एक फकीर ने एक सम्राट के द्वार पर दस्तक दी । सुबह का वक़्त था और सम्राट बगीचे में घूमने निकला था । सहयोग की बात सामने ही सम्राट मिल गया । फकीर ने अपना पात्र उसके सामने कर दिया सम्राट ने कहा क्या चाहते हो ?
फकीर ने कहा कुछ भी दे दो “शर्त एक हैं” मेरा पात्र पूरा भर जाएं । में थक गया हूँ, यह पात्र भरता ही नहीं । सम्राट हंसने लगा और कहा तुम पागल मालुम होते हो । पागल न होते तो, फकीर ही क्यों होते, यह छोटा सा पात्र भरता नहीं ?…
फिर सम्राट ने अपने वजीर से कहा लाओ स्वर्ण-अशर्फियों से भर दो, इस फकीर का मुंह सदा के लिए बंद कर दो । फ़क़ीर ने कहा में फिर याद दिला दू की भरने की कोशिश अगर आप करते हैं तो यह शर्त है की जब तक भरेगा नहीं पात्र में हटूंगा नहीं ।
सम्राट ने कहा तू घबरा मत पागल भर देंगे । सोने से भर देंगे, हिरे जवाहरात से भर देंगे । लेकिन जल्द ही सम्राट को अपनी भूल समझ में आ गई अशर्फियां डाली गई और खो गई । हिरे डालें गयें और खो गयें । लेकिन सम्राट भी जिद्दी था और फिर फ़क़ीर से हार माने यह भी तो जंचता न था । सारी राजधानी में खबर पहुंच गई हजारों लोग इकट्ठे हो गए ।
सम्राट अपना खजाना उलीचता गया । उसने कहा आज दांव पर लग जाना हैं सब डूबा दूंगा मगर उसका पात्र भरूंगा । शाम हो गई । सूरज ढलने लगा । सम्राट के कभी खाली न होने वाले खजाने खाली हो गए लेकिन पात्र नहीं भरा सो नहीं भरा ।
वह गिर पड़ा फकीर के चरणों में और कहा मुझे माफ़ कर दो । मेरी अकड़ मिटा दी अच्छा किया । में तो सोचता था यह अक्षत खजाना है, लेकिन यह तेरे छोटे से पात्र को भी न भर पाया । बस अब एक ही प्रार्थना है में तो हार गया मुझे क्षमा कर दो ।
मेने व्यर्थ ही तुझे आशवाशन दिया था भरने का । मग़र जाने से पहले एक छोटी सी बात मुझे बताते जाओ । दिन भर यही प्रश्न मेरे मन में उठेगा । यह पात्र क्या है, किस जादू से बनाया है । फकीर हंसने लगा उसने कहा किसी जादू से नहीं ‘इसे आदमी के ह्रदय से बनाया गया है ।
न आदमी का ह्रदय भरता है न यह पात्र भरता है । इस जिंदगी में कोई और चीज तुम्हे छका न सकेगी । तुम्हारा पात्रा खाली का खाली रहेगा । कितना ही धन डालो इसमें खो जाएगा । कितना ही पद डालो इसमें खो जायेगा, पात्र खाली का खाली ही रहेगा । तुम भरोगे नहीं । भरता तो आदमी तो केवल परमात्मा से हैं । क्योंकि अनंत है हमारी प्यास, अनन्त है हमारा परमात्मा तो अनंत को अनंत ही भर सकेगा ।