कामाख्या मंदिर में योनि की पूजा और साधारण स्त्री से छुआ-छूत ऐसा क्यों ?

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हमारे देश का सबसे बड़ा कमजोरी ये है की देश लोगों की आस्था से बंटी हुई है. देश का इतिहासकार, लेखक और तरह तरह की मेडिया हम को सदियों झूठ बोला, पीढ़ी दर पीढ़ियों को उनके आस्था के ऊपर झूठ बोलागया और इक दूसरे से नफ़रत फैलाया गया. हमारा ये भूखंड क्यों आस्थाओं के आधार पर विभाजित हुआ है हम को कभी नहीं बताया गया. ये इस बात का सूचक है की, कुछ लोग खुद की आस्था की दुकान चला ने केलिए लोगों की दिमाग और उनके जिन्दगीको नियंत्रण करना चाहते हैं. हमारा देश का सबसे बड़ी आबादी हिन्दू हैं. लेकिन दुःख की बात ये है कोई भी हिन्दू ये नहीं जानता वह हिन्दू क्यों हैं. क्या उनके पूर्वज हिन्दू थे? ये हिन्दू पहचान की उत्पत्ति कहां से हुई? आज तक ना कोई किताब हम को बताया ना हमारे देश की कानून बताया, ना ये बात कोई साधु संत ठीक से बोलसकता है. देश का कानून कौन हिन्दू है बोलता है, लेकिन ये नहीं बोलता हिन्दू है क्या? कुछ बेवकूफ कानूनविद अपना मत “हिन्दू पहचान” जबरदस्ती पहचान के रूप से लोगों के ऊपर थोंप दिया जबकि हिन्दू पहचान ही गलत है. हिन्दू पहचान की प्रचार और प्रसार वैदिक धर्म को फैलाने के लिए एक षडयंत्र है. कानूनविद हिन्दुइजम को एक जीवन शैली या जीवन पद्धति के रूप से प्रचार करते हैं लेकिन ये जीवन पद्धति कैसे है ये नहीं बताया. हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 जो देश स्वाधीन होने के बाद बना, उसकी सैक्शन २ ये बोलता है की:

हिंदू विवाह अधिनियम, 1 9 55 में धारा २

अधिनियम का लागू होना-

(1) यह अधिनियम –

(क) वीरशैव, लिंगायत, ब्राह्म, प्रार्थना या आर्य-समाज के अनुयायियों के सहित ऐसे किसी व्यक्ति को लागू है जो कि हिन्दू धर्म के रूपों के विकासों में से किसी के नाते धर्म से हिन्दू हैं;

(ख) ऐसे किसी व्यक्ति को लागू है जो कि धर्म से बौद्ध, जैन या सिक्ख हैं; और

(ग) जब तक कि उन राज्य-क्षेत्रों में जिन पर कि इस अधिनियम का विस्तार है, अधिवासित ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के बारे में जो कि धर्म से मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं है, यह सिद्ध नहीं कर दिया जाता कि यदि यह अधिनियम पारित न किया गया होता तो वह ऐसी किसी बात के बारे में, जिसके लिये इसमें व्यवस्था की गई है, हिन्दू विधि द्वारा या उस विधि की भागरूप किसी रूढ़ि या प्रथा द्वारा शासित नहीं होता, ऐसे अन्य व्यक्ति को भी लागू है।

स्पष्टीकरण — निम्न व्यक्ति अर्थात् :-

(क) ऐसा कोई बालक चाहे वह औरस हो या जारज जिसके दोनों जनकों में से एक धर्म से हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हों;

(ख) ऐसा बालक चाहे वह औरस हो या जारज जिसके दोनों जनकों में से एक धर्म से हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख है और जिसका कि लालन-पालन उस आदिम जाति, समुदाय, समूह या परिवार के सदस्य के रूप में किया गया है जिसका कि ऐसा जनक है या था; और

