लोमड़ी और खट्टे अंगूर

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लोमड़ी और अंगूर – एक लोमडी भूखी-प्यासी जंगल में इधर-उधर भटक रही थी लेकिन उसे कहीं कुछ खाने को न मिला. बेचारी पानी पीकर पेट भरतीं और आगे बढ जाती. घुमती-घुमती वह अंगूरों के एक बगीचे में पहुची वहां बैलों पर पके अगूरों के लटकते गुच्छे को देखते ही भूखी लोमडी के मूंह में पानी भर गया.

वह अपने पिछले पैरों पर उछल-उछल कर अंगूर के गुच्छों तक पहूंचने की चेष्ठा करने लगी. अंगूर काफी उंचाई पर थे इसलिए वह हर बार अंगूरों तक पहूचंने में नाकाम हो रही थी. लोमडी खूब कुदी-फांदी मगर वह अंगूरों तक पहूंच ही न सकी.

एक तो भूख के मारे पहले ही वह अधमरी हुई जा रही थी दूसरें यहां कहीं-कहीं फिट उछलने के कारण उसकी पसलियां हिल गई थी. अंन्ततः थक-हारकर उसने उम्मीद ही छोड दी और वहां से चलती बनी. जाते-जाते अपने दिल को तसल्ली देने के लिए उसने मन ही मन कहा – अंगूर तो खटटे हैं ऐसे खटटे अंगूर कौन खाये.

जब किसी कार्य में सफलता नहीं मिले तो बार-बार प्रयास करना चाहिए न कि उस कार्य को असाध्य समझ कर छोड देना चाहिए. ऐसे बहुत से व्यक्ति होते जो अपने लक्ष्य को पाने में असफल हो जाते है और फिर कहते है “अंगूर तो खट्टे है” असल में ऐसी बहानेबाजी उनके जीवन को ही खट्टा बना डालती है. इसलिए अपने जीवन में कभी भी ऐसा मौका न लाये की आप भी यह कहे की यार “अंगूर तो खट्टे थे”

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क्रमरहित सूची

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