विज्ञान की भिन्न–भिन्न शाखाओं का वर्गीकरण ठीक उनके अध्ययन की वस्तुओं में निहित विशिष्ट अंतरविरोधों पर ही आधारित होता है। इस प्रकार एक खास किस्म के अंतरविरोध का, जो किसी खास घटना–क्रम के क्षेत्र में निहित होता है, अध्ययन करना विज्ञान की किसी विशेष शाखा की विषय–वस्तु बन जाता है। उदाहरणार्थ, गणित में धनात्मक और ऋणात्मक अंक; यंत्र विज्ञान में क्रिया और प्रतिक्रिया; भौतिक विज्ञान में धनात्मक और ऋणात्मक विद्युत; रसायन विज्ञान में विघटन और संघटन; सामाजिक विज्ञान में उत्पादक शक्तियां और उत्पादन संबंध, वर्ग और वर्ग के बीच का आपसी संघर्ष; सैन्य–विज्ञान में हमला और बचाव; दर्शन–शास्त्र में आदर्शवाद और भौतिकवाद, अध्यात्मवादी दृष्टिकोण और द्वन्द्ववादी दृष्टिकोण; वगैरह–वगैरह-इन सबका विज्ञान की भिन्न–भिन्न शाखाओं के रूप में अध्ययन ठीक इसलिए किया जाता है कि इनमें से प्रत्येक शाखा में एक विशेष अंतरविरोध मौजूद होता है तथा प्रत्येक शाखा में एक विशेष मूलवस्तु मौजूद रहती है। इसमें संदेह नहीं कि अंतरविरोध की सार्वभौमिकता को समझे बिना हम वस्तुओं की गति, वस्तुओं के विकास के सार्वभौमिक कारण या सार्वभौमिक आधार का किसी तरह पता नहीं लगा सकते; लेकिन अंतरविरोध की विशिष्टता का अध्ययन किए बिना हम किसी वस्तु की उस विशिष्ट मूलवस्तु का किसी तरह पता नहीं लगा सकते जो उस वस्तु को अन्य वस्तुओं से भिन्न बना देती है, वस्तु की गति, वस्तु के विकास के विशिष्ट कारण या विशिष्ट आधार का पता नहीं लगा सकते, एक वस्तु और दूसरी वस्तु के बीच के अंतर को नहीं पहचान सकते, और न ही विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के बीच भेद कर सकते हैं।
जहां तक मानव के ज्ञान की गति के क्रम का संबंध है, वह हमेशा अलग–अलग और विशिष्ट वस्तुओं के ज्ञान से आम वस्तुओं के ज्ञान की दिशा में कदम–ब–कदम विकसित होता है। मनुष्य सामान्यीकरण की ओर केवल तभी बढ़ सकता है और वस्तुओं में सामान्य रूप से मौजूद मूल वस्तु को सिर्फ तभी जान सकता है जब वह पहले अनेक भिन्न–भिन्न वस्तुओं में से प्रत्येक की विशिष्ट मूल–वस्तु को जान ले। जब मनुष्य इस सामान्य मूलवस्तु को जान लेता है, तब वह इस ज्ञान को एक मार्गदर्शक के रूप में प्रयोग करते हुए उन विभिन्न ठोस वस्तुओं का अध्ययन करने की तरफ, जिनका अभी तक अध्ययन नहीं हुआ है या गहन रूप से नहीं हुआ है, आगे बढ़ता है और उनमें से प्रत्येक की विशिष्ट मूलवस्तु का पता लगाता है; केवल इसी तरह वह उनकी सामान्य मूलवस्तु के बारे में अपने ज्ञान की पूर्ति कर सकता है, उसे समृद्ध और विकसित कर सकता है, और ऐसे ज्ञान को मुरझाने और पथराने से बचा सकता है। ज्ञानप्राप्ति की ये दो प्रक्रियाएं हैं : एक है विशिष्ट से सामान्य की ओर बढ़ना, और दूसरी है सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ना। इस प्रकार, मानव का ज्ञान हमेशा, बार–बार चक्के की भांति घूमता हुआ आगे बढ़ता है, और प्रत्येक घुमाव के साथ (यदि वह वैज्ञानिक रीति से पूर्णतया मेल खाता हो) मनुष्य का ज्ञान एक कदम आगे बढ़ता जाता है और इस तरह अधिकाधिक गहन होता जाता है। हमारे कठमुल्लावादी लोग जहां गलती करते हैं वह यह है कि एक तरफ तो वे यह नहीं समझ पाते कि अंतरविरोध की सार्वभौमिकता और विभिन्न वस्तुओं की सामान्य मूलवस्तु को पर्याप्त रूप से जानने के पहले हमें अंतरविरोध की विशिष्टता