सत्ताधारी एक नेता जी के आवास पर जनता की भीड़ लगी थी | उसी भीड़ में एक युवती भी कोने में दुबकी हुई बैठी हुई थी वह हिम्मत नहीं कर पा रही थी की किस प्रकार नेता जी तक पहुंचे |
जब नेता जी कहीं बाहर जाने के लिए कुर्सी से उठे, उनकी नजर उस युवती पर पड़ी वह स्वयं ही भीड़ को चीरते हुए उस लड़की के पास गए, उससे आने का कारण पूछा, युवती बोली “पति नहीं रहे परिवार की जिम्मेदारी मेरे ऊपर हैं, अगर कहीं कोई छोटी मोटी नौकरी लग जाती, तो गुजर बसर हो जाता |” नेता जी ने युवती के प्रति सहानुभूति जताई और उसे शाम को डाक बंगले में आने को कहा |
युवती दूसरे दिन बड़ी ख़ुशी से डाक बंगले पर गई, वहां सन्नाटा था, केवल संतरी(पहरेदार) बाहर खड़ा था सकुचाते हुए उस युवती ने दरवाजा खोला | नेता जी जैसे उसके ही इंतजार में बैठे थे | लड़की को पलंग पर बिठा लिया | कमरे से चीख की आवाज़ सुनकर संतरी दौड़ा आया | नेता जी की ऐसी घिनौनी मुद्रा देख कर उसका खून खौल उठा | अपनी नौकरी की परवाह किये बिना उस युवती को बचाने के लिए उसने बन्दुक चला दी | दोनों और से गोलियां चली | बिचारा संतरी मारा गया |
इस घटना के बाद मंत्री जी के नेक नियति के गुण गान गए जाने लगे | वह लड़की भी केबिनेट मंत्री बनाई गई पर “कलयुग का नेक नियत” मारा गया | और यही होता आ रहा है अब इस ज़माने में, ये कहानी तो मात्र के प्रतिविम्ब हैं |