Category - अनमोल विचार

कबीर के दोहे – तलाश/Search

भक्ति महल बहुत उॅच है दूरैहि ते दर्शाय जो कोइ जन भक्ति करै शोभा बरनि ना जाई। ईश्वर भक्ति का महल बहुत उॅंचा है। यह बहुत दूर से ही दिखाई पड़ता है। जो भी ईश्वर भक्ति में लीन हैं लोग उसके गुणों की ओर सहज हीं आकर्षित होते हैं। Bhakti mahal bahut unch hai durahi te darshay Jo koi jan bhakti karai shobha...

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कबीर के दोहे – ईश्वर स्मरण/Remembrance

सुमिरन मारग सहज का,सदगुरु दिया बताई सांस सांस सुमिरन करु,ऐक दिन मिलसी आये। ईश्वर स्मरण का मार्ग अत्यंत सरल है। सदगुरु ने हमें यह बताया है। हमें प्रत्येक साॅंस में ईश्वर का स्मरण करना चाहिये। एक दिन निश्चय ही प्रभु हमें मिलेंगे। Sumiran marag sahaj ka, satguru diya batai Sans sans sumiran karun , ek...

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कबीर के दोहे – सर्वव्यापक ईश्वर/Omnipotent God

मैं जानू हरि दूर है हरि हृदय भरपूर मानुस ढुढंहै बाहिरा नियरै होकर दूर। लोग ईश्वर को बहुत दूर मानते हैं पर परमात्मा हृदय में पूर्णतः विराजमान है। मनुष्य उसे बाहर खोजता है परंतु वह निकट होकर भी दूर लगता है। Mai janu Hari door hai Hari hirday bharpoor Manush dhudhai bahira niaray hokar door . I know...

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कबीर के दोहे – विश्वास/Faith

कबिरा चिंता क्या करु, चिंता से क्या होय मेरी चिंता हरि करै, चिंता मोहि ना कोय। कबीरा क्यों चिंता करै? चिंता से क्या होगा? मेरी चिंता प्रभु करते हैं। मुझे किसी तरह की कोई चिंता नहीं है। kabira chinta kya karu , chinta se kya hoye Meri chinta Hari karai ,chinta mohi na koye . Why should Kabir worry...

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कबीर के दोहे – ज्ञानी/Scholar

छारि अठारह नाव पढ़ि छाव पढ़ी खोया मूल कबीर मूल जाने बिना,ज्यों पंछी चनदूल। जिसने चार वेद अठारह पुरान,नौ व्याकरण और छह धर्म शास्त्र पढ़ा हो उसने मूल तत्व खो दिया है। कबीर मतानुसार बिना मूल तत्व जाने वह केवल चण्डूल पक्षी की तरह मीठे मीठे बोलना जानता है। Chhari atharah naw padhi chhaw padhi khoya mool...

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कबीर के दोहे – प्रेम/Love

आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार नेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन ब्यबहार। अग्नि का ताप और तलवार की धार सहना आसान है किंतु प्रेम का निरंतर समान रुप से निर्वाह अत्यंत कठिन कार्य है। Aagi aanchi sahna sugam , sugam khadag ki dhar Neh nibahan ek ras , maha kathin byabahar . Bearing heat of fire is easy...

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कबीर के दोहे – विरह/Separation

अंखियाॅ तो झैन परि, पंथ निहार निहार जीव्या तो छाला पारया, हरि पुकार पुकार। प्रभु की राह देखते-देखते आॅंखें में काला झम्ई पड़ गया है और हरि का नाम पुकारते-पुकारते जीव मे छाला पड़ गया है। प्रभु तुम कब आओगे। Aakhiyan to jhain pari , panth nihar nihar Jivya to chhala parya , Hari pukar pukar . There has...

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कबीर के दोहे – पारखी/Examiner

कबीर खारहि छारि के, कंकर चुनि चुनि खाय रतन गावये रेत मैं, फिर पाछै पछताय। कबीर कहते है कि मीठी चीनी छोड़ कर कंकड़-पथ्थर चुन-चुन खा रहे हैं। इस शरीर रुपी रत्न को बालू में वर्वाद कर अब पश्चाताप करने से क्या लाभ है। Kabir kharahi chhari ke ,kankar chuni chuni khaye Ratan gawaya ret mein, fir pachhai...

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कबीर के दोहे – लोभ/Greed

कबीर औंधि खोपड़ी, कबहुॅं धापै नाहि तीन लोक की सम्पदा, का आबै घर माहि। कबीर के अनुसार लोगों की उल्टी खोपड़ी धन से कभी संतुष्ट नहीं होती तथा हमेशा सोचती है कि तीनों लोकों की संमति कब उनके घर आ जायेगी। Kabir aundhi khopari,kabahu dhapai nahi Teen lok ki sampda ,ka aabai ghar mahi. When the mind is...

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कबीर के दोहे – मोह/Delusion

काहु जुगति ना जानीया,केहि बिधि बचै सुखेत नहि बंदगी नहि दीनता, नहि साधु संग हेत। मैं कोई उपाय नहीे जानता जिससे मैं अपना खेती की रक्षा कर सकता हूॅ। न तो मैं ईश्वर की बंदगी करता हूॅं और न हीं मैं स्वभाव में नम्र हूॅं। न हीं किसी साधु से मैंने संगति की है। kahu jugati na janiya,kehi bidhi bachai sukhet...

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