हिंदी क्या है?

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हिंदी क्या है? कभी इसकी खोज की है? हिंदी या हिन्दू शब्द का उत्पत्ति कहाँ से हुई है कभी आपने इसको जानने की कोशिश की है? चलिए इस लेख में इसकी खोज करते हैं और जानते है ये हिंदी या हिन्दू है क्या? दोस्तों, हमेशा याद रखना कोई भी तथ्य अगर विवादास्पद लगे उसके पीछे कुछ न कुछ साजिश होता है। इसको आप को तर्क से ढूंढना पड़ेगा ना की यूँही विश्वास कर लेना चाहिए क्यों की ये हम को हमारे पिछले पीढी ने बताया था । ये भी हो सकता वह चीज जो हमें बताया गया हो वे झूठ हो और एक साजिश हो और पिछले पीढी ने जो ये बात हम तक पहुँचाई वह भी साजिश का सीकर हो । दोस्तों, जब कोई हम तथ्य के संपर्क में आते हैं उसकी सोर्सेस यानी स्त्रोत तरह तरह की होते हैं, जैसे कोई लेख से, या कोई संचार माध्यम से, कोई लोक कथा से या हमारे चारों और मौजूद समाज से । कोई भी तथ्य की जानकारी आप को विभिन्न स्रोत से मिल जायेंगे । अगर इन स्रोतों से कहीं अंतर्विरोध दिखा तो समझ लेना ईश के साथ कुछ छेड़ छाड़ हुई है और छेड़ छाड़ की वजह कई हो सकते है । वैसे ही हम हिंदी के साथ देखते हैं । हमेशा याद रखना हमें जो तथ्य मिलेंगे उसकी हम तर्क से ही लेना पड़ेगा अगर तथ्य तर्क से नकरात्मक हैं उसके पीछे सत्य को ढूंढना पड़ेगा जब तक तथ्य तर्कसंगत हो ना जाए और अंतर्विरोध ख़तम हो ना जाये । हम जो भूखंड में रहते हैं उसका नाम अब इंडिया है; हाला की ये भूखंड की नाम सत्ता धारी ताकतों के राज की नाम के तहत रखा हुआ करता था । समय के साथ इस भूखंड को तरह तरह का राजा, राज किये और इस भूखंड हिशाओंका राजाओं के नाम से भूखंड का नाम हुआ करता था कहने का मतलब ये है; ये भूखंड सदियों कई भाषाई और उनकी राज की भूखंड रहा है । कई राजाओं ने इस भूखंड को राज किया और उनके साम्राज्य के नाम से इस भूखंड का नाम हुआ । अभी इस भूखंड में १२२ प्रमुख भाषा और अन्य १५९९ भाषाएं देखने मिलते हैं । जितना भाषा, ये हम मान सकते हैं उतनी तरह की सभ्यता । अगर एक सभ्यता एक भाषीय भूखंड होता तो दूसारे भाषा की प्रयोजन ही क्या है? जो भाषाएं काफी मिलता जुलता है, उनकी एक मूल भाषा हो सकती है; लेकिन जिनके शब्द और अर्थ ज्यादातर काफी अलग अलग होते हैं वह कभी एक मूल से नहीं हो सकते । हमारे भूखंड में न एक भाषा है ना कभी एक अखंड भूखंड सदियों रहा । समय के साथ ये बदलता रहा । इस भूखंड में राजाओं आपने राज्य की परिसीमा बढ़ाने के लिए एक दूसारे से लड़ते रहते थे । ये भूखंड कभी भी एक राजा की नहीं रहा समय के साथ  तरह तरह की राजा राज किया और उनकी विलुप्ति भी हुई । इन राजाओं के वारे में हमें इतिहास, लोककथा और पुराण और कुछ कुछ पौराणिक कथाएं  और शास्त्रों से मिलता है । इसका मतलब ये नहीं वह हमेशा सच ही हो । सत्ता धारी ताकतों ने अपनी ही प्रतिष्ठा को इतिहास की माध्यमसे ज्यादा बढ़ा चढ़ा के आगे बढ़ाया होगा और उसकी विरोधी की निश्चित रूप से ध्वंस या उसके साथ छेड़ छाड़ की होगी । इसी हिसाब से हम को इनसे मिली तथ्य के साथ तर्क संगत टिप्पणी करनी होगी ।

समय के साथ राजा बदले उनके साथ साथ रज्योंके परिसीमा भी बदली । ये भूखंड कभी हजारों राजाओं का भूखंड रहा तो कभी कुछ महाराजाओं का । राजाओं अपनी सक्ति से दूसारे छोटे छोटे राज्य मिला के अखंड राज्य बनाया करते थे या कभी कभी राज्यों के साथ संधि यानी मित्र राज्य बना के पडोसी राज्य किया करते थे । ज्यादातर एक दूसारे के साथ लड़ाई करके खुद को बड़ा साबित करना तब की राज युग की (Age of kingdoms) परम्परा थी । इसलिए कोई भी एक संयुक्त भूखंड ऐतिहासिक नाम जैसे भारत, हिंदुस्तान या इंडिया इतिहास की पृस्ट्भूमिसे लियागया नाम है कहना बेमानी है । इस भूखंड का नाम कभी भारत नहीं था । भारत नाम देश स्वाधीन होने का वाद ही दियागया है । ना भारत कोई राजा था ना उसकी कभी इतना बड़ा भूखंड का राज । बस कुछ मन गढन कहानी भारत नाम की प्रचार और प्रसार करते हैं । अगर हम ये मान ले भारत एक पुरुष है तो भारत को माता क्यों कहते है? भारत एक पुरुष की नाम है ना की स्त्री विशेष की । अगर भारत को हम एक राजा मान लें तो उनकी राज कितने तक फैला था उसकी वारे में कुछ कहा नहीं जा सकता । क्यों की उसकी कुछ मजबूत सबूत ही नहीं है । अगर मान लिया जाये भारत “महाभारत” से लिया गया है तो महाभारत का मतलब क्या है? “महा” मतलब बड़ा या महान और “भारत” मतलब एक व्यक्ति विशेष का नाम । इसका मतलब क्या हुआ? जैसे किसीका नाम अगर “पपु” है “महापपु” का मतलब क्या होसकता है? अगर मान लिया जाये “महाभारत” का मतलब “महा युद्ध” है तो “भारत” का मतलब युद्ध है । अगर भारत का मतलब युद्ध है तो इसको एक राष्ट्र का नाम के रुपसे इस्तेमाल करना कितना तार्किक है? अगर मानलिया जाये “भारत” पाण्डु और कौरव के पूर्वज थे जैसे हिन्दू ग्रंथों में लिखा गया है; महाभारत ही संदेह की घेरे मैं है जैसे महाभारत में लिखा गया है? क्या गांधारी के पेटमें जो बच्चा था उस को मारने का बाद उसकी टुकड़े १०१ मिटटी के घड़ा में रख कर बच्चे पैदा की जा सकती है? क्योंकि महाभारत की अनुसार गांधारी की बच्चे उनकी पेट से नहीं मिट्टी की घड़ों से पैदा हुए है जो १०० लड़के थे और एक लड़की जो बायोलॉजिकल असंभव है । अगर मान भी लिया जाये एक औरत नौ महीना में एक बच्चा पैदा करे या जुड़वां तो ज्यादा से ज्यादा उसकी मेंस्ट्रुएशन साइकिल में ज्यादा से ज्यादा ४० से ५० बच्चा पैदा कर सकता है उससे ज्यादा नहीं क्योंकि ज्यादातर लडकियोंकी मेंस्ट्रुएशन साइकिल १० या १२ की उम्र से शुरु हो जाती हैं और ज्यादा से ज्यादा मेनोपोज़ यानी ५२-५४ तक बच्चे पैदा करने की क्षमता होती है । फिर ऊपर से गांधारी की आंख में पट्टियां और उनकी पति अंधा; आप खुद आगे सोच सकते हो; यानी कौरव बायोलॉजिकली इम्पोसिबल हैं । अब आते हैं पांडव के वारे में; पांडव नाम उनकी पिता पांडु से है जो की खुद एक नपुंसक थे यानी उनकी बच्चे पैदा करने की योग्यता ही नहीं थी तो कुंती और मद्री ने कैसे बच्चे पैदा की होगी आप खुद समझ लो । कोई सूर्य पुत्र था तो कोई धर्म, वायु और इंद्र की तो कोई अश्विनी की; इसका मतलब दो रानी आपने पति से नहीं अवैध सम्पर्क से ही बच्चे पैदा किया; वायु यानी हवा और सूरज के साथ कैसे सेक्स हो सकता है वह तर्क से बहार है । अच्छा चलो मानलेते हैं किसी और से “नियोग” प्रक्रिया से ये बच्चे पैदा हुए थे, जब की कौरव का पैदा होना बिलकुल असंभव है तो इसलिये ये एक मन गढन कहानी है ना की सत्य । आगर मान भी लिया जाये ये सब सच था तो यह लोग कौन सी भाषा की इस्तेमाल करते थे? अगर कुरूक्षेत्र नर्थ इंडिया का एक छोटा सा हिस्सा है तो हम ये कैसे मान लें ये अब की पूरी इंडियन भूखंड थी । अगर उनकी माँ बोली अलग था तो जो इनकी माँ बोली से अलग हैं और इस कहानी की अनुगामी हैं उनकी कहानी से क्या रिसता? इस कहानी को क्यों जबरदस्ती उन पे थोपा जाता है? जब भारत पहचान ही संदेह के घेरे में है तो ये देश का पहचान कैसे बन गया?

