ज्ञान के विकास की प्रक्रिया का यह द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धांत, जो व्यवहार पर आधारित है और उथलेपन से गहरेपन की ओर चलता है, मार्क्सवाद के उदय से पहले किसी ने प्रस्तुत नहीं किया था। मार्क्सवादी भौतिकवाद ने पहली बार इस समस्या का सही समाधान प्रस्तुत किया। उसने भौतिकवादी और द्वन्द्वात्मक इन दोनों तरीकों से दिखला दिया कि ज्ञानप्राप्ति की क्रिया अधिकाधिक गंभीर होती जाती है, एक ऐसी क्रिया जिसके जरिए सामाजिक मनुष्य उत्पादन–क्रिया और वर्ग–संघर्ष के पेचीदा और नियमित रूप से बार–बार होने वाले व्यवहार के दौरान इंद्रियग्राह्य ज्ञान से तर्कसंगत ज्ञान की ओर प्रगति करता है। लेनिन ने कहा था, “पदार्थ का अमूर्तीकरण, प्रकृति के नियम का अमूर्तीकरण, आर्थिक मूल्य का अमूर्तीकरण इत्यादि, संक्षेप में सभी वैज्ञानिक अमूर्तीकरण (जो सही और गंभीर हों, बेहूदा नहीं), अधिक गहराई, सच्चाई और पूर्णता से प्रकृति को प्रतिबिंबित करते रहते हैं।”(3) मार्क्सवाद–लेनिनवाद का मत है कि ज्ञानप्राप्ति की प्रक्रिया की दोनों मंजिलों की अपनी अलग–अलग विशेषताएं होती हैं : निचली मंजिल में ज्ञान इंद्रियग्राह्य रूप में प्रकट होता है, जबकि ऊंची मंजिल में वह अपने तर्कसंगत रूप में प्रकट होता है; लेकिन ये दोनों ही मंजिलें ज्ञानप्राप्ति की एक सम्पूर्ण प्रक्रिया की ही मंजिलें हैं। इंद्रियग्राह्य ज्ञान और बुद्धिसंगत ज्ञान के बीच गुणात्मक अंतर होता है, लेकिन वे एक दूसरे से अलग नहीं होते; व्यवहार के आधार पर उनके बीच एकता कायम होती है। हमारा व्यवहार यह साबित करता है कि जिन वस्तुओं का इंद्रिय–संवेदन हमें होता है, उनकी समझ तुरंत हासिल नहीं हो जाती, तथा जिन वस्तुओं की समझ हासिल हो जाती है, उनका इंद्रिय–संवेदन तभी अधिक गहरा हो सकता है। इंद्रिय–संवेदन केवल रूप की ही समस्या को हल करता है; सारतत्व की समस्या को केवल सिद्धांत ही हल कर सकता है। इन दोनों समस्याओं को व्यवहार से अलग कतई हल नहीं किया जा सकता। यदि कोई मनुष्य किसी चीज को जानना चाहता हो, तो उसके सामने सिवाय इसके और कोई रास्ता नहीं कि वह उस चीज के सम्पर्क में आए, यानी उसके वातावरण में रहे (अमल करे)। सामंती समाज में पूंजीवादी समाज के नियमों को पहले से ही जान लेना असंभव था, क्योंकि पूंजीवाद का अभी उदय ही नहीं हुआ था और उससे संबंधित व्यवहार का भी अभाव था। मार्क्सवाद केवल पूंजीवादी समाज की ही उपज हो सकता है। स्वच्छंदतावादी पूंजीवाद वाले युग में मार्क्स पहले से ही साम्राज्यवादी युग के विशेष नियमों को ठोस रूप से नहीं जान सकते थे, क्योंकि साम्राज्यवाद-पूंजीवाद की आखिरी मंजिल-का अभी प्रादुर्भाव नहीं हुआ था और उससे संबंधित व्यवहार का भी अभाव था। यह कार्य केवल लेनिन और स्तालिन ही कर सकते थे। मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन और स्तालिन अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन क्यों कर सके, इसका कारण उनकी प्रतिभा के अलावा मुख्यत: यह है कि उन्होंने अपने समय के वर्ग–संघर्ष और वैज्ञानिक प्रयोगों के अमल में व्यक्तिगत रूप से भाग लिया था; इस शर्त के बिना किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति को भी सफलता न मिल पाती। यह कहावत कि “विद्वान लोग घर बैठे ही संसार की सारी बातें जान लेते हैं”, तकनोलाजी की दृष्टि से अविकसित अतीत काल में महज कोरी गप थी। हालांकि तकनोलाजी की दृष्टि से विकसित वर्तमान युग में यह कहावत चरितार्थ हो सकती है, फिर भी दुनिया में हर जगह सच्चा व्यक्तिगत ज्ञान उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है जो व्यवहार में लगे होते हैं। जब वे लोग अपने व्यवहार के जरिए “ज्ञान” प्राप्त कर लेते हैं और जब उनका ज्ञान लेखन और तकनीक के माध्यम से “विद्वान” तक पहुंचता है, सिर्फ तभी