व्यवहार के बारे में – माओ त्से–तुङ, जुलाई 1937

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लेनिन ने कहा था : “शत्रुता और अंतरविरोध एक ही और समान वस्तुएं कदापि नहीं हैं। समाजवाद में पहले का लोप हो जाएगा, किंतु दूसरे का अस्तित्व बना रहेगा।”[25] तात्पर्य यह कि शत्रुता विपरीत तत्वों के बीच के संघर्ष का महज एक रूप है, उसका एकमात्र रूप नहींय शत्रुता के फार्मूले को हम हर जगह बिना सोचे–समझे लागू नहीं कर सकते।

  1. निष्कर्ष

अब हम निष्कर्ष के तौर पर कुछ बातें कहेंगे। वस्तुओं में अंतरविरोध का नियम, अर्थात विपरीत तत्वों की एकता का नियम, प्रकृति और समाज का मूल नियम है और इसलिए चिंतन का भी मूल नियम है। वह अध्यात्मवादी विश्व–दृष्टिकोण के विपरीत है। वह मानव–ज्ञान के इतिहास में एक महान क्रांति का प्रतिनिधित्व करता है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के दृष्टिकोण के अनुसार, अंतरविरोध वस्तुगत पदार्थों की और मनोगत चिंतन की सभी प्रक्रियाओं में मौजूद होता है और इन सभी प्रक्रियाओं में शुरू से अंत तक बना रहता है; यही अंतरविरोध की सार्वभौमिकता और निरपेक्षता है। प्रत्येक अंतरविरोध और उसके प्रत्येक पहलू की अपनी–अपनी विशिष्टताएं होती हैं; यही अंतरविरोध की विशिष्टता और सापेक्षता है। एक विशेष परिस्थिति में, विपरीत तत्वों में एकरूपता होती है और इसलिए वे एक ही इकाई में सह–अस्तित्व की स्थिति में रह सकते हैं तथा एक दूसरे में बदल सकते हैं; यह भी अंतरविरोध की विशिष्टता और सापेक्षता है। किंतु विपरीत तत्वों के बीच संघर्ष लगातार चलता रहता है; यह संघर्ष तब भी चलता रहता है जबकि विपरीत तत्व सह–अस्तित्व की स्थिति में रहते हैं, और तब भी जबकि वे एक दूसरे में रूपांतरित होते हैं, और खासकर जब उनका एक दूसरे में रूपांतर हो रहा है, उस समय यह संघर्ष और ज्यादा स्पष्ट रूप से व्यक्त होता है; यह भी अंतरविरोध की सार्वभौमिकता और निरपेक्षता ही है। अंतरविरोध की विशिष्टता और सापेक्षता का अध्ययन करते समय, हमें प्रधान अंतरविरोध तथा अप्रधान अंतरविरोधों के फर्क को, तथा अंतरविरोध के प्रधान पहलू और अप्रधान पहलू के फर्क को ध्यान में रखना चाहिए; अंतरविरोध की सार्वभौमिकता और अंतरविरोध में निहित विपरीत तत्वों के संघर्ष का अध्ययन करते समय, हमें संघर्ष के विभिन्न रूपों के भेद को ध्यान में रखना चाहिए। अन्यथा हम गलतियां कर बैठेंगे। यदि अध्ययन के जरिए हमने ऊपर बताई गई आवश्यक बातों को सही तौर पर समझ लिया, तो हम उन कठमुल्लावादी विचारों को चकनाचूर कर सकेंगे, जो मार्क्सवाद–लेनिनवादी के बुनियादी उसूलों के विरुद्ध हैं तथा हमारे क्रांतिकारी कार्य के लिए हानिकारक हैं; और साथ ही व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हमारे साथी अपने अनुभव को उसूलों के रूप में व्यवस्थिति कर सकेंगे तथा अनुभववादी गलतियों को दोहराने से बच सकेंगे। अंतरविरोध के नियम के अपने अध्ययन में हम इन्हीं चंद साधारण निष्कर्षों पर पहुंचे हैं।

