Category - प्रेरक प्रसंग

शहादत से पहले साथियों को अन्तिम पत्र – भगत सिंह (1931)

साथियो, स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ,कि मैं कैद होकर या पाबन्द होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है...

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क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा – भगत सिंह (1931)

‘नौजवान राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नाम पत्र ‘ शीर्षक के साथ मिले इस दस्तावेज के कई प्रारूप और हिन्दी अनुवाद उपलब्ध हैं, यह इसके सम्पूर्ण रूप का अंग्रेजी अनुवाद है। ‘कौम के नाम सन्देश’ के रूप में इसका एक संक्षिप्त रूप भी इस अनुभाग में संकलित है। लाहौर के पीपुल्ज़ में 29 जुलाई, 1931 और इलाहाबाद के...

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पिताजी के नाम पत्र – भगत सिंह (1930)

30 सितम्बर, 1930 को भगतसिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिब्यूनल को एक अर्जी देकर बचाव पेश करने के लिए अवसर की माँग की। सरदार किशनसिंह स्वयं देशभक्त थे और राष्ट्रीय आन्दोलन में जेल जाते रहते थे। उन्हें व कुछ अन्य देशभक्तों को लगता था कि शायद बचाव-पक्ष पेश कर भगतसिंह को फाँसी के फन्दे से बचाया जा...

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लेनिन मृत्यु वार्षिकी पर तार – भगत सिंह (1930)

21 जनवरी, 1930 को लाहौर षड़यंत्र केस के सभी अभियुक्त अदालत में लाल रुमाल बांध कर उपस्थित हुए। जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने “समाजवादी क्रान्ति जिन्दाबाद,” “कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिन्दाबाद,” “जनता जिन्दाबाद,” “लेनिन का नाम अमर रहेगा,” और “साम्राज्यवाद का नाश हो” के नारे लगाये।...

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इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है – भगत सिंह (1930)

असेम्बली बम काण्ड पर यह अपील भगतसिंह द्वारा जनवरी, 1930 में हाई कोर्ट में की गयी थी। इसी अपील में ही उनका यह प्रसिद्द वक्तव्य था : “पिस्तौल और बम इंकलाब नहीं लाते, बल्कि इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है और यही चीज थी, जिसे हम प्रकट करना चाहते थे।” माई लॉर्ड, हम न वकील हैं, न अंग्रेजी...

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गाँधी जी की साँठ-गाँठ – भगत सिंह (1930)

बम का दर्शन राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों की निंदा में गाँधी जी ब्रिटिश सरकार से एक कदम आगे रहते थे। 23 दिसंबर, 1929 को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के स्तम्भ वाइसराय की गाड़ी को उड़ाने का प्रयास किया, जो असफल रहा। गाँधी जी ने इस घटना पर एक कटुतापूर्ण लेख ‘बम की पूजा’ लिखा...

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इन्क़लाब ज़िन्दाबाद – भगत सिंह (1929)

भगतसिंह ने अपने विचार स्पष्ट रूप से इंडियन जनता के सामने रखे। उनके विचार में, क्रांति की तलवार विचारों की धार से ही तेज होती है। वे विचारधारात्मक क्रान्तिकारी हालात के लिए संघर्ष कर रहे थे। अपने विचारों पर हुए सभी वारों का उन्होंने तर्कपूर्ण उत्तर दिया। यह वार अंग्रेजी सरकार की ओर से किए गए या देशी...

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विद्यार्थियों के नाम पत्र – भगत सिंह (1929)

भगत सिंह और बुटकेश्वर दत्त की ओर से जेल से भेजा गया यह पत्र 19अक्तूबर, 1929 को पंजाब छात्र संघ, लाहौर के दूसरे अधिवेशन में पढ़कर सुनाया गया था। अधिवेशन के सभापित थे सुभाषचंद्र बोस।- सं. इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक...

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बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में बयान – भगत सिंह (1929)

बम काण्ड पर सेशन कोर्ट में बयान भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली में बम फेंकने के बाद, 6 जून, 1929 को दिल्ली के सेशन जज मि. लियोनार्ड मिडिल्टन की अदालत में दिया गया ऐतिहासिक बयान। हमारे ऊपर गम्भीर आरोप लगाये गये हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम भी अपनी सफाई में कुछ शब्द कहें। हमारे कथित अपराध...

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असेम्बली हॉल में फेंका गया पर्चा – भगत सिंह (1929)

8 अप्रैल, सन् 1929 को असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा बाँटे गए अंग्रेजी पर्चे का हिन्दी अनुवाद।- सं. ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना’ सूचना “बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है,” प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियाँ के यह अमर...

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