एक बार अकबर भरे दरबार में बैठे थे। अकबर के मन में अचानक एक विचार आया और उन्होंने सभी दरबारीयों से एक सवाल पूछा- क्या आप बता सकते हैं कि मेरी हथेलियों पर बाल क्यों नहीं है ? जहांपनाह हथेलीयों पर बाल होते ही नहीं है.
सभी दरबारीयों ने एक स्वर में कहा और गर्व से फूल गये कि उन्होंने बादशाह के सवाल का तुरन्त जवाब दिया मगर अकबर बादशाह को इस सीधे सादे उत्तर से क्या संतोष होना था. उन्होंने फिर पूछा क्यों नहीं होते ? सब दरबारी चूप क्या जवाब दें।
जब हथेली पर बाल नही होते तो नहीं होते, यह तो कुदरत की बात है. उन्हें चुप देखकर बादशाह ने बीरबल की तरफ देखा- बीरबल तुम्हारा क्या खयाल है ?
बीरबल ने कहा-
जहांपनाह आप रोज-रोज अनेक गरीबों को दान देते हैं जिससे आपकी हथेली लागातार घीसती रहती हैं इसलिए इस पर बाल नहीं उंग पाते.
बीरबल का जवाब सुनकर बादशाह खुष हो गये मगर तुरन्त ही उन्होंने पुछा – माना कि दान देते रहने से हमारी हथेली में बाल नहीं उग पाते लेकिन तुम्हारी हथेली में बाल क्यों नहीं है ?
जहांपनाह आप रोज मुझे ढेरों उपहार देते रहते हैं उन उपहारों को लेते-लेते मेरी हथेली भी तो घीसती हैं इसलिए मेरी हथेली मे बाल नहीं उगते.
बीरबल की चतुराई अकबर ने सोचा बीरबल तो बहुत चतुर निकला लेकिन आज वह बीरबल की पूरी परीक्षा लेना चाहते थे इसलिए फिर पूछा- तुम्हारी और मेरी हथेलीयां तो घीसती रहती हैं लेकिन हमारे अन्य दरबारीयों की हथेलीयों में भी बाल नहीं उगे इसका क्या कारण है?
बीरबल ने हसंते हुए कहा यह तो बिलकुल सरल बात हैं आलमपनाह आप मुझे प्रतिदिन उपहार देते रहते हैं इससे दरबारीयों को भारी ईष्या होती हैं और यह हमेशा हाथ मलते रहते हैं, यदि हथेलीयां लगातार घीसती रहे तो उन पर बाल कैसे उगेंगे। यह सुनकर अकबर खिलखिला कर हसं पडे। बीरबल से जलने वाले दरबारी और अधिक जल उठे।