एक दिन बादशाह अकबर ने खफा होकर बीरबल को नगर से बाहर जाने का आदेश दे दिया । मगर बीरबल तो हर हाल में खुश रहने वाला व्यक्ति था. वह यह भी जानता था कि बादशाह अकबर सलामत का यह गुस्सा थोडे ही समय का है। शीघ्र ही उनकी नाराजगी दूर हो जायेगी, वे नगर से बाहर एक गांव में जा बसे।
अज्ञात वास करते-करते महीनों गुजर गये। न बादशाह अकबर ने उन्हें बुलाया और न ही वे आये। समय-समय पर बादशाह अकबर बीरबल को याद करके चिंता करते, मगर बीरबल का कोई अता-पता मालूम न होने से वे लाचार थै।
जब किसी प्रकार बीरबल का पता नही चला तो बादशाह अकबर ने उन्हे ढूंढने की तरकीब निकाली, उन्होने राज्य के चप्पे-चप्पे पर डिंडोरा पिटवा दिया कि जो शख्स आधी धूप-आधी छांया में हमारे पास आयेगा उसे एक हजार रुपये इनाम मे दिये जायेंगे।
बहुत से लोगों ने इनाम पाने की कोशिश की पर किसी को आधी धूप आधी छायं में होकर आने की युक्ति नहीं सुझी।
यह बात फैलते-फैलते बीरबल के कानों तक भी पहूंची । वह अपने घर के पास गरीब बढई को बुलाकर बोले- तुम एक चारपाई अपने सिर पर रखकर बादशाह अकबर के पास जाओ और उनसे कहों कि मैं आधी धूप और आधी छायं में होकर आया हूं इसलिए मुझे इनाम मिलना चाहिए।
बडई बीरबल की बात मान एक चारपाई सिर पर रख बादशाह अकबर के पास पहूंचा और बोला बादशाह अकबर सलामत मैं आधी धूप और आधी छायं में चलकर आया हू। इसलिए मुझे इनाम के एक हजार रूप्ये मिलने चाहिए।
बादशाह अकबर ने उससे पुछा सच-सच बताओ , तुम्हे इस प्रकार की सलाह किसने दी। बादशाह अकबर सलामत कुछ दिनों पूर्व एक विद्वान हमारें गांव में आकर बसा है, लोग उसे बीरबल के नाम से पुकारते है। उसी के कहने पर मैंने यह कार्य किया।
बडई ने भोलेपन से कहा- बडई के मुख से बीरबल का नाम सुनकर बादशाह अकबर बडे प्रसन्न हुए। उन्होने खंजांची से बढई को एक हजार रूप्ये देने का आदेष दिया। फिर बढई के साथ अपने दो खास कर्मचारीयों को बीरबल को लाने को भेज दिया। इस प्रकार बीरबल बादशाह अकबर के पास दोबारा पहूंच गये।