व्यवहार के बारे में – माओ त्से–तुङ, जुलाई 1937

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जब हम एक विशेष परिस्थिति में विपरीत तत्वों की एकरूपता की बात करते हैं, तो हम वास्तविक और ठोस विपरीत तत्वों की तथा विपरीत तत्वों के एक दूसरे में वास्तविक और ठोस रूप से परिवर्तित होने की ही बात करते हैं। पौराणिक कथाओं में अनगिनत रूपांतर देखने को मिलते हैं; उदाहरण के लिए, “शान हाए चिङ” में ख्वा फू द्वारा सूर्य का पीछा करना,[17] “ह्वाए नान चि” में ई का नौ सूरजों को मार गिराना,[18] “शी यओ ची” में वानरराज का बहत्तर बार रूप बदलना,[19] “ल्याओ चाए की विचित्र कहानियां”[20] में भूतों और लोमड़ियों के इन्सानों के रूप में बदल जाने के अनेक किस्से, आदि। लेकिन इन कथाओं में वर्णित विपरीत तत्वों के परस्पर रूपांतर ठोस अंतरविरोधों को प्रतिबिंबित करने वाले ठोस रूपांतर नहीं हैं। ये रूपांतर एक प्रकार के बचकाने, काल्पनिक, मनोगत रूप से सोचे हुए ऐसे रूपांतर हैं जो मानव–मस्तिष्क में वास्तविक विपरीत तत्वों के एक दूसरे में अनगिनत जटिल रूपांतरों के कारण होते हैं। मार्क्स ने कहा था : “तमाम पौराणिक कथाएं कल्पना में तथा कल्पना के सहारे प्रकृति की शक्तियों पर काबू पाती हैं, उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करती हैं और उन्हें साकार बनाती हैं; इसलिए मानव जैसे ही प्रकृति की शक्तियों पर काबू पाता है, वैसे ही पौराणिक कथाओं का लोप हो जाता है।”[21] ऐसी पौराणिक कथाओं के (और बाल–कथाओं के भी) अनंत रूपांतर लोगों का मनोरंजन इसीलिए करते हैं, क्योंकि उनमें प्रकृति की शक्तियों पर मानव की विजय का कल्पनापूर्ण वर्णन होता है, तथा उत्तम पौराणिक कथाओं में, जैसा कि मार्क्स ने कहा है, “चिरंतर रोचकता” होती है; लेकिन पौराणिक कथाएं एक विशेष परिस्थिति में मौजूद ठोस अंतरविरोधों पर आधारित नहीं होतीं और इसलिए वे यथार्थ को वैज्ञानिक ढंग से प्रतिबिंबित नहीं करतीं। तात्पर्य यह है कि पौराणिक कथाओं या बाल–कथाओं में अंतरविरोध के पहलुओं में केवल काल्पनिक एकरूपता होती है, न कि वास्तविक एकरूपता। जो चीज वास्तविक परिवर्तनों में निहित एकरूपता को वैज्ञानिक ढंग से प्रतिबिंबित करती है, वही मार्क्सवादी द्वन्द्ववाद है।

क्या कारण है कि अंडे को चूजे में रूपांतरित किया जा सकता है लेकिन पत्थर को नहीं ? क्या कारण है कि केवल युद्ध और शांति में ही एकरूपता है, तथा युद्ध और पत्थर में नहीं ? क्या कारण है कि इन्सान केवल इन्सान को ही जन्म दे सकता है, अन्य किसी चीज को नहीं ? इसका एकमात्र कारण यह है कि विपरीत तत्वों की एकरूपता केवल एक आवश्यक विशेष परिस्थिति में ही होती है। बिना इस आवश्यक विशेष परिस्थिति के किसी भी प्रकार की एकरूपता नहीं हो सकती।