(ग) ऐसा कोई व्यक्ति जिसने हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख धर्म ग्रहण किया है, पुनर्ग्रहण किया है; यथास्थिति धर्म से हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख है।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई बात संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (25) के अर्थों के अन्दर वाली किसी अनुसूचित आदिम जाति के सदस्यों को तब तक लागू न होगी जब तक कि केन्द्रीय सरकार राजकीय गजट में अधिसूचना द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट न करे।

(3) इस अधिनियम के किसी प्रभाव से हिन्दू पद का ऐसे अर्थ लगाया जायगा मानो कि इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति है जो कि यद्यपि धर्म से हिन्दू नहीं है तथापि ऐसा व्यक्ति है जिसे कि यह अधिनियम इस धारा में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के बल से लागू होता है।

इसका मतलब ये है की हमारे कानून में ये स्पष्ट नहीं हिन्दू है कौन. अगर थोड़ा आप ध्यान दे तो आपको ये अहसास हो जायेगा की इस भूखंड में ही पैदा हुआ हर आस्था को एक छतरी के नीचे लाने को कोशिश की गई है. जब की इस अस्थाओंके बिच एक दूसरे से प्रचंड बोरोधाभाष था. इस भूखंड में दो तरह की दर्शन और उससे बनी धर्म बने एक तर्कसंगत(Rational) और दूसरा तर्कहीन(Irrational); आजीवक, चारुवाक/लोकायत, योग, बौद्ध, जैन और आलेख इत्यादि बिना भगवान और बिना मूर्ति पूजा की तर्कयुक्त धर्म और दूसरा बहुदेबबाद, मूर्ति पूजन, अंधविश्वास, तर्कविहीन, हिंसा, छल कपट और भेदभाव फैलाने वाला वैदिक जैसे धर्म । वैदिक धर्म को सनातन और हिन्दू धर्म भी कहा जाता है, जो वैदिक वर्ण व्यवस्था के ऊपर आधारित है । अगर ये अस्थायें  अपने आपसे विरोधी हैं तो ये एक छतरी के नीचे क्यों रखा गया और उसका नाम हिन्दू देने का क्या मतलब? ये इस बात का सूचक है की हिन्दू शब्द चयन गलत उद्देश्य किया गया है. 1947 में इंडिया के विभाजन से पहले, 565 प्रांतीय राज्यों, जिन्हें मूल राज्य भी कहा जाता था, इंडिया में अस्तित्व में था, जो ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा नहीं था, इंडियन उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सों को जो ब्रिटिश द्वारा कब्जा नहीं किया गया था, लेकिन सहायक गठजोड़ के अधीन, अप्रत्यक्ष नियमसे जुड़ा हुआ था । इसका मतलब १९४७ से पहले इस भूखंड का नाम ब्रिट्शों के द्वारा दिया गया था जिसका नाम इंडिया था. ब्रिटिश सन १६०० में इस भूखंड को आये उस वक्त भी ये भूखंड कई राजाओं के भूखंड था लेकिन ज्यादातर भूखंड इस्लाम राजाओं के थे जिनका राज्यों का नाम इन्दोस्तान, हिंदुस्तान, अल-हिन्द, हिन्द जैसे नाम में जाना जा रहा था. इस्लाम आक्रमण कारियों इस भूखंड में 700AD के बाद आये और इस अबद्धि में ही हिन्द से जुड़ा पहचान इस भूखंड को मिला. यानी इस्लाम राजाओं ने हिन्द शब्द का प्रयोग में लाया था. हिन्दू शब्द का पहचान और इसकी किसी तरह की भी ब्यबहार आपको इस भूखंड में कोई भी स्क्रिप्चर में नहीं मिलेंगे, ना कोई वेद, पुराण, बौद्ध, जैन इत्यादि धर्म में इन्दोस्तान, हिंदुस्तान, अल-हिन्द, हिन्द जैसे शब्द को उनकी ग्रंथो में इस्तेमाल किये हैं. इसका मतलब ये शब्द मुसलमान राजाओं ने इस्तेमाल में लाये थे. अगर हिन्दू शब्द वह इस्तेमाल में लाये थे तो वह क्यों इस पहचान की इस्तेमाल किया, और ये पहचान उनको कहाँ से मिला? सदियों