Category - प्रेरक प्रसंग

मज़दूरी की व्यवस्था का नाश हो – कार्ल मार्क्स

अपनी श्रम-शक्ति बेच कर-और वर्तमान व्यवस्था में उसे यह बेचनी ही पड़ती है-मज़दूर अपनी श्रम-शक्ति पूँजीपति को इस्तेमाल करने के लिए सौंप देता है,-पर कुछ तर्कसंगत सीमाओं के भीतर। मज़दूर अपनी श्रम-शक्ति को क़ायम रखने के लिए उसे बेचता है, नष्ट करने के लिए नहीं,-हाँ, इस्तेमाल के दौरान में वह भले ही थोड़ी घिस...

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बुर्जुआ जनवाद – लेनिन

बुर्जुआ जनवाद : संकीर्ण, पाखण्डपूर्ण, जाली और झूठा; अमीरों के लिए जनवाद और गरीबों के लिए झाँसा- लेनिन ”…केवल संसदीय-सांविधानिक राजतंत्रों में ही नहीं, बल्कि अधिक से अधिक जनवादी जनतंत्रों में भी बुर्जुआ संसदीय व्यवस्था का सच्चा सार कुछ वर्षों में एक बार यह फैसला करना ही है कि शासक वर्ग का कौन सदस्य...

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सुधारवाद और मार्क्‍सवाद – लेनिन

अराजकतावादियों के विपरीत मार्क्‍सवादी सुधारों के लिए संघर्ष को, यानी मेहनतकशों की दशा में ऐसे सुधारों के लिए संघर्ष को स्वीकार करते हैं, जो सत्तारूढ़ वर्ग की सत्ता को नष्ट न करते हों। परन्तु इसके साथ ही मार्क्‍सवादी उन सुधारवादियों के विरुध्द सर्वाधिक संकल्पपूर्वक संघर्ष करते हैं, जो प्रत्यक्ष अथवा...

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मज़दूरों के महान नेता कार्ल मार्क्स की समाधि पर भाषण – फ़्रेडरिक एँगेल्स

14 मार्च को तीसरे पहर, पौने तीन बजे, संसार के सबसे महान विचारक की चिन्तन-क्रिया बन्द हो गयी। उन्हें मुश्किल से दो मिनट के लिए अकेला छोड़ा गया होगा, लेकिन जब हम लोग लौटकर आये, हमने देखा कि वह आरामकुर्सी पर शान्ति से सो गये हैं — परन्तु सदा के लिए। इस मनुष्य की मृत्यु से यूरोप और अमेरिका के जुझारू...

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काम के उचित दिन की उचित मज़दूरी – फ्रेडरिक एंगेल्स

(एंगेल्स ने यह लेख ‘दि लेबर स्टैण्डर्ड‘ के लिए मई 1-2, 1881 को लिखा था जो उसी वर्ष 7 मई को प्रकाशित हुआ था। इस लेख में एंगेल्स ने बताया है कि मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक लक्ष्य सिर्फ पूँजीपति वर्ग द्वारा तय तथाकथित उचित मज़दूरी को प्राप्त करना नहीं है। वास्तव में यह ”उचित मज़दूरी” उचित है ही नहीं। मज़दूर...

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मज़दूरी व्यवस्था – फ्रेडरिक एंगेल्स

पिछले एक लेख में हमने इस समयसिद्ध उक्ति पर विचार किया था, “काम के उचित दिन की उचित मज़दूरी”, और इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि वर्तमान सामाजिक अवस्थाओं में काम के दिन की सबसे उचित मज़दूरी अनिवार्य रूप से मज़दूर के उत्पाद के सबसे अनुचित बँटवारे के समान होती है, उस उत्पाद का बड़ा हिसा पूँजीपति की जेब में...

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समाजवाद और धर्म – लेनिन

वर्तमान समाज पूर्ण रूप से जनसंख्या की एक अत्यंत नगण्य अल्पसंख्यक द्वारा, भूस्वामियों और पूँजीपतियों द्वारा, मज़दूर वर्ग के व्यापक अवाम के शोषण पर आधारित है। यह एक ग़ुलाम समाज है, क्योंकि “स्वतंत्र” मज़दूर जो जीवन भर पूँजीपजियों के लिए काम करते हैं, जीवन-यापन के केवल ऐसे साधनों के “अधिकारी” हैं जो...

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दुश्मन द्वारा हमला किया जाना बुरी बात नहीं बल्कि अच्छी बात है – माओ त्से-तुङ

क्या वजह है कि जापान-विरोधी सैनिक और राजनीतिक कालेज देशभर में मशहूर हो गया है और विदेशों में भी इसने कुछ प्रतिष्ठा अर्जित की है? क्योंकि जापान-विरोधी सभी संस्थानों में यह सबसे क्रांतिकारी, सबसे प्रगतिशील और राष्ट्रीय मुक्ति तथा सामाजिक स्वतंत्रता के लिए सबसे अच्छा योद्धा है। मेरे खयाल से, यही वह...

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मज़दूरों का राजनीतिक अख़बार एक क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने के लिए ज़रूरी है – लेनिन

…यदि स्थानीय पैमाने पर मज़बूत राजनीतिक संगठन प्रशिक्षित नहीं किये जाते, तो एक अखिल रूसी अख़बार का बहुत बढ़िया संगठन करने से भी कोई लाभ न होगा। बिल्कुल सही है। लेकिन यही तो असल बात है कि मज़बूत राजनीतिक संगठनों को प्रशिक्षित करने का एक अखिल रूसी अखबार के अलावा और कोई तरीक़ा नहीं है। ईस्क्रा ने अपनी...

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जनवादी जनतन्त्र: पूँजीवाद के लिए सबसे अच्छा राजनीतिक खोल – लेनिन

“धन-दौलत” की सार्विक सत्ता जनवादी जनतन्त्र में ज़्यादा यक़ीनी इसलिए भी होती है कि वह राजनीतिक मशीनरी की अलग-अलग कमियों, पूँजीवाद के निकम्मे राजनीतिक खोल पर निर्भर नहीं होती। जनवादी जनतन्त्र पूँजीवाद के लिए श्रेष्ठतर सम्भव राजनीतिक खोल है और इसलिए (पालचीन्स्की, चेर्नोव, त्सेरेतेली और मण्डली की मदद...

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