मार पर बुद्ध की विजय -जातक कथा

loading...

ईसाई और इस्लाम परम्पराओं की तरह बोद्धों में भी शैतान-तुल्य एक धारणा है, जिसे मार की संज्ञा दी गयी है; क्यों के ईसाई धर्म 33AD के वाद बना और इस्लाम धर्म 610AD के वाद ये कन्सेप्ट इंडिया की 450BC के बुद्धिस्ट दर्शन का अपभ्रंस सोच हो सकता है । मार को ‘नमुचि’ के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि “नमुचीति मारो”, अर्थात् जिससे कोई नहीं बच सकता वह ‘मार’ है जिसको हम बुरी सोच भी कह सकते हैं । इसका अलग अर्थ मार वह है जिसको मरना जरूरी है यानी उन दुष्ट सोच से दूर रहो जो आप की मन को बस में करके दुर्गुण भरदेते हैं और जीवन को दुखी करते हैं । एक अच्छी स्वस्थ जिंदगी जीने के लिए उन सोच को मरना जरूरी है ।

कहा जाता है कि कंठक पर सवार गौतम जब अपने महानिष्क्रमण-काल में (अर्थात् जब गृहस्थ-जीवन त्याग कर) नगरद्वार पर पहुँचे तो मारने उनके मन में प्रकट हो उन्हें सात दिनों के अन्दर ही चक्रवर्ती सम्राट बनाने का प्रलोभन दे डाला था। सिद्धार्थ उसके प्रलोभन में नहीं आये और अपने लक्ष्य को अग्रसर होते चले गये।

मार की दस सेनाएँ होती है : राग (क्रोध); असंतोष या भूख-प्यास; तृष्णा; आलस्य (दीन-मिद्ध); भय; शंका, झूठ और मूर्खता; झूठी शान और शोकत; दम्म।

बोधिवृक्ष के नीचे गौतम ने जब सम्बोधि-प्राप्ति तक बैठ तप करने की प्रतिज्ञा ली तो मार अपने दसों प्रकार के सेनाओं के साथ  बुद्ध के सोच पर आक्रमण कर बैठा । अंत मैं मार हारा और गौतम संबोधि प्राप्त कर बुद्ध बने।

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
loading...

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।

loading...

क्रमरहित सूची

Recent Posts

ज्ञान, आजाद है; और किसी को भी बिना किसी प्रतिबंध के ज्ञान का आनंद लेने का अधिकार है. इस में प्रकाशित कोई भी कहानी या लेख को आप बिना प्रतिबन्ध के उपयोग कर सकते हो. आप अपने ब्लॉग में यहाँ से कॉपी करके पेस्ट कर सकते हो लेकिन कोई भी फेब्रिकेशन या फाल्सीफिकेशन की जिम्मेदारी आप की होगी. वेबसाइट का सिद्धांत नैतिक ज्ञान फैलाना है, ना कि ज्ञान पर हक़ जताना. ज्ञान की स्वतंत्रता वेबसाइट का आदर्श है; आप जितना चाहते हैं उतना उसकी प्रतिलिपि(Copy) बनाकर बिना प्रतिबन्ध के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैला सकते हो.