क्या कारण है कि रूस में 1917 की पूंजीवादी–जनवादी फरवरी क्रांति उसी वर्ष की सर्वहारा समाजवादी अक्टूबर क्रांति के साथ प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी थी, जबकि फ्रांस में पूंजीवादी क्रांति प्रत्यक्ष रूप में किसी समाजवादी क्रांति से जुड़ी नहीं थी, और 1871 का पेरिस कम्यून अंत में असफल हो गया ? दूसरी ओर, इसका क्या कारण है कि मंगोलिया और मध्य एशिया में खानाबदोश जीवन–प्रणाली प्रत्यक्ष रूप से समाजवाद के साथ जुड़ गई है ? क्या कारण है कि चीनी क्रांति पश्चिमी देशों के पुराने ऐतिहासिक पथ पर चले बिना ही, पूंजीपति वर्ग के अधिनायकत्व के काल से गुजरे बिना ही, प्रत्यक्ष रूप से समाजवाद से जुड़ सकती है और पूंजीवादी भविष्य से अपने को बचा सकती है ? इसका एकमात्र कारण है समय–समय की ठोस परिस्थितियां। जब कुछ आवश्यक विशेष परिस्थितियां मौजूद होती हैं, तभी वस्तुओं के विकास की प्रक्रिया में कुछ निश्चित विपरीत तत्व उत्पन्न होते हैं; इतना ही नहीं, ये विपरीत तत्व (दो या दो से अधिक) एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं और एक दूसरे में बदल जाते हैं; अन्यथा इनमें से एक भी बात संभव नहीं।

यही एकरूपता की समस्या है। तब फिर संघर्ष क्या है ? और एकरूपता तथा संघर्ष के बीच क्या संबंध है ?

लेनिन ने कहा था :

विपरीत तत्वों की एकता (संयोग, एकरूपता, समान कार्रवाई) परिस्थितिबद्ध, क्षणिक, अस्थाई और सापेक्ष होती है। एक दूसरे को बहिष्कृत करने वाले विपरीत तत्वों का संघर्ष, विकास और गति के समान ही, निरपेक्ष होता है।[22]

इस कथन का क्या अर्थ है ?

सभी प्रक्रियाओं का आदि और अंत होता है; सभी प्रक्रियाएं अपने विपरीत तत्वों में रूपांतरित होती हैं। सभी प्रक्रियाओं की स्थिरता सापेक्ष होती है, किंतु एक प्रक्रिया के दूसरी प्रक्रिया में रूपांतरित होने में दिखाई देने वाली परिवर्तनशीलता निरपेक्ष होती है।

सभी वस्तुओं की गति की दो अवस्थाएं होती हैं : सापेक्ष स्थिरता की अवस्था और प्रत्यक्ष परिवर्तन की अवस्था। ये दोनों अवस्थाएं किसी वस्तु में निहित दो परस्पर विरोधी तत्वों के संघर्ष से उत्पन्न होती हैं। जब किसी वस्तु की गति पहली अवस्था में होती है, तब उसमें केवल परिमाणात्मक परिवर्तन होता है, न कि गुणात्मक परिवर्तन, और इसलिए वह ऊपर से स्थिरता की अवस्था में प्रतीत होती है। जब वस्तु की गति दूसरी अवस्था में होती है, तो उस समय तक पहली अवस्था का परिमाणात्मक परिवर्तन एक चरमबिंदु पर पहुंच चुका होता है, और वह एक इकाई वाली उस वस्तु का विघटन कर देता है, तथा उसमें गुणात्मक परिवर्तन हो जाता है, जिसके फलस्वरूप उसमें प्रत्यक्ष परिवर्तन प्रकट हो जाता है। ऐसी एकता, एकजुटता, सम्मिलन, सामंजस्य, साम्य, ठहराव, गतिरोध, स्थिरता, स्थायित्व, संतुलन, सघनता, आकर्षण, आदि, जिन्हें हम दैनिक जीवन में देखते हैं, सभी परिमाणात्मक परिवर्तन की अवस्था से गुजरती हुई वस्तुओं के रूप हैं। दूसरी ओर, एकता का विघटन, अर्थात इस एकजुटता, सम्मिलन, सामंजस्य, साम्य, ठहराव, गतिरोध, स्थिरता, स्थायित्व, संतुलन, सघनता व आकर्षण का विनाश, और उनका अपनी विपरीत अवस्थाओं में परिवर्तन, ये सभी गुणात्मक परिवर्तन की अवस्था से गुजरती हुई वस्तुओं के, एक प्रक्रिया के दूसरी प्रक्रिया में रूपांतर के रूप हैं। गति की पहली अवस्था से दूसरी अवस्था में वस्तुओं का लगातार रूपांतर होता रहता है; विपरीत तत्वों का संघर्ष दोनों ही अवस्थाओं में चलता रहता है, लेकिन अंतरविरोध का हल दूसरी अवस्था में ही होता है। इसलिए हम कहते हैं कि विपरीत तत्वों की एकता परिस्थितिबद्ध, अस्थाई और सापेक्ष है, जबकि एक दूसरे को बहिष्कृत करने वाले विपरीत तत्वों का संघर्ष निरपेक्ष है।