जब की सत्य ये है; भारत शब्द का उपयोग सावरकर ने अपनी हिंदूवादी संगठन “अभिनव भारत” के लिए  1903 में किया था । जो की हिंदूमहासभा का प्रेसिडेंट था; जो आर.एस.एस से जुड़ा था । जिसके कहनेपर नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या की । और जो कांग्रेस पार्टी ज्यादातर हिंदूवादी यानी वर्णवादी इस हिन्दू महासभा से सम्पर्कित नेताओंसे भरीपड़ी थी जिसके कारण जिन्न्हा ने कांग्रेस छोड़ी और पाकिस्तान के वारे में सोचा । सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस छोड़ी और फॉरवर्ड ब्लॉक् बनाई और आज़ाद हिन्द की कल्पना की । 1947 में देश की आज़ादी के बाद इस कांग्रेस वाले हिन्दूत्त्व नेताओंने देश का नाम “भारत” रखा । देश का नाम हिन्दू महासभा ओरिजिन से “भारत” रखना इस बात का सबूत है की कांग्रेस बस छद्म सेकुलर है । जबकि खुद नेहरू या गांधीजी या तब का समय की कोईभी नेता देश के लिए “भारत” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया । प्रमाण के तौर YouTube में आप उन लोगोंकी ओरिजिनल भाषण देख लीजिये । ज्यादातर वह देश का नाम हिन्दुस्तान या इंडिया का इस्तेमाल किया ना की भारत । ये इस बात का सूचक है भारत शब्द इनके बाद ही इस्तेमाल में आया । अगर आया तो इसके पीछे की नीयत क्या है? देश एक, नाम तीन क्यों? अगर किसी का नाम “अमर” है तो कोई भी भाषा में उससे  लिखे वह “अमर” ही रहेगा; लेकिन हमारा देश का नाम अंग्रेजी में इंडिया है लेकिन जब हिंदी में लिखते हैं वह “भारत” बन जाता है जब की भारत एक अलग नाम है । एक अलग नाम के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है आप ढूंढ़ने की कोशिश करो । मेरे हिसाब से इसके पीछे एक ही मक़सद है देश को हिन्दू राष्ट्र यानी वर्ण व्यवस्था  वाली देश बनाना जब की खुद वर्ण व्यवस्था  एक अंधविश्वास है । अंग्रेज इंडिया को वेसेही छोड़कर जाने वाले थे इसलिये सिविल सर्विस ऑफिसर अल्लन ऑक्टेवियन ह्यूम १८८३ में पोलिटिकल मूवमेंट पैदा की और कांग्रेस पार्टी बनाया । यानी देश को पोलिटिकल डोर से चलाने की दौर सुरु हो गया था । १८८५ उमेश चंद्र बोनर्जी कांग्रेस के पहले सभाध्यक्ष थे; पहले सत्र में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, इंडिया के प्रत्येक प्रांत का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिनिधियों में 54 हिन्दू और दो मुस्लिम शामिल थे; बाकी पारसी और जैन पृष्ठभूमि की थी; जबकि १७५७ की  बैटल ऑफ़ प्लासी के साथ ही फ्रीडम मूवमेंट सुरु हो गया था । १९१५ में गांधीजी ने फ्रीडम मूवमेंट के १५८ साल वाद और कांग्रेस बनने की ३२ साल वाद गोखले के मदद से दक्षिण अफ्रीका से लौटे और कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए । १९२४ में वह पार्टी प्रेजिडेंट बनगए । सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के साथ १९२० में जुड़े और गांधीजी की कांग्रेस में प्रभुत्व और धूर्त्त कब्जेवाजी से असंतुष्ट सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस पार्टी से २९ अप्रैल में निष्कासित होना पड़ा; उसके वाद १९३९ जून २२ को वह अपना फॉरवर्ड ब्लॉक बनायी और आजाद हिन्द की स्थापना की; जबकि कांग्रेस पार्टी उसके बाद उनकी साथ क्या किया खुद इन्वेस्टीगेट करना बेहतर होगा । १९१९ में, नेहरू ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए जब की मुहम्मद अली जिन्ना कांग्रेस का साथ १९०६ से लेकर १९२० तक रहे । गाँधी और नेहरू जोड़ी ऐसे बनि आज तक नेहरू फॅमिली गाँधी का नाम लेके अपनी पोलिटिकल दुकान चला रहा है जब की और भी कितने कांग्रेस लीडर थे उनके नाम इनके जुबान पर कभी नहीं आया । मुहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस पार्टी में ब्राह्मणवादी यानी हिंदुत्व की पकड़ से नाखुश होकर मुसलमानों की अलग देश के वारे में अगवाई की । जब की पाकिस्तान की सोच मुहम्मद इक़बाल ने की थी इसलिए मुहम्मद इक़बाल को पाकिस्तान का स्पिरिचुअल फादर कहा जाता है; मुहम्मद इक़बाल इंडियन नेशनल कांग्रेस की एक बड़ा क्रिटिक थे और हमेशा कांग्रेस को मनुबादी यानी हिन्दूवादी पोलिटिकल पार्टी मानते थे । वही मुहम्मद इक़बाल जिसने “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा” गाना लिखाथा । मुहम्मद इक़बाल के पूर्वज कश्मीर पंडित थे जिन्होंने इस्लाम क़बूली थी । वह ज्यादातर उनके लेख में अपना पूर्वज कश्मीर पंडित थे उसका जिक्र भी किया । जिन्ना के पूर्वज यानी दादाजी गुजराती बनिया थे । उनके दादा प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर थे, वे गुजराती में काठियावाड़ के गोंडल राज्य के पोनली गांव से लोहाना थे । उन्होंने मछली व्यवसाय में अपना भाग्य बना लिया था, लेकिन लोहाना  जाती का मजबूत धार्मिक शाकाहारी विश्वास के कारण उन्हें अपने शाकाहारी लोहना जाति से बहिष्कृत कर दिया गया था । जब उन्होंने अपने मछली कारोबार को बंद कर दिया और अपनी जाति में वापस आने की कोशिश की, तो उन्हें हिंदू धर्म के स्वयंभू संरक्षकों के विशाल अहं के कारण ऐसा करने की अनुमति नहीं थी । परिणामस्वरूप, उनके पुत्र, पुंजालाल ठक्कर/जिन्नाभाई पुंजा (जिन्ना के पिता), इस अपमान से इतना गुस्सा थे कि उन्होंने अपने और उनके चार बेटों के धर्म को बदल दिया और इस्लाम में परिवर्तित हो गए । वैसे देखाजाये तो पाकिस्तान बनने के पीछे कांग्रेस और उसके अंदर बैठे हिन्दूमहासभा की एजेंट्स ही जिम्मेदार थे । तो अब आपको पता चलगया होगा गांधीजीके हत्या में कौन शामिल हो सकता है? क्योंकि हिंदूवादी अगर पाकिस्तान नहीं चाहते थे तो जिन्ना को मार सकते थे गाँधी को मारने के पीछे जो तर्क वह देते हैं वह दरअसल भ्रम हैं । अगर गांधीजी को मार सकते थे तो जो पाकिस्तान के वारे में जो सोचा उसको क्यों नहीं मारा? इसका मतलब हिंदूवादी संगठन और कांग्रेस चाहता था की पाकिस्तान बने; तो ये ड्रामा क्यों किया? ये ड्रामा बस सो कॉल्ड सेकुलर वर्णवादी हिन्दू राष्ट्र बनाना था जो नेहरूने सोचा ताकि हिन्दू और मुसलमानोंकी वोट बटोर सके; ये इसीलिए किया नेहरू विरोधी मुसलमानोंको रवाना की जाये और जो उनके साथ हैं उनके साथ राज किया जाये क्योंकि उनके पास गांधी जैसे कुटिल राजनीतिज्ञ थे । गांधी जी के कुटिल दिमाग के कारण नेहरू देश का प्रधान मंत्री बन गए । देश स्वाधीन १९४७ अगस्त १५ क़ो हुआ और नेहरु देश की कमान सँभालने का वाद ३० जानुअरी १९४८ क़ो गांधी जी की हत्या हो गयी । कांग्रेस में हिंदूवादी एजेंटोने जब देखा सम्पूर्ण हिन्दू राष्ट्र बनाना मुश्किल है तो अखिल भारतीय हिन्दू महासभा की प्रेजिडेंट श्यामा प्रसाद मुख़र्जी नेहरू के साथ सम्बन्ध बिगड़े और असंतुस्ट होने के बाद, मुखर्जी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस छोड़ दी और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की जो की अबकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्ववर्ती पोलिटिकल पार्टी है । जिसका एजेंडा वर्ण वादी हिन्दू राष्ट्र बनाना है । इसका मतलब ब्राह्मणवादी देश और न्याय व्यवस्था को चलाएंगे, क्षत्रियवादी देश की आर्मी यानी सुरक्षा को संभालेंगे, देश की इकोनॉमी को वैश्यवादी चलायेंगे और जितने अन्य यानी वैदकी प्रमाण पत्र के हिसाब से शूद्र और अतिशूद्र यानी आउट कास्ट हैं उनके लिए  काम करेंगे । भारत शब्द ही उनकी पूर्व प्रेजिडेंट सावरकर की संगठन की साथ सम्बंधित थी । आर.एस.एस और अखिल भारतीय हिन्दू महासभा ही भारत से जुडी श्लोगान इस्तेमाल करते हैं । उनकी पॉलिटकल पार्टी का नाम भी भारतीय जनता पार्टी है; जब की इस भूखंड में इस पहचान का कोई विस्तार रिस्ता नहीं है । हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में आर.एस.एस की स्थापना की थी जो 1920 के दशक में सक्रिय रूप से इंडियन नेशनल कांग्रेस में भाग लिया था और नागपुर के हिंदू महासभा के एक बलिष्ठ राजनेता थे । अब आर.एस.एस की 56,859 से भी ज्यादा शाखाएं है और इनके मेंबर 60 लाख से भी ज्यादा हैं । इनके मेंबर्स अब इंडियान गवर्नमेंट की हर शाखा में मिल जायेंगे । इनका एग्जीक्यूटिव, लेजिस्लेटिव और जुडिशरी में हर जगा अपना मेंबर को बिठाये रखा है यानी  आर.एस.एस एक तरह की प्रॉक्सी प्राइवेट गवर्नमेंट चला रहा है । और एक केस में हम ये मान सकते है भारत पहचान “रामायण” से ली गयी होगी, क्यों की रामजी के भाई के नाम भरत था तो उनके नाम से भारत भी हो सकता है क्यों की ये लोग राम नाम अपनी पोलिटिकल पार्टी के प्रचार और प्रसार के लिए ऐसे इस्तेमाल करते आ रहे हैं जैसे राम की नाम की कॉपी राइट बस इनके पास ही है।

