सवे रहीम नर धन्य हैं पर उपकारी अंग
बाॅटन बारे को लगे ज्यों मेंहदी को रंग ।
वह मनुश्य धन्य है जिसका शरीर परोपकार में लगा है जैसे मेंहदी पीसने बाले को हाथ में लग कर उसे सुन्दर बना देती है।
संतत संपति जानि कै सबको सब कुछ देत
दीनबंधु बिन दीन की को रहीम सुधि लेत ।
धनी लोगों की मदद सब करता है कयोंकि जरूरत के समय वे उनकी मदद कर सकते हैं । किंतु गरीब की मदद दीनबंधु भगबान के सिबा कोई नहीं करता है ।
धनि रहीम जलपंक को लघु जिय पियत अघाय
उदधि बडाई कौन है जगत पियासो जाय ।
कीचड़ युक्त जल धन्य है जिसे छोटे जीव जन्तु भी पीकर तृप्त हो जाते हैं। समुद्र का कोई बड़प्पन नहीं कयोंकि संसार की प्यास उससे नही मिटती है।सेवाभाव वाले छोटेलोग हीं अच्छे हैं।
तरूवर फल नहि खात है सरवर पियत नहि पान
कहि रहीम पर काज हित संपति सचहिं सुजान ।
बृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता है और सरोवर अपना पानी स्वयं नही पीता है। ज्ञानी और सज्जन दूसरों के हित के लिये धन संपत्ति का संग्रह करते हैं।
रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच
मांस दियो शिवि भूप ने दीन्हों हाड़ दधीच ।
परोपकार करने में स्वार्थ; अपना पराया मित्रता आदि नही सोचना चाहिये। राजा शिवि ने कबूतर की प्राण रक्षा हेतु अपने शरीर का माॅस और दधीचि ऋशि ने अपनी हड्ईियाॅ दान दी थी। परोपकार में जीवन का बलिदान करने से भी नही हिचकना चाहिये ।
काह कामरी पागरी जाड़ गये से काज
रहिमन भूख बुझाईये कैस्यो मिले अनाज ।
जिस कपड़ा से जाड़ा चला जाये-वही सबसे अच्छा चादर या कम्बल कहा जायेगा। जिस आज से भूख मिट जाये वह जहाॅ से जैसे भी मिले-पही उत्तम है।
को रहीम पर द्वार पै जात न जिय सकुचात
संपति के सब जात है विपति सबै लै जात ।
कोई भी ब्यक्ति किसी के भी दरवाजे पर माॅगने के लिये जाने में संकोच करता है। लेकिन लोग कश्अ में धनवान के यहॅा हींजाते हैं अैार विपत्ति हीं उन्हें याचना के लिये ले जाती है।धनवान को कश्अ में पड़े ब्यक्ति का आदर करना चाहिये।
जो घर हीं में घुसि रहै कदली सुपत सुडील
तो रहीम तिन ते भले पथ के अपत करील ।
केला का पौधा केबल घर आॅगन की शोभा बढाता है । उनसे तो बेर बबूल के कांटे बाले पौधे अच्छे हैं जो रास्ते पर राहगीर और पक्षियों को आश्रय देते हैं।
जैसी परै सो सहि रहै कहि रहीम यह देह
धरती पर हीं परत है सीत घाम और मेह ।
यह शरीर सब कुछ सह लेता है। इसके उपर जो भी कश्अ आता है उसे यह सहन कर लेता है। धरती पर सर्दी गर्मी और वर्शा पड़ने पर वह सह लेता है। इस शरीर को दूसरों की भलाई में लगाना हीं जीवन का उद्देश्य होना चाहिये ।
गति रहीम बड़ नरन की ज्यों तुरंग व्यबहार
दाग दिवावत आपु तन सही होत असवार ।
अच्छे लोग दूसरों की सेवा करना अपना धर्म मानते हैं । घोड़े को अधिक कश्अ देकर दाग दिया जाता था और घुड़सवार उस पर सवारी करके अपनी जीविका कमाता था। अच्छे लोग अपना धर्म निर्बाह हेतु सहर्श कश्अ उठाने के लिये तत्पर रहते हैं।