Category - प्रेरक प्रसंग

एक पाठक – मैक्सिम गोर्की

रात काफी हो गयी थी जब मैं उस घर से विदा हुआ जहाँ मित्रों की एक गोष्ठी में अपनी प्रकाशित कहानियों में से एक का मैंने अभी पाठ किया था। उन्होंने तारीफ के पुल बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और मैं धीरे-धीरे मगन भाव से सड़क पर चल रहा था, मेरा हृदय आनंद से छलक रहा था और जीवन के एक ऐसा सुख का अनुभव मैं...

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करोड़पति कैसे होते हैं – मैक्सिम गोर्की

संयुक्त राज्य अमेरिका के इस्पात और तेल के सम्राटों और बाकी सम्राटों ने मेरी कल्पना को हमेशा तंग किया है। मैं कल्पना ही नहीं कर सकता कि इतने सारे पैसेवाले लोग सामान्य नश्वर मनुष्य हो सकते हैं। मुझे हमेशा लगता रहा है कि उनमें से हर किसी के पास कम से कम तीन पेट और डेढ़ सौ दाँत होते होंगे। मुझे यकीन था...

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उसका प्रेमी – मैक्सिम गोर्की

मुझे एक बार मेरी जान-पहचान वाले एक व्यहक्ति ने यह घटना बताई थी। उन दिनों मैं मास्को में पढ़ता था। मेरे पड़ोस में एक ऐसी महिला रहती थी,जिसकी प्रतिष्ठाम को वहां सन्दिग्ध माना जाना था। वह पोलैंड की रहने वाली थी और उसका नाम टेरेसा था। मर्दों की तरह लम्बा कद, गठीला डील-डौल,काली घनी भौंहे, जानवरों जैसी...

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मैक्सिम गोर्की का पत्र रूसी कामरेडों के नाम – Maxim Gorky(1906)

1 जनवरी, 1906 कामरेड, गरीबी की क्रूरता के विरुद्ध संघर्ष का अर्थ है, दुनिया में फैले उत्पीडऩ के जाल से मुक्ति के लिए छेडी गई जंग, और ढेरों असभ्य विरोधाभासों से भरी इस लड़ाई को लोग बहुत ही कमजोर तरीके से लड़ रहे हैं. आप पुरुषोचित तरीके से पूरी ताकत के साथ इस जाल को काटने की कोशिशों में लगे हैं, उधर...

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एक प्रचारक की टिप्पणियाँ – लेनिन (1922)

ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने के बारे में; हताशा से हानि; व्यापार की उपयोगिता, मेनशेविको के प्रति रवैया, इत्यादि[1] रचना काल: फरवरी, 1922 के अन्त में लिखित प्रथम प्रकाशन: प्रावदा अंक 87 में 16 अप्रैल 1924 को प्रकाशित, पाण्डुलिपि के अनुसार प्रकाशित स्रोत: लेनिन, कलेक्टेड वकर्स, द्वितीय अंग्रेजी संसकरण...

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क्या करें? – लेनिन (1902)

क्या करें,किताब का अंश अ. आलोचना की स्वतंत्रता के मायने क्या हैं? ‘आलोचना की स्वतंत्रता’ निस्संदेह मौजूदा समय का सबसे फैशनेबल नारा है। यह सभी देशों और समाजवादियों और जनवादियों के बीच चल रहे विवादों में सर्वाधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्दा है। विवाद में शामिल पार्टियों में से कोई एक...

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हड़तालों के विषय में – लेनिन

1899 के अन्त में लिखित।पहले पहल 1924 में प्रकाशित। अंग्रेजी से अनूदित इधर कुछ वर्षों से रूस में मजदूरों की हड़तालें बारम्बार हो रही हैं। एक भी ऐसी औद्योगिक गुबेर्निया नहीं है, जहाँ कई हड़तालें न हुई हों। और बड़े शहरों में तो हड़तालें कभी रुकती ही नहीं। इसलिए यह बोधगम्य बात है कि वर्ग-सचेत मजदूर तथा...

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फ्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति में – लेनिन (1895)

शरद, 1895 में लिखित। तर्क की कैसी मशाल बुझ गयी, कैसा हृदय हो गया स्पन्दनहीन!* एंगेल्स का जन्म 1820 में प्रशा राज्य के राइन प्रान्त के बार्मेन नगर में हुआ था। उनके पिता कारख़ानेदार थे। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण 1838 में एंगेल्स को स्कूली शिक्षा पूरी किये बिना ही ब्रेमेन की एक व्यापारिक कम्पनी...

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‘उजरती श्रम और पूँजी’ की भूमिका – फ्रेडरिक एंगेल्स (1847)

आज हम पूँजीवादी उत्पादन के आधिपत्य में रहते हैं, जिसमें आबादी का एक बड़ा और संख्या में दिनोंदिन बढ़नेवाला वर्ग ऐसा है, जो केवल उसी हालत में ज़िन्दा रह सकता है, जबकि वह उत्पादन के साधनों–यानी औज़ारों, मशीनों, कच्चे माल और जीवन-निर्वाह के साधनों–के मालिकों के लिए मज़दूरी के बदले काम करे। उत्पादन की...

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वानर के नर बनने में श्रम की भूमिका – फ्रेडरिक एंगेल्स (1876)

मनुष्य के हाथ श्रम की उपज हैं। अर्थशास्त्रियों का दावा है कि श्रम समस्त संपदा का स्रोत है। वास्तव में वह स्रोत है, लेकिन प्रकृति के बाद। वही इसे वह सामग्री प्रदान करती है जिसे श्रम संपदा में परिवर्तित करता है। पर वह इस से भी कहीं बड़ी चीज है। वह समूचे मानव-अस्तित्व की प्रथम मौलिक शर्त है, और इस हद...

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