ठगपुर

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जीवन में ऐसा बहुत बार मौका आता है जब हमारे साथ लोग ठगी बेईमानी करने लगते है, ऐसे समय में बिना उनकी इस हरकत का सामना किया बिना हम उनके इस जुर्म को सहन कर लेते है.

ऐसे लोगों की बेईमानी भरी हरकतों का सामना करने के लिए सिर्फ बुद्धि/विवेक ही काफी होता है. लेकिन हम ऐसी परिस्थितियों में होश खो बैठते हैं इस वजह से हमारा विवेक नहीं जाग पाता. इस ठगी पर या ठगपुर की बोलती ठग की कहानी जरूर पडें दो घनिष्ट मित्र थे एक का नाम साधुराम था दूसरे का दूर्जन. एक कमाता था और दूसरा खाता था. एक बार दोनों व्यापार के लिए ठगपुर पहूंचे. वे ठगपूर की सीमा केे निकट ही एक सराय में ठहरे. दूर्जन बोला- साधुराम जाओ कुछ कामधाम देखो. जैसा कि हमारे बीच तय है उसके अनुसार जब कोई समस्या आयेगी तो व्यापार में देखूंगा इसलिए में तो यहीं रहूंगा.

साधुराम घोडे पर सवार होकर ठगपुर के नगर के बाजार की ओर चल दिया. उसने एक थैली में एक हजार अशर्फियां डाली और सुरक्षा की द्रष्टि से वह थैली घोडे की जींद से बांध दी. वह नगर में घूम-फिर ही रहा था कि एक व्यक्ति ने करीब आकर पूछा –क्यों भाई घोडा बिकाउ है ?

साधुराम बोला- बिकाउ तो है पर महंगा है. तुम काम-धंधा क्या करते हो ? वह बोला – मेरा नाम कल्लू कसाई है पर आपको इससे क्या ? आप तो घोडे की कीमत बताईये मेरी हैंसियत होगी तो खरीद लूंगा. साधुराम बोला- मेरे घोडे की कीमत पांच सौं अशर्फियां है, कल्लू बोला- यूं तो अच्छे से अच्छा घोडा भी सौं अशर्फियों में मिल जाता हैं लेकिन आपके घोडे की कीमत पांच सों अशर्फियां गिन लो. साधुराम घोडे से उतर गया लेकिन जब जींद से अशर्फियों की थैली खोलने लगा तो कल्लू बोला – जींद से यह क्या खोल रहे हो भाई. साधुराम बोला – अपनी अशर्फियों की थैली ले रहा हूं. मिया घोडा अब बिक चूका है और बिकते समय यह शर्त तय नहीं हुई थी कि घोडे पर से सामान उतार लिया जायेगा. ऐसा कह कल्लू घोडे पर सवार होकर चलता बना. साधुराम चिल्लाया, लानत है इस शहर को व्यापार में जबरन धोखेबाजी. कल्लू चिल्लाया मिंया यह ठगपुर हैं ठगपुर यहां कदम-कदम पर ठग है. साधुराम अपना सा मूंह ले सराय लौटा तो दूर्जन ने पूछा – क्या बात हैं भाई साधुराम तुम तो व्यापार करने गये थे, बताओ कैसे हैं यहां के लोग ? और यह रोनी सुरत क्यों बना रखी है ?

साधुराम ने सारी कहानी उसे बताते हुए कहा – भाई दूर्जन गांठ की जमा पूंजी भी गवा बैठा हूं. अब भला क्या व्यापार करूंगा इस ठगपुर में. लगता हैं हमें यह शहर छोडकर तुरंत आगे बढना होगा. सियारों के भौंकने से भी कहीं गांव छोडा जाता है ?

दूर्जन बोला – खैर तुमने बहुत दिनों तक कमा-कमा कर खिलाया हैं अब मुझे पच्चीस अशर्फियां दे दो मैं व्यापार करूंगा और तुम बैठकर खाना. जब तुम्हें व्यापार करना ही हैं तो यह पांच सौं अशर्फियां ले जाओं. जब सीधी उंगली से घी न निकले तो ऊँगली टेढ़ी कर के घी निकालिये यह सुनकर दुर्जन भाई बोला – मुझे तो पच्चीस अशर्फियां ही पर्याप्त है.

इस तरह पच्चीस अशर्फियां लेकर दूर्जन शहर पहूंचकर कल्लू कसाई के यहां पहूंचा. कल्लू दुकान पर बैठा कीमा बना रहा था. दुकान में बकरीयों के चार- पांच मुंड टंगे हुए थे. उपरी मंजिल के बरामदे में कल्लू के बाल बच्चे बैठे थे.

दूर्जन ने कहा– कहिए कल्लू मिया मुंड क्या भाव दिये ? कल्लू बोला – भाव क्या बस अशरफी मुंड है. दुर्जन बोला – प्रति मुंड एक अशरफी का है क्या ? कल्लू – हां. दुर्जन – क्या दुकान में जितने मुंड हैं सबकी कीमत एक-एक अशरफी है ?

कल्लू – हां भाई हां. झुंझलाकर कल्लू बोला – लिखकर दूं क्या ? अरे भाई तुम तो नाराज हो गये खैर मुंड तो कुछ ज्यादा ही चाहिए थे मगर इस समय मेरे पास पच्चीस अशर्फियां है इसलिए पच्चीस मुंड दे दो. कल्लू हडबडाकर बोला – मुंड तो पांच ही हैं पच्चीस कहां से लाउं ? पांच अशर्फियां गिनीये पांच मुंड ले जाईये. लेकिन मुझे तो पच्चीस मुंड चाहिए और यह बात तो पहले ही तय हो गई थी कि दुकान मे जितने मुंड हैं प्रति मुंड एक अशरफी का है. उपर बरामदे में जितने बैठे हैं सबके मुंड उतार लाईये और पच्चीस मूंड पूर कीजिए.

अब कल्लू मिया घबराया वह हाथ जोडने लगा माफी मांगते हुए बोला कि भविष्य में ऐसी मूर्खता नहीं होगी, मूर्खंता कैसी भाई ठगपुर में कद-कदम पर ठग बैठे हैं यहां का तो मुख्य धंधा ही ठगी है. समय न गवांकर पच्चीस मूंड उतारो और पैसे गिनो. मुझे आगे भी जाना है. अब तो कल्लू दूर्जन के पांव में गिर गया, बस बस अब मैं समझ गया कुछ देर पहले जिनसे मैंने घोडा लिया था आप उन्हीं के कोई भाईबंद हैं आप अपना घोडा भी ले जाईये और अपनी अशर्फियां भी. मेरी और मेरे बाल बच्चो की जान बक्श दीजिए. दूर्जन घोडा और हजार अशर्फियां लेकर वापस सराय में लौट आया और साथ ही बकरी के पाच मुंड जूर्माने के भी ले आया.

सच है, चतुर को भला कौन ठग सकता है. चतुराई के आगे ठगी धरी रह जाती है. अर्थात जीवन में चाहे कैसे भी बुरी परिस्थिति आये अगर उसका धैर्य और बुद्धि से सामना किया जाए तो उससे आसानी से बचा जा सकता है.

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