विद्वान अप्रत्यक्ष रूप से “संसार की सारी बातें जान लेता है”। अगर आप किसी चीज को या किसी तरह की चीजों को प्रत्यक्ष रूप से जानना चाहते हैं तो आप वास्तविकता को बदलने, उस चीज को या उस तरह की चीजों को बदलने के व्यावहारिक संघर्ष में व्यक्तिगत रूप से भाग लेकर ही उस चीज के या उस तरह की चीजों के रूपों से सम्पर्क कायम कर सकते हैं; वास्तविकता को बदलने के व्यावहारिक संघर्ष में व्यक्तिगत रूप से भाग लेकर ही आप उस चीज के या उस तरह की चीजों के सारतत्व का पता लगा सकते हैं और उन्हें समझ सकते हैं। वास्तव में हर आदमी ज्ञान के इसी मार्ग पर चलता है, हालांकि कुछ लोग जानबूझकर इस तथ्य को तोड़ते–मरोड़ते हैं और इसके विपरीत तर्क पेश करते हैं। संसार में सबसे हास्यास्पद वह “ज्ञानी” है जो इधर–उधर से सुनकर कुछ अधकचरा ज्ञान प्राप्त कर लेता है और अपने को “विश्व का परमज्ञानी” घोषित कर देता है; इससे केवल यह प्रकट होता है कि उसने अभी ठीक से अपनी थाह नहीं ली। ज्ञान एक वैज्ञानिक वस्तु है और इस मामले में जरा भी बेईमानी या घमण्ड की इजाजत नहीं दी जा सकती। इससे बिलकुल उल्टा रुख-ईमानदारी और नम्रता-निश्चित रूप से आवश्यक है। यदि आप ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको वास्तविकता को बदलने के व्यवहार में भाग लेना होगा। यदि आप नाशपाती का स्वाद जानना चाहते हैं तो आपको उसे स्वयं खाकर उसके वास्तविक रूप को बदलना होगा। यदि आप परमाणु के रचना–विधान और गुण–धर्म को समझना चाहते हैं तो आपको परमाणु की अवस्था बदलने के लिए भौतिक और रासायनिक प्रयोग करने होंगे। यदि आप क्रांति के सिद्धांत और तरीके जानना चाहते हैं, तो आपको क्रांति में भाग लेना होगा। सभी प्रकार का सच्चा ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से ही उत्पन्न होता है। लेकिन मनुष्य को हर बात का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हो सकता; वास्तव में हमारा अधिकांश ज्ञान अप्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त होता है, जैसे प्राचीन काल से और विदेशों से प्राप्त होने वाला सारा ज्ञान। हमारे पूर्वजों और विदेशियों को ऐसा ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त हुआ है। यदि उन लोगों के प्रत्यक्ष अनुभव के दौरान लेनिन द्वारा बताई गई “वैज्ञानिक अमूर्तीकरण” की शर्त पूरी हो गई हो और वस्तुगत यथार्थ को वैज्ञानिक ढंग से प्रतिबिंबित किया गया हो, तभी यह ज्ञान विश्वनीय होता है, अन्यथा नहीं। इसलिए मनुष्य के ज्ञान के केवल दो भाग होते हैं-प्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त होने वाला ज्ञान और अप्रत्यक्ष अनुभव से प्राप्त होने वाला ज्ञान। साथ ही जो कुछ मेरे लिए अप्रत्यक्ष अनुभव है, वह दूसरों के लिए प्रत्यक्ष अनुभव है। अतएव ज्ञान को यदि हम उसकी समग्रता में लें, तो हर तरह का ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। किसी भी ज्ञान का स्रोत वस्तुगत बाह्य जगत का मनुष्य की इंद्रियों द्वारा होने वाला संवेदन है। यदि कोई इस तरह के इंद्रिय–संवेदन को अस्वीकार करता है, प्रत्यक्ष अनुभव को अस्वीकार करता है अथवा वास्तविकता को बदलने के व्यवहार में व्यक्तिगत रूप से भाग लेने की बात को अस्वीकार करता है, तो वह भौतिकवादी नहीं है। इसीलिए “ज्ञानी” लोग हास्यास्पद ठहरते हैं। चीन में एक पुरानी कहावत है, “बाघ की मांद में घुसे बिना बाघ के बच्चे कैसे मिल सकते हैं ?” यह कहावत मनुष्य के व्यवहार के लिए सच्ची साबित होती है और यह ज्ञान–सिद्धांत के लिए भी सच्ची साबित होती है। व्यवहार से अलग ज्ञान का अस्तित्व नहीं हो सकता।
व्यवहार के बारे में (ज्ञान और व्यवहार, जानने और कर्म करने के आपसी संबंध के बारे में) – माओ त्से–तुङ, जुलाई 1937
किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
loading...