नोट

[1] वी.आई.लेनिन, “दार्शनिक नोटबुक”: “हेगेल की रचना ‘दर्शन–शास्त्र का इतिहास’ के पहले ग्रंथ में ‘एलियावादी विचार–शाखा’” के बारे में।

[2] वी.आई.लेनिन ने “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में” नामक अपने निबंध में कहा है: “एक इकाई का दो में विभाजन और उसके परस्पर विरोधी अंशों का बोध ही द्वन्द्ववाद का सारतत्व है।” “हेगेल की रचना ‘तर्क विज्ञान’ की रूपरेखा” नामक अपनी रचना में उन्होंने कहा है : “संक्षेप में, द्वन्द्ववाद को विपरीत तत्वों की एकता का सिद्धांत कहा जा सकता है। ऐसा कहने से उसका निचोड़ तो पकड़ में आ जाता है, लेकिन स्पष्टीकरण करने और उसे भरा–पूरा बनाने की आवश्यकता बनी रहती है।”

[3] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[4] हान वंश में कनफ्यूशियसवाद के एक प्रसिद्ध व्याख्याकार तुङ चुङ–शू (179-104 ई–पू–) ने सम्राट हान ऊ ती से कहा था : “ताओ व्योम से उत्पन्न होता है; व्योम नहीं बदलता, इसी तरह ताओ भी नहीं बदलता”। “ताओ” प्राचीन चीन में दर्शन–शास्त्र के विद्वानों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है “सिद्धांत” या “नियम”।

[5] फ्रेडरिक एंगेल्स, “द्वन्द्ववाद। परिमाण और गुण”-“ड्यूरिंग का मत–खण्डन”, प्रथम भाग का 12वां अध्याय।

[6] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[7] फ्रेडरिक एंगेल्स, “द्वन्द्ववाद। परिणाम और गुण”-“ड्यूहरिंग का मत–खण्डन”, प्रथम भाग का 12वां अध्याय।

[8] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[9] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[10] देखिए : वी.आई.लेनिन, “कम्युनिज्म” (12 जून 1920)। और देखिए : “चीन के क्रांतिकारी युद्ध की रणनीति विषयक समस्याएं”, नोट 10।

[11] देखिए : “सून चि” नामक पुस्तक का तीसरा अध्याय, “आक्रमण की रणनीति”।

[12] वेइ चङ (580-643 ई–) थाङ वंश का एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और इतिहासकार था। इस लेख में यह वाक्य “चि च थुङ च्येन” नामक किताब के 192वें खण्ड से उद्धृत किया गया है।

[13] “श्वेइ हू च्वान” (कछार के वीर) एक प्रसिद्ध चीनी उपन्यास है जिसमें उत्तरी सुङ वंश के अंतिम काल के एक किसान युद्ध का वर्णन किया गया है। ल्याङशानपो में किसान विद्रोह के नेता और उपन्यास के नायक सुङ च्याङ ने अपना अड्डा बनाया था और चू गांव लयाङशानपो के निकट था। इस गांव का मुखिया चू छाओ–फङ एक निरंकुश जमींदार था।

[14] वी.आई.लेनिन, “ट्रेड यूनियनों, वर्तमान परिस्थिति और त्रात्सकी व बुखारिन की गलतियों पर फिर एक बार विचार”।