जब हमने ऊपर यह कहा कि दो विपरीत वस्तुएं एक ही इकाई में सह–अस्तित्व की स्थिति में रह सकती हैं और एक दूसरे में रूपांतरित भी हो सकती हैं, क्योंकि उनमें एकरूपता होती है, तब हम परिस्थितिबद्धता का उल्लेख कर रहे थे, अर्थात यह कि एक विशेष परिस्थिति में दो अंतरविरोधपूर्ण वस्तुएं एकताबद्ध हो सकती हैं और एक दूसरे में रूपांतरित भी हो सकती हैं, किंतु ऐसी परिस्थिति के न होने पर वे एक अंतरविरोध का रूप धारण नहीं कर सकतीं, एक ही इकाई में सह–अस्तित्व की स्थिति में नहीं रह सकतीं और एक दूसरे में रूपांतरित नहीं हो सकतीं। चूंकि अंतरविरोध की एकरूपता केवल एक विशेष परिस्थिति में ही उत्पन्न होती है, इसलिए हम एकरूपता को परिस्थितिबद्ध और सापेक्ष कहते हैं। यहां हम इतनी बात और कहना चाहते हैं कि विपरीत तत्वों के बीच संघर्ष किसी प्रक्रिया के आरंभ से अंत तक चलता है और एक प्रक्रिया के दूसरी में बदल जाने का कारण होता है, और यह संघर्ष हर जगह मौजूद रहता है, तथा इसलिए संघर्ष परिस्थितियों से परे और निरपेक्ष होता है।

परिस्थितिबद्ध, सापेक्ष एकरूपता और परिस्थितियों से परे, निरपेक्ष संघर्ष का सम्मिलन सभी वस्तुओं में अंतरविरोधों की गति को जन्म देते हैं।

हम चीनी अक्सर कहा करते हैं : “वस्तुएं जहां एक दूसरे के विपरीत होती हैं, वहां एक दूसरे की पूरक भी होती हैं।”[23] अर्थात, विपरीत वस्तुओं में एकरूपता होती है। यह कथन द्वन्द्वात्मक है, और अध्यात्मवाद के विपरीत है। “एक दूसरे के विपरीत होने” का अर्थ है दोनों परस्पर विरोधी पहलुओं का एक दूसरे को बहिष्कृत करना या एक दूसरे से संघर्ष करना। “एक दूसरे के पूरक होने” का अर्थ है एक विशेष परिस्थिति में दोनों परस्पर विरोधी पहलुओं का एकताबद्ध होना और एकरूपता प्राप्त करना। फिर भी संघर्ष एकरूपता में निहित होता है; और बिना संघर्ष के कोई एकरूपता संभव नहीं।

एकरूपता में संघर्ष मौजूद रहता है, विशिष्टता में सार्वभौमिकता मौजूद रहती है, व्यक्तिगत स्वरूप में सामान्य स्वरूप मौजूद रहता है। लेनिन के शब्दों में, “…सापेक्ष में निरपेक्ष मौजूद रहता है।”[24]