रामायण को लिखा किसने? एक डाकू ने, जिसका नाम रत्नाकर है । वैदिक प्रचारक वालों की बनाई गई कहानी ऐसी है की एक डाकू ने ऋषि नारद के संपर्क में आकर अच्छे बननेकी कोशिश की और तपस्या किया; और तपस्या करते करते उसके शरीर में बालुका से पहाड़ बनगया जिसको वल्मीक कहते है यानी वाइट अंट हिल बनगई इसलिए उनकी नाम डाकू रत्नाकर से ऋषि वाल्मीकि बनगयी । वाल्मीकि ने रामायण की रचना की जो की सदियों एक लोकप्रिय गाथा रहा । पहली बात है की रामायण रचना करने वाले वाल्मीकि को वैदिक वाले नीच जात यानी अछूत मानते हैं इसलिये वाल्मीक मंदिर में ये पूजा नहीं करते । लेकिन उनकी लिखीगयी रचना रामायण वैदिक वाले अपने धर्म की प्रचार और प्रसार के लिए ऐसे इस्तेमाल करते हैं जैसे उनकी पूर्वजने लिखी हो । वैदिक प्रचारक और प्रसारक मीठी झूठ और भ्रम पैदा करने में उनको महारत हासिल है । इनलोगोंनें रामायण की असली रचयिता का साथ भी यही की होगी । हो या ना हो रामायण रचना करनेवाला का नाम रत्नाकर ही होगा वह संस्कृत भाषी सभ्यता से संबंधित थे या उनकी कहानी को संस्कृत भाषा की चोला अपने ही सोच को प्रचार और प्रसार के लिए  इस्तेमाल किया वह खुद अनुमान लगालो; क्यों की राम के वारे में आपको कोई भी वेद में नहीं मिलेंगे ।

अब आते हैं रामायण की बिषय वस्तु के ऊपर । रामायण एक अच्छी रचना है लेकिन ये बस एक कहानी ही है क्योंकि इनमें जो किरदार हैं जैसे हनुमान यानी बन्दर सर वाला मानव जो की बायोलॉजिकल असंभव है । हनुमान दो शब्द के सयोंग से बना हुआ है एक हनु मतलब बन्दर और मान जो की “मानव” शब्द से ली गयी है ।  वैसे ही आपको जम्बूवान, जटायु,  अंगद, वाली, सुग्रीव, सम्पति इत्यादि बायोलॉजिकल असंभव किरदार मिलजाएँगे जो ये साबित करता है की इनके बिना रामायण असंभव है । अगर ये किरदार ही असंभव है तो रामायण भी असंभव है; यानी रामायण एक मन गढन कहानी ही है । रामजी की पास बानर सेना थी यानी बन्दरों की सेना जिसने रावण की राक्षस यानी जंगली इंसानी सेना के साथ लड़ाई की और जित गया । कभी बन्दर एक इंसान के आगे टिक पायेगा? ये मजाक नहीं तो क्या है? बंदोरोने 130KM यानी  (ten yojana) ब्रिज  केवल पांच दिन में बना डाला जिसको रामसेतु कहा जाता है; क्या असलियत में ये संभब है? जबकि असलियत में अभी भी सारि तकनीक इस्तेमाल करके भी इंसान १३० किलोमीटर की बाँध ५ दिन में बना नहीं सकता तो बंदरों ने कैसा बना दिया? क्या कोई मानव का दस सर हो सकते हैं? तो कैसा रावण का दस सर था? जब वह पैदा हुए होंगे तब क्या दस सर की बच्चा कोई माँ पैदा कर सकता है? दस सर वाला इंसान क्या बायोलॉजिकल संभब है? दशरथ अगर नपुंसक थे तो उनकी चार बेटे किसका है? अगर नियोग से पैदा हुए हैं तो दशरथ के बच्चे कैसे हुए? राम और लक्ष्मण सरयू नदी में जलसमाधि ली थी यानी सुसाइड किया था; क्या एक भगवान को ये शोभा देता है? राम जी सीता के याद में जेनन जाते थे जेनन यानी राजाओं की वेश्यालय जहाँ शराब और नाच गाने हुआ करते थे; क्या ये एक मर्यादा पुरुषोत्तम को शोभा देता है? अगर सीता चाहती रावण के साथ प्रेम का ढोंग करके छल से जेहेर देके मार देती और राम को इतना नौटंकी करना ही नहीं पड़ता । अगर राम धोके से बाली को मार सकते हैं तो ये जहर वाली बात हनुमान को बोल देते, और वह सीता को, और बिना यूद्ध के रामायण ख़तम । क्या बस मर्द औरत का सुरक्षा का ठेका ली हुई है; खुद की जिंदगी को बचाना औरत की जिम्मेदारी नहीं? ये कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम है जिनकी कोई मर्यादा ही नहीं है? राम जी ने अपनी वाइफ के लिए अनेक निर्दोष सैनिकों की बीबीओंको विधवा बना डाला, ये कितना तर्क संगत है? अपने बीबी के चाह में दूसारे के बीबीओंको विधवा बनाना कौनसी भगवान वाला काम है? तब तो सती प्रथा रही होगी और विचारे बिना कारण के अपने मर्द की चिता पर जले होंगे । अगर हनुमान पहाड़ उठा सकता है बाँध बनाने की क्या जरूरत थी? उसी पहाड़ में सबको बैठा के श्रीलंका क्यों नहीं ले गए? अभी राम की भक्त की मेसेज एक मिनिट से भी कम समय में श्रीलंका पहुंच जाता है; हनुमान भगवान होते हुए भी रामजी की मेसेज देने में इतना दिन क्यों लगा? क्या राम, लक्ष्मण और सीता बिना बिजली के जंगल में घनी अंधेरा में रात काटी नहीं होंगी? क्या जंगल की खुले मैदान और झाडिओं के पीछे उनको शौच करना पड़ा नहीं होगा? अगर उनकी जंगल की जिंदगी उनकी अनुगामियों से भी बहुत बदतर थी तो राम की सामूहिक उन्माद(Mass Hysteria) पैदा करके उस को जो फैला रहे हैं क्या वह सामाजिक लोग है या असामाजिक, या अपराधी? अगर आप ऐसे तार्किक प्रश्न पूछते चलोगे तो आप क़ो ये पता चल जायेगा की रामायण बस एक कहानी ही है । कहानी के अनुसार समय के साथ उनकी भक्तोने कुछ जगह को उनके नाम पे करके उसके सही होने की दावा कर रहे हैं जो की एक मानसिक विकृति ही । ये सब झूठ और अंध विश्वास को धर्म, आस्था और भक्ति का चोला पहना के क्या अनुयायीओंका ब्रेन रेप किया नहीं जा रहा है? अगर राम अयोध्या की राजा थे तो दूसारे राजाओंके सभ्यता से क्या संबध हैं? अयोध्या तो अब की इंडिया नहीं था? अयोध्या एक छोटा सा राज्य था जो की उनके अनुगामी के हिसाब से अब उत्तर प्रदेश में है । वह सारि उत्तर प्रदेश भी नहीं था । अगर राम इस भूखंड में पैदा हुए तो उनकी माँ बोली इस भूखंड में जो बोली बोला जाता है वही होंगी; तो दूसरी भाषी लोगोंके साथ इनका कनेक्सन क्या है? क्या बन्दर सेना उनकी भाषा में बात करना जानते थे? क्या राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान इत्यादि श्रीलंकान भाषा जानते थे? भारत अगर राम जी की भाई भरत के नामसे आया है तो पूरी अयोध्या तो आज की इंडिया नहीं थी तो राम राज्य बनाने का नारा कितना सही है? इससे पता चल गया होगा राम की नाम पे राजनिति और आस्था की दुकान चलाने वाले ना केवल अंधविश्वासी, मुर्ख, बिकृत दिमाग की है बल्कि असामाजिक भी है क्यों की राम की नाम पे ये दंगा किये और इंसानों की हत्या की और सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुक्सान भी किया ।

अब आते हैं देश का नाम इंडिया कैसे हुआ? 5th सेंचुरी BC से भी पहले इयुरोपियन्स हमारे भूखंड को इंडोस(indos), इंडस(Indus), इंडीज(indies) इत्यादि के नामसे जाना करते थे । जो की आज की पाकिस्तान में बहते हुए नदी यानी सिंधु नदी से प्रेरित है । इंडिया का नाम पुरानी अंग्रेजी भाषा में जाना जाता था और इसका इस्तेमाल पॉल अल्फ्रेड के पॉलस ओरोसियस में भी इस्तेमाल किया गया था । मध्य अंग्रेजी में, फ्रांसीसी नाम प्रभाव के तहत, येंडे या इंडे द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिसने प्रारंभिक आधुनिक अंग्रेजी में इंडी के रूप में प्रवेश किया था । सायद लैटिन, या स्पेनिश या पुर्तगाली के प्रभाव के कारण 17 वीं शताब्दी के बाद से इंडिया अंग्रेजी उपयोग में आया । अंग्रेज उनके दिये गए इस भूखंड पहचान की नाम इस्तेमाल किया और हमारा देश का नाम इंडिया हो गया ।

