पेड़ की दर्द

loading...

लकडहारे को लकडी काटते देख पेड की आखों में एक दम ही आंसू की धारा बहने लगी। यू तो वह हर दृष्टि से द्रढ़ था, उसकी जड भी गहरी थी, काया भी हृष्ट-पुष्ट सभी तरह से मजबूत लेकिन आज अपने आप कुछ सोच-सोच कर वह मन ही मन पश्यताप कर रहा था। कुल्हाडी की तीखी चोंटे बाराबर उसके तने पर पड रही थी।

लगातार कुल्हाडी चलाने से हथेली में आया हुआ पसीना भेट पर लग जाने के कारण लकडहारा थोडी देर रूक कर उसे पोछता, सुस्ताता। फिर खट-खट चोटे मारने लगता उसका एक-एक हिस्सा थोडा-थोड़ा करके काटता जा रहा था। कुल्हाडी ने पेड को सोच विचार मे मग्न और गर्म-गर्म आसु बहाते देख सहानुभूति और दर्द भरे स्वर में कहा’- क्षमा करना भाई! सब मेंरा ही कसुर है। मेरी वजह से जी तुम्हारे शरीर पर अत्याचार हो रहा है। तुम्हारी दुर्दषा का कारण मैं ही पापी हू। माफ़ करना। मुझसे क्यों क्षमा मांग रहे हो भाई ? लोहा तो लकडी को काटता ही हैं। मुझे पछतावा यही हैं कि मेरे द्वारा तुम्हारी दुर्दषा हो रही है। मैं तुम्हारी दुर्दषा का साधन बन रहा हूं । नहीं , नहीं । यह मैं क्यों मानने लगा ? यह मेरे – अपने दुष्कर्माें की सजा है। हर व्यक्ति को अपने पापों का फल भुगतना पडता है।

कुल्हाडी की सहानुभूति देखकर पेड ने दर्द भरे स्वर में कहा- नही भाई! मैं तुम्हे दोष नही देता। कुल्हाड़ी बोली – तो फिर किस लिए उदास हो भला? अपने मन की बात मुझसे कहकर हल्का कर लो । यूँ अन्दर ही अन्दर घुटकर तो तुम बहुत ही जल्दी अपने को बर्बाद कर डालोगे । दुसरों से कहने पर ही मन का भार हल्का होता है। बोलो तुम्हारे दुख का क्या कारण है ? पेड कुछ सकुचाया उसने लज्जित होकर आंखे नीचे कर ली । आज जैंसे वह अपनी ही नजरों में गिर गया था। क्या कहें ? कैंसे कहें ? निष्चय ही नही कर पा रहा था।

भाई बोलते क्यों नही, पश्यताप की अग्नि मे क्यो भस्म हो रहे हो। कुल्हाडी के इस अनुनय और अनुरोध से पेड कुछ आश्वस्त हुआ, साहस बटोर कर कुछ कहने को उघत हुआ। वह बोला – मुझे तुमसे कोई शिकायत नही है।

मुझे लज्जा तो इस बात पर आ रही हैं कि हमारी लकडी की ही जाति का बना यह हत्था अपनी जाति और वंष को नष्ट करने में सहायक बना हुआ है। तुम्ही सोचो यदि लकडी का यह हत्था तुम्हारा सहायक न बनता तो भला तुम मुझे किस तरह काट सकते थे। नही बिलकु नही। लकडी की सहायता से ही तुम इस योग्य बने हो कि मुझे यो धीरे-धीरे काटते चले जा रहे हो। फिर ?

सारा दुख-दर्द शब्दो में उडेलते हुए और नेत्रों से आंसू बहाते हुए पेड बोला – जब अपना ही अपने को काटता हैं तो बडी ग्लानि होती है। अपना यदि विश्वाश्घात न करे तो दूसरा कुछ नही बिगाड सकता। अब तुम्ही बताओं अगर यह लकडी का टुकडा – यह मेरा ही अंश तुम्हारी सहायता सहयोग नहीं करे । दूसरे शब्दों मे विश्वाश्घात न करे तो तुम्हारी पैनी धार भी मेरा कुछ नही बिगाड सकती।

यदि हमारे अन्दर ही कोई कमजारी हैं तो दूसरे को भला क्यों दोष दें । वह क्या कमजोरी है ? लोहे की कुल्हाडी ने स्पष्टीकरण चाहा- एकता का अभाव ! यदि हम सबमें एकता रहती तो भले ही यह लकडी का छोटा सा टुकडा जलकर ख़त्म हो जाता लेकिन दुश्मन की किसी भी हालात में मदद नहीं करता। विष्वासघात, विभाजन, फुट- यही तो सारे उत्पातो की जड है। जब हम खुद ही
एक-दूसरे को परेशान करने लगते हैं तो मैं क्या, बडे-बडे परिवार, बडे-बडे समुदाय यहां तक कि देश तक नष्ट हो जाते हैं । कुल्हाडी चुप! डससे आगे कुछ पुछते न बना।

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।
loading...

किसी भी विज्ञापन को विश्वास करने से पहले जांच करें ।

loading...

क्रमरहित सूची

Recent Posts

ज्ञान, आजाद है; और किसी को भी बिना किसी प्रतिबंध के ज्ञान का आनंद लेने का अधिकार है. इस में प्रकाशित कोई भी कहानी या लेख को आप बिना प्रतिबन्ध के उपयोग कर सकते हो. आप अपने ब्लॉग में यहाँ से कॉपी करके पेस्ट कर सकते हो लेकिन कोई भी फेब्रिकेशन या फाल्सीफिकेशन की जिम्मेदारी आप की होगी. वेबसाइट का सिद्धांत नैतिक ज्ञान फैलाना है, ना कि ज्ञान पर हक़ जताना. ज्ञान की स्वतंत्रता वेबसाइट का आदर्श है; आप जितना चाहते हैं उतना उसकी प्रतिलिपि(Copy) बनाकर बिना प्रतिबन्ध के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक फैला सकते हो.