साधू की झोपड़ी एक गाँव के पास दो साधू अपनी अपनी झोपड़ियाँ बना कर रहते थे। दिन के वक्त वह दोनों गाँव जा कर भिक्षा मांगते और उसके बाद पूरा दिन पूजा-पाठ करते थे। एक दिन भारी तूफान और आँधी आने के कारण उनकी झोपड़ियाँ जगह-जगह से टूट-फूट गयीं और बहुत हद तक बर्बाद हो गयीं। पहला साधू यह सब देख कर दुख के मारे विलाप करने लगा और बोला, हे ईश्वर ! तूने मेरे साथ यह अनर्थ क्यों किया। क्या मेरी भक्ति, तप, जप और पूजा का यही पुरस्कार है ? इस तरह वह पूरा दिन बड़बड़ाते हुए, अपना जी जलाते हुए वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गया। तभी वहाँ दूसरा साधू आ पहुंचा। उसने अपनी बर्बाद जोपड़ी देखी तो वह मुस्कुराने लगा। और उसी वक्त ऊपरवाले का धन्यवाद करने लगा। उसने कहा कि- ऐसे भीषण तूफान में तो पक्के मकान भी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं पर तूने तो मेरी आधी झोपड़ी बचा ली। आज यह बात सिद्ध हो गयी की तू मेरी भक्ति से कितना प्रसन्न है। और तेरी मुझ पर कितनी बड़ी कृपा है। सीख – हर अच्छी बुरी घटना के दो पहलू होते हैं। बुरा निष्कर्ष निकालना, या अच्छा अर्थ निकालना यह आप के हाथ में है।
निष्कर्ष
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- शेर बनाने का अपराध किसने किया? बेताल पच्चीसी – बाईसवीं कहानी!
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- माँ-बेटी के बच्चों में क्या रिश्ता हुआ? बेताल पच्चीसी – चौबीसवीं कहानी!
- बेताल पच्चीसी – पच्चीसवीं कहानी!
- सम्पूर्ण जातक कथाएँ
- रुरु मृग -जातक कथा
- दो हंसों की कहानी -जातक कथा
- चाँद पर खरगोश -जातक कथा
- छद्दन्द हाथी -जातक कथा
- महाकपि -जातक कथा
- लक्खण मृग की -जातक कथा
- संत महिष -जातक कथा
- सीलवा हाथी -जातक कथा
- बुद्धिमान् वानर -जातक कथा
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- महान् मत्स्य -जातक कथा
- कपिराज -जातक कथा
- सिंह और सियार -जातक कथा
- सोमदन्त -जातक कथा
- कौवों की कहानी -जातक कथा
- वानर-बन्धु -जातक कथा
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- श्राद्ध-संभोजन -जातक कथा
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- मूर्ख करे जब बुद्धिमानी का काम ! -जातक कथा
- कछुए की कहानी -जातक कथा
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