श्राद्ध-संभोजन -जातक कथा

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श्राद्ध-भोज के लिए किसी ब्राह्मण ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरंभ की । उसके शिष्य बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये । नहाने के समय बकरा एकाएक बडी जोर से हँसने लगा ; फिर तत्काल दु:ख के आँसू बहाने लगा । उसके विचित्र व्यवहार से चकित हो कर शिष्यों ने उससे जब ऐसा करने का कारण जानना चाहा तो बकरे ने कहा कि कारण वह उनके गुरु के सामने ही बताएगा।

ब्राह्मण के सामने बकरे ने यह बतलाया कि वह भी कभी एक ब्राह्मण-पुरोहित था और एक बार उसने भी एक बकरे की बलि चढ़ायी थी, जिसकी सज़ा वह आज तक पा रहा था । तब से चार सौ निन्यानवे जन्मों में उसका गला काटा जा चुका था और अब उसका गले कटने की अंतिम बारी है। इस बार उसे एक बुरे कर्म का अंतिम दंड भुगतना था, इसलिए वह प्रसन्न होकर हँस रहा था। किन्तु वह दु:खी हो कर इसलिए रोया था कि अगली बार से उस ब्राह्मण के भी सिर पाँच सौ बार काटे जाएंगे।

ब्राह्मण ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और उसके बलि की योजना स्थगित कर दी तथा अपने शिष्यों से उसे पूर्ण संरक्षण की आज्ञा दी । किन्तु बकरे ने ब्राह्मण से कहा कि ऐसा संभव नहीं था क्योंकि कोई भी संरक्षण उसके कर्मों के विपाक को नष्ट नहीं कर सकते क्योंकि कोई भी प्राणी अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता ।

जब शिष्य-गण उस बकरे को ले कर उसे यथोचित स्थान पर पहुँचाने जा रहे थे । तभी रास्ते में किनारे एक पेड़ के शाखा पर नर्म-नर्म पत्तों को देख ज्योंही बकरे ने अपना सिर ऊपर किया, तभी एक वज्रपात हुआ और पेड़ के ऊपर पहाड़ी पर स्थित एक बड़े चट्टान के कई टुकड़े छिटके। एक बड़ा टुकड़ा उस बकरे के सिर पर इतनी ज़ोर से आ लगा कि पलक झपकते ही उसका सिर धड़ से अलग हो गया ।

अच्छी तरह से ध्यान दें: अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के  उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनाता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंधविश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उसको मानसिक विकृति कहते हैं । हमेशा कहानी का तार्किक नैतिकता को ही ज्ञान के रूप में स्वीकार करे अन्यथा केवल एक मनोरंजन ।

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