You may also like
लोकप्रिय
सोसिओपैथ
इंडिया का बुद्ध सभ्यता
-
हिंदी क्या है?
इंडिया का सबसे बड़ा अंधविश्वास और मानसिक विकृति
- गौतम बुद्ध के 101 अनमोल विचार
- गौतम बुद्ध के 53 प्रेरक अनमोल विचार
- असामाजिक व्यक्तित्व विकार
- चार्वाक
- प्रचार के शिकार
- मैं नास्तिक क्यों हूँ? (भगत सिंह )
- डा. अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाएँ
भारत की खोज
- सम्पूर्ण चाणक्य नीति
- डारविन की ७ वादा
- हिन्दू धर्म और नैतिक यौन बिकृति
-
गेब्रियल भ्रम
All Topics
किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
loading...
क्रमरहित सूची
- चाणक्य नीति : द्वितीय अध्याय
- तीन मछलियां
- नेवले और सांप
- वृद्ध सन्यासी
- वादा
- अधूरापन
- सम्पूर्ण चाणक्य नीति
- चन्दन का बाग
- मोहम्मद युनुस के अनमोल विचार
- गरीक बादशाह और हकीम दूबाँ की कहानी – अलिफ लैला
- बादशाह का नौकर
- आपका जैसे चाहें है, आप की जीवन वैसा हो जायेगा
- एक कॉकरोच
- नज़रिया
- लेनिन मृत्यु वार्षिकी पर तार – भगत सिंह (1930)
- परेशान चिड़िया
- लँगड़े आदमी की कहानी – अलिफ लैला
- मेरे नाम का गुब्बारा !
- पांच बंदर प्रयोग
- कबीर के दोहे – भक्त/Devotee
- तेइसवीं पुतली – धर्मवती ~ मनुष्य जन्म से बड़ा होता है या कर्म से
- भले आदमी और ईर्ष्यालु पुरुष की कहानी – अलिफ लैला
- कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण के प्रेरक कथन
- बुरी आदत
- स्त्री-भक्त राजा ~ पंचतंत्र
- दौड़
- अच्छे लोग बुरे लोग !
- सियार की रणनीति ~ पंचतंत्र
- शेर और मूर्ख गधा ~ पंचतंत्र
- इक्कीसवीं पुतली – चन्द्रज्योति ~ विक्रमादित्य और दुर्लभ ख्वांग बूटी
- एक धर्म गुरु को छोटी लड़की का जवाब
- बीता हुआ कल
- मुट्ठी भर लोग
- अरस्तु के अनमोल विचार
- लड़ती भेड़ें और सियार ~पंचतंत्र
- सुखद भविष्य की तैयारी
- तीन साधू
- गार्बेज ट्रक
- कहाँ गयी तीसरी बकरी?
- दो हंसों की कहानी -जातक कथा
- सिवि का त्याग -जातक कथा
- फुस्स बुद्ध -जातक कथा
- कार्ल मार्क्स के अनमोल विचार
- जो चाहोगे सो पाओगे !
- दानव-केकड़ा -जातक कथा
- सिंदबाद जहाजी की पाँचवीं यात्रा – अलिफ लैला
- सपेरी और बंदर -जातक कथा
- धरती फट रही है !
- पति कौन ? बेताल पच्चीसी – दूसरी कहानी!