अब आते हैं “हिंदी” शब्द को डिकोड करने के लिए । मौजूदा हालत में हिंदी का मतलब एक भाषा जो इंडिया भूखंड की बहु भाषी लोकप्रिय भाषा है । २००१ की सेंसस की हिसाब से इंडियन आबादी के 53.6% ने घोषित किया कि वे पहली या दूसरी भाषा के रूप में हिंदी बोलते हैं, जिनमें से 41% ने इसे अपनी मूल भाषा या मातृभाषा के रूप में घोषित किया है । जब इसको लिखा जाता है उसके नाम हिंदी नहीं देवनागरी स्क्रिप्ट हो जाता है । एक भाषा की फिर दूसरी नाम? यानी हिंदी को देवनागरी भी बोलते हैं!  हिंदी या हिन्दू शब्द 1300AD से पहले कोई भी धार्मिक रचना या लेख में नहीं मिलेगा । अभी भी आप कोई भी वेद, पुराण या बौद्धिक या जैन और कोई भी स्क्रिप्ट में हिन्दू शब्द नहीं मिलेगा; न यहाँ की मूल निवासी का नाम हिन्दू था ना उनके भगवान हिन्दू । तरह तरह की सोर्स ये बता तें है की हिंदी या हिन्दू शब्द सिंधु नदीसे आया है जो अब ज्यादातर देश विभाजन के बाद पाकिस्तान में ही बहता है । वैदिक वाले ताल ठोक के बोलते है क्यों के सिंधु नदी के वारे में वेद में लिखी हुई है उसका कॉपी राइट हमारा है । दरअसल सिंधु  एक नाम नहीं इसका मतलब ही नदी है जो की समय के साथ नदीके सर्बनाम के तहत इस्तेमाल हुआ । वेद में अग्नि, सूरज, चाँद, हवा के वारे में भी लिखा है तो क्या ये सब के ऊपर उनकी ही कॉपी राइट है? ये नदी क्या वेद रचना होने से पहले वहा नहीं बहती होगी? कोई शब्द का कोई रचना में इस्तेमाल ये साबित नहीं करता उसके ऊपर उनकी कॉपी राइट है । सिंधु नदीके किनारे बसने वाले लोग ही सिंधु सभ्यता कहलाता था और उनकी इस्तेमाल की गयी भाषा को सिंधी कहते है न की हिंदी । देश विभाजन के बाद अब ये पाकिस्तान में सिंध प्रोविंस के नाम से जाना जाता है जिसके मूल निवासी ज्यादातर इस्लाम को कनवर्ट हो गये हैं; जो कुछ इंडिया में रहते हैं वह वैदिक धर्म की अनुगामी हैं यानि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बटें हुए हैं । आप खुद इन दोनों की भाषाओं के अंतर जान सकते है बस YouTube इस्तेमाल कीजिए और बस Search में उनकी Documentary या गाना मारके खुद निरीक्षण करलीजिये उन में कितना डिफ्रेंस है । आपको ये पता चल जायेगा सिंधी और हिंदी एक नहीं है; यानी ये साबित हो गया सिंधी, हिंदी नहीं है । अगर सिंधी हिंदी होता तो सिंधी भाषा को हिंदी कहा जाता ना कि सिंधी । सिंधीवाले भी संस्कृत में नहीं बोलते यानी उनकी मातृभाषा संस्कृत नहीं है इसका मतलब ये है की वे संस्कृत भाषी सभ्यता से अलग है । सभी वेद और हिन्दू के सब भगवान बस संस्कृत ही समझते हैं; इसका मतलब ये हुआ संस्कृत बोलनेवाले लोग सिंधी नहीं है, अगर होते सब भगवान सिंधी भाषा में समझते, यानि उनको सुनानेवाला सब मंत्र सब सिंधी में होता ना कि संस्कृत में । कहने का मतलब ये है संस्कृत भाषी यानी वैदिक सभ्यता सिंधु सभ्यता नहीं है । वैदिक सभ्यता की हर चीज संस्कृत में रचना की गयी है और अलग भाषी सभ्यता उसकी अपनी भाषा में अनुवाद ही पढ़ते हैं । सिंधु नदी सदियों उस भूखंड में बहता होगा इसका मतलब ये नहीं की कन्या कुमारी, आंध्र, बंगाल, मराठा, ओडिशा इत्यादि इत्यादि भूखंड तब नहीं था । अगर भूखंड था तो उसमें बसने वाले लोग भी होंगे; क्यों की इस भूखंड में बसने वाले लोग सिंधी या संस्कृत नहीं बोलते, इसीलिए इस दो सभ्यता के साथ इन गैर-संस्कृत और गैर-सिंधी भाषीय सभ्यता की कोई संपर्क नहीं है, सीबाये पडोसी भाषीय सभ्यता के । तो ये नाम हिंदी या हिन्दू कैसे इन लोगों के ऊपर थोपा गया? दरअसल इस भूखंड के राजाओं एक दूसारे के साथ लड़ के अपना राज्य की सीमा बढ़ा के खुद को महाराजा कहलवाना पसंद करते थे । सबसे बड़ा अखंड राज्य इस भूखंड में चन्द्रगुप्त मौर्य और उनकी बंसज अशोक ने बनाया जो आज की इंडिया से भी ज्यादा बड़ा था । ज्यादातर राजाओं अपना अपनाई गयी धर्म को उसकी राज्य में फैलाते थे, ताकि एक सोच वाली नागरिकों  से मत भेद कम हो और राज्य में शांति बनाया रहे । क्यों की इस भूखंड में तरह तरह की भाषीय सभ्यता थे उनके जीवन सैली भी अलग अलग थे । यहां कई बुद्धिजीवी और महापुरुष पैदा हुए और उनके बनाई गयी दर्शन भी अलग अलग थी । उनके दर्शन या धर्म भी एक दूसारे की विरोधी थे । जिस राजा ने जिस धर्म अपनाया उस धर्म को उनकी प्रजा पर थोपा । कुछ राजा धर्म और दर्शन की आजादी भी दी और कुछ प्रचारक और प्रसारक विरोधी धर्म को विनाश और अपभ्रंश भी किया । इस भूखंड में दो तरह की दर्शन और उससे बनी धर्म बने एक तर्कसंगत(Rational) और दूसरा तर्कहीन(Irrational); आजीवक, चारुवाक/लोकायत, योग, बौद्ध, जैन और आलेख इत्यादि बिना भगवान और बिना मूर्ति पूजा की तर्कयुक्त धर्म और दूसरा बहुदेबबाद, मूर्ति पूजन, अंधविश्वास, तर्कविहीन, हिंसा, छल कपट और भेदभाव फैलाने वाला वैदिक जैसे धर्म । वैदिक धर्म को सनातन और हिन्दू धर्म भी कहा जाता है, जो वैदिक वर्ण व्यवस्था के ऊपर आधारित है ।

