कबहुुक मन गगनहि चढ़ै, कबहु गिरै पाताल कबहु मन अनमुनै लगै, कबहु जाबै चाल। कभी तो मन मगन में बिहार करता है। और कभी पाताल लोक में गिर जाता है। कभी मन ईश्वर के गहन चिंतन में रहता है और कभी सांसारिक बिषयों में भटकता रहता है।यह मन अत्यंत चंचल है। Kabahuk Mann gaganahi chadhai,kabahu giray patal Kabahu...
Category - अनमोल विचार
अंतर यही बिचारिया, साखी कहो कबीर भौ सागर में जीव है, सुनि कै लागे तीर। प्रभु ने कबीर को प्रेरणा दी कि स्वरुप बखान करें। हम सभी जीव जगत इस सागर में डूब रहें है और इसे सुनकर हम इसेे पार कर सकते है। Anter yahi bichariya,sakhi kaho Kabir Bhau sagar mein jiv hai, suni kai lage teer. Think it...
ऐक घड़ी आधो घड़ी , आधो हुं सो आध कबीर संगति साधु की, कटै कोटि अपराध। एक क्षण,आध क्षण, आधे का भी आधा क्षण के लिये यदि साधु संतों की संगति की जाये तो हमारे करोड़ों अपराध पाप नाश हो जाते है। Ek ghari aadho ghari,aadho hun so aadh Kabir sangati sadhu ki,katai koti apradh. One moment, even half of a moment...
आरत कैय हरि भक्ति करु, सब कारज सिध होये करम जाल भव जाल मे, भक्त फंसे नहि कोये। प्रभु की भक्ति आर्त स्वर में करने से आप के सभी कार्य सफल होंगे। सांसारिक कर्मों के सभी जाल भक्तों को कमी फाॅंस नहीं सकते हैं। प्रभु भक्तों की सब प्रकार से रक्षा करते है। Aarat kai Hari bhakti karu,sab karaj sidh hoye...
सिर राखे सिर जात है, सिर कटाये सिर होये जैसे बाती दीप की कटि उजियारा होये। सिर अंहकार का प्रतीक है । सिर बचाने से सिर चला जाता है-परमात्मा दूर हो जाता हैं। सिर कटाने से सिर हो जाता है। प्रभु मिल जाते हैं जैसे दीपक की बत्ती का सिर काटने से प्रकाश बढ़ जाता है। Sir rakhai sir jat hai,sir katai sir hoye...
जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुन देत बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत। जो अपने हेतु किये गये के बदले में कुछ करता है वह स्वार्थी है। जो किसी के किये गये उपकार के बिना किसी का उपकार करता है। वह व्स्तुतः परमार्थ के लिये करता है। Jo koi karai so swarthi,aaras paras gun det Bin kiye karai so...
कागा काको धन हरै, कोयल काको देत मीठा शब्द सुनाये के , जग अपनो कर लेत। कौआ किसी का धन हरण नहीं करता और कोयल किसी को कुछ नहीं देता है। वह केवल अपने मीठी बोली से पूरी दुनिया को अपना बना लेता है। kaga kako dhan harai,koel kako det Meetha sabd sunai ke,jag aapno kari let. The crow does not take anyone’s...
अर्घ कपाले झूलता, सो दिन करले याद जठरा सेती राखिया, नाहि पुरुष कर बाद। तुम उस दिन को याद करो जब तुम सिर नीचे कर के झूल रहे थे। जिसने तुम्हें माॅं के गर्भ में पाला उस पुरुष-भगवान को मत भूलो। परमात्मा को सदा याद करते रहो। Argh kapale jhulta,so din kar le yad Jathra seti rakhiya,nahi purush kar bad...
आंखो देखा घी भला, ना मुख मेला तेल साधु सोन झगरा भला, ना साकुत सोन मेल। धी देखने मात्र से ही अच्छा लगता है पर तेल मुॅुह में डालने पर भी अच्छा नहीं लगता है। संतो से झगड़ा भी अच्छा है पर दुष्टों से मेल-मिलाप मित्रता भी अच्छा नहीं है। Aakhon dekha ghee bhala,na mukh mela tel Sadhu son jhagra bhala,na...
अजार धन अतीत का, गिरही करै आहार निशचय होयी दरीदरी, कहै कबीर विचार। सन्यासी को दान में प्राप्त धन यदि कोई गृहस्थ खाता है तो वह निश्चय ही दरिद्र हो जायेगा। ऐसा कबीर का सुबिचारित मत है। Ajar dhan aateet ka,girhi karai aahar Nishchay hoyee daridri,kahai Kabir vichar. The wealth of an ascetic is not...