- छब्बीसवीं पुतली – मृगनयनी ~ रानी का विश्वासघात
Recent Posts
- गेब्रियल भ्रम
- हिन्दू धर्म और नैतिक यौन बिकृति
- नियोग
- पंचतंत्र की सम्पूर्ण कहानियाँ
- बन्दर और लकड़ी का खूंटा ~ पंचतंत्र
- सियार और ढोल ~ पंचतंत्र
- व्यापारी का पतन और उदय ~ पंचतंत्र
- मूर्ख साधू और ठग ~ पंचतंत्र
- लड़ती भेड़ें और सियार ~पंचतंत्र
- दुष्ट सर्प और कौवे ~ पंचतंत्र
- बगुला भगत और केकड़ा ~ पंचतंत्र
- चतुर खरगोश और शेर ~ पंचतंत्र
- खटमल और बेचारी जूं ~ पंचतंत्र
- नीले सियार की कहानी ~ पंचतंत्र
- शेर, ऊंट, सियार और कौवा ~ पंचतंत्र
- मूर्ख बातूनी कछुआ ~ पंचतंत्र
- तीन मछलियां ~ पंचतंत्र
- गौरैया और हाथी ~पंचतंत्र
- सिंह और सियार ~ पंचतंत्र
- चिड़िया और बन्दर ~ पंचतंत्र
- मित्र-द्रोह का फल ~ पंचतंत्र
- गौरैया और बन्दर ~ पंचतंत्र
- टिटिहरी का जोडा़ और समुद्र का अभिमान ~ पंचतंत्र
- मूर्ख बगुला और नेवला ~ पंचतंत्र
- जैसे को तैसा ~ पंचतंत्र
- मूर्ख मित्र ~ पंचतंत्र
- साधु और चूहा ~ पंचतंत्र
- गजराज और मूषकराज की कथा ~ पंचतंत्र
- सियार की रणनीति ~ पंचतंत्र
- बूढा आदमी, युवा पत्नी और चोर ~ पंचतंत्र
- सांप की सवारी करने वाले मेढकों की कथा ~ पंचतंत्र
- बकरा, पुजारी और तीन ठग ~ पंचतंत्र
- व्यापारी के पुत्र की कहानी ~ पंचतंत्र
- बंदर का कलेजा और मगरमच्छ ~ पंचतंत्र
- बोलने वाली गुफा ~ पंचतंत्र
- लालची नाग और मेढकों का राजा ~ पंचतंत्र
- पुजारी और सर्प की कथा ~ पंचतंत्र
- संगीतमय गधा ~ पंचतंत्र
- पुजारी का पत्नी और तिल के बीज ~ पंचतंत्र
- अभागा बुनकर ~ पंचतंत्र
- कौवे और उल्लू के बैर की कथा ~पंचतंत्र
- धूर्त बिल्ली का न्याय ~ पंचतंत्र
- कबूतर का जोड़ा और शिकारी ~ पंचतंत्र
- कौवे और उल्लू का युद्ध ~ पंचतंत्र
- हाथी और चतुर खरगोश ~ पंचतंत्र
- पुजारी, चोर, और दानव की कथा ~ पंचतंत्र
- दो सांपों की कथा ~ पंचतंत्र
- चुहिया का स्वयंवर ~ पंचतंत्र
- सुनहरे विष्ठा की कथा ~ पंचतंत्र
- शेर और मूर्ख गधा ~ पंचतंत्र
- कुम्हार की कहानी ~ पंचतंत्र
- गीदड़ गीदड़ ही रहता है ~ पंचतंत्र
- गधा और धोबी ~ पंचतंत्र
- कुत्ता जो विदेश चला गया ~ पंचतंत्र
- स्त्री का विश्वास ~ पंचतंत्र
- अविवेक का मूल्य ~ पंचतंत्र
- स्त्री-भक्त राजा ~ पंचतंत्र
- लोभी नाई ~ पंचतंत्र
- पुजारी पत्नी और नेवला की कथा~ पंचतंत्र
- लोभी पुजारियां ~ पंचतंत्र
- तीन मूर्ख-पंडित ~ पंचतंत्र
- चार मूर्ख पंडितों की कथा ~ पंचतंत्र
- दो मछलियों और एक मेंढक की कथा ~ पंचतंत्र
- ब्राह्मण का सपना ~ पंचतंत्र
- दो सिर वाला जुलाहा ~ पंचतंत्र
- वानरराज का बदला ~ पंचतंत्र
- राक्षस का भय ~ पंचतंत्र
- दो सिर वाला पक्षी ~ पंचतंत्र
- सोसिओपैथ
- सम्पूर्ण बैताल पचीसी
- बैताल पच्चीसी – प्रारम्भ की कहानी । विक्रम -बैताल की कहानियाँ!