जिस राजा को जो धर्म पसंद आया वह उस को अपनाया और उसकी प्रचार और प्रसार उसकी राज्य में की । सबसे बड़ा अखंड राज्य अशोक ने बनाया जिसको इतिहास मौर्य साम्राज्य के नाम से प्रतिपादित करता है । अशोक ने बौद्ध धर्म की संस्पर्श में आकर बौद्ध धर्म अपना लिया, और उनकी राज्य में बौद्ध धर्म की खूब प्रचार और प्रसार की, जब की उनकी पूर्वज आजीविका और लोकायत जैसे धर्म और दर्शन की अनुगामी थे । क्यों की उनहोंने पाया बौद्ध धर्म ही उनकी राज्य और प्रजा के लिए  सही दर्शन और धर्म है । उनहोंने पाया बुद्ध ना खुद को भगवान माना ना कोई भगवान की प्रचार और प्रसार की । उनकी दर्शन करुणा, सेवा, अहिंसा, सत्य और तर्क की दर्शन पर आधारित थी ।  बुद्ध ने बहुदेबबाद और मूर्ति पूजन को नाकारा लेकिन आस्था उनकी सत्य और तर्क के ऊपर ही था । सिद्धार्था गौतम ने अपने आप को कभी भगवान की दर्जा नहीं दी ना कभी भगवान की आस्था को माना । ना वह खुद को भगवान की दूत बोला ना उनकी संतान; अगर वह भगवान की आस्था को मानते तो भगवान की वारे में उनकी विचारों में छाप होता । ना उनकी दिखाई गयी मार्ग में भगवान की जिक्र है ना उनकी कोई दर्शन में । इसलिए सिद्धार्था गौतम आज के वैज्ञानिक सोच वाले इंसान थे जिनका सोच ये था तार्किक बनो, सत्य की खोज करो, उसकी निरीक्षण और विश्लेषण करो उसके बाद अपनी तार्किक आधार पर सत्य की पुष्टि करो । आंख बंद करके अपने पूर्वज की पीढ़ी दर पीढ़ी अपनाया गया अंध विश्वास की चपेट मत फंसो; ना अंध विश्वास को यूँही स्वीकार कर लो क्यों की आपसे बड़े, गुरु और बुजुर्ग इसको मानते हैं; अपने खुद की दिमाग की विकास करो और बुद्धि की हक़दार बनो जिसके आधार पर आप उनकी अंध विश्वास को दूर कर सको । उनकी आस्था सत्य और तर्कसंगतता के ऊपर थी, उनकी आस्था मानवता, करुणा, प्रेम, अहिंसा और सेवा के ऊपर थी । सिद्धार्था गौतम की मृत्यु के बाद उनके दर्शन से छेड़ छाड़ किया गया; क्योंकि सिद्धार्था गौतम बहुदेब बाद और मूर्ति पूजा की विरोधी थे ये संगठित पुजारीबाद का पेट में लात मारता था । इसलिये सिद्धार्था गौतम की मृत्यु की बाद उनकी सिद्धान्तों की अनुगामी पुजारीबाद की षडयंत्र की शिकार बना और बुद्धिजीम “हिन जन” यानी “नीच लोग” / “नीच बुद्धि” और “महा जन” यानी “ऊँचे लोग” / “उच्च बुद्धि” में तोड़ा गया; हाला की बाद में इसको अलंकृत भाषा में हीनयान और महायान शब्द का इस्तेमाल किया गया । सिद्धार्था गौतम जी के निर्वाण के मात्र 100 वर्ष बाद ही बौद्धों में मतभेद उभरकर सामने आने लगे थे । वैशाली में सम्पन्न द्वितीय बौद्ध संगीति में थेर भिक्षुओं ने मतभेद रखने वाले भिक्षुओं को संघ से बाहर निकाल दिया । अलग हुए इन भिक्षुओं ने उसी समय अपना अलग संघ बनाकर स्वयं को ‘महासांघिक’ और जिन्होंने निकाला था उन्हें ‘हीनसांघिक’ नाम दिया जिसने समय के साथ  में महायान और हीनयान का रूप धारण कर लीया । इस तरह  बौद्ध धर्म की दो शाखाएं बनगए, हीनयान निम्न वर्ग(गरीबी) और महायान उच्च वर्ग (अमीरी), हीनयान एक व्यक्त वादी धर्म था इसका शाब्दिक अर्थ है निम्न मार्ग । हीनयान संप्रदाय के लोग परिवर्तन अथवा सुधार के विरोधी थे । यह बौद्ध धर्म के प्राचीन आदर्शों का ज्यों त्यों बनाए रखना चाहते थे । हीनयान संप्रदाय के सभी ग्रंथ पाली भाषा मे लिखे गए हैं । हीनयान बुद्ध जी की पूजा भगवान के रूप मे न करके बुद्ध जी को केवल बुद्धिजीवी, महापुरुष मानते थे । हीनयान ही सिद्धार्था गौतम जी की असली शिक्षा थी । राजा अशोक ने हीनयान ही अपने राज्य में फैलाया था । मौर्य साम्राज्य बुद्धिजीम को ना केवल आपने राज्य में सिमित रखा उस को पडोसी राज्य में भी फैलाया । जहाँ जहाँ तब का समय में बौद्ध धर्म फैला, बुद्ध की प्रतिमा को बस आदर्श और प्रेरणा माना गया ना कि भगवान की मूर्ति  इसलिये आपको आज भी पहाडों में खोदित बड़े बड़े बुद्ध की मूर्त्तियां देश, बिदेस में मिलजाएँगे । ये मूर्त्तियां प्रेरणा के उत्स थे ना कि भगवान की पहचान । वैदिक वाले  उनको विष्णु का अवतार बना के अपने मुर्तिबाद के छतरी के नीचे लाया और उनको भगवान बना के उनकी ब्योपारीकरण भी कर दिया । बुद्धिजीम असलियत में संगठित पुजारीवाद यानी ब्राह्मणवाद के शिकार होकर अपभ्रंश होता चला गया । हीनयान वाले मुर्तिको “बुद्धि” यानी “तर्क संगत सत्य ज्ञान” की प्रेरणा मानते हुए मुर्ति के सामने मेडिटेसन यानी चित्त को स्थिर करने का अभ्यास करते हैं जब की ज्यादातर महायान वाले उनकी मूर्ति को भगवान मान के वैदिकों के जैसा पूजा करते हैं । महायान की ज्यादातर स्क्रिप्ट संस्कृत में लिखागया है यानी ये इस बात का सबूत है बुद्धिजीम की वैदिक करण की कोशिश की गयी । उसमे पुनः जन्म, अवतार जैसे कांसेप्ट मिलाये गए और असली बुद्धिजीम को अपभ्रंस किया गया । जो भगवान को ही नहीं मानता वह अवतार को क्यों मानेगा? अगर अवतार में विश्वास नहीं तो वह क्यों पुनर्जन्म में विश्वास करेगा? महायान सिद्धार्था गौतम जी की यानी बुद्ध की विचार विरोधी आस्था है जिसको अपभ्रंश किया गया; बाद में ये दो सखाओंसे अनेक बुद्धिजीम की साखायें बन गए और अब तरह तरह की बुद्धिजीम देखने को मिलते हैं जिसमें तंत्रयान एक है । तंत्रयान बाद में वज्रयान और सहजयान में विभाजित हुआ । जहां जहां बुद्धिजीम फैला था समय के साथ तरह तरह की सेक्ट बने जैसे तिबततियन बुद्धिजीम, जेन बुद्धिजीम इत्यादि इत्यादि । हीनयान संप्रदाय श्रीलंका, बर्मा, जावा आदि देशों मे फैला हुआ है । बाद में यह संप्रदाय दो भागों मे विभाजित हो गया- वैभाष्क एवं सौत्रान्तिक । बुद्ध ने अपने ज्ञान दिया था ना कि उनकी ज्ञान की बाजार । अगर आपको उनकी दर्शन अच्छे लगें आप उनकी सिद्धान्तों का अनुगामी बने ना की उनके नाम पे बना संगठित पहचान की और उनके उपासना पद्धत्तियोंकी । वैदिक वाले बुद्ध जन्म भूमि की भी जालसाज़ी की, क्योंकि आज तक ब्राह्मणवादी ताकतों ने देश की सत्ता संभाली और बुद्ध की जन्म भूमि की जालसाज़ी में वह कभी प्रतिरोध नहीं किया ना उसकी संशोधन; बुद्ध इंडिया के रहने वाले थे लेकिन एक जालसाज़ जर्मनी आर्किओलॉजिस्ट अलोइस आनटन फुहरेर बुद्ध की जन्म भूमि नेपाल में है बोल के झूठी प्रमाण देकर इसको आज तक सच के नाम-से फैला दिया ।  खुद आर्किओलॉजिस्ट अलोइस आनटन फुहरेर माना वह झूठा थे फिर भी आज तक बुद्ध की जन्म भूमि नेपाल ही बना रहा । बुद्ध ने अपनी ज्ञान पाली भाषा में दिया । पाली भाषा का सभ्यता कौन सा है उस को भी अपभ्रंश किया गया । अगर नेपाल में कोई पाली भाषा नहीं बोलता तो सिद्धार्था गौतम कैसे नेपाल में पैदा हो गये? नेपाल में ज्यादातर खासकुरा/गोर्खाली भाषा की सभ्यता रही तो पाली सभ्यता की सोच पूरा बेमानी है, और ये बात प्रत्यक्ष इसको झूठ साबित करता है । राजा अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद ही बौद्ध धर्म अपनाया ये इस बात का सूचक है जरूर उस समय राजा अशोक ने उड़ीसा की बौद्ध धर्म से प्रभावित रहे होंगे । उड़ीसा जिसको तब के समय में ओड्र, कलिंग, उक्कल, उत्कल इत्यादि भूखंड के नाम से जाना जाता था उनके बोलने वाले पूर्वज ही पाली बोलने वाली सभ्यता थी । अब अगर आप ओड़िआ भाषा की पालि के साथ मैच करोगे ५०% भी ज्यादा शब्द बिना अपभ्रंश के सही अर्थ के साथ मिल जायेंगे । उड़ीसा का कपिलेश्वर ही कपिलवस्तु है जो की अपभ्रंश होकर कपिलेश्वर हो गया है जब की नेपाल में कपिलवस्तु बोल के कोई स्थान ही नहीं था । जिस को आर्किओलॉजिस्ट अलोइस आनटन फुहरेर ने लुम्बिनी का नाम  दिया, असल में उसका नाम कभी लुम्बिनी ही नहीं था उसका नाम रुम्मिनदेई(Rummindei) था जिसे जबरदस्ती आर्किओलॉजिस्ट अलोइस आनटन फुहरेर अपना खोज को सही प्रमाण करने के लिए उस जगह की नाम भी बदल डाला और झूठी असोका पिलर और प्लेट वाली साजिश की । ये सब साजिश के पीछे कौन होगा आप खुद ही समझ लो । राजा अशोक ने बौद्ध धर्म सोच समझ कर ही अपना विशाल भूखंड में फैलाया था; नहीं तो वह वैदिक धर्म का प्रचार और प्रसार किया होता; इसलिए उनके राज में आप को कोई भी उनके द्वारा बनाये गए वैदिक भगवान की  मंदिर नहीं मिलेंगे जबकि ब्राह्मणो के द्वारा बौद्ध धर्म की विनाश के वाद बौद्ध मंदिरों को सब वैदक मंदिर में कनवर्ट किया गया है । वैदिक वाले बोलते हैं मुसलमान राजाओंने बौद्ध सम्पदा को नस्ट किया; तो, पूरी, तिरुपति, कोणार्क, लिंगराज इत्यादि इत्यादि मंदिरों को क्या मुसलमान राजाओंने बौद्ध मंदिर से वैदकी बनाया? इंडियन भूखंड में मुसलमान राजाओंने जितना बौद्ध सम्पदा को नस्ट नहीं की उससे ज्यादा संगठित पुजारीवाद बनाम ब्राह्मणवाद ने किया ।

