मेहनतकश वर्ग के चेतना की दुनिया में प्रवेश करने का जश्न – लेनिन

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”मेहनतकश साथियो! ”मेहनतकश साथियो! मई दिवस आ रहा है। वह दिन, जब तमाम देशों के मेहनतकश वर्ग चेतना की दुनिया में प्रवेश करने का जश्न मनाते हैं, इन्सान के हाथों इन्सान के शोषण और दमन के ख़िलाफ अपनी संघर्षशील एकजुटता का इज़हार करते हैं, करोड़ों मेहनतकशों को भूख, ग़रीबी और ज़िल्लत की ज़िन्दगी से आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस महान संघर्ष में दो दुनियाएँ रूबरू खड़ी हैं — सरमाये की दुनिया और मेहनत की दुनिया, शोषण तथा ग़ुलामी की दुनिया।

एक तरफ खड़े हैं ख़ून चूसने वाले मुट्ठी भर अमीरो-उमरा, उन्होंने फैक्टरियाँ और मिलें, औज़ार और मशीनें हथिया रखे हैं, उन्होंने करोड़ों एकड़ ज़मीन और दौलत के पहाड़ों को अपनी निजी जायदाद बना लिया है, उन्होंने सरकार और फौज को अपना ख़िदमतगार, लूट-खसोट से इकट्ठा की हुई अपनी दौलत की रखवाली करने वाला वफादार कुत्ता बना लिया है। दूसरी तरफ खड़े हैं उनकी लूट के शिकार करोड़ों ग़रीब। वे मेहनत-मज़दूरी के लिए भी उन धन्‍ना सेठों के सामने हाथ फैलाने पर मजबूर हैं। इनकी मेहनत के बल से ही सारी दौलत पैदा होती है। लेकिन रोटी के एक टुकड़े के लिए उन्हें तमाम उम्र एड़ियाँ रगड़नी पड़ती हैं। काम पाने के लिए भी गिड़गिड़ाना पड़ता है, कमरतोड़ श्रम में अपने ख़ून की आख़िरी बूँद तक झोंक देने के बाद भी गाँव की अँधेरी कोठरियों और शहरों की सड़ती, गन्दी बस्तियों में भूखे पेट ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ती है।करोड़ों मेहनतकशों को भूख, ग़रीबी और ज़िल्लत की ज़िन्दगी से आज़ाद कराने की प्रतिज्ञा करते हैं। इस महान संघर्ष में दो दुनियाएँ रूबरू खड़ी हैं — सरमाये की दुनिया और मेहनत की दुनिया, शोषण तथा ग़ुलामी की दुनिया।

लेकिन अब उन ग़रीब मेहनतकशों ने दौलतमन्दों और शोषकों के ख़िलाफ जंग का ऐलान कर दिया है। तमाम देशों के मज़दूर श्रम को पैसे की ग़ुलामी, ग़रीबी और अभाव से मुक्त कराने के लिए लड़ रहे हैं जिसमें साझी मेहनत से पैदा हुई दौलत से मुट्ठी भर अमीरों को नहीं बल्कि सब मेहनत करने वालों को फायदा होगा। वे ज़मीन, फैक्टरियों, मिलों और मशीनों को तमाम मेहनतकशों की साझी मिल्कियत बनाना चाहते हैं। वे अमीर-ग़रीब के अन्तर को ख़त्म करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि मेहनत का फल मेहनतकश को ही मिले, इन्सानी दिमाग़ की हर उपज काम करने के तरीक़ों मे आया हर सुधार मेहनत करने वालों के जीवन स्तर में सुधार लायें उसके दमन का साधन न बनें।

सरमाये के ख़िलाफ श्रम के भीषण संघर्ष में सब देशों के मज़दूरों को अनेक कुर्बानियाँ देनी पड़ी हैं। बेहतर जीवन और वास्तविक आज़ादी के अधिकार के लिए लड़ते हुए उनके ख़ून के दरिया बहे हैं। जो मज़दूरों के हित में लड़ते हैं उन्हें हुकूमतों के बर्बर अत्याचार झेलने पड़ते हैं, लेकिन इतने जुल्मो-सितम के बावजूद दुनियाभर के मज़दूरों की एकता बढ़ रही है और वे लगातार, क़दम-ब-क़दम सरमायेदार शोषक वर्ग पर सम्पूर्ण विजय की ओर बढ़ रहे हैं।”

(रूसी क्रान्ति के महान नेता लेनिन ने 1904 में मई दिवस के अवसर पर यह पर्चा लिखा था।)

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