ये भूखंड कई राजाओं का भूखंड रहा. राजाओं के नाम से उनकी राज्यों के नाम हुआ करता था. इस भूखंड में कभी एक भाषी सभ्यता नहीं था. आज अगर देखा जाये तो इस भूखंड में १२२ प्रमुख भाषाएं और १५९९ अन्य भाषाएं मिल जायेंगे. ये हम मान सकते जितने भाषाएं उतनी तरह की सभ्यता. इस भूखंड को पाश की राज्यों से तरह तरह की जरूरत के लिए आया करते थे. उत्तर पश्चिम के पडोसी राज्यों से आनेवाले लोगों को एक नदी पार करके आना पड़ता था जिसको हम सिंधु नदी के नाम से जानते हैं. सिंधु नदी के किनारे बसने वाले  लोगों को इतिहाश्कार सिंधु सभ्यता कहते थे जो की पार्टिसन के बाद पाकिस्तान में शिंद प्रोविंस के नामसे जाना जाता है. और ज्यादातर पडोशी राज्य के लोग इनके पहचान से ही उस भूखंड को पहचानते थे; इसका मतलब यह नहीं के दूसरे भाषीय सभ्यता और उनसे जुड़ी भूखंड तब नहीं था. क्यों के उत्तर पश्चिम पडोसी राज्यों से इस भूखंड की कोई भी प्रान्त को आना चाहो उस को उस भूखंड और उस नदी को पार करके आना पड़ता था तो उसकी पहचान उन में लोकप्रिय हो गया. जब इस्लाम राजाओं ने इस भूखंड में राज किये तो उनकी पहचान की नाम से ही उनका ज्यादातर राज्य का नाम रखा और इस तरह उनके द्वारा शासित हर भूखंड का नाम हिन्दुस्तान हो गया. क्यों के ज्यादातर मुसलमान राजाओं ने अपनी तलवार की धार पर यहाँ के मूल निवासियों को मुसलमान बनाया, और कुछ शूद्र जो की वैदिक जात पात छुआ छूत जैसे उत्पीडनसे अपने आपको बचाने चाहते थे वह इस्लाम क़बूल ली इस तरह इस्लाम इस भूखंड का सेकेण्ड मेजर धर्म बन गया. इस्लाम राजाओं ने अपनी बनायीं गयी इस्लाम अनुगामियों को दुशरोंसे अलग रखने के लिए गैर मुसलमानों को हिन्दू पहचान दे दी. जब इस्लाम इस भूखंड में आया तब ज्यादातर अनुगामी वैदिक यानी वर्ण व्यवस्था के अनुगामी बन गये थे. क्यों के वैदिक धर्म को मानने वाले तब ज्यादा थे, ज्यादातर उनको ही हिन्दू कहा जाने लगा. वैदिक धर्म भी इस भूखंड का कोई प्रमुख धर्म नहीं था. वैदिक धर्म, राजा अशोक की बौद्ध साम्राज्य के ऊपर पुष्यमित्र शुंग ने तलवार की धार, छल कपट, साम, दाम, दंड,भेद की आधार पर फैलाया और हमारे जो ज्यादातर पूर्वज बुद्धिस्ट थे उनको चार वर्ण में बाँट डाला, यानी 263BC से 185BC तक इस भूखंड का प्रमुख धर्म बुद्धिजीम था ना कि वेदीजिम. यानी हमारे ज्यादातर पूर्वजों का ना कोई वर्ण था ना उन की जात. 185BC के बाद संगठित पुजारी वाद ने कई झूठी मन गढ़न भगवान बनाकर लोगों को भ्रम में डालें हुए हैं. वैदिक धर्म ही हिन्दू धर्म है जो की झूठ, मन गढन भगवान और उनकी मुर्तिबाद पर आधारित है. जो ना की अंध विश्वास फैलता है बल्कि मानसिक बिकृतियाँ, भ्रम, सामाजिक अपराध, छुआ छूत, भेदभाव, असामंजस्यता, अज्ञानता और हिंसा को ना केवल प्रचार के साथ साथ उसकी प्रसार करता है बल्कि उसकी बढ़ावा भी देता है.  क्यों की हिन्दू पहचान बाहरी लोगों के द्वारा दी गयी है इसलिये आप को कोई भी शास्त्र हिन्दू के नाम पे नहीं मिलें गे जैसे बाइबल और कुरान देखने को मिलता है. यहाँ के पुजारीबाद से बनी सभी रचनाओं को एक सामूहिक नाम दी जाती है और हिन्दू शास्त्र कहाजाता है जिसमें श्रुति, स्मृति  यानी वेद, पुराण,  महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्य और तरह तरह की इस तरह की रचनाओं की समूह को हिन्दू शास्त्र की पहचान दी गयी है. वैदिक आस्था के सारे भगवान मन गढ़न है आइये इस मन गढन आस्था की एक आस्था के वारे में जानते हैं.

