चाणक्य नीति : चौदहवां अध्याय

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1. गरीबी, दुःख और एक बंदी का जीवन यह सब व्यक्ति के किए हुए कर्म का ही फल है.

2. आप दौलत, मित्र, पत्नी और राज्य गवाकर वापस पा सकते है लेकिन यदि आप अपनी काया गवा देते है तो वापस नहीं मिलेगी.

3. यदि हम बड़ी संख्या में एकत्र हो जाए तो दुश्मन को हरा सकते है. उसी प्रकार जैसे घास के तिनके एक दुसरे के साथ रहने के कारण भारी बारिश में भी क्षय नहीं होते.

4. पानी पर तेल, एक बेईमान आदमी को बताया हुआ राज, एक लायक व्यक्ति को दिया हुआ दान और एक बुद्धिमान व्यक्ति को पढाया हुआ  ज्ञान अपने स्वभाव के कारण तेजी से फैलते है.

5. वह व्यक्ति क्यों पूर्णता नहीं हासिल करेगा जो पश्चाताप में जो मन की अवस्था होती है, उसी अवस्था को काम करते वक़्त बनाए रखेंगा.

6. हमें हमारे दान, तपस्या, बहादुरी, ज्ञान, विनम्रता और नैतिकता में गर्व महसूस नहीं करना चाहिए, यह दुनिया दुर्लभ रत्नों से भरा है।

7. वह जो हमारे मन में रहता है, वह हमारे निकट है, हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो. लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है.

8. यदि हम किसीसे कुछ पाना चाहते है तो उससे ऐसे शब्द बोले जिससे वह प्रसन्न हो जाए. उसी प्रकार जैसे एक शिकारी मधुर गीत गाता है जब वह हिरन पर बाण चलाना चाहता है.

9. राजा, अग्नि, गुरु, और एक महिला से घनिष्ठ पहचान बर्बादी लाता है.  उन से पूरी तरह से उदासीन होना भी स्वयं को लाभ पहुंचाने का मौका से वंचित होना है, इसलिए उनके साथ हमारा संबंध सुरक्षित दूरी से होना चाहिए।

10. हमें हमेशा आग, पानी, महिलाओं, मूर्ख लोग, साँप और शाही परिवार के सदस्यों के साथ सतर्कता से पेश आना चाहिए; इनके साथ असाबधानियाँ, हमें एक झटके में मौत तक पंहुचा सकते है.

11. यदि आप एक काम के प्रदर्शन से दुनिया का नियंत्रण हासिल करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित पंद्रह को अपने काबू रखें, जो यहां और वहां घूमने के लिए सदैव प्रवण हैं: पांच भावना वस्तुएं (दृष्टि की वस्तुएं, ध्वनि , गंध, स्वाद, और स्पर्श); पांच इन्द्रिय अंग (कान, आंखें, नाक, जीभ और त्वचा) और गतिविधि के अंग (हाथ, पैर, मुंह, जननांग और गुदा).

12. वही ज्ञानी है जो वही बात बोलता है जो प्रसंग के अनुरूप हो. जो अपनी शक्ति के अनुरूप दुसरो की प्रेम से सेवा करता है. जिसे अपने क्रोध की मर्यादा का पता है.

13. एक ही वस्तु (एक औरत) तीन अलग-अलग तरीकों से प्रकट होती है: जो मनुष्य तपस्या का अभ्यास करता है, वह एक शव के रूप में प्रकट होता है, कामुक को यह एक महिला के रूप में दिखाई देता है, और कुत्तों को मांस का ढेर के रूप में दिखाई देता है.

14. कोकिल लंबे समय तक (कई मौसमों तक) चुप रहते हैं जब तक कि वे मीठा (बसंत में) गा सकें ताकि सभी को खुशी मिल सके.

15. हम निम्न लिखित बाते प्राप्त करे और उसे कायम रखे.
हमें पुण्य कर्म के जो आशीर्वाद मिले.
धन, अनाज, वो शब्द जो हमने हमारे गुरु से सुने.
कम पायी जाने वाली दवाइया.
हम ऐसा नहीं करते है तो जीना मुश्किल हो जाएगा.

16. कुसंग का त्याग करे और बुद्धि जनो से मेलजोल बढाए. दिन और रात सत कर्म करें और हमेशा अस्थायी को भूल कर वर्तमान  को ध्यान दे.

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