परिवर्तित करदिया वाद में शंकराचार्य और रामानुज ने बाकिके प्रसिद्ध बौद्ध स्थल जैसे पूरी मंदिर जो एक एक समय दंतपुरी के नाम से प्रसिद्द था और बुद्ध के दन्त को एक चैत्य में रख कर सम्मान दिया जाता था उसकी अपभ्रंश की और वाद में वैदिक अनुगामीओं ने इन मन्दिरोँ में अश्लील मूर्तिकला लगाकर उसकी अपभ्रंस की । खजुराहो मंदिरों के बाहर इसी तरह के अश्लील पोज खुले तौर पर चित्रित किया गया है जो की संदेह की घेरे में है कहीं वह कोई प्रसिद्द बौद्धिक स्थल से संबधित तो नहीं? क्यों की ब्राह्मणोंने बुद्ध धर्मकी हर तरह की तबाह करने की कोशिस सदियों करते आ रहे है ।
७. जुआ
जुआ को वैदिक धर्म में सम्मानित किया जाता है । यह ब्राह्मणवाद द्वारा प्रमोट किया गया था। क्रिता, त्रेता, द्वापर और कली जुआ में उपयोग किए जाने वाले गोटी/पांसे के नाम थे । पांसों में सबसे भाग्यशाली को क्रिता कहा जाता था और दुर्भाग्यपूर्ण को कली कहा जाता था । त्रेता और द्वापर इंटरमीडिएट पांसे(dices) थे । साम्राज्यों और यहां तक कि उनकी पत्नियों को वैदकी द्वारा जुए में हिस्सेदारी के रूप में पेश किया जाता था । उनके बुरी आदत को बाद में आम हिंदुओं ने अनुकरण किये । उदाहरण के लिए राजा नल ने अपना राज्य दाँव में लगाया और इसे खो दिया । बाद में पांडुओं ने अपने राज्य और उनकी पत्नी द्रोपदी को दाँव में लगाया और दोनों को खो दिया ।
८. शराब
सभी वैदिक ऋषि सोम रस यानि शराब और इसी तरह के नशे को पीने वाले लोग थे ।
यह आर्य/वैदिक के अनुष्ठान का हिस्सा था । महिलाएं यहां तक कि ब्राह्मण महिलाएं भी पीने में शामिल हैं क्योंकि यह एक सम्मानजनक अभ्यास था और पाप या दुराचार के रूप में नहीं माना जाता था । उत्तर खण्ड रामायण में मानते हैं कि श्री राम चंद्र और सीता ने भी शराब पान किया और कृष्ण और अर्जुन भी इसके अदि थे । जो सूरा यानि सोम रस यानि शराब पिया करते थे उनको सुर कहाजाता था और जो नहीं पिया करते थे उनको असुर । ऋग्वेद के अनुसार राजा इंद्र मांस खाते थे जिन में बैल/वृषभ और बछड़ा उनकी प्रिय थी और सोम रस उनकी प्रिय पान था।
कृपया ध्यान दें: हमारा भूखंड में ज्यादातर आबादी यानी ८०% से ज्यादा मूलनिवासियों को हिन्दू नाम से नवाजी गयी है । सुनकर आप को दुख लगेगा के हमारे पूर्वज ना हिन्दू थे ना आप जिसको भगवान के रूपमें पूजते हो वह हिन्दू हैं । हिन्दूज़िम एक षडयंत्र है और ये सोच शरारती ताकतों ने सीधे साधे लोगों को मानसिक तौर पर और धर्म के नाम पर गुलाम बनाने केलिए एक साजिश है । आप कोई भी वेद पुराण या इस भूखंड में विकसित कोई भी स्क्रिप्चर पढ़ लें आप को कहीं भी अल-हिन्द, ईन्दोस्तान या हिंदुस्तान जैसे शब्द नहीं मिलेंगे । कभी आपने रामायण या महाभारत में जो की एक काल्पनिक रचना है उसमे भी इन शब्दों का प्रयोग देखा है? ना आपको अल-हिन्द, ईन्दोस्तान या हिंदुस्तान जैसे शब्द मिलेंगे न हिन्दू; क्यों के हिन्दू पहचान पुराने युग में था ही नहीं । वह रामायण हो या महाभारत दो भी उत्तर इंडिया से संबधित है; अयोध्या और कुरूक्षेत्र समग्र इंडिया नहीं था न राम और पांडव को इस भूखंड में बोले जाने वाले १२२ प्रमुख भाषा या १६०० अन्य भाषा बोलना आता होगा, जो उनकी मातृभाषा हुई होगी वह वही भाषा के लोग रहे होंगे; जिससे ये बात साफ़ है उनकी गैर भाषी सभ्यताओं के साथ उनकी जीवनी से कोई सम्बद्ध नहीं था । इसका मतलब जिस खंडित भूखंड का वह हिस्सा है वह वहां का मुलनिवाशी हुए होंगे और उनकी कृत्य उनकी गैर भाषीय सभ्यता से कोई सम्बद्ध नहीं हुए होंगे । लेकिन हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने ये दो लोकप्रिय कहानियों को दूसरे भाषाओं में