सम्बोधि-प्राप्ति के पूर्व बुद्धों का किसी न किसी महिला के हाथों खीर का ग्रहण करना कोई अनहोनी घटना नहीं रही हैं। उदाहरणार्थ, विपस्सी बुद्ध ने सुदस्सन-सेट्ठी पुत्री से, सिखी बुद्ध ने पियदस्सी-सेट्ठी-पुत्री से, वेस्सयू बुद्ध ने सिखिद्धना से, ककुसंघ बुद्ध ने वजिरिन्धा से, कोमागमन बुद्ध ने अग्गिसोमा से, कस्सप बुद्ध अपनी पत्नी सुनन्दा से तथा गौतम बुद्ध ने सुजाता से खीर ग्रहण किया था।
पाँच तपस्वी साथियों के साथ वर्षों कठिन तपस्या करने के बाद गौतम ने चरम तप का मार्ग निर्वाण प्राप्ति के लिए अनिवार्य नहीं माना। तत: उन तपस्वियों से अलग हो वे जब अजपाल निग्रोध वृक्ष के नीचे बैठे तो उनमें मानवी संवेदनाओं के अनुरुप मानवीय आहार ग्रहण करने की इच्छा उत्पन्न हुई जिसे सुजाता नाम की महिला ने खीर अर्पण कर पूरा किया।
उस वृक्ष के नीचे एक बार उसवेला के निकटवर्ती सेनानी नाम के गाँव के एक गृहस्थ की पुत्री सुजाता ने प्रतिज्ञा की थी के पुत्र-रत्न प्रप्ति के बाद वह उस वृक्ष के निवासी को खीर-अर्पण करेगी । जब पुत्र-प्राप्ति की उसकी अभिलाषा पूर्ण हुई, तब उसने अपनी दासी पुनाना के उस वृक्ष के पास की जगह साफ करने को भेजा जहाँ उसे खीरार्पण करना था । जगह साफ करते समय पुनाना ने जब गौतम को उस पेड़ के नीचे बैठे देखा तो उन्हें ही उस पेड़ का निवासी समझ भागती हुई अपनी स्वामिनी को बुलाने गयी। प्रभु की उपस्थिति के समाचार से प्रसन्न सुजाता भी तत्काल वहाँ पहुँची और सोने की कटोरी में बुद्ध को खीर अर्पण किया।
बुद्ध ने उस कटोरी को ग्रहण कर पहले सुप्पतित्थ नदी में स्नान किया । तत्पश्चात् उन्होंने उस खीर का सेवन कर अपने उनचास दिनों का उपवास तोड़ा।