3000 साल पहले हमारे ज्यादातर/सब पूर्वज गैर-धार्मिक ही होंगे । राजा अशोक की राज में 263BC के बाद इस भूखंड का प्रमुख यानी राष्ट्र धर्म बौद्ध धर्म था; यानी हमारे ज्यादातर पूर्वज इस अवधी में बौद्ध धर्म की अनुगामी थे । जब बेईमान, विश्वासघाती, गद्दार, कुटिल मौर्य साम्राज्य के ब्राह्मण सेना प्रमुख पुष्यामित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य पर 185BC में छल और बल से कब्जा कर लिया, जो आखिरी शासक ब्रह्द्रथ को धोखे से हत्या किया था, उसने ना केवल बौद्ध धर्म को नष्ट कर दिया बल्कि कई बौद्ध भिक्षुओं की नर संहार कर दी थी । विश्व का पहला आतंकवादी पुष्यामित्र शुंग ही था क्योंकि उसने, लड़ाई नहीं, धोकेसे जब मौर्य की राजा अपना सेना की निरीक्षण कर रहे थे इस धोखेबाज सेनाध्यक्ष ने पीछे से राजा की हत्या की और सेना की दम पर साम्राज्य हतिया लिया; वह ना केवल बौद्ध धर्म की ख़ात्मा किया बल्कि तलवार की धार पर छल और बल, साम दाम दंड भेद के तहत वैदिक धर्म की स्थापना की ।  पुष्यामित्र शुंग ने ही  बौद्ध साम्राज्य में वेदीजिम यानी जाति आधारित सामाजिक प्रणाली को लागू किया था। 185BC के बाद संगठित पुजारीबाद ब्राह्मणवाद के रूप में उभरा और ये पुजारीबाद ने छल और बल, साम दाम दंड भेद के तहत वैदिक धर्म की प्रचार और प्रसार करके वैदिक धर्म को इस भूखंड का सबसे बड़ा बहुसंख्यबाद बनाया । ठीक पुष्यमित्र शुंग के जैसे बंगाल भाषीय सभ्यता के गौड़ राज्य की प्रतिष्ठाता राजा शशांक ने  (590 AD-625 AD) बाकि बचा बुद्धिजीम के साथ किया था । जैसे कोई पोलिटिकल पार्टी देश के किसी कोने में बनता है और उसके लीडर, प्रचारक और उसका वोटर हर प्रान्त में मिल जाते हैं ठीक वैसे ही ब्राह्मण बाद फैला, राजा क्षत्रिय बना, पुजारी ब्राह्मण बना, बनिया वैश्य बना और बाकी अन्य वृत्ति करने वाले लोग गुलाम यानी शूद्र बनादिये गए; अगर ऐसा नहीं होता तो हर ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र का सरनेम उनके एक पूर्वज की सरनेम की तरह एक ही होता अलग अलग नहीं जो प्रदेश बदलते ही उनकी मातृ भाषा के साथ साथ तरह तरह के सरनेम से बदल जाता है । यह बात न भूलें हर भाषीय सभ्यता में वैदिक पुरुष सूक्त यानी वर्ण व्यवस्था के कारण अपने ही लोग बंट गए और एक दूसारे की दुश्मन बनेहुए हैं । मानो एक परिवार के चार बेटे थे और उनके मानसिक और शारीरिक क्षमताओं अलग थी । एक चालक था, दूसरा बाहुबली था, तीसरी ब्योपारी दिमाग का था और चौथा बस परिश्रमी लेकिन थोड़ी बुद्धि में कमजोर । तीन भाइयोंने अपने स्वार्थ के लिए चौथे भाई को अपने गुलाम बनाया और मरते दम तक इसलिये उस को ये मौका नहीं दिया ताकि वह उनके जैसे बन गया तो उन के लिए काम कौन करेगा? भाईओंके बच्चे बने; कमजोर भाई का बच्चे भी उनलोगोंसे ज्यादा अकल्मन्द और क़ाबिल बने लेकिन तीन भाईओंने अपनी ही सुनी चालक भाई का बच्चे चाहे न चालक हो, बाहुबली का बच्चे चाहे बाहुबली न हो या ब्योपारी दिमागी भाई का बच्चे भले दिमागी ना हो, क्योंकि वह सब चालक, बाहुबली और ब्योपारी दिमागी भाई का बच्चे हैं उनको चालक, बाहुबली और ब्योपारी दिमागी मानना पड़ेगा ये वर्ण व्यवस्था उनके ऊपर थोप दिया । अगर जातीबाद संस्कृत भाषी सोच में पैदा हुआ तो दूसारे भाषी सभ्यता का साथ उसका सबंध क्या है? ब्राह्मणबाद फैलाने में अपने भाषी क़ाबिले के धूर्त पूर्वज ही जिम्मेदार हैं । ब्राह्मणबाद सोच इंडियामें वैदिक धूर्त्तों ने पैदा किए लेकिन फैलने वाले अपने ही स्वजाति भाषी धूर्त, दबंग और बेईमान पूर्वज ही थे । अपने ही भाषा बोलने वाले स्वजाती के पुजारिओं ने अपने और संगठित स्वार्थ के लिए वेद के गुलाम बने और बेद दर्शन की आधार पर अपने ही लोगों को बाँटा उनमे फुट डाली और गुलाम बनाया । आप लोग इन वैदिक धूर्तोंकी फैलाई हुई झूठ की चपेट में मत आना, कोई सुर असुर नहीं, कोई देव दानव नहीं, कोई आर्य जैसे दौड़(Race) नहीं ये सब इनकी फैलाई गई झूठ और भ्रम है, जो सदियों लोगों को भ्रम में डाले हुए हैं । ये अगर आर्य हैं तो जिन भाषीय सभ्यता मैं क्षत्रिय कहलाती हैं वह कहाँ से आये थे और कौन सी रेस से सम्बंधित हैं? हर भाषीय सभ्यता मैं वैश्य मिलते हैं वह कहां से आये हैं? और तो और जिन को ये शूद्र कहते हैं जिनका सर नेम और मातृ भाषा भूभाग बदलते ही बदल जातें वह कहां से आये हैं? आप ये बात याद रखना इन धूर्त्तों की झूठ, झाँसा और धोखा की कोई सीमा नहीं होती; भोलेभाले लोगों को कुछ भी बोल के उनकी ध्रुवीकरण करने मैं उनको महारत हासिल है; ये धूर्त अपने ही जात की लोगों को ही नहीं छोड़ते तो वैदिक सर्टिफाएड शूद्र को पूछता कौन है? इसलिए इनके अनुयायि भगवान के नाम पे कुछ भी बोलो, बिना सोचे समझे करने को तैयार हो जाते हैं; इसलिए ये लोग पशु की मल और मूत्र भी चाटलेते हैं । जो इनके विरोधी थे उनको ये नीच और हीन की पहचान दिया और जो उनकी समर्थक उनको अच्छा और यहां तक कुछ को भगवान का दर्जा भी दे दिया; जिस विरोधी को हरा नहीं पाया उस को उसकी मौत के बाद उसकी इतिहास ही बदल के अपने ही छतरी के नीचे दाल दिया । कभी भी ब्राह्मण लिखित लेख और उनसे प्रेरित लेख को आंख बंद कर बिना सोच समझ कर विश्वास मत करना ये लोग शहद में जेहेर देने वाले लोग हैं; कभी कभी सीधी शहद में जहर देते हैं तो कभी दीर्घसूत्री धीमा जेहेर ताकि आदमी मरे और उसको पता भी नहीं चले; अनुयायी शहद (झूठी मीठी भ्रम बोली) का जल्द दीवाना और नसेडी तो हो जाता है लेकिन उसकी मौत उसी शहद से हुई है उसको पता भी नहीं चलता । कभी भी बिना तार्किक विश्लेषण किये हुए उनके लेख और कही गयी बातों को विश्वास मत करना । अगर कोई अच्छी वचन भी बोले उसके पीछे उनकी मोटिव यानी नियत की भी जांच करना; हाला की उनकी सब अवरोही उनके जैसे ही है ये कहना गलत होगा । वैदिक धर्म ने धूर्त, दबंग, बईमानों को शासक वर्ग के रूपमें अगड़ी वर्ग बनादिया और कमजोर वर्ग को उनके गुलाम । वैदिक वाले धूर्त, दबंग, बईमानों की अगड़ी वर्ग ने कभी भी सदियों पिछड़े यानी समाज के कमजोर वर्ग को वर्ण व्यवस्था इस्तेमाल करके अगड़ी बनने नहीं दिया । इसका मतलब यह नहीं उनके हर पढ़ी के हर संतान उनके पूर्वजों की जैसे ही थे; लेकिन ज्यादातर उनके जैसे ही थे । पुरातन समय से वैदिक धर्म कभी भी इस भूखंड का पसंदीदा धर्म नहीं रहा । अभी जितना हिन्दू हिन्दू बोल के उच्छल रहे हैं उनमे से ज्यादातर मूल निवासी शूद्र हैं जोकि अपने अज्ञानता के लिए वह नहीं जानते की वह शूद्र क्यों हैं और शूद्र बनानेवाला वही ब्रम्हाण हैं जिन्होंने तरह तरह की हिन्दू भगवान बना के उनको अपने भ्रम में डाली हुए हैं । ये उनसे बचेंगे क्या उनसे ही अपनी अधिकार की मांग कर रहे हैं, यानी उन को अपनी मालिक बनाने की मांग कर रहे हैं । कभी भी वेदीजिम इस भूखंड में पसंदीदा धर्म नहीं रहा क्यों की  ७०% से ज्यादा मूल निवासी शूद्र हैं यानी गुलाम हैं जो की वेदीजिम की वजह से ही शूद्र बने; जब उनको ये बात पता चलेगी की शूद्र बनाने वाला लोग ब्राह्मण ही हैं तब वह उनकी विरोध नहीं शायद ब्राह्मणवाद की ही बिनाश करेंगे । अगर देश की २० करोड़ आबादी मुस्लिम , ९१  करोड़ इंडिया की नीच जात, १८  करोड़ पाकिस्तानी मुसलमान और बांग्लादेश की  १५  करोड़ मुसलमानों को मिला दिया जाए ये करीब १४४  करोड़ मूल निवासी कभी भी वेदीजिम को समर्थन नहीं किए; अगर धर्मान्तरण से बने मुसलमानों को  ब्राह्मणबाद पसंद होता तो वह आज भी हिन्दू होते या मुसलमान बन ने का वाद फिर से हिन्दू हो जाते । जो शूद्र जात से बचने के लिए मुसलमान बने हो फिर से शूद्र क्यों बने? मानाजाता है केवल ३% से भी कम इनमें से बाहरी नस्ल की मुसलमान की पीढ़ियों से हैं जो की संकरण से अपनी खुद की पहचान इस भूखंड में खो चुके हैं । देश हमेशा बौद्ध धर्म की इतिहास के वारे मे छुपाया और स्कूली तालीम से भी दूर रखा ताकि उसका प्रसार न हो सके; और बस ये ६ करोड़ ब्राह्मण, १ करोड़ से भी कम क्षत्रिय और करीब ७ -१० करोड़  वैश्य के पूर्वज ही इसको समर्थन किए और छल और बल से इसको  लागू किया । ये  उपद्रवी  वैदिक प्रचारक और प्रसारक ही हमरा देश की असली  दुश्मन हैं जिन्होंने देश और सभ्यता की विनाश की और  आज तक देश को गुलाम बनाये रखा । पुजारीबाद बनाम ब्राह्मणबाद ने अजिविका, चारुवाक / लोकायत, बौद्ध धर्म, जैन धर्म आदि जैसे सभी तर्कसंगत दर्शनों को अपने स्वार्थ के लिए नष्ट कर दिया और अपने अनुयायियों के जीवन पर नियंत्रण करने लगे । पुजारीबाद अनेक वेद विरोधी दर्शन को ध्वंस और अपभ्रंश किया और ज्यादातर दर्शन को  अपने छतरी के नीचे लाये उनमेसे योग, वैशेषिक, मीमांसा, नाय इत्यादि दर्शन थे । वैदिक धर्म झूठ, अंधविश्वास, तर्क हीनता, भ्रम, हिंसा और अज्ञानता को बढ़ावा इसलिये दिया ताकि लोगों के मन में तर्क पैदा हो ना सके; कहीं उनकी बनाया गया झूठी भगवान की दुनिया के वारे में जिज्ञासा ना पैदा हो जाये; इसलिये स्वर्ग, नर्क, पाप, पुण्य जैसे भ्रम पैदा किए; तरह तरह तेवहार पैदा किया ताकि वह उन में खोये रहें और उनको ये सब सोचने का मौका ना मिले । उनके भगवान की खोज और उनकी उत्पत्ति की तर्क को पाप और नास्तिक का चोला पहनादिया ताकि अनुयायी खुद को अच्छा साबित करने के लिए इस सब की खोज ना करे । यानी मूर्खता, अंध विश्वास और तर्क हीनता ही उनके लिए  अच्छे की प्रमाणपत्र था । जब तक उनकी झूठी भगवान की भ्रम में भ्रमित रहो, निर्जीव मूर्त्तियों के आगे सर झुकाते रहो तब तक आप लोग उनके नियंत्रण में हो, जब इसका विरोध हो तो आप पापी हो और नास्तिक हो । उनकी झूठी मूर्तिवाद बिना प्रश्न किए आंख मूंद कर विश्वास करने को उन लोगों ने आस्तिक का पहचान दिया । जब आप उनकी दुनिया को खोज करके उनकी झूठी दुनिया का राज खोल दो तो आप को ये लोग नास्तिक की पहचान देंगे । दिमागी कमजोर और मुर्ख कभी इन सबका खोज नहीं करता इसलिए आंख बंद किये सब मानलेता है और खुद  को आस्तिक का प्रमाण पत्र देता है; जब की उनकी द्वारा घोषित नास्तिक बनना ही बहुत मुश्किल है । उनकी भ्रम की दुनिया को बेनकाब  करने के लिए उनकी हर चीज की अध्ययन करना पड़ता है, जो की भोलाभाला अनपढ़ लोगों के लिए ज्यादातर नामुमकिन है; जब कोई इंसान उनकी झूठ की पोल खोलता है तो ये लोग उस को नास्तिक का पहचान देके उनको बदनाम करते हैं । भोलेभाले लोग तो अपनी जिंदगी में व्यस्त होता है उसको इतना समय भी कहाँ उनकी षडयंत्र को बेनकाब करे? ये लोग आस्था की गलत अर्थ फैलाते हैं । आस्था का मतलब कोई भी विषय में विश्वास करना होता है । आप अगर अंध विश्वासी हो तो भी आप आस्तिक हो क्यों की आप अंध विश्वास के ऊपर विश्वास करते हो यानी आप की अंध विश्वास की प्रति आस्था यानी विश्वास है; वैसे ही जिन को तर्क और सत्य के ऊपर आस्था है वे भी आस्तिक हैं, लेकिन आस्था तर्क और सत्य के ऊपर ना कि असत्य और मन गढन भ्रम की दुनिया पर । जो विज्ञान के ऊपर विश्वास करते है वह भी आस्तिक हैं लेकिन उनकी आस्था विज्ञान के ऊपर है । अगर ये लोग कुछ में भी विश्वास नहीं करते तो वे नास्तिक कहलाते; यानी किसी भी विषय में नकरात्मक रहना यानी विश्वास नहीं करना ही नास्तिकता है । संगठित पुजारीवाद ने झूठी अफवाएं फैलाई जो भगवान को विश्वास करता है वह आस्तिक है और जो नहीं वह नास्तिक । यानी खोजी और तार्किक दिमाग ही उनके हिसाब से नास्तिक हैं शायद इसलिए ये लोग वैज्ञानिओंको नास्तिक कहते हैं । वैदिक धूर्त्तों ने उनके अनुयाईयों के सोच में ये सोच प्रत्यारोपण किया की जो उनके विचारों और भगवान को नहीं मानता वह गन्दा, पापी और नीच है; जबकि असलियत में वे खुद ही नीच और गंदगी से भी नीचे हैं, भला कोई वैदिक वर्ण व्यवस्था जैसे अमानवीय असामाजिक व्यवस्था बनाके  इंसान को इंसान की बिच लड़ता है? ये कैसे धर्म है जो मानवीय मूल अधिकार का उलंघन करता हो और लोगों को अंध विश्वासी और मुर्ख बनता हो? । क्योंकि गंगा नहाना वाला खुद को पापी मानता है, इसलिए तो पाप धोने गंगा में डुबकी मारता है? खुद पापी भी खुद को नीच कहलवाना पसंद नहीं करेगा और उनकी ये चाल उनके अनुयाईयोंके ऊपर अच्छी चली । साधारण भोलाभाला लोग नास्तिक को एक हीन, पापी और नीच प्राणी मानता है इसलिए वह इस पुजारीवाद का आस्तिक वाला अच्छी इंसान की झूठी प्रमाणपत्र के चाह मैं कभी उनकी नास्तिक प्रमाण पत्र को पसंद नहीं किया और खुद को अंधविश्वासी और मुर्ख बनाये रखने को अपना धर्म और गर्व माना । इंडिया की विभिन्न भाषाई के मूल निवासी 185BC के बाद ही उनकी सबसे मूर्खतापूर्ण और बेवकूफ सामाजिक जाति आधारित पहचान प्राप्त किये जो आज तक इंडियन समाज में प्राथमिक सामाजिक पहचान बना हुआ है । हमारे शिक्षा व्यवस्था में हम सबको इस सबके वारे में भ्रमित और झूठी शिक्षा सदियों दिया गया । जब की ज्यादार सत्ता में कांग्रेस ही रही । कांग्रेस ऐसे क्यों किया अब आप खुद ही सोचो।

