पिता दुकुलक और माता पारिका से पुत्र साम का जन्म हुआ । एक दिन पिता दुकुलक और माता पारिका जब एक वन में घूम रहे थे तो तेज वर्षा आरम्भ हुई। उन्होंने एक पेड़ के नीचे शरण ली और बारिश से अपने बचाव करना चाहा । किन्तु उनके शरीर और वस्र से रिसते पानी से एक भयंकर विषधर साँप भीगने लगा जो उनके पैरों के नीचे...
Category - मनोहर कहानियाँ
कपिलवस्तु के शाक्यवंशीय सुद्धोदन और महामाया के पुत्र सिद्धार्थ गौतम का जन्म ५६३ ई.पू./४८० ई.पू. में वैशाख-पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी के उपवन में स्थित एक साल-वृक्ष के नीचे हुआ था जब उनकी माता अपने माता-पिता से मिलने अपने मायके देवदह जा रही थी। पुत्र-जन्म के तत्काल बाद महामाया वापिस कपिलवस्तु लौट आयी...
गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व) का जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शुद्धोधन के घर में हुआ था । उनकी माता महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में जाते हुए प्रसव पीड़ा हुई और वहीं लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ दिया गया...
सिद्धार्थ गौतम की माता महामाया अंजन की पुत्री थी । उनकी माता का नाम यशोधरा था। किन्तु थेरी गाथा उच्कथा के अनुसार उनके पिता का नाम महासुप्पबुद्धा था और अवदान कथा के अनुसार उनकी माता का नाम सुलक्खणा था। महामाया के दो भाई थे और एक बहन (बहन महा पजापति भी, सुद्धोदन से उसी दिन ब्याही गयी थी जिसदिन...
सुद्धोदन के पिता के गुरु असित सांसारिक भोगों से विरक्त एक सिद्ध पुरुष थे । वृद्धावस्था में सुखों का परित्याग कर वे एक निर्जन वन में कुटिया बना कर साधनाओं में लीन रहते। सिद्धार्था गौतम की जन्म सूचना से उनकी खुशी की सीमा न रही और वे तत्काल कपिलवस्तु पहुँचे वहाँ पहुँचकर उन्होंने जब बालक को उठाकर अपनी...
पिता सुद्धोदन को सिद्धार्थ गौतम का संन्यास बनना चिंतित किया था । सिद्धार्थ जब उनतीस वर्ष के थे तब एक उद्यान में भ्रमण करने का समय वहाँ उन्होंने लाठी के सहारे चलते एक वृद्ध को देखा और चिंतित हो गये; तब उन्हें यह ज्ञान हुआ कि वे भी एक दिन वैसे ही हो जाएंगे; सभी एक दिन वैसी ही अवस्था को प्राप्त होते...
जन्म, रोग, बुढ़ापा और मृत्यु जीवन के सत्य हैं । सिद्धार्थ गौतम ने उन सत्यों का जब साक्षात्कार किया और उसके मर्म को समझा तो उसी दिन गृहस्थ जीवन का परित्याग कर वे संयास-मार्ग को उन्मुख हो गये। वह दिन आषाढ़ पूर्णिमा का था । मध्य-रात्रि बेला थी। कुरुप सांसारिकता से वितृष्ण उन्होंने तुरंत ही अपने सारथी...
ईसाई और इस्लाम परम्पराओं की तरह बोद्धों में भी शैतान-तुल्य एक धारणा है, जिसे मार की संज्ञा दी गयी है; क्यों के ईसाई धर्म 33AD के वाद बना और इस्लाम धर्म 610AD के वाद ये कन्सेप्ट इंडिया की 450BC के बुद्धिस्ट दर्शन का अपभ्रंस सोच हो सकता है । मार को ‘नमुचि’ के नाम से भी जाना जाता है...
बुद्ध के व्यक्तित्व के संदर्भ में कम ही जानकारियाँ प्राप्त हैं । उनके विरोधी और आलोचकों को भी यह स्वीकार्य है कि वे “सुन्दर” और “आकर्षक” व्यक्तित्व के स्वामी थे । रुप-लावण्य, कद-काठी और तेजस्विता से वे सभी का मन मोह लेते थे । दीर्घनिकाय के ‘लक्खण-सुत’ के अनुसार...
एक बार बुद्ध जब कपिलवस्तु पहुँचे तो अनेक उनके अनुयायी बने। देवदत्त भी उनमें से एक था। देवदत्त, सुपब्बुध (सुप्रबुद्ध) के पुत्र था और महात्मा बुद्ध के समकालीन था । वह बुद्ध से दीक्षित होकर बौद्धसंघ में शामिल हो गये था । प्रारंभ में बौद्धधरम के प्रति उसकी बड़ी आस्था थी और अल्प अवधि में ही उसकी गणना...