का अध्ययन करना होगा और अलग–अलग वस्तुओं की विशिष्ट मूलवस्तु को जानना होगा; दूसरी तरफ वे यह नहीं समझ पाते कि वस्तुओं की सामान्य मूलवस्तु को जानने के बाद हमें उन ठोस वस्तुओं के अध्ययन की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए जिनका अभी तक गहन अध्ययन नहीं हुआ है, या जो अभी नई–नई पैदा हुई हैं। हमारे कठमुल्लावादी लोग कामचोर हैं। वे ठोस वस्तुओं का मेहनत के साथ अध्ययन करने से इन्कार करते हैं, और सामान्य सत्यों को इस तरह देखते हैं मानो वे शून्य से टपक पड़े हों, और उनको ऐसे विशुद्ध अमूर्त फार्मूलों में बदल लेते हैं जो लोगों की समझ में नहीं आते, और इस प्रकार वे उस सामान्य क्रम को, जिसके जरिए मानव सत्य तक पहुंचता है, न केवल पूर्णयता ठुकरा देते हैं, बल्कि एकदम उलट भी देते हैं। न ही वे मानव की ज्ञानप्राप्ति की दो प्रक्रियाओं-विशिष्ट से सामान्य और सामान्य से विशिष्ट की ओर अग्रसर होने की प्रक्रियाओं-के अंतर–संबंधों को समझते हैं। वे मार्क्सवाद के ज्ञान–सिद्धांत को बिलकुल नहीं समझ पाते।
पदार्थ की गति के रूपों की प्रत्येक वृहत् प्रणाली में निहित विशिष्ट अंतरविरोधों और उन अंतरविरोधों से निर्धारित मूलवस्तु का अध्ययन करना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि यह भी आवश्यक है कि पदार्थ की गति के प्रत्येक रूप के विकास के लंबे दौर में उस की प्रत्येक प्रक्रिया के विशिष्ट अंतरविरोध और मूलवस्तु का भी अध्ययन किया जाए। गति के प्रत्येक रूप में विकास की वह प्रत्येक प्रक्रिया जो वास्तविक होती है (और काल्पनिक नहीं), गुणात्मक रूप से भिन्न होती है। अपने अध्ययन में हमें इसी बात पर जोर देना और इसी से आरंभ करना चाहिए।
गुणात्मक रूप से भिन्न अंतरविरोधों को केवल गुणात्मक रूप से भिन्न तरीकों से ही हल किया जा सकता है। मिसाल के तौर पर, सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के बीच के अंतरविरोध को समाजवादी क्रांति के तरीके से हल किया जाता है; विशाल जन–समुदाय और सामंती व्यवस्था के बीच के अंतरविरोध को जनवादी क्रांति के तरीके से हल किया जाता है; उपनिवेशों और साम्राज्यवाद के बीच के अंतरविरोध को राष्ट्रीय क्रांतिकारी युद्ध के तरीके से हल किया जाता है; समाजवादी समाज में मजदूर वर्ग और किसान वर्ग के बीच के अंतरविरोध को कृषि के सामूहिकीकरण और मशीनीकरण के तरीके से हल किया जाता है; कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर के अंतरविरोध को आलोचना और आत्म–आलोचना के तरीके से हल किया जाता है; समाज और प्रकृति के बीच के अंतरविरोध को उत्पादक शक्तियों का विकास करने के तरीके से हल किया जाता है। प्रक्रियाएं बदलती हैं, पुरानी प्रक्रियाएं और पुराने अंतरविरोध समाप्त हो जाते हैं, नई प्रक्रियाएं और नए अंतरविरोध उत्पन्न होते हैं, और उन्हीं के अनुरूप अंतरविरोधों को हल करने के तरीके भी भिन्न–भिन्न होते हैं। रूस में फरवरी क्रांति और अक्टूबर क्रांति ने जिन अंतरविरोधों को हल किया, वे एक दूसरे से मूल रूप से भिन्न थे और उनको हल करने के तरीके भी मूल रूप से भिन्न थे। भिन्न–भिन्न अंतरविरोधों को हल करने के लिए भिन्न–भिन्न तरीकों को इस्तेमाल करने का उसूल एक ऐसा उसूल है जिसका पालन मार्क्सवादी–लेनिनवादियों को सख्ती से करना चाहिए। कठमुल्लावादी इस उसूल का पालन नहीं करते; वे यह नहीं समझते कि विभिन्न क्रांतियों की परिस्थितियां भी भिन्न होती हैं। परिणामस्वरूप वे यह नहीं समझ पाते कि भिन्न–भिन्न अंतरविरोधों को हल करने के लिए भिन्न–भिन्न तरीकों को इस्तेमाल में लाना चाहिए; इसके विपरीत वे हमेशा एक ऐसे नुस्खे को अपनाते हैं जिसे वे अपरिवर्तनीय समझते हैं और उसे बिना सोचे–समझे हर जगह लागू करते हैं, जिससे क्रांति को नुकसान पहुंचता है या जिस काम को पहले अच्छी तरह किया जा सकता था वह गड़बड़घोटाले में पड़ जाता है।
