क्या बनेंगे ये ?

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यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर ने अपने विद्यार्थियों को एक एसाइनमेंट दिया।  विषय था मुंबई की धारावी झोपड़पट्टी में रहते 10 से 13 साल की उम्र के लड़कों के बारे में अध्यन करना और उनके घर की तथा सामाजिक परिस्थितियों की समीक्षा करके भविष्य में वे क्या बनेंगे, इसका अनुमान निकालना। कॉलेज विद्यार्थी काम में लग गए।  झोपड़पट्टी के 200 बच्चो के घर की पृष्ठभूमिका, मा-बाप की परिस्थिति, वहाँ के लोगों की जीवनशैली और शैक्षणिक स्तर, शराब तथा नशीले पदार्थो के सेवन , ऐसे कई सारे पॉइंट्स पर विचार किया गया ।  तदुपरांत हर एक  लडके के विचार भी गंभीरतापूर्वक सुने तथा ‘नोट’ किये गए।

करीब करीब 1 साल लगा एसाइनमेंट पूरा होने में।  इसका निष्कर्ष ये  निकला कि उन लड़कों में से 95% बच्चे गुनाह के रास्ते पर चले जायेंगे और 90% बच्चे बड़े होकर किसी न किसी कारण से जेल जायेंगे।  केवल 5% बच्चे ही अच्छा जीवन जी पाएंगे।

बस, उस समय यह एसाइनमेंट तो पूरा हो गया , और बाद में यह बात का विस्मरण हो गया। 25 साल के बाद एक दुसरे प्रोफ़ेसर की नज़र इस अध्यन पर पड़ी , उसने अनुमान कितना सही निकला यह जानने के लिए 3-3 विद्यार्थियो की 5 टीम बनाई और उन्हें धारावी भेज दिया ।  200 में से कुछ का तो देहांत हो चुका था तो कुछ  दूसरी जगह चले गए थे।  फिर भी 180 लोगों से मिलना हुवा।  कॉलेज विद्यार्थियो ने जब 180 लोगों की जिंदगी की सही-सही जानकारी प्राप्त की तब वे आश्चर्यचकित हो गए।   पहले की गयी स्टडी के  विपरीत ही परिणाम दिखे।

उन में से केवल 4-5 ही सामान्य मारामारी में थोड़े समय के लिए जेल गए थे ! और बाकी सभी इज़्ज़त के साथ एक सामान्य ज़िन्दगी जी रहे थे। कुछ तो आर्थिक दृष्टि से बहुत अच्छी स्थिति में थे।

अध्यन कर रहे विद्यार्थियो तथा उनके प्रोफ़ेसर साहब को बहुत अचरज हुआ कि जहाँ का माहौल गुनाह की और ले जाने के लिए उपयुक्त था वहां लोग महेनत तथा ईमानदारी की जिंदगी पसंद करे, ऐसा कैसे संभव हुवा ?

सोच-विचार कर के विद्यार्थी पुनः उन 180 लोगों से मिले और उनसे ही ये जानें की कोशिश की।  तब उन लोगों में से हर एक ने कहा कि “शायद हम भी ग़लत रास्ते पर चले जाते, परन्तु हमारी एक टीचर के कारण हम सही रास्ते पर जीने लगे।  यदि बचपन में उन्होंने हमें सही-गलत का ज्ञान नहीं दिया होता तो शायद आज हम भी अपराध में लिप्त होते…. !”

विद्यार्थियो ने उस टीचर से मिलना तय किया।  वे स्कूल गए तो मालूम हुवा कि वे  तो सेवानिवृत हो चुकी हैं ।  फिर तलाश करते-करते वे उनके घर पहुंचे ।  उनसे सब बातें बताई और फिर पूछा कि “आपने उन लड़कों पर ऐसा कौन सा चमत्कार किया कि वे एक सभ्य नागरिक बन गए ?”

शिक्षिकाबहन ने सरलता और स्वाभाविक रीति से कहा : “चमत्कार ? अरे ! मुझे कोई चमत्कार-वमत्कार तो आता नहीं।  मैंने तो मेरे विद्यार्थियो को मेरी संतानों जैसा ही प्रेम किया।  बस ! इतना ही !” और वह ठहाका देकर जोर से हँस पड़ी।

मित्रों , प्रेम व स्नेह से पशु भी वश हो जाते है।  मधुर संगीत सुनाने से गौ भी अधिक दूध देने लगती है।  मधुर वाणी-व्यवहार से पराये भी अपने हो जाते है।  जो भी काम हम करे थोड़ा स्नेह-प्रेम और मधुरता की मात्रा उसमे मिला के करने लगे तो हमारी दुनिया जरुर सुन्दर होगी।

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