[15] वी.आई.लेनिन, “क्या करें ?”, अध्याय 1, परिच्छेद 4।

[16] वी.आई.लेनिन, “हेगेल की रचना ‘तर्क–विज्ञान’ की रूपरेखा”।

[17] “शान हाए चिङ” (पर्वतों और सागरों की पुस्तक) युद्धरत राज्यों (403-221 ई–पू–) के काल में लिखी गई थी। ख्वा फू “शान हाए चिङ” में वर्णित एक ऋषि का नाम था। “शान हाए चिङ” के “हाए वाए पेइ चिङ” खण्ड में लिखा है : “ख्वा फू सूरज का पीछा कर रहा था। जब सूर्यास्त हुआ, तो उसे बहुत प्यास लग गई, और वह पीली नदी व वेइश्वेइ नदी में पानी पीने लगा। पीली नदी व वेइश्वेइ नदी का पानी उसकी प्यास बुझाने के लिए काफी नहीं था, तो वह ‘महासरोवर’ में पानी पाने के लिए उत्तर की ओर चल दिया। लेकिन ‘महासरोवर’ के पास पहुंचने से पहले ही वह रास्ते में मर गया। उसने अपनी लाठी नीचे फेंक दी, जिससे ‘तङ’ नामक एक जंगल बन गया।”

[18] ई प्राचीन चीन की पौराणिक कथा में वर्णित एक विख्यात वीर था। “सूरजों को मार गिराना” उसकी धनुर्विद्या के बारे में एक मशहूर कहानी है। “ह्वाए नान चि” नामक किताब में, जिसका सम्पादक हान वंश का ल्यू आन (ईसापूर्व दूसरी शताब्दी का एक अभिजात वर्गीय व्यक्ति) था, यह लिखा गया है : “सम्राट याओ के शासन–काल में आकाश में दस सूरज उगा करते थे। उनके कारण फसलों और पेड़–पौधों को बहुत क्षति पहुंचती थी और जनता को खाना नहीं मिलता था। इसके अलावा, तरह–तरह के हिंस्र पशु भी जनता को नुकसान पहुंचाते थे। इसलिए सम्राट याओ ने ई को आदेश दिया…और ई ने आकाश से सूरजों को मार गिराया और जमीन पर तरह–तरह के हिंस्र पशुओं को मार डाला। …इससे जनता को बड़ी राहत मिली है और खुशी हुई।” पूर्वी हान वंश के वाङ यी (ईसा की दूसरी शताब्दी के एक लेखक) द्वारा छ्वी य्वान रचित “आकाश से पूछना” नामक काव्य के लिए लिखी गई टिप्पणियों में बताया गया है : “‘ह्वाए नान चि’ के अनुसार सम्राट याओ के शासन–काल में आकाश में दस सूरज एक साथ उगा करते थे। उनके कारण फसलों और पेड़–पौधों को बहुत क्षति पहुंचती थी। सम्राट याओ ने ई को आदेश दिया कि वह उन्हें मार गिराए। ई ने दस सूरजों में से नौ को मार गिराया…सिर्फ एक को छोड़ दिया।”

[19] “शी यओ ची” (पच्छिम की तीर्थयात्रा) सोलहवीं शताब्दी में लिखा गया एक पौराणिक उपन्यास है, जिसका नायक सुन ऊ–खुङ नामक एक वानरराज है। उसके अंदर बहत्तर रूप, जैसे चिड़िया, पेड़–पौधे और पत्थर इत्यादि, धारण करने की अद्भुत शक्ति है।

[20] “ल्याओ चाए की विचित्र कहानियां” सत्रहवीं शताब्दी में छिङ वंश के फू सुङ–लिङ द्वारा लोक–कथाओं के आधार पर लिखी गई कहानियों का संग्रह है। इसमें छोटी–छोटी 431 कहानियां हैं, जो ज्यादातर भूत–प्रेतों और लोमड़ियों के बारे में है।

[21] कार्ल मार्क्स, “राजनीतिक अर्थशास्त्र की समालोचना की भूमिका”।

[22] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[23] इस वाक्य का प्रयोग पहली बार ईसा की पहली शताब्दी के प्रसिद्ध इतिहासकार पान कू द्वारा लिखित “हान वंश के पूर्वार्ध का इतिहास” में हुआ था। उसके बाद से यह चीन की एक लोकप्रिय उक्ति बन गई है।

[24] वी.आई.लेनिन, “द्वन्द्ववाद के सवाल के बारे में”।

[25] वी.आई.लेनिन, “एन.आई.बुखारिन की रचना ‘संक्रमणकालीन अर्थशास्त्र’ पर टिप्पणी”।

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