- पापी कौन ? – बेताल पच्चीसी – पहली कहानी!
- पति कौन ? बेताल पच्चीसी – दूसरी कहानी!
- पुण्य किसका ? – बेताल पच्चीसी – तीसरी कहानी!
- ज्यादा पापी कौन ? – बेताल पच्चीसी – चौथी कहानी!
- असली वर कौन? – बेताल पच्चीसी – पाँचवीं कहानी!
- पत्नी किसकी ? – बेताल पच्चीसी – छठी कहानी!
- किसका पुण्य बड़ा ? – बेताल पच्चीसी – सातवीं कहानी!
- सबसे बढ़कर कौन ? – बेताल पच्चीसी – आठवीं कहानी!
- सर्वश्रेष्ठ वर कौन – बेताल पच्चीसी – नवीं कहानी!
- सबसे अधिक त्यागी कौन?- बेताल पच्चीसी – दसवीं कहानी!
- सबसे अधिक सुकुमार कौन? – बेताल पच्चीसी ग्यारहवीं कहानी!
- दीवान की मृत्यु क्यूँ ? – बेताल पच्चीसी – बारहवीं कहानी!
- अपराधी कौन? – बेताल पच्चीसी – तेरहवीं कहानी!
- चोर ज़ोर-ज़ोर से क्यों रोया और फिर हँसा? – बेताल पच्चीसी – चौदहवीं कहानी!
- क्या चोरी की गयी चीज़ पर चोर का अधिकार होता है: बेताल पच्चीसी पन्द्रहवीं कहानी!
- सबसे बड़ा काम किसने किया? – बेताल पच्चीसी सोलहवीं कहानी!
- सबसे बड़ा काम किसने किया? – बेताल पच्चीसी सोलहवीं कहानी!
- अधिक साहसी कौन : बेताल पच्चीसी – सत्रहवीं कहानी!
- विद्या क्यों नष्ट हो गयी? बेताल पच्चीसी -अठारहवीं कहानी!
- पिण्ड दान का अधिकारी कौन – बेताल पच्चीसी – उन्नीसवीं कहानी!
- बालक क्यों हँसा? बेताल पच्चीसी – बीसवीं कहानी!
- सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा कौन था? – बेताल पच्चीसी – इक्कीसवीं कहानी!
- शेर बनाने का अपराध किसने किया? बेताल पच्चीसी – बाईसवीं कहानी!
- योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा? बेताल पच्चीसी – तेईसवीं कहानी!
- माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ? बेताल पच्चीसी – चौबीसवीं कहानी!
- बेताल पच्चीसी – पच्चीसवीं कहानी!
- सम्पूर्ण जातक कथाएँ
- रुरु मृग -जातक कथा
- दो हंसों की कहानी -जातक कथा
- चाँद पर खरगोश -जातक कथा
- छद्दन्द हाथी -जातक कथा
- महाकपि -जातक कथा
- लक्खण मृग की -जातक कथा
- संत महिष -जातक कथा
- सीलवा हाथी -जातक कथा
- बुद्धिमान् वानर -जातक कथा
- सोने का हंस -जातक कथा
- महान मर्कट -जातक कथा
- महान् मत्स्य -जातक कथा
- कपिराज -जातक कथा
- सिंह और सियार -जातक कथा
- सोमदन्त -जातक कथा
- कौवों की कहानी -जातक कथा
- वानर-बन्धु -जातक कथा
- निग्रोध मृग -जातक कथा
- कालबाहु -जातक कथा
- नन्दीविसाल -जातक कथा
- उल्लू का राज्याभिषेक -जातक कथा
- श्राद्ध-संभोजन -जातक कथा
- बंदर का हृदय -जातक कथा
- बुद्धिमान् मुर्गा -जातक कथा
- व्याघ्री-कथा -जातक कथा
- कबूतर और कौवा -जातक कथा
- रोमक कबूतर -जातक कथा
- रुरदीय हिरण -जातक कथा
- कृतघ्न वानर -जातक कथा
- मूर्ख करे जब बुद्धिमानी का काम ! -जातक कथा
- कछुए की कहानी -जातक कथा
- सियार न्यायधीश -जातक कथा
- सपेरी और बंदर -जातक कथा
