आज का हर एक भक्त भक्ति करके मानो एहसान कर रहा हो, भक्ति का अर्थ होता है प्रेम, लगाव न की सौदेबाजी लेकिन आज के भक्त यही कर रहे है. वह मंदिर जाते है इसलिए नहीं की उन्हें भगवान से प्रेम है, लगाव है; नहीं! बल्कि वह अपनी इच्छाओ की पूर्ति के लिये भगवान की भक्ति करते है. वह चाहते है की भगवान उनकी सेवा करे. यह गुरु भक्ति की कहानी पड़े.
एक साधु नदी के किनारे ध्यान मग्न अवस्था में बैठे थे उनके पास ही एक धोबी कपडे धो रहा था. कपडे धोते-धोते दोपहर होने को आई, यह वक्त धोबी के भोजन करने का होता था तो वह साधु से अपने गधों को देखने का कह-कर घर को भोजन करने चला गया.
जब भोजन करके धोबी लौटा तो उसने एक गधा कम पाया वह चरते-चरते कहीं चला गया था. और नजर नहीं आ रहा था. धोबी साधु पर गुस्से से लाल हो गया और उसने साधु को फटकारा, बडी देर तक बुरा-भला कहा, गाली-गलोच की साधु से जब बर्दाश्त न हुआ तो उसे भी ताव आ गया.
अब क्या था दोनो गुत्थम-गुत्था होने लगे, धोबी बलवान था उसने साधु को पछाड दिया और उसके सीने पर चढ बैठा. साधु ने शिकायत भरे लहजे में कहा मैं इतने दिनों से तपस्या कर रहा हूं पर आज विपत्ति के समय कोई देव तक मेरी रक्षा को नही आ रहा. तभी एक आवाज आयी देव तो रक्षा को आया है मगर उसे यह नहीं मालूम हो रहा कि साधु कौन हैं और धोबी कौन ?