जातिवाद यानी वर्ण व्यवस्था संस्कृत भाषी रचनाओं में मिलता है इसका मतलब ये हुआ जो गैर संस्कृत बोली वाले है उनके ऊपर ये सोच यानी वर्ण व्यवस्था थोपी गयी है । रिग वेद की पुरुष सुक्त १०.९० जो वर्ण व्यवस्था का डेफिनेशन है उसको कैसे आज की नस्ल विश्वास करते हैं ये तर्क से बहार हैं? सायद आज की पीढ़ी भी मॉडर्न अंध विश्वासी हैं । पुरुष सूक्त बोलता है: एक प्राचीन विशाल व्यक्ति था जो पुरुष ही था ना की नारी और जिसका एक हजार सिर और एक हजार पैर था, जिसे देवताओं (पुरूषमेध यानी पुरुष की बलि) के द्वारा बलिदान किया गया और वली के बाद उसकी बॉडी पार्ट्स से ही  विश्व और वर्ण (जाति) का निर्माण हुआ है और जिससे दुनिया बन गई । पुरूष के वली से, वैदिक मंत्र निकले । घोड़ों और गायों का जन्म हुआ, ब्राह्मण पुरूष के मुंह से पैदा हुए, क्षत्रियों उसकी बाहों से, वैश्य उसकी जांघों से, और शूद्र उसकी पैरों से पैदा हुए । चंद्रमा उसकी आत्मा से पैदा हुआ था, उसकी आँखों से सूर्य, उसकी खोपड़ी से आकाश ।  इंद्र और अग्नि उसके मुंह से उभरे ।

ये उपद्रवी वैदिक प्रचारकों को क्या इतना साधारण ज्ञान नहीं है की कोई भी मनुष्य श्रेणी पुरुष की मुख, भुजाओं, जांघ और पैर से उत्पन्न नहीं हो सकती? क्या कोई कभी बिना जैविक पद्धति से पैदा हुआ है? मुख से क्या इंसान पैदा हो सकते है? ये कैसा मूर्खता है और इस मूर्खता को ज्ञान की चोला क्यों सदियों धर्म के नाम पर पहनाया गया और फैलाया गया? ये क्या मूर्ख सोच का गुंडा गर्दी नहीं है? अगर मान भी लिया जाये ये मुर्ख सोच सही है तो जो ब्राह्मण बन गए उनके पूर्वज क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर की ज्ञान ले के पैदा हुए थे ? जो पैदा होते ही उनको अपनी भगवान की जानकारी मिल गयी? उनको अपनी भगवान की जानकारी मिलने से पहले उनके पूर्वज क्या इस दुनियामें नहीं जी रहे थे? तो तब वह कौन सी काम कर रहे थे? जब चमड़ी से बनी चीजों का ज्ञान अविष्कार नहीं हुआ था तो चमार क्या चमार था? जब इंसान कपडे बनाना नहीं जनता था तो धोबी क्या धोबी थे? तेल बनाने का ज्ञान जब इंसान नहीं ढुंढा था तो क्या तेली के पूर्वज तेली थे? या राजाओं का हर पूर्वज राजा था? इस जातिबाद वैदिक पुरुष सूक्त फैलाने का क्या मतलब? मतलब साफ़ है गंदी सोच रखने वाले गुंडई सोच कपटी लोमड़ी सोच बुद्धि जीवी लोग अपनी और अपनी जैसी कुछ लोगों की संगठित लाभ के लिए बनाई सामाजिक शासन व्यवस्था जिसको हम वैदिक सामाजिक शासन व्यवस्था बोलते हैं जो की इंडिया सभ्यता की सबसे बड़ा मुर्ख और घटिया दर्शन है जिसको छल और बल से इसको इंडियन लोगों के ऊपर अपने संगठित लाभ के लिए  थोपा गया है  । हर भाषीय सभ्यता को ब्राह्मणबाद अगड़ी और पिछड़ी श्रेणी में बांटा; धूर्त, बाहुबली और बईमानों को अगड़ी यानी शासक वर्ग बनाने की मदद की और श्रम श्रेणी को हमेशा श्रम श्रेणी बने रहना और अगड़ी बनने से रोकने के लिए वर्ण व्यवस्था को धूर्त, बाहुबली और बईमानों अपनाया । रिग वेद का पुरुष सूक्त जो वर्ण व्यवस्था का वर्णन करता है एक मूर्खता और अज्ञानता का परिभाषा है; और क्योंकि ये संस्कृत भाषा में रचना की गयी हैं और अन्य १७०० भी ज्यादा अलग भाषी बोलने वाले सभ्यता जिन को संस्कृत बोलना नहीं आता उनके ऊपर  ये सोच जबरदस्ती थोपा गया है । यानी जिनलोगों की माँ बोली संस्कृत नहीं उनकी भाषीय प्रजाती में वर्ण व्यवस्था ही नहीं थी; इसलिये ये सोच उनके ऊपर छल और बल से थोपा गया है । संस्कृत भाषा सब भाषा की जननी है ये एक सफ़ेद झूठ है; जिसको मुर्ख और धूर्त वैदिक प्रचारकोंने फैलाई है । अगर संस्कृत भाषा इतनी पुरानी है, तो आज तक उसकी बोलने वाले १५ हजार से भी कम लोग क्यों हैं? ईश भाषा को कोई भी ख़तम करने को कोशिश नहीं किया; ईश को स्वाधीन इंडिया में भी संरक्षण मिला; उसके बावजूद ये कभी भी जन प्रिय भाषा बन नहीं पाया; इसका मतलब ये है की ये भाषा कभी भी इस भूखंड का लोकप्रिय भाषा ही नहीं रहा । लेकिन दिलचस्पी की बात ये है की, हर वैदिक भगवान बस संस्कृत में ही समझता है । अगर भगवान हमेशा संस्कृत में समझते हैं, तो जिन लोगों का मातृभाषा संस्कृत नहीं हैं तो उनकी भगवान कैसा बना? क्या हम अरबी समझने वाले अल्ला; या इंग्लिश या अरामिक समझने वाला जिसु को अपना भगवान मानते हैं? तो संस्कृत समझने वाला भगवान हमारा भगवान है ये कितना तार्किक और मानने योग्य है?

