एक राजा अपनी वीरता और सुशासन के लिए प्रसिद्द था। एक बार वो अपने गुरु के साथ भ्रमण कर रहा था, राज्य की समृद्धि और खुशहाली देखकर उसके भीतर घमंड के भाव आने लगे , और वो मन ही मन सोचने लगे , ” सचमुच, मैं एक महान राजा हूँ , मैं कितने अच्छे से अपने प्रजा देखभाल करता हूँ !”
गुरु सर्वज्ञानी थे , वे तुरंत ही अपने शिष्य के भावों को समझ गए और तत्काल उसे सुधारने का निर्णय लिया।
रास्ते में ही एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था , गुरु जी ने सैनिकों को उसे तोड़ने का निर्देश दिया।
जैसे ही सैनिकों ने पत्थर के दो टुकड़े किये एक अविश्वश्नीय दृश्य दिखा , पत्थर के बीचो-बीच कुछ पानी जमा था और उसमे एक छोटा सा मेंढक रह रहा था। पत्थर टूटते ही वो अपनी कैद से निकल कर भागा। सब अचरज में थे की आखिर वो इस तरह कैसे कैद हो गया और इस स्थिति में भी वो अब तक जीवित कैसे था ?
अब गुरु जी राजा की तरफ पलटे और पुछा , ” अगर आप ऐसा सोचते हैं कि आप इस राज्य में हर किसी का ध्यान रख रहे हैं, सबको पाल-पोष रहे हैं, तो बताइये पत्थरों के बीच फंसे उस मेंढक का ध्यान कौन रख रहा था..बताइये कौन है इस मेंढक का रखवाला ?”
राजा को अपनी गलती का एहसास हो चुका था, उसने अपने अभिमान पर पछतावा होने लगा , गुरु की कृपा से वे जान चुका था कि वो प्रकृति ही है जिसने हर एक जीव को बनाया है और वही है जो सबका ध्यान रखता है।
मित्रों, कई बार अच्छा काम करने पर मिलने वाले यश और प्रसिद्धि से लोगों के मन में अहंकार घर कर जाता है , और अंततः यही उनके अपयश और दुर्गति का कारण बनता है। अतः हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम चाहे इस जीवन में किसी भी मुकाम पर पहुँच जाएं कभी घमंड न करें , और सदा अपने अर्थपूर्ण जीवन के लिए कृतज्ञ रहें।