- चमड़े की धोती -जातक कथा
- दानव-केकड़ा -जातक कथा
- महिलामुख हाथी -जातक कथा
- विनीलक -जातक कथा
- वेस्सन्तर का त्याग -जातक कथा
- विधुर -जातक कथा
- क्रोध-विजयी चुल्लबोधि -जातक कथा
- कहानी कुशीनगर की -जातक कथा
- सहिष्णुता का व्रत -जातक कथा
- मातंग : अस्पृश्यता का पहला सेनानी -जातक कथा
- इसिसंग का प्रलोभन -जातक कथा
- शक्र की उड़ान -जातक कथा
- महाजनक का संयास -जातक कथा
- सुरा-कुंभ -जातक कथा
- सिवि का त्याग -जातक कथा
- दैत्य का संदूक -जातक कथा
- कुशल-ककड़ी -जातक कथा
- कंदरी और किन्नरा -जातक कथा
- घतकुमार -जातक कथा
- नाविक सुप्पारक -जातक कथा
- नागराज संखपाल -जातक कथा
- चंपेय्य नाग -जातक कथा
- बावेरु द्वीप -जातक कथा
- कुशल जुआरी -जातक कथा
- गूंगा राजकुमार -जातक कथा
- निश्छल गृहस्थ -जातक कथा
- मणिवाला साँप -जातक कथा
- आम चोर -जातक कथा
- पैरों के निशान पढ़ने वाला पुत्र -जातक कथा
- सुतसोम -जातक कथा
- सुदास -जातक कथा
- बौना तीरंदाज -जातक कथा
- पेट का दूत -जातक कथा
- ढोल बजाने वाले की कहानी -जातक कथा
- जानवरों की भाषा जानने वाला राजा -जातक कथा
- सुखबिहारी -जातक कथा
- साम -जातक कथा
- गौतम की बुद्धत्व प्राप्ति -जातक कथा
- गौतम बुद्ध की जन्म -जातक कथा
- महामाया का स्वप्न -जातक कथा
- असित -जातक कथा
- चार दृश्य -जातक कथा
- गौतम का गृह-त्याग -जातक कथा
- मार पर बुद्ध की विजय -जातक कथा
- बुद्ध का व्यक्तित्व -जातक कथा
- बुद्ध और नालागिरी हाथी -जातक कथा
- बालक कुमार कस्सप की -जातक कथा
- धम्म चक्र-पवत्तन -जातक कथा
- बुद्ध की अभिधर्म-देशना -जातक कथा
- राहुलमाता से बुद्ध की भेंट -जातक कथा
- सावत्थि -जातक कथा
- बुद्ध की यात्रा -जातक कथा
- परिनिब्बान -जातक कथा
- सुद्धोदन -जातक कथा
- सुजाता -जातक कथा
- सारिपुत्र -जातक कथा
- मोग्गलन -जातक कथा
- मार -जातक कथा
- बिम्बिसार -जातक कथा
- नंद कुमार -जातक कथा
- जनपद कल्याणी नंदा -जातक कथा
- जनपद कल्याणी की आध्यात्मिक यात्रा -जातक कथा
- फुस्स बुद्ध -जातक कथा
- विपस्सी बुद्ध -जातक कथा
- शिखि बुद्ध -जातक कथा
- वेस्सभू बुद्ध -जातक कथा
- ककुसन्ध बुद्ध -जातक कथा
- कोनगमन बुद्ध -जातक कथा
- कस्सप बुद्ध -जातक कथा
Major Topics
ज्ञान, आजाद है; और किसी को भी बिना किसी प्रतिबंध के ज्ञान का आनंद लेने का अधिकार है. इस में प्रकाशित कोई भी कहानी या लेख को आप बिना प्रतिबन्ध के उपयोग कर सकते हो. आप अपने ब्लॉग में यहाँ से कॉपी करके पेस्ट कर सकते हो लेकिन कोई भी फेब्रिकेशन या फाल्सीफिकेशन की जिम्मेदारी आप की होगी. वेबसाइट का सिद्धांत नैतिक ज्ञान फैलाना है, ना कि ज्ञान पर हक़ जताना. ज्ञान की स्वतंत्रता वेबसाइट का आदर्श है; आप जितना चाहते हैं उतना उसकी प्रतिलिपि(Copy) बनाकर बिना प्रतिबन्ध के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैला सकते हो.