किसी वस्तु के विकास की प्रक्रिया में अंतरविरोधों की विशिष्टता को उनकी समग्रता, उनके अंतर–संबंधों की रोशनी में प्रदर्शित करने के लिए, अर्थात उस वस्तु के विकास की प्रक्रिया की मूलवस्तु को प्रदर्शित करने के लिए हमें उस प्रक्रिया के प्रत्येक अंतरविरोध के दोनों पहलुओं की विशिष्टता को प्रदर्शित करना होगा; अन्यथा प्रक्रिया की मूलवस्तु को प्रदर्शित करना असंभव है। यह भी एक ऐसी बात है जिस पर हमें अपने अध्ययन में अधिकाधिक ध्यान देना चाहिए।
किसी भी बड़ी वस्तु के विकास की प्रक्रिया में अनेकों अंतरविरोध होतेहैं। उदाहरण के लिए,चीन की पूँजीवादी–जनवादी क्रांति की प्रक्रिया में, जहां की परिस्थिति अत्यंत जटिल है, चीनी समाज के तमाम उत्पीड़ित वर्गों और सम्राज्यवाद के बीच अंतरविरोध है, विशाल जन–समुदाय और सामंती व्यवस्था के बीच अंतरविरोध है, सर्वहारा वर्ग और पूंजीपति वर्ग के बीच अंतरविरोध है, एक तरफ किसान तथा शहरी निम्न–पूंजीपति वर्ग और दूसरी तरफ पूंजीपति वर्ग के बीच अंतरविरोध है, विभिन्न प्रतिक्रियावादी शासक गुटों के बीच अंतरविरोध है, वगैरह–वगैरह। इन तमाम अंतरविरोधों की अपनी–अपनी विशिष्टताएं हैं और इसलिए उन्हें एक ही तराजू से नहीं तोला जा सकता; यही नहीं, प्रत्येक अंतरविरोध के दोनों पहलुओं की भी अपनी–अपनी विशिष्टताएं होती हैं और इसलिए उन्हें भी एक जैसा नहीं समझा जा सकता। हम लोगों को, जो चीनी क्रांति के लिए काम करते हैं, न केवल अंतरविरोधों की विशिष्टताओं को उनकी समग्रता, अर्थात उनके अंतर–संबंधों की रोशनी में समझना चाहिए, बल्कि हम अंतरविराधों की समग्रता को सिर्फ तभी समझ सकते हैं जबकि हम प्रत्येक अंतरविरोध के दोनों पहलुओं का अध्ययन करें। किसी अंतरविरोध के प्रत्येक पहलू को समझने का अर्थ है यह समझना कि प्रत्येक पहलू की विशिष्ट स्थिति क्या है, प्रत्येक पहलू कौन से ठोस रूप में अपने विपरीत पहलू के साथ अंतर–निर्भरता व अंतरविरोध का संबंध रखता है, और अंतर–निर्भरता व अंतरविरोध का संबंध रखने में तथा अंतर–निर्भरता के खंडित हो जाने पर प्रत्येक पहलू अपने विपरीत पहलू के खिलाफ किन ठोस तरीकों द्वारा संघर्ष चलाता है। इन समस्याओं का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेनिन ने जब यह कहा था कि ठोस परिस्थितियों का ठोस रूप में विश्लेषण करना ही मार्क्सवाद की सबसे मूलभूत वस्तु है, मार्क्सवाद जीती–जागती आत्मा है,[10] तो वे ठीक इसी विचार को व्यक्त कर रहे थे। हमारे कठमुल्लावादी लोग लेनिन की शिक्षाओं के विरुद्ध चलते हैं; वे किसी भी वस्तु का ठोस विश्लेषण करने में अपने दिमाग से काम नहीं लेते, अपने लेखों तथा भाषणों में वे हमेशा घिसीपिटी शैली का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें विषय–वस्तु का बिलकुल अभाव होता है, और इस तरह वे हमारी पार्टी में एक अत्यंत बुरी कार्यशैली को जन्म देते हैं।