जन्म, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु जीवन के सत्य हैं । सिद्धार्थ गौतम ने उन सत्यों का जब साक्षात्कार किया और उसके मर्म को समझा तो उसी दिन गृहस्थ जीवन का परित्याग कर वे संयास-मार्ग को उन्मुख हो गये।
वह दिन आषाढ़ पूर्णिमा का था । मध्य-रात्रि बेला थी। कुरुप सांसारिकता से वितृष्ण उन्होंने तुरंत ही अपने सारथी को बुलाया और अपने प्रिय घोड़े को तैयार रखने का आदेश दिया। फिर वे अपने शयन-कक्ष में गये जहाँ यशोधरा नवजात राहुल के साथ सो रही थी। अपनी पत्नी और पुत्र पर एक अंतिम दृष्टि डाल, उन्हें सोते छोड़, घोड़े पर सवार वे नगर की ओर निकल पड़े। रोकने के प्रयास में सारथी भी उनके घोड़े की पूँछ से लटक गया।
कपिलवत्थु नगरी के बाहर आकर वे एक क्षण को रुके और अपने जन्म और निवास-स्थान पर एक भरपूर दृष्टि डाल आगे बढ़ गये। रात भर घुड़सवारी करने के बाद अनोगा नदी तक पहुँचे जो कपिलवस्तु से तीस योजन दूर था । नदी को पार कर नदी की दूसरी तरफ उन्होंने अपने तमाम आभूषण उतार सारथी को दे अपने बाल अपनी तलवार से काट दिये । संयासी का रुप धारण कर गौतम ने सारथी को वापिस लौट जाने की आज्ञा दी।