नियोग

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नियोग और हिन्दू धर्म (देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग)

नियोग का अर्थ

वेदादि शास्त्रों में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा नियमबद्ध उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है । यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है । इसके विपरीत आचरण राजदंड प्रायश्चित् के भागी होते हैं । हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए।

इसी विधि के द्वारा पांडु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री आदि ने नियोग किया । महाभारत में वेद व्यास विचित्रवीर्य व चित्रांगद के मर जाने के पश्चात् उन अपने भाइयों की स्त्रियों से नियोग करके अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर की उत्पत्ति की थी । नीचे तथ्यों पर आधारित नियोग विषय पर सभी शंकाओं का प्रश्नों का उत्तर दिया गया है ।
क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार का प्रयोग होता था?
निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति में नियोग के प्रमाण भरे पड़े है।

महाभारत में नियोग

व्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6

वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व 314/6
उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया और अपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा- महाभारत आदि पर्व अ 104
कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करते हैं- महाभारत आदि पर्व 120/26
परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि पर्व 103/10
पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदि पर्व 120/28
पुराणों में नियोग
किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छा अनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154
राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69

रामायण में नियोग 
वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52

मनुस्मृति के प्रमाण

आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
टिप्पणी :- (देवर अर्थात द्वितीय वर) आज भी प्रचलित है।

कृपया ध्यान दें: हमारा भूखंड में ज्यादातर आबादी यानी ८०% से ज्यादा मूलनिवासियों को हिन्दू नाम से नवाजी गयी है । सुनकर आप को दुख लगेगा के हमारे पूर्वज ना हिन्दू थे ना आप जिसको भगवान के रूपमें पूजते हो वह हिन्दू हैं । हिन्दूज़िम एक षडयंत्र है और ये सोच शरारती ताकतों ने सीधे साधे लोगों को मानसिक तौर पर और धर्म के नाम पर गुलाम बनाने केलिए एक साजिश है । आप कोई भी वेद पुराण या इस भूखंड में विकसित कोई भी स्क्रिप्चर पढ़ लें आप को कहीं भी अल-हिन्द, ईन्दोस्तान या हिंदुस्तान जैसे शब्द नहीं मिलेंगे । कभी आपने रामायण या महाभारत में जो की एक काल्पनिक रचना है उसमे भी इन शब्दों का प्रयोग देखा है? ना आपको अल-हिन्द, ईन्दोस्तान या हिंदुस्तान जैसे शब्द मिलेंगे न हिन्दू; क्यों के हिन्दू पहचान पुराने युग में था ही नहीं । आप जिसको हिन्दुइजम समझते हो वह दरअसल वेदीजिम यानी वर्णवाद है । वेदीजिम या वैदिक या वर्णवाद इस भूखंड का प्रमुख आस्था नहीं था । शातिर इतिहासकार, झूठे धर्म के ठेकेदार और स्वार्थी राजाओं और अभी के राजनेताओंने अपनी और अपनी संगठित स्वार्थ केलिए इसको प्रोमोट किया ताकि जिससे अपनी दुकान चलासकें । इंडिया दरअसल बहुभाषी और बहु संस्कृति का भूखंड रहा जब तक ये एक अखंड भूखंड में परिवर्तित न हो गया । राजा अशोक ने अपनी सबसे बड़ी अखंड भूखंड बनाई और जिसका प्रमुख धर्म बुद्धिजीम था । हमारा देश का प्रमुख धर्म बुद्धिजीम है ना की वेदीजिम । 263BC से 185BC तक हमारा देश का प्रमुख धर्म बौद्ध धर्म था और यहाँ के ज्यादातर मूलनिवासी बुद्धिस्ट । 185BC  के वाद पुष्यामित्रशुंग ने धोकेसे बुद्धिस्ट अम्पायर को हथिया  लिया और जबरन अपनी वैदिक विचार धारा अपने राज्य और अपने मित्र राज्य के ऊपर मृत्यु भय, छल और बल, कपट और कौशल में थोपा और संगठित पुजारी वाद यानी ब्राह्मणवाद पैदा किया । ब्राह्मणवाद झूठ, भ्रम, अज्ञानता, अंधविश्वास, तर्कहीनता, नफरत, भेदभाव और हिंसा फैलाया और इस भूखंड के लोगों को मुर्ख और भगवान भ्रम में धकेल दिया जिससे वह तर्क अंध बन गए जिससे हमारे भूखंड का प्रगति पिछड़ गया; लोग अगड़ी और पिछड़ी में बंट गए और एक स्रोत से होने के बावजूद एक दूसरे को नफ़रत करने लगे । हिन्दू पहचान जैसे कुछ नहीं लेकिन इनलोगोंने गैर वैदिक धर्म को अपने से अलग करने के लिए ये पहचान अपनाया । इस भूखंड में कोई भी वैदिक पहचान बौद्धिक पहचान से पुराना नहीं जो ये प्रमाणित करता है बौद्धिक धर्म वैदिक धर्म से पुराना है । आप कोई भी ध्वस्त बौद्धिक स्थल का ऐज और कोई वैदिक मंदिर का एक्साम्पल ले सकते हैं । आपको बौद्धिक सम्पदा ही वैदिक सम्पदासे पुराना ही मिलेंगे । इस भूखंड से बुद्धिजीम को मिटाने के लिए हिन्दू पहचान का उत्पत्ति की गयी है ।  हिन्दू पहचान में ज्यादा वैदिक या वर्ण व्यवस्था मानने वाले लोगों को ही पंजीकृत की गयी है । हिन्दू धर्म में आपको कोई एक मूल विचार नहीं मिलेंगे जैसे ईसाई धर्म में बाइबिल या इस्लाम धर्म में कुरान है । हिन्दू धर्म में एक समूह रचनाओं का संगठन है जो की अपने आप में  वैचारिक विरोधी है । अब की ज्यादा पूजे जाने वाले पहचान जैसे गणेश, शिव, राम, लक्ष्मी, दुर्गा इत्यादि पहचान आपको वेद में नहीं मिलेंगे क्यों के ये सब काल्पनिक चरित्र हैं । ये सब काल्पनिक चरित्र को भगवान बता कर इस भूखंड का कुछ धूर्त यहां के मूलनिवासियों को सदियों मुर्ख और उनसे छलावा करके उनके जिंदगी और उनके मन को सदियों नियंत्रण करते आ रहे हैं जिसका जानकारी भक्तों को होना चाहिए । इस वेबसाइट का लक्ष्य आपको मानसिक विकृति से बचाना है ना की आपकी मन को चोट पहुँचाना । प्रयोग से ये पता चला है की सच्चाई जानने के वाद भी आप अपनी अभ्यास को छोड़ नहीं सकते क्यों की अभ्यास एक दिन से छूटने वाला चीज नहीं है, लेकिन सत्य की जानकारी आनेवाले पीढ़ियोंको मानसिक विकृति से बचा सकता है ।

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