ऐसे मान्यता है, मासिक धर्म के दिनों में महिलाए अपवित्र होती हैं और उन्हें ऐसे में किसी पूजा स्थान में नहीं जाना चाहिए, क्यों  की रजस्वला स्त्री अपवित्र होती हैं. इसी मान्यता के चलते कई बार किशोरियों से ऐसा छुआ-छूत का बर्ताव किया जाता हैं की उन्हें अपने परिवारजनों के सामने संकोच और शर्मिंदगी के क्षणों का सामना करना पड़ता हैं. उन्हें अपवित्र महसूस करवाया जाता हैं. और यह भी उस इंडिया में जो सांस्कृतिक रूप से ऐसी उदार और वर्जनारहित सोच का भी उदहारण रखता है जहां देवी कामाख्या के मंदिर जैसा विलक्षण तीर्थ भी, जहां योनि पूजन होता हैं और स्त्री के रजस्वला होने को अपवित्र मानने के बजाए उसकी पवित्रता का उत्सव मनाया जाता है. क्या योनि की पूजा करना सही है?

असम के कामाख्या मंदिर में हर साल अंबुवाची के मेले के दौरान माँ रजस्वला होती हैं, योनिकुंड से होने वाले जल का प्रवाह लाल हो जाता हैं. कभी क्या जानने की कोशिश की है ये लाल क्यों हो जाती है? या इसको रंग से रंग के लोगों को बेवकूफ किया जाता है? इस दौरान देवी की योनि को आच्छादित करने वाले कपडे को प्रसाद मानकर वितरित किया जाता हैं और लोगों द्वारा पूज्य भाव से मस्तिष्क पर लगाया जाता हैं. इस तरह की सांस्कृतिक विरासत के बाद भी वर्जनाए पालना हैरान करने वाला हैं. खैर, फिलहाल तो मासिक धर्म की छुआ-छूत और अपवित्रता की ग्रंथिया पाले रखने के बजाये ज़माने के हिसाब से इस मुद्दे को देखना जरुरी हैं ताकि लड़कियां इस प्राकृतिक प्रवाह के दौरान हाईजिन मेंटेन कर सकें.

अगर इंडिया के लोगों को क्रांति करना हैं, अपना जीवन बदलना हैं तो ज़माने के साथ-साथ अपनी सोच भी बदलना होगी. अगर इंडिया के वासी पुरानी सोच को लेकर चलेंगे तो इंडिया वैसे ही बहुत पीछे हैं, और ऐसा करने से वह और पीछे खिसक जायेगा.

अच्छी तरह से ध्यान दें: अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के  उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंध विश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उसको मानसिक विकृति कहते हैं ।

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