मोर्य साम्राज्य की ब्राह्मण सेनापति पुष्यामित्र शुंग ने ईशा पूर्ब १८५ में विश्वासघात और तलवार धार की आतंक से बौद्धिक साम्राज्य को वैदिक साम्राज्य में परिवर्तित किया और श्रमिक श्रेणी को अपनी आतंक,  छल, कपट से शूद्र बनाया, और उनकी अनुगामी राजाओं ने ठीक उनकी तरह ही हर भाषीय सभ्यता में वही चीज़ दोहराई । कोई भला अपने आप को शूद्र या अपने आपको दूसरों की दास क्यों बनाना चाहेगा ? क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र क्यों नहीं चाहेगा की वह ब्राह्मण बने? ब्राह्मण अगर शरीर से पवित्र और महान है तो शूद्र की सर नेम अपनाने से भी वह पवित्र और महान रहेगा! तो शूद्र की सर नेम से क्यों चीड़ है? क्योंकि अशोक की साम्राज्यमें ज्यादातर मूल निवासी बुद्ध धर्म को मानते थे इसलिए ज्यादातर बुद्ध धर्म मानने वाले लोग ही जाती वाद को बाध्य करने के कारण अपने वृत्ति के अनुसार चार जात में बटने में मजबूर हो गए; इसका मतलब यह नहीं तब का समय में दूसारे दर्शन जैसे कि आजीविका, चारुवाक/लोकायत, वैशेषिक, योग, सांख्य, न्याय, जैन, आलेख इत्यादि धर्म को मान ने वाले लोग वैदिक पहचान से बच गए । क्योंकि वैदिक धर्म तलवार की धार पर मौत की भय दिखा के मूल निवासीओंपे थोपा गया, जबकि बुद्ध धर्म हिंसा को समर्थन नहीं करता इसलिये वैदिक धर्म दबंगई यानी छल और बल से आसानी से फैल गया । जो पुजारी वैदिक धर्म को अपना के अपने आप को ब्राह्मण की पहचान दी वह बहुत कम थे, उन्हों ने बस वैदिक धर्म को छल से आगे बढ़ने में साथ दिया और मनु स्मृतिमें ब्राह्मण के लिए दिए गए सुबिधाओंकी लाभ उठाई । राजाओं को क्षत्रिय का मान्यता मिली जो की तब का समय में कुछ हजारों में हीं होंगे, उस समयमें ब्योपार करने वाले वर्ग जो वैदिक पहचान अपनाया अपने आपको वैश्य घोषित किया जो ब्राह्मण से ज्यादा थे; लेकिन सबसे ज्यादा आबादी श्रम श्रेणी की थी जिन को शूद्र की पहचान मिली; और जातिबाद यानी वैदिक धर्म न मानेवाले लोग और राज्य जाती व्यवस्था से बहार यानी अतिशूद्र की मान्यता मिली । समय की अनुसार राजाओं के शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेने वाले वर्ग यानी राजाओं और ब्राह्मणों की क़रीबी वर्ग अपने आप को शूद्र से क्षत्रिय की मान्यता का पहचान दिलाने में कामयाब रहे यानी अगड़ी शूद्र अपने आप को समय के साथ क्षत्रिय बनालिया और जाती बाद फैलाने में वैदिक घोषित राजा और पुजारिओं को जाती बाद फैलाने में मदद की । ईसाई ५७० में नबी मुहम्मद अरब देश में पैदा हुए और जब उनको ४० शाल चल रहा था यानी करीब ईसाई ६१० में उनहोंने इस्लाम धर्म की रचना की जो की एकेईस्वरवाद और मूर्ति पूजा की विरुद्ध वाली धर्म थी । मुहम्मद अपने कबीला में अपनी धर्म को फैलाने की कोशिश की, लेकिन बहु मूर्तिबाद मानने वाले अरबी कबीला इसको अपना ने से इंकार किया और नबी मुहम्मद को विरोध भी किया । समय के साथ नबी मुहम्मद ने अपनी कुछ अनुगामी बनाया और अपना ताकत बढ़ाई, और तलवार की जोर पर अपने कबीला की लोगों को मौत की डर दिखा के मुस्लिम बनाया और “काबा” की ३६० मूर्तिओं को ध्वस्त कर दिया । तलवार की जोर पर वह और उनके साथी इस्लाम को फैलाता चले गए; जब इस्लाम धर्म को परिवर्तित राजाओं इंडिया भूखंड को करीब करीब ईसाई ७०० में आक्रमण किया उनके साथ साथ इस्लाम हमारे भूखंड में आया; वह ठीक वैदिक धर्म की जैसी अपने तलवार के धार पर ज्यादातर अपनी धर्म फैलाई और कई राज्योंको जित के अपने साम्राज्य बनाया और करीब करीब ९०० साल यानी अंग्रेज आने तक, यानी ईसाई १६०० तक बहुत सारे राज्यों में राज किया । क्योंकि वैदिक परिचय अपनानेवाले पुजारी (ब्राह्मण) , राजाओं यानी क्षत्रिय, ब्योपारी यानी वैश्य, शूद्रों और अति शूद्रों की तुलनामें कम थे उन में से कम ही तलवार की डर से इस्लाम कबूला होगा, क्योंकि बहुत सारे इस्लाम राजाओंने धर्म की छूट दी थी इसलिये अभी भी देश में ज्यादा वैदिक धर्म मानने वाले लोग देखने में मिलते हैं, अगर ऐसा नहीं होता ९०० साल की राज में वह हर किसी को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिए होते । वैदिक धर्म के कारण ज्यादातर श्रमिक श्रेणी वैदिक अगड़ी जात यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य से तरह तरह की शोषण और यातना सहती रहते थे । इस्लाम आने का बाद इस श्रम श्रेणी यानी शूद्र जात से कुछ अपने आपको इस्लाम धर्म से परिवर्तित कर लिए ताकि कम से कम छुआ छूत, जात पात इत्यादि वैदिक असामाजिक शोषण से बच सके; इसलिये आज की इंडिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश की मुशलमानों को अगर मिला दिए जाये करीब ५३ करोड़ से भी ज्यादा होंगे जिसका कारण ज्यादा तर ब्राह्मणबाद यानी वैदिक जाती प्रथा ही है । जिनके पूर्वज जिस भूखंड यानी प्रदेश तथा भाषीय सभ्यता के साथ जुड़े हुए हैं, वहाँ का मुसलमान उसी भाषीय सभ्यता से इस्लाम धर्म को परिवर्तित हुआ है । यानी पाकिस्तान की पंजाब और इंडिया की पंजाब की भूखंड में जो मुस्लिम बसते हैं वह सब पंजाबी भाषीय सभ्यता से परिवर्तित हुए हैं; वैसे ही आंध्र का मुसलमान की पूर्वज तेलुगु भाषीय सभ्यता से ही थे और बांग्लादेशी मुसलमान बंगाल के भाषी सभ्यता से; उसी प्रकार अन्य प्रदेश में दिखने वाले मुसलमान उसी भाषीय सभ्यता की ही हिस्सा हैं । ज्यादातर मुसलमान राजाओंने आपने अधिकृत भूखंड के नाम सिंधु नदीके किनारे बसनेवाले सभ्यता यानी सिंध प्रदेश के आधार पर अल-हिन्द, इन्दुस्तान, हिंदुस्तान जैसे नाम दिए । ये नाम हमारे कोईभी धर्म ग्रन्थ में नहीं मिलेंगे जो ये बात की पुष्टि करती है इस नाम से यहाँ की लोगो का साथ कोई रिश्ता नहीं सीबाये एक नामकरण की । उनके धर्म को परिवर्तित मुसलमान को छोड़ के यानी गैर-मुसलमानों को उन्हों ने हिन्दू की पहचान दी और इस तरह से दूसारे भाषी सभ्यता जिनका सिंधु सभ्यता के साथ दूर दूर तक कोई सबंध नहीं  उनके ऊपर ये पहचान थोपा गया; वैदिक वाले संगठित पुजारीबाद बुद्ध और अन्य तार्किक दर्शन को खत्म कर चुके थे और वैदिक धर्म ही बहुसंख्यवाद धर्म बनचुका था; इसलिये इस बहुसंख्यवाद को हिन्दू का चोला थोपा गया । जो मेडीवाल इंडिया का जन प्रिय भाषा था वह था नगरी जिसका पाली के साथ ज्यादा मेल है वह शायद उन सदी का नगर की भाषा कहलाता था और नगरी/नागरी के नाम से जाना जाता था वैदिक वाले उसके सामने देव लगा के देवनागरी बना डाला । अगर हर भगवान यानी देवतायें संस्कृत समझते हैं तो नगरी कैसे उनकी बोली हो गयी? इसके आगे देव् लगाना इस भाषा की नाम के साथ छेड़ छाड़ यानी अपभ्रंश किया गया है । ये कोई देवनागरी नहीं केवल नागरी ही है । जब यहाँ की मुसलमान शासकों ने यहाँ की लोकप्रिय भाषा “नगरी/नागरी (जिसका मतलब नगर की भाषा)” उनके राज में ये ज्यादा बोलने वाली भाषा थी उनके राज की नाम से इसका नाम हिंदी रख दी । समय के साथ मुसलमान शासकों ने इस नगरी/नागरी भाषा में कुछ अरबी और पार्सी शब्द मिला के उसका नाम उर्दू रख दिया और इंडिया की मुसलमानों के लिए एक अपनी पहचान वाली भाषा बनाया जो की आज की इंडियन ओरिजिन वाले मुसलमानों का मातृभाषा बन गयी है । जबकि उनकी सेकेण्ड लेंगुएज ही ज्यादातर उनकी पूर्वजोंकी मातृभाषा रही । क्योंकि बहुत सारे जगह में पाया गया बुद्ध की प्रतिमा इस्लाम धर्म से भी ज्यादा पुराने है, और कोई वैदिक धर्म की मंदिर या उनकी मूर्त्तियां उनसे भी पुरानी नहीं है ये, ये बात की सूचक है की ये प्रतिमाएं और भग्न बौद्ध स्थल पाने वाले जगह में बौद्ध धर्म था और ईश भूखंड और इसके आस पास ज्यादातर भूखंड में रहने वाले पूर्वज बौद्ध धर्मी थे; यानी हमारे पूर्वज ज्यादातर बौद्ध धर्मी थे ना की वैदिक धर्म के अनुगामी । क्योंकि ३००० साल पहले कोई प्रमुख धर्म या धर्म ही नहीं था सब पूर्वज धर्महीन/ गैरधर्मी ही थे; और किसी भी धर्म को नहीं मानते थे, तब क्या वह सब पापी और जानवर थे?

ब्राह्मणवाद / वेदीजिम यानी वैदिक धर्म को इस्लाम राजाओं ने आक्रमण के बाद हिंदू धर्म के रूप में नामकरण किया और वैदिक प्रचारक इसको अपना पहचान मानलिया; जब धर्म के आधार पर देश विभाजित हुआ इंडियन भूखंड में ज्यादातर वैदिक धर्म मान ने वाले अनुयाई थे; नेहरू ने इंडियन क़ानूनोंमें इस भूखंड में पैदा सब वैदिक और गैर वैदिक धर्मोंको एक छतरी के निचे हिंदू का नाम दे दिया जब की ज्यादातर गैरवैदक धर्म वैदिक धर्म की विरोधी थे । इस तरह सत्ताधारी ताकतों वह कांग्रेस हो या BJP दोनोंने ही वैदिक धर्म की प्रसार किया जब की गैर वैदिक धर्म और दर्शन भी इस भूखंड का ही उपज और ज्ञान सम्पदा है कोई दूसारे देश की नहीं ।

 

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