Category - मनोहर कहानियाँ

सत्रहवीं पुतली – विद्यावती ~ विक्रमादित्य की परोपकार तथा त्याग की भावना!

सत्रहवीं पुतली – विद्यावती नामक ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- महाराजा विक्रमादित्य की प्रजा को कोई कमी नहीं थीं। सभी लोग संतुष्ट तथा प्रसन्न रहते थे। कभी कोई समस्या लेकर यदि कोई दरबार आता था उसकी समस्या को तत्काल हल कर दिया जाता था। प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट देने वाले अधिकारी को दण्डित...

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अठारहवीं पुतली – तारामती ~ विक्रमादित्य और विद्वानों तथा कलाकारों का सम्मान

अठारहवीं पुतली – तारामती की कथा इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य की गुणग्राहिता का कोई जवाब नहीं था। वे विद्वानों तथा कलाकारों को बहुत सम्मान देते थे। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान तथा कलाकार मौजूद थे, फिर भी अन्य राज्यों से भी योग्य व्यक्ति आकर उनसे अपनी योग्यता के अनुरुप आदर और...

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उन्नीसवी पुतली – रूपरेखा ~ राजा विक्रमादित्य और दो तपस्वी

उन्नीसवी पुतली – रूपरेखा नामक उन्नीसवी पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य के दरबार में लोग अपनी समस्याएँ लेकर न्याय के लिए तो आते ही थे कभी-कभी उन प्रश्नों को लेकर भी उपस्थित होते थे जिनका कोई समाधान उन्हें नहीं सूझता था। विक्रम उन प्रश्नों का ऐसा सटीक हल निकालते थे कि...

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बीसवीं पुतली – ज्ञानवती ~ राजा विक्रमादित्य तथा ज्ञानियों की कद्र

बीसवीं पुतली – ज्ञानवती ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य सच्चे ज्ञान के बहुत बड़े पारखी थे तथा ज्ञानियों की बहुत कद्र करते थे। उन्होंने अपने दरबार में चुन-चुन कर विद्वानों, पंडितों, लेखकों और कलाकारों को जगह दे रखी थी तथा उनके अनुभव और ज्ञान का भरपूर सम्मान करते थे। एक दिन वे...

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इक्कीसवीं पुतली – चन्द्रज्योति ~ विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी

इक्कीसवीं पुतली – चन्द्रज्योति नामक इक्कीसवीं पुतली की कथा इस प्रकार है- एक बार विक्रमादित्य एक यज्ञ करने की तैयारी कर रहे थे। वे उस यज्ञ में चन्द्र देव को आमन्त्रित करना चाहते थे। चन्द्रदेव को आमन्त्रण देने कौन जाए- इस पर विचार करने लगे। काफी सोच विचार के बाद उन्हें लगा कि महामंत्री ही इस...

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बाइसवीं पुतली – अनुरोधवती ~ राजा विक्रमादित्य और बुद्धि और संस्कार पर चर्चा!

बाइसवीं पुतली – अनुरोधवती नामक बाइसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य अद्भुत गुणग्राही थे। वे सच्चे कलाकारों का बहुत अधिक सम्मान करते थे तथा स्पष्टवादिता पसंद करते थे। उनके दरबार में योग्यता का सम्मान किया जाता था। चापलूसी जैसे दुर्गुण की उनके यहाँ कोई कद्र नहीं थी।...

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तेइसवीं पुतली – धर्मवती ~ मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से

तेइसवीं पुतली – धर्मवती ने इस प्रकार कथा कही- एक बार राजा विक्रमादित्य दरबार में बैठे थे और दरबारियों से बातचीत कर रहे थे। बातचीत के क्रम में दरबारीयों में इस बात पर बहस छिड़ गई कि मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से। बहस का अन्त नहीं हो रहा था, क्योंकि दरबारियों के दो गुट हो चुके थे। एक...

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चौबीसवीं पुतली – करुणावती ~ चरित्रहीन स्त्री से प्रेम सिर्फ विनाश की ओर ले जाता है

चौबीसवीं पुतली – करुणावती ने जो कथा कही वह इस प्रकार है- राजा विक्रमादित्य का सारा समय ही अपनी प्रजा के दुखों का निवारण करने में बीतता था। प्रजा की किसी भी समस्या को वे अनदेखा नहीं करते थे। सारी समस्याओं की जानकारी उन्हें रहे, इसलिए वे भेष बदलकर रात में पूरे राज्य में, आज किसी हिस्से में, कल...

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पच्चीसवीं पुतली – त्रिनेत्री ~ ईश्वर से आस

पच्चीसवीं पुतली – त्रिनेत्री नामक पच्चीसवीं पुतली की कथा इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के सुख दुख का पता लगाने के लिए कभी-कभी वेश बदलकर घूमा करते थे तथा खुद सारी समस्या का पता लगाकर निदान करते थे। उनके राज्य में एक दरिद्र ब्राह्मण और भाट रहते थे। वे दोनों अपना कष्ट अपने तक ही...

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छब्बीसवीं पुतली – मृगनयनी ~ रानी का विश्वासघात

छब्बीसवीं पुतली – मृगनयनी नामक छब्बीसवीं पुतली ने जो कथा सुनाई वह इस प्रकार है: राजा विक्रमादित्य न सिर्फ अपना राजकाज पूरे मनोयोग से चलाते थे, बल्कि त्याग, दानवीरता, दया, वीरता इत्यादि अनेक श्रेष्ठ गुणों के धनी थे। वे किसी तपस्वी की भाँति अन्न-जल का त्याग कर लम्बे समय तक तपस्या में लीन रहे...

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