बच्चों के प्रति बुद्ध का अनुराग सर्वविदित है। दो सोपकों, चुल्लपंथक, दब्बमल्लपुत्र और कुमार कस्सप की कथाएँ उपर्युक्त मान्यता के परिचायक हैं। एक बार श्रावस्ती की एक महिला संघ में प्रवेश करने को आतुर थी किन्तु उसके माता-पिता ने उसे भिक्षुणी बनने की अनुमति नहीं दी और उसका विवाह एक श्रेष्ठी से करा दिया।...
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सम्बोधि-प्राप्ति के पश्चात् तथा ब्रह्मसहम्पति के अनुरोध पर गौतम बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’ हेतु धर्म-चक्र प्रवर्तन (धम्म-चक्र-पवत्तन) अर्थात् अपने ज्ञान-देशना के चक्र को चलायमान रखने की प्रतिज्ञा ली । तत: उन्हें सर्वप्रथम आकार कालाम की याद आई जिन्हें उन्होंने महानिष्क्रमण के...
सोगत-दर्शन या बौद्ध धर्म-दर्शन का सूक्ष्म का विस्तृत निरुपण अभिधम्म (संस्कृत अभिधर्म) दर्शन में निहित है। बुद्ध ने अभिधम्म की चर्चा सर्वप्रथम अपनी माता महामाया को की । अभिधम्म की देशना में उन्हें तीन महीने लगे थे। सारिपुत्र उन छंदों का पाँच सौ विशिष्ट भिक्षुओं के साथ संगायन करते थे। वे सारे ही...
बुद्ध के सम्बोधि-प्राप्ति के पश्चात् सुद्धोदन ने उन्हें कई बार अपने दूतों को भेज कर बुलवाने की चेष्टा की, किन्तु हर दूत बुद्ध से प्रभावित हो उनका अनुयायी बन संघ में प्रविष्ट हो जाता। अंतत: सुद्धोदन ने बुद्ध को बचपन के मित्र कालुदायी को दूत बना बुद्ध के पास अपने संदेश के साथ भेजा । कालुदायी भी...
चमत्कार बुद्ध कथाओं व आख्यायिकों का महत्त्वपूर्ण अंग है । बुद्ध के जन्म के साथ अनेकों अद्भुत, दैविक एवं चमत्कारिक घटनाओं का प्रचुर आख्यान अनेकों स्थान पर उपलब्ध व प्रचलित हैं । होसकता है बुद्ध की सिक्ष्याओंको आकर्षित करने के लिए उनके छद्म अनुयायियों ने चमत्कार कल्पनाओं को कहानी सिक्ष्याओं में जोडे...
संबोधि-प्राप्ति के पाँचवे वर्ष में बुद्ध वैशाली के कूटागारसाला में विहार कर रहे थे। तभी वहाँ एक दिन उन्होंने अपने पिता को मृत्यु-शय्या पर पड़ने का सुचना प्राप्ति हुई । उनके पिता अर्हत् की योग्यता प्राप्त कर चुके थे। अत: वह समय उनके पिता को धम्म-देसना देने के लिए उपयुक्त था। इसके अतिरिक्त बुद्ध...
राजगीर के गिज्जहकुत पर्वत से, भिक्षुओं के बड़े संघ के साथ, बुद्ध ने अपनी अन्तिम यात्रा प्रारम्भ की। अम्बलथ्थिका और नालन्दा होते हुए वे पाटलिगाम गाँव (आधुनिक पटना, जिसे बाद में पाटलिपुत्र कहा गया) पहुँचे। उत्तरवर्ती काल में मौर्यों की राजधानी बना पाटलि, उन दिनों एक गाँव-मात्र था। पाटलि से उन्होंने...
गौतम बुद्ध के पिता सुद्धोदन थे। उनकी माता का नाम कच्चाना था । सुद्धोदन के चार सहोदर भाई द्योतदन, सक्कोदन, सुक्कोदन तथा अमितोदन थे । उनकी दो बहनें थी- अमिता और पमिता। सुद्धोदन को जैसे ही बुद्ध की सम्बोधि प्राप्ति की सूचना मिली और उनके गौरव पता चला तो उन्होंने तत्काल सिपाहियों के साथ एक दूत बुद्ध को...
सम्बोधि-प्राप्ति के पूर्व बुद्धों का किसी न किसी महिला के हाथों खीर का ग्रहण करना कोई अनहोनी घटना नहीं रही हैं। उदाहरणार्थ, विपस्सी बुद्ध ने सुदस्सन-सेट्ठी पुत्री से, सिखी बुद्ध ने पियदस्सी-सेट्ठी-पुत्री से, वेस्सयू बुद्ध ने सिखिद्धना से, ककुसंघ बुद्ध ने वजिरिन्धा से, कोमागमन बुद्ध ने अग्गिसोमा से...
सारिपुत्र (शारिपुत्र) और मोग्गल्लान बुद्ध के दो प्रमुख शिष्य ‘धम्म-सेनापति’ के नाम प्रसिद्ध हैं। सारिपुत्र का वास्तविक नाम उपतिस्स था। बौद्ध परम्परा में उन्हें सारिपुत्र का नाम इस कारण दिया गया था कि वे नालक निवासिनी रुपसारी के पुत्र (पुत्त) थे। उनका दृढ़ संकल्प बौद्ध इतिहास में विशेष...