  1. अंतरविरोध में शत्रुता का स्थान

शत्रुता क्या है ?-यह एक ऐसा प्रश्न है जो विपरीत तत्वों के बीच के संघर्ष के प्रश्न में शामिल है। हमारा उत्तर है : शत्रुता विपरीत तत्वों के बीच के संघर्ष का एक रूप तो है, लेकिन उसका एकमात्र रूप नहीं है।

मानव–इतिहास में वर्गों के बीच की शत्रुता विपरीत तत्वों के बीच के संघर्ष की एक विशिष्ट अभिव्यक्ति के रूप में मौजूद रहती है। जरा शोषक वर्ग और शोषित वर्ग के बीच के अंतरविरोध पर तो गौर कीजिए। ऐसे परस्पर विरोधी वर्ग लंबे अरसे तक एक ही समाज में, चाहे वह दास समाज हो अथवा सामंती या पूंजीवादी समाज, सह–अस्तित्व की स्थिति में रहते हैं, और आपस में संघर्ष करते रहते हैं; लेकिन जब तक इन दोनों वर्गों के बीच का अंतरविरोध विकसित होकर एक खास मंजिल पर नहीं पहुंच जाता, तब तक यह अंतरविरोध एक खुली शत्रुता का रूप धारण नहीं करता और क्रांति में विकसित नहीं होता। वर्ग–समाज के अंदर शांति का युद्ध में रूपांतर भी ऐसे ही होता है।

विस्फोट के पहले बम एक ऐसी इकाई होता है जिसमें विपरीत तत्व एक विशेष परिस्थिति में सह–अस्तित्व की स्थिति में रहते हैं। विस्फोट तभी होता है जब एक नई परिस्थिति, प्रज्वलन, पैदा हो जाती है। ऐसी ही स्थिति उन तमाम प्राकृतिक घटनाओं में पैदा होती है जो पुराने अंतरविरोधों को हल करने और नई वस्तुओं को उत्पन्न करने के लिए अंत में खुले विरोध का रूप धारण करती हैं।

इस बात को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे हम यह समझ जाते हैं कि वर्ग–समाज में क्रांतियों और क्रांतिकारी युद्धों का होना अनिवार्य है, और उनकी अनुपस्थिति में सामाजिक विकास के क्षेत्र में छलांग लगाना असंभव है, प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों को उखाड़ फेंकना असंभव है और इसलिए जनता द्वारा राजनीतिक सत्ता पर अधिकार करना असंभव है। कम्युनिस्टों को चाहिए कि वे प्रतिक्रियावादियों के इस तमाम झूठे प्रचार का भण्डाफोड़ कर दें कि सामाजिक क्रांति अनावश्यक और असंभव है। उन्हें चाहिए कि वे सामाजिक क्रांति के मार्क्सवादी–लेनिनवादी सिद्धांत को मजबूती के साथ बुलंद रखें, और लोगों को यह समझाएं कि सामाजिक क्रांति न केवल पूर्णत: आवश्यक है, बल्कि पूर्णत: व्यावहारिक भी है, और यह कि मानव जाति का सम्पूर्ण इतिहास और सोवियत संघ की विजय इस वैज्ञानिक सच्चाई की पुष्टि करती है।

बहरहाल, हमें विपरीत तत्वों के बीच चलने वाले विभिन्न संघर्षों की परिस्थितियों का ठोस रूप से अध्ययन करना चाहिए और ऊपर बताए गए फार्मूले को हर वस्तु पर अनुचित ढंग से लागू नहीं करना चाहिए। अंतरविरोध और संघर्ष सार्वभौमिक और निरपेक्ष होते हैं, लेकिन अंतरविरोधों को हल करने के तरीके, अर्थात संघर्ष के रूप अंतरविरोधों के भिन्न–भिन्न स्वरूपों के अनुसार अलग–अलग होते हैं। कुछ अंतरविरोधों में खुली शत्रुता मौजूद रहती है और कुछ में नहीं। वस्तुओं के ठोस विकास के अनुसार, कुछ अंतरविरोध जो शुरू में अशत्रुतापूर्ण होते हैं, विकसित होकर शत्रुतापूर्ण बन जाते हैं, जबकि अन्य अंतरविरोध जो शुरू में शत्रुतापूर्ण होते हैं, विकसित होकर अशत्रुतापूर्ण बन जाते हैं।