अनुबाद करके उनको उनकी सोच के साथ जोड़ते हैं और उनकी गंदगी की हिस्सा बताते हैं जो की अंध भक्तों को जानना जरूरी है । इसका मतलब ये है अगर ये दो सोच उत्तर इंडिया के है तो जो पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भाषीय सभ्यता से आते हैं उनके साथ कोई रिश्ता नहीं सीबाये एक सहमति के । एक सहमति कभी भी एक स्रोत नहीं हो सकते और उनकी दुष्कर्म और गन्दी सोच की भागिदार नहीं बन सकते । इसीलिए जो लोग ये सब बातों को हिन्दू के नाम पे थोपना चाहते हैं सब षड़यंत्रकारी है और इस भूखंड का असली गंदगी हैं । आप जिसको हिन्दुइजम समझते हो वह दरअसल वेदीजिम यानी वर्णवाद है । वेदीजिम या वैदिक या वर्णवाद इस भूखंड का प्रमुख आस्था नहीं था । शातिर इतिहासकार, झूठे धर्म के ठेकेदार और स्वार्थी राजाओं और अभी के राजनेताओंने अपनी और अपनी संगठित स्वार्थ केलिए इसको प्रोमोट किया ताकि जिससे अपनी दुकान चलासकें । इंडिया दरअसल बहुभाषी और बहु संस्कृति का भूखंड रहा जब तक ये एक अखंड भूखंड में परिवर्तित न हो गया । राजा अशोक ने अपनी सबसे बड़ी अखंड भूखंड बनाई और जिसका प्रमुख धर्म बुद्धिजीम था । हमारा देश का प्रमुख धर्म बुद्धिजीम है ना की वेदीजिम । 263BC से 185BC तक हमारा देश का प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म था और यहाँ के ज्यादातर मूलनिवासी बुद्धिस्ट । 185BC के वाद पुष्यामित्रशुंग ने धोकेसे बुद्धिस्ट अम्पायर को हथिया लिया और जबरन अपनी वैदिक विचार धारा अपने राज्य और अपने मित्र राज्य के ऊपर मृत्यु भय, छल और बल, कपट और कौशल में थोपा और संगठित पुजारी वाद यानी ब्राह्मणवाद पैदा किया । ब्राह्मणवाद झूठ, भ्रम, अज्ञानता, अंधविश्वास, तर्कहीनता, नफरत, भेदभाव और हिंसा फैलाया और इस भूखंड के लोगों को मुर्ख और भगवान भ्रम में धकेल दिया जिससे वह तर्क अंध बन गए जिससे हमारे भूखंड का प्रगति पिछड़ गया; लोग अगड़ी और पिछड़ी में बंट गए और एक भाषीय स्रोत से होने के बावजूद एक दूसरे को नफ़रत करने लगे । हिन्दू पहचान जैसे कुछ नहीं लेकिन इनलोगोंने गैर वैदिक धर्म को अपने से अलग करने के लिए ये पहचान अपनाया । इस भूखंड में कोई भी वैदिक पहचान बौद्धिक पहचान से पुराना नहीं जो ये प्रमाणित करता है बौद्धिक धर्म वैदिक धर्म से पुराना है । आप कोई भी ध्वस्त बौद्धिक स्थल का ऐज और कोई वैदिक मंदिर का एक्साम्पल ले सकते हैं । आपको बौद्धिक सम्पदा ही वैदिक सम्पदासे पुराना ही मिलेंगे । इस भूखंड से बुद्धिजीम को मिटाने के लिए हिन्दू पहचान का उत्पत्ति की गयी है । हिन्दू पहचान में ज्यादा वैदिक या वर्ण व्यवस्था मानने वाले लोगों को ही पंजीकृत की गयी है । हिन्दू धर्म में आपको कोई एक मूल विचार नहीं मिलेंगे जैसे ईसाई धर्म में बाइबिल या इस्लाम धर्म में कुरान है । हिन्दू धर्म में एक समूह रचनाओं का संगठन है जो की अपने आप में वैचारिक विरोधी है । अब की ज्यादा पूजे जाने वाले पहचान जैसे गणेश, शिव, राम, लक्ष्मी, दुर्गा इत्यादि पहचान आपको वेद में नहीं मिलेंगे क्यों के ये सब काल्पनिक चरित्र हैं । ये सब काल्पनिक चरित्र को भगवान बता कर इस भूखंड का कुछ धूर्त यहां के मूलनिवासियों को सदियों मुर्ख और उनसे छलावा करके उनके जिंदगी और उनके मन को सदियों नियंत्रण करते आ रहे हैं जिसका जानकारी भक्तों को होना चाहिए । इस वेबसाइट का लक्ष्य आपको मानसिक विकृति से बचाना है ना की आपकी मन को चोट पहुँचाना । प्रयोग से ये पता चला है की सच्चाई जानने के वाद भी आप अपनी अभ्यास को छोड़ नहीं सकते क्यों की अभ्यास एक दिन से छूटने वाला चीज नहीं है, लेकिन सत्य की जानकारी आनेवाले पीढ़ियोंको मानसिक विकृति से बचा सकता है ।