एक समुराई जिसे उसके शौर्य, इमानदारी और सज्जनता के लिए जाना जाता था, एक बौद्ध सन्यासी से सलाह लेने पहुंचा । जब सन्यासी ने ध्यान पूर्ण कर लिया तब समुराई ने उससे पूछा, “ मैं इतना हीन क्यों महसूस करता हूँ ? मैंने कितनी ही लड़ाइयाँ जीती हैं, कितने ही असहाय लोगों की मदद की है । पर जब मैं और लोगों को देखता हूँ तो लगता है कि मैं उनके सामने कुछ नहीं हूँ, मेरे जीवन का कोई महत्त्व ही नहीं है ।” समुराई की समस्या “रुको; जब मैं पहले से एकत्रित हुए लोगों के प्रश्नों का उत्तर दे लूँगा तब तुमसे बात करूँगा ।” , सन्यासी ने जवाब दिया । समुराई इंतज़ार करता रहा , शाम ढलने लगी और धीरे-धीरे सभी लोग वापस चले गए । “ क्या अब आपके पास मेरे लिए समय है ?” , समुराई ने सन्यासी से पूछा । सन्यासी ने इशारे से उसे अपने पीछे आने को कहा, चाँद की रौशनी में सबकुछ बड़ा शांत और सौम्य था, सारा वातावरण बड़ा ही मोहक प्रतीत हो रहा था । “ तुम चाँद को देख रहे हो, वो कितना खूबसूरत है ! वो सारी रात इसी तरह चमकता रहेगा, हमें शीतलता पहुंचाएगा, लेकिन कल सुबह फिर सूरज निकल जायेगा, और सूरज की रौशनी तो कहीं अधिक तेज होती है, उसी की वजह से हम दिन में खूबसूरत पेड़ों, पहाड़ों और पूरी प्रकृति को साफ़ – साफ़ देख पाते हैं, मैं तो कहूँगा कि चाँद की कोई ज़रुरत ही नहीं है…। उसका अस्तित्व ही बेकार है !!” “ अरे ! ये आप क्या कह रहे हैं, ऐसा बिलकुल नहीं है ”- समुराई बोला, “ चाँद और सूरज बिलकुल अलग – अलग हैं, दोनों की अपनी-अपनी उपयोगिता है, आप इस तरह दोनों की तुलना नहीं कर सकते हैं ।”, समुराई बोला। “तो इसका मतलब तुम्हे अपनी समस्या का हल पता है । हर इंसान दूसरे से अलग होता है, हर किसी की अपनी – अपनी खूबियाँ होती हैं, और वो अपने – अपने तरीके से इस दुनिया को लाभ पहुंचाता है; बस यही प्रमुख है बाकि सब गौड़ है “, सन्यासी ने अपनी बात पूरी की।
हर इंसान दूसरे से अलग होता है
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