जैसा कि हमने ऊपर बताया है, जब तक समाज में वर्ग मौजूद हैं, तब तक कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर सही विचारों और गलत विचारों के बीच के अंतरविरोध, पार्टी के अंदर वर्ग–अंतरविरोध को ही प्रतिबिंबित करते रहेंगे। आरंभ में, कुछ मामलों में, यह जरूरी नहीं कि ऐसे अंतरविरोध तत्काल ही शत्रुतापूर्ण बन जाएं। लेकिन वर्ग–संघर्ष के विकास के साथ–साथ विकसित होकर वे शत्रुतापूर्ण बन सकते हैं। सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास यह बताता है कि लेनिन और स्तालिन के सही विचारों तथा त्रात्सकी, बुखारिन व अन्य लोगों के गलत विचारों के बीच के अंतरविरोध शुरू में शत्रुतापूर्ण रूप में प्रकट नहीं हुए थे, लेकिन बाद में वे विकसित होकर शत्रुतापूर्ण बन गए। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के इतिहास में भी ऐसी मिसालें मौजूद हैं। पार्टी में हमारे अनेक साथियों के सही विचारों और छन तू–श्यू, चाङ क्वो–थाओ तथा अन्य लोगों के गलत विचारों के बीच के अंतरविरोध भी पहले शत्रुतापूर्ण रूप में प्रकट नहीं हुए थे, किंतु बाद में वे विकसित होकर शत्रुतापूर्ण बन गए। इस समय हमारी पार्टी में सही विचारों और गलत विचारों के बीच के अंतरविरोध का रूप शत्रुतापूर्ण नहीं है, और यदि वे साथी, जिन्होंने गलतियां की हैं, अपनी गलतियों को सुधार लें, तो वह विकसित होकर शत्रुतापूर्ण रूप नहीं धारण करेगा। इसलिए, पार्टी को एक तरफ गलत विचारों के विरुद्ध गंभीर संघर्ष चलाना चाहिए, और दूसरी तरफ, उन साथियों को जिन्होंने गलतियां की हैं, चेतने का पर्याप्त अवसर देना चाहिए। जाहिर है कि ऐसी परिस्थितियों में, सीमा से बाहर संघर्ष चलाना उचित नहीं है। किंतु गलतियां करने वाले लोग यदि अपनी गलतियों पर अड़े रहते हैं तथा और गंभीर गलतियां करते हैं, तो हो सकता है कि यह अंतरविरोध विकसित होकर शत्रुतापूर्ण अंतरविरोध बन जाए।

आर्थिक दृष्टि से, पूंजीवादी समाज में, जहां पूंजीपति वर्ग के शासन के अंतर्गत शहर द्वारा देहात की निर्मम लूट–खसोट होती है और चीन के क्वोमिंताङ शासित इलाकों में, जहां विदेशी साम्राज्यवाद और चीन के बड़े दलाल–पूंजीपतियों के वर्ग के शासन के अंतर्गत शहर द्वारा देहात की अत्यंत अमानुषिक लूट–खसोट होती है, शहर और देहात के बीच का अंतरविरोध अत्यंत शत्रुतापूर्ण अंतरविरोध बन जाता है। किंतु किसी समाजवादी देश में और हमारे क्रांतिकारी आधार–क्षेत्रों में, यह शत्रुतापूर्ण अंतरविरोध एक अशत्रुतापूर्ण अंतरविरोध में बदल चुका है; और कम्युनिस्ट समाज बन जाने पर यह समाप्त हो जाएगा।

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