कर्ण की निष्ठा एक राज पुत्र होते हुए भी कर्ण सूत पुत्र कहा गया। कर्ण एक महान दानवीर था। अपनें प्रण और वचन के लिए कर्ण अपनें प्राणों की भी बलि दे सकता था। पांडवों की शिक्षा खतम होने के बाद आयोजित रंग-भूमि में आकर कर्ण अर्जुन को ललकारता है कि अगर वह संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुरधर है तो उससे मुक़ाबला कर के सिद्ध करे। कर्ण एक सूत के घर पला-बढ़ा होता है, इसलिए उसे सूत पुत्र समझ कर अर्जुन से मुक़ाबला नहीं करने दिया जाता है। पांडवों के प्रखर विरोधी दुर्योधन को यहाँ एक अवसर दिखता है, और वह फौरन कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर देता है। और कर्ण को अपना मित्र बना लेता है। दुर्योधन के इस कृत्य से कर्ण के दुखते घावों पर मरहम लग जाता है। लेकिन समय सीमा खत्म होने के कारण रंगभूमि में कर्ण-अर्जुन का मुक़ाबला टल जाता है। पांडवो और कौरवों के अंतिम निर्णायक युद्ध के पहले भगवान कृष्ण कर्ण को यह भेद बताते हैं कि तुम एक पांडव हो और कुंती के ज्येष्ठ पुत्र हो। इस रहस्य को जान कर भी कर्ण अपनें मित्र दुर्योधन से घात कर के अपनें भाइयों की ओर नहीं जाता है। दिव्य कवच-कुंडल के साथ कर्ण अजेय था और महाभारत के युद्ध में पांडव कभी उसे परास्त नहीं कर पाते। अतः इन्द्रदेव उससे सुबह स्नान के समय ब्राह्मण स्वरूप में आ कर दान में कवच-कुंडल मांगते हैं। पिता सूर्य देव द्वारा दिखाए गए स्वप्न से कर्ण को यह बात पहले ही ज्ञात हो जाती है कि इंद्र देव उससे रूप बदल कर कवच-कुंडल मांगने आयेंगे। पर फिर भी दानवीर कर्ण ब्राह्मण रुपी इंद्र देव को खाली हाथ नहीं लौटता और उनकी मांग पूरी करता है। इंद्र देव कवच-कुंडल के बदले में कर्ण को एक शक्ति अस्त्र प्रदान करते हैं, जिसका इस्तेमाल सिर्फ एक बार किया जा सकता था और उसका कोई काट नहीं था। युद्ध के दौरान भीम का पुत्र घटोत्कच कौरव सेना को तिनकों की तरह उड़ाए जा रहा था। उसने दुर्योधन को भी लहूलहान कर दिया। तब दुर्योधन सहायता मांगने कर्ण के पास आया। कर्ण शक्ति अस्त्र सिर्फ अर्जुन पर इस्त्माल करना चाहता था, पर मित्रता से विवश हो कर उसने वह अस्त्र भीम पुत्र घटोत्कच कर चला दिया। और उसका अंत कर दिया। और इस तरह अर्जुन सुरक्षित हो गया। अपनें साथ दो-दो शापों का बोझ ले कर चल रहे कर्ण को यह बात पता थी की जहां धर्म है वहीं कृष्ण होते हैं और जहां कृष्ण है वहीं विजय भी होती है। फिर भी उसने न दुर्योधन के एहसान भूल कर उससे घात किया, और ना ही अपनी दानवीरता से कभी पीछे हटा। सार- हो सके तो किसी के ऋणी मत बनो, और एक बार अगर किसी के ऋणी बन ही जाओ तो ऋण चुकाने में आनाकानी मत करो। अगर कोई कुछ मांगने आए तो उसे निराश नहीं करना चाहिए, जितना संभवतः हो उसकी मदद करनी चाहिए।
अच्छी तरह से ध्यान दें: कुछ कहानियां मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए बस काल्पनिक और मन गढ़न होता है । कुछ कहानियों में कुछ सच्चाई होसकता है लेकिन कुछ धूर्त लेखक उस को ज्यादा ही कुछ बढ़ा चढ़ा के अपने बुरा इरादों को हासिल करने के लिए इस्तेमाल करते हैं । अगर किसी कहानी में वैज्ञानिक आधार और यौक्तिकता नहीं है तो इसे सत्य मानना या नैतिक ज्ञान समझना मूर्खता है । हालांकि कुछ कहानियाँ मनोरंजन और नीति ज्ञान के लिए क्यों न लिखा गया हो लेकिन ये ज्यादातर वर्ण व्यवस्था यानि जात पात, अंध विश्वास, तर्क हीनता, अज्ञानता, नफरत, धर्म, हिंसा और व्यक्ति विशेष के प्रचार और प्रसार के उद्देश्य से लिखागया धूर्त कहानियां है इसलिए ये कहानियाँ आपको पढ़ के उसके सच्चाई भी आप को जान ने की जरूरत है । कुछ कहानियाँ अच्छे बिचारोंसे क्यों न लिखा गया हो लेकिन कुछ धूर्त समय के साथ साथ उसमे बदलाव डाल के अपनी धर्म, वर्ग या व्यक्ति विशेष नाम से अपना प्रचार और प्रसार के लिए इस्तेमाल करते आ रहे हैं । ये सब बातों को आप अपनी साधारण ज्ञान और तार्किक आधार पर परखें और सच्चाई को अपने दिमाग का हिस्सा बनाये । जैसे अच्छा खाना एक अच्छा स्वास्थ्य बनता है, वैसे ही अच्छी ज्ञान अच्छी दिमाग बनाते हैं । अगर किसी व्यक्ति का काल्पनिक और मानसिक स्तर अगर वास्तविकता के साथ समानता नहीं है और अंध विश्वास के अधीन होकर अज्ञानता का अधिकारी बन जाये तो उस को मानसिक विकृति कहते हैं ।